Dr Ravindra Rana

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डेढ दशक से अधिक समय से श्रमजीवी पत्रकार। दैनिक जागरण , डीएलए, हिन्दुस्तान, अमर उजाला में सेवाएं। वेस्ट यूपी की सियासत, किसान, खाप पंचायत, डेवलपमेंट और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ग्राउंड रिपोर्टिंग। पत्रकारिता व जनसंचार में एमए, एलएलबी, पीएच.डी.

04/07/2025

सत्ता, संबंध और सीबीआई: एक महिला नेता, तीन बेटियां, एक साम्राज्य और अंतहीन द्वंद की दास्तान!

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#सत्ता_संबंध_और_CBI
#डॉ_सरोजिनी_अग्रवाल























ये एक वटवृक्ष की सूखती शाखाओं की कहानी है।जहां एक आदमी ने फटे पजामे से महल तक का सफर तय किया।जहां एक स्त्री ने सत्ता, शि...
04/07/2025

ये एक वटवृक्ष की सूखती शाखाओं की कहानी है।
जहां एक आदमी ने फटे पजामे से महल तक का सफर तय किया।
जहां एक स्त्री ने सत्ता, शिक्षा और साम्राज्य तीनों में झंडे गाड़े।
पर वहीं, रिश्ते पीछे छूटते गए।
सेठ दयानंद की बहू, जो कभी विरासत की पहरेदार थीं, आज अपनी बेटी के केस की फाइल में डूबी हैं।
जो कभी MBBS सीटों के लिए संघर्ष कर रही थीं, अब सीबीआई की तारीखों का इंतज़ार कर रही हैं।

क्या दौलत रिश्तों की जगह ले सकती है?
क्या सत्ता वह सुरक्षा दे सकती है जो एक भाई का हाथ देता है?
क्या एक मां की सफलताएं बेटी की सजा को रोक पाएंगी?
ये सवाल सिर्फ सरोजिनी से नहीं, हम सब से हैं।
शायद जवाब अभी सीबआई के अगले कदम में नहीं,
बल्कि उस खामोशी में छिपा है जो अब उनके आलीशान घर में पसरी है।

इस गाथा की आखिरी लकीरें अभी बाकी हैं।
CBI की रिपोर्ट, अदालत का फैसला—जो भी हो—पर यह स्पष्ट है:
यह जीत की कहानी नहीं, अकेलेपन की कीमत पर खरीदी गई ऊंचाई की दास्तान है।

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#सत्ता_संबंध_और_CBI
#डॉ_सरोजिनी_अग्रवाल





















ये एक वटवृक्ष की सूखती शाखाओं की कहानी है।जहां एक आदमी ने फटे पजामे से महल तक का सफर तय किया।जहां एक स्त्री ने सत्ता, शि...
04/07/2025

ये एक वटवृक्ष की सूखती शाखाओं की कहानी है।
जहां एक आदमी ने फटे पजामे से महल तक का सफर तय किया।
जहां एक स्त्री ने सत्ता, शिक्षा और साम्राज्य तीनों में झंडे गाड़े।
पर वहीं, रिश्ते पीछे छूटते गए।
सेठ दयानंद की बहू, जो कभी विरासत की पहरेदार थीं, आज अपनी बेटी के केस की फाइल में डूबी हैं।
जो कभी MBBS सीटों के लिए संघर्ष कर रही थीं, अब सीबीआई की तारीखों का इंतज़ार कर रही हैं।

क्या दौलत रिश्तों की जगह ले सकती है?
क्या सत्ता वह सुरक्षा दे सकती है जो एक भाई का हाथ देता है?
क्या एक मां की सफलताएं बेटी की सजा को रोक पाएंगी?
ये सवाल सिर्फ सरोजिनी से नहीं, हम सब से हैं।
शायद जवाब अभी सीबआई के अगले कदम में नहीं,
बल्कि उस खामोशी में छिपा है जो अब उनके आलीशान घर में पसरी है।

