भक्ति साधना 2.0

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श्री राधा 🙏

कलियुगी चेला हास्यप्रसंग।।एक गुरुजी एक गांव में गए, तो एक नया नया चेला बना, बोला हमको भी चेला बनाओ गुरुजी बोले बन जाओ, अ...
19/06/2025

कलियुगी चेला हास्यप्रसंग।।

एक गुरुजी एक गांव में गए, तो एक नया नया चेला बना, बोला हमको भी चेला बनाओ गुरुजी बोले बन जाओ, अब चेला बनने के बाद बोला आप गुरु हम चेला अब कुछ सुनाओ? गुरूजी ने कहा राम राम करो?

बोला यह तो साधारण बात है , उँचा !

गुरुजी ने मन ही मन सोचा कि यह चेला गुरु ही नहीं मिला है! कुछ चेले शास्त्रीय गुरु होते हैं |

गुरु जी ने कहा तो रामचरितमानस पढ़ो? चेला बोला रामायण सभी जानते हैं, उचा | तो गुरु जी ने कहा था गीता? हाँ यह कुछ ठीक है, कुछ ! तो गुरुजी बोलें आज गीता का कल महात्म्य सुनाए गीता | अब महात्म में उन्होंने श्लोक श्लोक--

सर्वो उपनिषदों गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः |

उपनिषद सब गाए हैं और दुहने वाले भगवान श्रीकृष्ण हैं | एक घंटे तक प्रवचन दिया चेला बीच में ही कहा गया-- आहा आहा महाराज वाह वाह क्या बात कही है |

वाह, वाह, गुरु जी का और उत्साह बढ़ाया की चेला कितना ध्यान से सुन रहा है,

इतनी प्रशंसा की तो गुरु जी और सुनाते एक घंटे बाद गुरु जी बोले कि बेटा कुछ समझ में नहीं आया तो पूछ लो? चेला बोला हमें समझ में ना आया हो, हमें !आपको कम समझाते हो हम बहुत कुछ समझते हैं! गुरु जी ने मन ही मन कहा कि हमें पहले ही समझ नहीं आया! लेकिन चलो गुरुजी क्या हम गुरुजी की इच्छा रखलो पूछ ही लो कुछ? तो बोला और तो एक अक्षर समझ में आया,

बस एक बात समझ में नहीं आई |

कौन सी ? कहा आप कह रहे थे--

दोग्धागोपाल नन्दनः |

तो ये दो गधा कौन थे, गुरु जी विचार करने लगे क्या समसा क्या गुरु जी ने माथा पित अपना | चेला बोला गुरुजी ने उत्तर नहीं दिया- ये दो गधा कौन थे?

गुरुजी बोले एक और तुम ! एक तुम सुनने वाले और दूसरा हम तूफान सुनने वाले !!

शास्त्र कहते हैं कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया था। युद्ध के अंत में ए...
19/06/2025

शास्त्र कहते हैं कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया था। युद्ध के अंत में एक दिन संजय कुरुक्षेत्र के उस स्थान पर गए जहां संसार का सबसे महानतम युद्ध हुआ था।

तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने वहां आकर धीमे और शांत स्वर में कहा, "अब आप उस बारे में सच्चाई कभी नहीं जान पाएंगे, क्योंकि वह अब इतिहास हो चुका है"।

संजय ने धूल के बड़े से गुबार के बीच दिखाई देने वाले भगवा वस्त्रधारी एक वृद्ध व्यक्ति को देखने के लिए उस ओर सिर को घुमाया।

"मुझे पता है कि आप कुरुक्षेत्र युद्ध के बारे में पता लगाने के लिए यहां हैं, लेकिन आप उस युद्ध के बारे में तब तक नहीं जान सकते, जब तक आप ये नहीं जान लेते हैं कि असली युद्ध है क्या?" बूढ़े आदमी ने रहस्यमय ढंग से कहा।

"तुम महाभारत का क्या अर्थ जानते हो?" तब संजय ने उस रहस्यमय व्यक्ति से पूछा।

वह कहने लगा, "महाभारत एक महाकाव्य है, एक गाथा है, एक वास्तविकता भी है, लेकिन निश्चित रूप से एक दर्शन भी है।"

वृद्ध व्यक्ति संजय को और अधिक सवालों के चक्कर में फंसा कर मुस्कुरा रहा था।

"क्या आप मुझे बता सकते हैं कि दर्शन क्या है?" संजय ने निवेदन किया।

अवश्य जानता हूं, बूढ़े आदमी ने कहना शुरू किया। "पांडव कुछ और नहीं, बल्कि आपकी पाँच इंद्रियाँ हैं - दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श और श्रवण... और क्या आप जानते हैं कि कौरव क्या हैं? उसने अपनी आँखें संकीर्ण करते हुए पूछा।

कौरव ऐसे सौ तरह के विकार हैं, जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं लेकिन आप उनसे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते है। पर क्या आप जानते हैं कैसे?

