28/11/2025
🙏🌼देवीअर्गलास्तोत्रम्🌼🙏
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🙏ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥1॥
जिस जगदम्बिका का नाम जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा तथा स्वधा हैं, उस भगवती को हम नमस्कार करते हैं।
🙏जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणी।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥2॥
हे चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। प्राणियों का संताप हरण करने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो। सबमें व्याप्त रहने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो। संहार रूप से संसार का विनाश करने वाली हे कालरात्रि! तुम्हारी जय हो।
🙏मधु-कैटभ-विद्रावि विधातृवरदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥3॥
मधु तथा कैटभ का विदारण करने वाली एवं ब्रह्मदेव को वरदान देने वाली हे देवि! तुम्हें नमस्कार है। हे भगवती, तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥4॥
महिषासुर का विनाश कर भक्तों को सुख देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏रक्तबीजवधे देवी चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥5॥
रक्तबीज का वध करने वाली तथा चण्ड, मुण्ड का विनाश करने वाली हे देवि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥6॥
शुम्भ तथा निशुम्भ और धूम्राक्ष का मर्दन करने वाली हे देवि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥7॥
वन्दनीय चरणों वाली एवं सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाली हे देवि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥8॥
अचिन्त्य रूप तथा अचिन्त्य चरित्र वाली, सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश करने वाली हे देवि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥9॥
हे पापों का नाश करने वाली चण्डिके देवि! जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हें नमस्कार करते हैं, उन्हें तुम रूप दो, जय दो, यश दो तथा उनके शत्रुओं का विनाश करो।
🙏स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥10॥
व्याधियों का विनाश करने वाली हे चण्डिके देवि! जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, तुम उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो तथा उनके शत्रुओं का विनाश करो।
🙏चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥11॥
हे चण्डिके! जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं, तुम उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो तथा उनके शत्रुओं का विनाश करो।
🙏देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥12॥
हे भगवति! तुम मुझे सौभाग्य तथा आरोग्य दो, मुझे अत्यन्त सुख प्रदान करो और मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥13॥
हे देवि! मेरे शत्रुओं का नाश करो, मुझे बल दो, मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥14॥
हे देवि! मेरा कल्याण करो, मुझे विपुल संपत्ति दो, मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏सुरासुर-शिरोरत्न-निघृष्ट-चरणेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥15॥
हे भगवति! देवताओं तथा असुरों के शिरोरत्न के नमस्कार से तुम्हारे चरण घिसते रहते हैं। अतः हे अम्बिके! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥16॥
हे भगवति! तुम अपने भक्तों को विद्वान, यशस्वी तथा लक्ष्मीवान बनाओ। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏प्रचण्ड-दैत्य-दर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥17॥
बड़े-बड़े उद्धत दैत्यों के घमण्ड को चूर करने वाली हे चण्डिके! मुझ शरणागत को तुम रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏चतुर्भुजे चतुर्वक्त्र-संस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥18॥
चार भुजाओं वाली, ब्रह्मदेव द्वारा स्तुति की जाने वाली, हे परमेश्वरि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥19॥
हे भगवति! भगवान् विष्णु नित्य, निरन्तर तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं, तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏हिमाचल-सुतानाथ-संस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥20॥
भगवान् सदाशिव द्वारा स्तुति की जाने वाली हे परमेश्वरि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏इन्द्राणीपतिसद्भाव-पूजिते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥21॥
इन्द्र के द्वारा शुद्ध भावना से पूजी जाने वाली हे देवि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏देवि प्रचण्ड-दोर्दण्ड-दैत्यदर्प-विनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥22॥
अपनी प्रचण्ड भुजाओं से दैत्यों के घमण्ड को चूर-चूर कर देने वाली हे देवि! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏देवि भक्तजनोद्दाम-दत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥23॥
अपने भक्तजन का अत्यन्त आनंद बढ़ाने वाली हे अम्बिके! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा हमारे शत्रुओं का विनाश करो।
🙏पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोद्भवाम् ॥24॥
हे भगवति! हमारी इच्छा के अनुकूल चलने वाली सुन्दर पत्नी मुझे प्रदान करो, जो उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो तथा संसार रुपी सागर से पार करने वाली हो।
🙏इदं स्तोत्रं पठित्वां तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्या-वरमाप्नोति सम्पदाम् ॥25॥
जो लोग इस अर्गला स्तोत्र का पाठ कर दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं, वे सप्तशती के पाठ का उत्तम फल प्राप्त करते हैं तथा भगवती के दया से उन्हें प्रचुर धनराशि भी मिलती है।
🙏॥इतिश्रीदेव्याः अर्गलास्तोत्रंसंपूर्णम्॥🙏
Astro Utthan