इस गाथा की आखिरी लकीरें अभी बाकी हैं।
CBI की रिपोर्ट, अदालत का फैसला—जो भी हो—पर यह स्पष्ट है:
यह जीत की कहानी नहीं, अकेलेपन की कीमत पर खरीदी गई ऊंचाई की दास्तान है।

Dr. Ravindra Rana/ Rajesh Sharma

विधायकजी डिस्पोज़ेबल में, साहब बोन चाइना में! एक सत्ताधारी पहलवान नेता ने अपने पॉडकास्ट में बड़ी सहजता से कह दिया —"ज्या...
29/06/2025

विधायकजी डिस्पोज़ेबल में, साहब बोन चाइना में!
एक सत्ताधारी पहलवान नेता ने अपने पॉडकास्ट में बड़ी सहजता से कह दिया —
"ज्यादातर विधायक डीएम, एसएसपी के कमरे में जाकर पाँव छूकर आशीर्वाद लेते हैं।"
अब वो नेता महिला पहलवान प्रकरण में क्लीन चिट पा चुके हैं, तो उनके इस बयान को झूठ मानने का कोई ठोस आधार भी नहीं।
उत्तर प्रदेश में सबसे दिलचस्प कहानियाँ सत्ता और सिस्टम के उसी द्वंद से निकलती हैं, जिसे आम आदमी अफवाह समझता है, लेकिन जो दरअसल सत्यकथा है।
किस्सा नंबर 1: मंत्री, मिल और मीटिंग
एक कैबिनेट मंत्री हाल ही में बागपत पहुँचे। मामला था — चीनी मिल का, जो किसानों के लगभग 400 करोड़ रुपये की बकाया राशि दबाकर बैठी है। ये जानकारी शायद उस विभाग के मंत्री तक नहीं पहुँची, जिनके अधीन चीनी मिल आती है।
लेकिन जैसे ही दूसरे विभाग के मंत्री को भनक लगी, वो किसानों के पक्ष में खड़े हो गए। एक जिले में वो पहले भी किसानों का बकाया दिलवा चुके थे, सो आत्मविश्वास में अफसरों को मीटिंग में बुलाया।
पर ब्यूरोक्रेसी ने अपना "कद" दिखा दिया — न अफसर आया, न मीटिंग हुई।
अगली बार मंत्री ने खुद तारीख तय की — फिर भी बैठक टल गई।
कहा गया कि मूल विभाग के मंत्री ने ही अफसरों को मीटिंग में न जाने को कह दिया। अब ये नहीं पता कि उन्होंने खुद मना किया या चीनी मिल के किसी बाबू ने उनके WhatsApp से आदेश भिजवा दिए।
किस्सा नंबर 2: ट्रॉली, दरोगा और लोकतंत्र
मेरठ में सत्ता पक्ष के एक शीर्ष नेता के परिजन की गौशाला के लिए चारे की ट्रॉली जा रही थी। पुलिस चौकी पर दरोगा जी ने ट्रॉली रोक दी — बोले,
“जनता को असुविधा हो रही है।”
चालक ने नेताजी के रिश्तेदार को फोन किया। उधर से परिचय, पद और संबंधों की पूरी गाथा सुनाई गई। बताया कि चारा गायो का है भैंसों का नहीं।
लेकिन दरोगा जी टस से मस नहीं हुए।
“जनता को असुविधा हो रही है।”
जब मामला न सुलझा, तो नेताजी ने फोन पर कहा —
“कुछ सुविधा दे दो दरोगा जी को, ट्रॉली निकल जाएगी।”
पर अफ़सोस, "गौसेवा ब्रह्मास्त्र" भी दरोगा जी की वर्दी के आगे निष्प्रभावी रहा।
ये कोई एक कहानी नहीं, बल्कि "यूपी का लोकतांत्रिक व्यवहारिक पाठ्यक्रम" है।
किस्सा नंबर 3: डिस्पोज़ेबल कप बनाम सम्मान
एक बार मेरठ में छपरौली से पांच बार विधायक रहे चौधरी नरेंद्र सिंह एडवोकेट से मिलने गया। उनके नाम की नेमप्लेट पर लिखा था: "नरेंद्र पाल सिंह एडवोकेट", MLA का कोई निशान नहीं।
उन्होंने जिला योजना समिति की एक बैठक का किस्सा सुनाया —