संजय ने फिर से न में सर हिला दिया।

"जब कृष्ण आपके रथ की सवारी करते हैं!" यह कह वह वृद्ध व्यक्ति मुस्कुराया।

"कृष्ण आपकी आंतरिक आवाज, आपकी आत्मा, आपका मार्गदर्शक प्रकाश हैं और यदि आप अपने जीवन को उनके हाथों में सौप देते हैं तो आपको फिर चिंता करने की कोई आवश्कता नहीं है।" उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा।

संजय अब तक लगभग चेतन अवस्था में पहुंच गया था, लेकिन जल्दी से एक और सवाल लेकर आया।

फिर कौरवों के लिए द्रोणाचार्य और भीष्म क्यों लड़ रहे हैं?

भीष्म हमारे अहंकार का प्रतीक हैं, अश्वत्थामा हमारी वासनाएं, जो कि जल्दी नहीं मरतीं। दुर्योधन हमारी सांसारिक वासनाओं, इच्छाओं का प्रतीक है। द्रोणाचार्य हमारे संस्कार हैं। जयद्रथ हमारे शरीर के प्रति राग का प्रतीक है कि 'मैं ये देह हूं' का भाव। द्रुपद वैराग्य का प्रतीक हैं। अर्जुन मेरी आत्मा है, मैं ही अर्जुन हूं और स्वनियंत्रित भी हूं। कृष्ण हमारे परमात्मा हैं। पांच पांडव पांच नीचे वाले चक्र भी हैं, मूलाधार से विशुद्ध चक्र तक। द्रौपदी कुंडलिनी शक्ति है, वह जागृत शक्ति है, जिसके 5 पति 5 चक्र हैं। ओम् शब्द ही कृष्ण का पांचजन्य शंखनाद है, जो मुझ और आप आत्मा को ढ़ाढ़स बंधाता है कि चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूं, अपनी बुराइयों पर विजय पा, अपने निम्न विचारों, निम्न इच्छाओं, सांसारिक इच्छाओं, अपने आंतरिक शत्रुओं यानि कौरवों से लड़ाई कर , अर्थात अपनी मेटेरियलिस्टिक वासनाओं को त्याग कर और चैतन्य पाठ पर आरूढ़ हो जा, विकार रूपी कौरव अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति के हैं।

श्री कृष्ण का साथ होते ही 72000 नाड़ियों में भगवान की चैतन्य शक्ति भर जाती है, और हमें पता चल जाता है कि मैं चैतन्यता, आत्मा, जागृति हूं, मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूं, इसलिए उठो जागो और अपने आपको, अपनी आत्मा को, अपने स्वयं सच को जानो, भगवान को पाओ, यही भगवद प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है, यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

ये शरीर ही धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र है। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ मन है। अर्जुन आप हो, और श्रीकृष्ण आपके सारथी हैं।

वृद्ध आदमी ने दुःखी भाव के साथ सिर हिलाया और कहा, "जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, अपने बड़ों के प्रति आपकी धारणा बदल जाती है। जिन बुजुर्गों के बारे में आपने सोचा था कि आपके बढ़ते वर्षों में वे संपूर्ण थे, अब आपको लगता है वे सभी परिपूर्ण नहीं हैं। उनमें दोष हैं। और एक दिन आपको यह तय करना होगा कि उनका व्यवहार आपके लिए अच्छा या बुरा है। तब आपको यह भी अहसास हो सकता है कि आपको अपनी भलाई के लिए उनका विरोध करना या लड़ना भी पड़ सकता है। यह बड़ा होने का सबसे कठिन हिस्सा है और यही कारण है कि गीता महत्वपूर्ण है।"

संजय धरती पर बैठ गया, इसलिए नहीं कि वह थक गया था, बल्कि इसलिए कि वह जो समझ लेकर यहां आया था, वो एक-एक कर धराशाई हो रही थी। लेकिन फिर भी उसने लगभग फुसफुसाते हुए एक और प्रश्न पूछा, तब कर्ण के बारे में आपका क्या कहना है?

"आह!" वृद्ध ने कहा, आपने अंत के लिए सबसे अच्छा प्रश्न बचाकर रखा हुआ है।

"कर्ण आपकी इंद्रियों का भाई है। वह इच्छा है। वह सांसारिक सुख के प्रति आपके राग का प्रतीक है। वह आप का ही एक हिस्सा है, लेकिन वह अपने प्रति अन्याय महसूस करता है और आपके विरोधी विकारों के साथ खड़ा दिखता है। और हर समय विकारों के विचारों के साथ खड़े रहने के कोई न कोई कारण और बहाना बनाता रहता है।"

"क्या आपकी इच्छा; आपको विकारों के वशीभूत होकर उनमें बह जाने या अपनाने के लिए प्रेरित नहीं करती रहती है?" वृद्ध ने संजय से पूछा।

संजय ने स्वीकार में सिर हिलाया और भूमि की तरफ सिर करके सारी विचार श्रंखलाओं को क्रमबद्ध कर मस्तिष्क में बैठाने का प्रयास करने लगा, और जब उसने अपने सिर को ऊपर उठाया, वह वृद्ध व्यक्ति धूल के गुबारों के मध्य कहीं विलीन चुका था। लेकिन जाने से पहले वह जीवन की वो दिशा एवं दर्शन दे गया था, जिसे आत्मसात करने के अतिरिक्त संजय के सामने अब कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था।

साभार जय श्रीकृष्ण 🌺🙏🕉️

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