29/08/2025
मैंने सोचा था इश्क़ में कोई मुझसा मुझको चाहेगा
जो मुझको मुझसा देखेगा और आँखो में बसाएगा।
जो समझेगा सब बात मेरी दोस्त मेरा बन पाएगा
जो शब्दों के इस जाल में नहीं मुझको फसाएगा।
मैं ग़लत रहा ये सोच कर की इश्क़ तुम्हारा पाक है
तुम में तो है अहम बहुत हाँ इश्क़ तुम्हारा ख़ाक है।
मैं दिल से सोचा करता था बस दिल में तुमको रखता था
मैं सोचे बिना ही तुमसे सब बाते किया करता था।
तुमने मुझको जाना कहाँ अपना कभी माना कहाँ
मुझे समझने में देरी हुई मैं तो था अनजाना यहाँ।
कितनी आसानी से तुमने हर बार मुझे धकेल दिया
नाम दिया इसे इश्क़ का और साथ मेरे एक खेल किया।
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