मंत्री और डीएम के लिए चाय कप-प्लेट में, बाकी विधायकों के लिए डिस्पोज़ेबल में।
उन्होंने चाय नहीं पी। डीएम ने बार-बार आग्रह किया, तो बोले —
“चाय पिलाने का सलीका नहीं है, तो बार-बार टोकिए मत।”
जब डीएम ने कारण पूछा, तो बोले —
“मैं उस पार्टी से हूं, जिसके नेता ने शिष्टाचार पर किताब लिखी है।”
नतीजा — कप बदल गए, माफी आई और चाय सभ्य हो गई।
वो बताते हैं —
“जब मैं पहली बार MLA बना, तो चौधरी चरण सिंह ने दिल्ली बुलाकर सिखाया कि विधायक का प्रोटोकॉल क्या होता है।”
आज की तस्वीर:
बीच की एक सरकार ऐसी आई जिसमें अफसरों के कहने पर विधायकों के टिकट तक कटने लगे।
और मौजूदा मुख्यमंत्री को तो खुलेआम कहना पड़ा —
"थाने की दलाली मत करो!"
मैंने एक राजनीतिक दल के ज़िलाध्यक्ष से पूछा —
“अफसर आपको डिस्पोज़ेबल में चाय देते हैं या कप में?”
वो चौंक गए। मैंने छपरौली वाला किस्सा सुनाया तो हँसकर बोले —
"बात तो कलियुग में भी सच है, पर अब हम चाय के कप को हाथ नहीं लगाते। हमसे बड़े दल वाले तक पी जाते हैं!"
अब आइए मुद्दे की जड़ पर:
विधायक वोट लेकर आता है, अफसर पोस्टिंग लेकर।
विधायक पाँच साल के लिए, अफसर 30 साल की पक्की कुर्सी पर।
और इस 'स्थायी बनाम अस्थायी' सत्ता संघर्ष में जनता बस तमाशबीन है।
जनता की भूमिका:
अब जनता भी अद्भुत हो गई है।
कल तक जो रोते थे — "नेता काम नहीं करते",
आज कैंडल मार्च लेकर अफसरों के समर्थन में सड़कों पर हैं।
जाति और धर्म के चश्मे ने लोकतंत्र की आँखें धुंधली कर दी हैं।
आज कोई अफसर सही है या ग़लत, कोई फर्क नहीं पड़ता —
बस वो "हमारी जाति का" होना चाहिए।
नेता काम करे या न करे, अफसर भ्रष्ट हो या ईमानदार —
जनता को चाहिए — जाति और धर्म वाला जनप्रतिनिधि,
बाकी सब बोनस है।
और अंत में...
लोकतंत्र में जनता सबसे ऊपर होती है — संविधान कहता है।
लेकिन असलियत जाननी हो तो किसी मीटिंग में चले जाइए —
जहाँ विधायक को चाय डिस्पोज़ेबल में दी जाती है, और अफ़सर साहब को धो-धकाकर बोन चाइना में।
अब अगर कोई विधायक चाय नहीं पी रहा, तो समझिए —
उसमें थोड़ी आत्मा बची है।
बाकी विधायक तो अब अफसर की आँखों से चाय पीने का अभ्यास कर चुके हैं।
कुछ तो बाकायदा ‘सर-सर’ करते हुए चुस्की लेते हैं, ताकि अगली फाइल जल्दी बढ़े।
आज का विधायक दो ही जगह दिखता है —
1. थाने में पाँव छूते हुए। (ये छह बार के माननीय सांसद का प्रमाणित कथन है।)
2. फेसबुक पर शेर लिखते हुए —
"हम वो दरिया हैं, जिसे कोई रोक नहीं सकता..."
(जबकि दरोगा उसी दरिया के किनारे ट्रॉली रोक चुका होता है।)
राज्य व्यवस्था इतनी संवेदनशील हो गई है कि
किसी अफसर के खिलाफ बोलना अब राष्ट्रद्रोह के करीब माना जाने लगा है।
कभी अफसर कहते थे — “बैठ जाइए।”
अब कुछ नहीं कहते, और नेताजी खुद ही सोफे पर बैठ जाते हैं।
अब लोकतंत्र का असली प्रतीक चुनाव चिन्ह नहीं, चाय का कप है।
जो कप में चाय पीता है, वही सत्ता के केंद्र में है। बाकी सब — डिस्पोज़ेबल हैं।





























