21/09/2024
विषय : अनूठी गुरु शिक्षा
भगवान श्रीकृष्ण को उज्जयिनी के सुविख्यात विद्वान और धर्मशास्त्रों के प्रकांड विद्वान पंडित संदीपनी जी के पास भेजा गया। ऋषि संदीपनी श्रीकृष्ण एयर गरीब परिवार में जन्मे सुदामा को साथ बिठाकर विभिन्न शास्त्रों की शिक्षा देते थे। श्रीकृष्ण गुरुदेव के यज्ञ हवन के लिए स्वयं जंगल जाकर लकड़ियाँ क़त्ज़र लाया करते थे। श्रीकृष्ण रात के समय गुरुदेव के चरण दबाया करते और सवेरे उठते ही उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया करते।
शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण ब्रज लौटने कागे तो ऋषि के चरणों में बैठते हुए हाथ जोड़कर बोले, “गुरुदेव, मैं दक्षिणा के रूप में आपको कुछ भेंट करना चाहता हूँ!”
गुरु संदीपनी ने मुस्कुराकर सिर आर हाथ रखते हुए कहा “वत्स कृष्ण ज्ञान कुछ बदले में लेने के लिए नहीं दिया जाता l” सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को ज्ञान के साथ संस्कार देता है। मैं दक्षिणा स्वरूप यही चाहता हूँ कि तुम औरों को भी संस्कारित करते रहो।
गुरु संदीपनी जान गए कि मैं तो केवल गुरु हूँ लेकिन यह बालक आगे चलकर “जगद्गुरु कृष्ण” के रूप में ख्याति पाएगा।
श्रीकृष्ण ने उनका आदेश स्वीकार कर लौट आए। आगे चलकर उन्होंने अर्जुन को न केवल ज्ञान दिया अपितु उनके सारथी भी बने.