जुदा सियासत, फक्कड़ मिजाज और किसानों के हक की आवाज़ — यादें चौधरी अजित सिंह कीआज 6 मई, चौधरी अजित सिंह जी की पुण्यतिथि प...
06/05/2025

जुदा सियासत, फक्कड़ मिजाज और किसानों के हक की आवाज़ — यादें चौधरी अजित सिंह की

आज 6 मई, चौधरी अजित सिंह जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

जब राजनीति में प्रचार और पॉवर का बोलबाला था, तब चौधरी साहब एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो बिना दिखावे, बिना सुरक्षाकर्मी, बिना पब्लिसिटी स्टंट के किसानों की लड़ाई सच्चे मन से लड़ते रहे। अमेरिका में कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी छोड़, उन्होंने गांव, ज़मीन और किसान के बीच रहना चुना — और यही उनकी पहचान बन गई।

गन्ने की मिठास से सराबोर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आज भी चौधरी साहब को बुजुर्ग की तरह याद करते हैं — वो नेता जो ठहाकों में गंभीर बातें कह जाते थे, जो मंच पर गन्ना चूसते थे और 12 तुगलक रोड को आम किसान का घर बना दिया था।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जब आंदोलन कमजोर पड़ने लगा, तब उनका एक फोन राकेश टिकैत को नई ताकत दे गया। मेरठ से लखनऊ पदयात्रा हो या जाट आरक्षण की लड़ाई — चौधरी साहब हर मोर्चे पर डटे रहे, लेकिन कभी खुद को "नेता" नहीं समझा।

उनका रहन-सहन, संवाद और सिद्धांत आज की राजनीति के लिए मिसाल है।

🙏 उदयवाणी के संपादक श्री रामबोल तोमर जी का हृदय से आभार, जिन्होंने इस लेख को प्रकाशित कर इन स्मृतियों को सहेजने का मंच दिया।

#किसानों_की_आवाज़ #राजनीति_के_संत

🌟 मेरठ में वरिष्ठ पत्रकारों की ऐतिहासिक बैठक! 🌟आज मेरठ में वरिष्ठ पत्रकारों, संपादकों और मीडिया पेशेवरों की एक महत्वपूर्...
27/04/2025

🌟 मेरठ में वरिष्ठ पत्रकारों की ऐतिहासिक बैठक! 🌟

आज मेरठ में वरिष्ठ पत्रकारों, संपादकों और मीडिया पेशेवरों की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, जिसमें इशू बेस्ड पत्रकारिता की भूमिका पर गहन चर्चा की गई। 📰💬

इस बैठक में यह बात सामने आई कि पत्रकारिता सिर्फ समाचार देने का माध्यम नहीं, बल्कि यह शहर के विकास में एक महत्वपूर्ण भागीदार है। नौचंदी मेला की उपेक्षा, अधूरी सड़कों, ट्रैफिक समस्याओं और बुनियादी ढांचे की चिंताओं को लेकर पत्रकारों ने गंभीर विचार-विमर्श किया और यह तय किया कि अब समय आ गया है कि इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाए।

मुख्य निर्णय: ✅ इशू बेस्ड पत्रकारिता पर जोर, जिससे नागरिकों की आवाज़ को मजबूती मिले।
✅ शहर के विकास और मुद्दों पर नियमित बैठकें आयोजित की जाएंगी।
✅ पूर्व जिला सूचना अधिकारी श्री सुरेन्द्र शर्मा को समन्वयक नियुक्त किया गया।

बैठक में निम्नलिखित प्रमुख लोग उपस्थित थे:

पूर्व संपादक, हिन्दुस्तान – श्री पुष्पेन्द्र शर्मा

पूर्व संपादक, अमर उजाला – श्री नीरजकांत राही

संपादक, केसर खुशबू – रवि विश्नोई

पूर्व जिला सूचना अधिकारी – श्री सुरेन्द्र शर्मा

साहित्यकार एवं लेखक – श्री न‍िर्मल गुप्ता

जनसत्ता से – श्री प्रदीप वत्स

संपादक, ग्रीन इंडिया – श्री नरेश उपाध्याय

सेव इंडिया न्यूज़ और PoliticalAdda.com से – श्री राजेश शर्मा

PoliticalAdda.com से – डॉ. रविन्द्र राणा

यह सभी पत्रकार और मीडिया के वरिष्ठ सदस्य शहर के विकास और नागरिकों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाने के लिए एकजुट हुए हैं।

📖 Read the detailed news on PoliticalAdda.com to know more about this impactful meeting and the future of journalism in Meerut.

#पत्रकारिता #इशूबेस्डपत्रकारिता

24/03/2025
24/03/2025
09/02/2025

मुखिया गुर्जर की यह कहानी न सिर्फ राजनीति में उनके उतार-चढ़ाव को दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक साधारण किसान का बेटा बड़े नेताओं के विश्वासपात्र बन जाता है। मुलायम सिंह यादव से लेकर साहब सिंह वर्मा और चौधरी अजित सिंह तक, मुखिया गुर्जर ने अलग-अलग दौर में कई दिग्गजों के साथ काम किया और उनका समर्थन भी पाया।
बागपत में जाटों की राजनीति को उन्होंने बड़े दिलचस्प अंदाज में समझाया है। उनके मुताबिक, बागपत के जाट अगर किसी को अपना मान लें, तो उसके लिए सब कुछ कर गुजरते हैं। लेकिन अगर उन्हें लगे कि कोई उनके हितों के खिलाफ है, तो वे पूरी ताकत से उसके विरोध में खड़े हो जाते हैं।
दिल्ली में वन गुर्जरों के मुद्दे को लेकर संसद तक भैंस ले जाने और गोबर लेकर विधानसभा में पहुंचने की उनकी रणनीतियां भी चर्चा का विषय रही हैं। गुर्जर आरक्षण आंदोलन में उनकी सक्रियता और बार-बार जेल जाने की घटनाएं उनकी संघर्षशील राजनीति को दर्शाती हैं।
अब जब यूपी में पंचायत चुनाव होने वाले हैं, मुखिया गुर्जर फिर से मेरठ के जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए तैयारी कर रहे हैं। अगर वे इस चुनाव में जीतते हैं, तो यह उनके यूपी विधानसभा में पहुंचने के सपने की दिशा में एक और कदम होगा।
वीडियो में उन्होंने अपने राजनीतिक सफर के कई रोचक किस्से साझा किए हैं, जो राजनीति के भीतर की चालबाजियों और समीकरणों को समझने में मदद करेंगे।पूरा वीडियो you tube लिंक खोलकर देखें ……………………..

*नमो भारत ट्रेन के यात्री अब एनसीएमसी कार्ड का उपयोग करके हर यात्रा पर पा सकते हैं 10% छूट*नमो भारत ट्रेन के यात्री अब अ...
29/01/2025

*नमो भारत ट्रेन के यात्री अब एनसीएमसी कार्ड का उपयोग करके हर यात्रा पर पा सकते हैं 10% छूट*

नमो भारत ट्रेन के यात्री अब अपनी यात्रा के लिए एनसीएमसी कार्ड का उपयोग करके हर यात्रा पर 10% छूट का लाभ उठा सकते हैं। यह पहल एनसीआरटीसी द्वारा हाल ही में लॉन्च किए गए लॉयल्टी पॉइंट प्रोग्राम का विस्तार है, जिसके अंतर्गत ‘नमो भारत’ मोबाइल ऐप के माध्यम से खरीदे गए टिकटों पर छूट प्रदान की जा रही है। इस पहल के साथ, यात्री अब नमो भारत ट्रेनों में अपनी प्रत्येक यात्रा पर एनसीएमसी कार्ड से भी छूट का आनंद ले सकते हैं, जिसके अंतर्गत वे जितनी अधिक यात्रा करेंगे, उतनी ही अधिक बचत कर सकेंगे।

लॉयल्टी प्रोग्राम के तहत, यात्री एनसीएमसी कार्ड का उपयोग करके नमो भारत ट्रेनों में यात्रा पर खर्च किए गए प्रत्येक रुपये पर एक पॉइंट अर्जित करेंगे। प्रत्येक लॉयल्टी पॉइंट का मूल्य ₹0.10 (10 पैसे) है, और एकत्रित पॉइंट्स यात्री के एनसीएमसी खाते में जमा किए जाएंगे। उदाहरण के लिए, यदि कोई यात्री ₹100 यात्रा पर खर्च करता है, तो उसके एनसीएमसी खाते में 100 अंक (₹10 के बराबर) जमा किए जाएंगे। यह ऑफर किसी भी एनसीएमसी कार्ड पर उपलब्ध है। स्टेशन के टिकट काउंटर पर इन पॉइंट्स को रीडीम करा कर छूट का लाभ उठाया जा सकता है।

एनसीआरटीसी ने हाल ही में लॉयल्टी पॉइंट्स प्रोग्राम की शुरूआत की है, जिसके अंतर्गत यात्रियों को ‘नमो भारत’ ऐप के ज़रिए खरीदे गए टिकटों पर 10% की छूट मिलती है। ऐप के ज़रिए डिजिटल क्यूआर टिकट खरीदने और एनसीएमसी कार्ड के इस्तेमाल पर छूट देने की इस पहल का उद्देश्य न केवल यात्रियों को वित्तीय लाभ प्रदान करना है, बल्कि पेपरलेस टिकटिंग के साथ यात्रा को सुव्यवस्थित बनाना और एक स्वच्छ, सतत भविष्य में योगदान देना भी है।

लॉयल्टी प्रोग्राम नमो भारत ट्रेनों के नियमित यात्रियों को लाभ पहुँचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे उन्हें हर यात्रा के साथ बचत का लाभ प्रदान किया जाए। नमो भारत के नियमित यात्री, प्रत्येक यात्रा के साथ एकत्रित लॉयल्टी बोनस को अनलॉक कर उसे किफ़ायती बना सकते हैं।

यात्रियों के अधिक कुशल और आरामदायक यात्रा अनुभव के लिए उन्हे नमो भारत मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऐप के हर नए उपयोगकर्ता को एप डाउनलोड करने पर ₹50 (500 लॉयल्टी पॉइंट्स के बराबर) मिलते हैं। इसके अतिरिक्त, उपयोगकर्ता दूसरों को ऐप रेफ़र करके अतिरिक्त 500 लॉयल्टी पॉइंट्स भी कमा सकते हैं। रेफ़र करने वाले और रेफ़री दोनों को ₹50 (500 लॉयल्टी पॉइंट के बराबर) मिलेंगे, जो उनके संबंधित खातों में जमा किए जाएँगे। अर्जित किए गए सभी लॉयल्टी पॉइंट्स क्रेडिट की तारीख से एक वर्ष के लिए वैध हैं, जो नियमित, सतत यात्रा और ऐप के साथ निरंतर जुड़ाव को बढ़ावा देते हैं। नमो भारत ऐप गूगल प्ले स्टोर और एप्पल एप स्टोर दोनों पर डाउनलोड के लिए उपलब्ध है।

ये यात्री-केंद्रित पहल नमो भारत यात्रियों के लिए किफ़ायती, सुविधाजनक और समग्र यात्रा अनुभव को बेहतर बनाने की एनसीआरटीसी की निरंतर प्रतिबद्धता को उजागर करती हैं। ये आधुनिक, ज़िम्मेदार और कुशल परिवहन को बढ़ावा देने वाले अभिनव समाधानों को लागू करने के प्रति एनसीआरटीसी के समर्पण को भी दर्शाते हैं।

29/01/2025

VIP कल्चर: लोकतंत्र से आस्था तक, हर जगह विशेषाधिकार
VIP कल्चर सिर्फ़ सरकार और प्रशासन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धार्मिक स्थलों और आस्था के केंद्रों तक फैल चुका है। लोकतंत्र के मूल सिद्धांत कहते हैं कि सभी नागरिक समान हैं, लेकिन व्यवहार में कुछ लोग ‘विशेष’ हो जाते हैं—चाहे वह सड़क पर हों, सरकारी दफ्तर में, अस्पताल में, या फिर मंदिर में!

1. मंदिरों में VIP दर्शन: आस्था में भी भेदभाव

मंदिरों को भगवान का घर कहा जाता है, जहां सब समान होते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि भगवान तक पहुंचने के लिए भी VIP रास्ते बनाए गए हैं।

आम श्रद्धालु घंटों कतार में खड़े रहते हैं, जबकि VIP लोगों को सीधे गर्भगृह में प्रवेश मिल जाता है।
बड़े मंदिरों में VIP पास या दान के बदले विशेष दर्शन की व्यवस्था होती है, जबकि साधारण भक्तों को धक्का-मुक्की झेलनी पड़ती है।
VIP भक्तों को विशेष प्रसाद, बैठने की जगह और पुजारियों का अलग से आशीर्वाद मिलता है, जबकि आम भक्त को कुछ ही सेकंड में दर्शन कर आगे बढ़ने को कहा जाता है।
2. तीर्थ स्थलों और गंगा स्नान में VIP संस्कृति

कुंभ मेले, हरिद्वार, प्रयागराज या वाराणसी जैसे तीर्थ स्थलों पर आम श्रद्धालुओं को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन VIP लोगों के लिए अलग घाट बना दिए जाते हैं।
जहां आम लोग भीड़ में संघर्ष करते हैं, वहीं खास लोगों के लिए विशेष स्नान व्यवस्था, सुरक्षा घेरा और सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं।
कई बार VIP लोगों के स्नान के लिए आम श्रद्धालुओं को घंटों रोका जाता है, जिससे भीड़ में अफरा-तफरी तक मच जाती है।
3. सरकारी तंत्र में VIP संस्कृति

VIP कल्चर सिर्फ़ मंदिरों और तीर्थों तक सीमित नहीं है, यह सत्ता के हर स्तर पर मौजूद है:

नेताओं और अधिकारियों की सुरक्षा के नाम पर ट्रैफिक रोका जाता है, जबकि आम जनता घंटों जाम में फंसी रहती है।
अस्पतालों में VIP वार्ड अलग से बनाए जाते हैं, जबकि आम मरीजों को बिस्तर तक नहीं मिलता।
एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर VIP यात्रियों के लिए विशेष सुविधाएं होती हैं, जबकि आम जनता लंबी कतारों में खड़ी रहती है।
क्या यह बदलेगा?

हर सरकार VIP कल्चर खत्म करने के वादे करती है, लेकिन असल में इसे बनाए रखने के नए तरीके ढूंढे जाते हैं। मंदिरों और तीर्थ स्थलों में भी यह भेदभाव खत्म होना चाहिए, क्योंकि भगवान के दरबार में VIP और आम आदमी का भेद न्यायसंगत नहीं हो सकता।

जब तक जनता खुद इस संस्कृति को स्वीकार करती रहेगी, तब तक VIP कल्चर खत्म नहीं होगा। बदलाव तभी आएगा जब लोग अपने अधिकारों को समझेंगे और भक्ति से लेकर लोकतंत्र तक समानता की मांग करेंगे।

आस्था में भेदभाव और सत्ता में विशेषाधिकार—क्या यही "सबका साथ, सबका विकास" है?

   पर पढ़ें बुंदेलखंड विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष राजा बुंदेला से विशेष बातचीत
23/01/2025

पर पढ़ें बुंदेलखंड विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष राजा बुंदेला से विशेष बातचीत

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