Alhayyat Pasha

Alhayyat Pasha Politically Non-Political|| Proudly Indian Muslim Turk|| Activist|| Thinker|| Freelancer Journalist||

डू फर्स्ट, थिंक लेटर...कमबुद्धि गाल बजाऊ लोगो को जब पॉवर मिल जाती है, तो क्या हालात बनते है, यह 370 हटाने के बाद के हाला...
16/09/2024

डू फर्स्ट, थिंक लेटर...

कमबुद्धि गाल बजाऊ लोगो को जब पॉवर मिल जाती है, तो क्या हालात बनते है, यह 370 हटाने के बाद के हालात से समझ आता है।
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पहली बात यह समझ लें, की 370 हटाना निहायत गैर जरूरी था।

जम्मू कश्मीर को जो 95 के करीब विशेष अधिकार दिये गए थे, उसमे 80 से ज्यादा अधिकार नेहरू-इंदिरा के दौर तक खींच लिए गए थे।

जो बचे थे, वह नाममात्र के,खोखले सिम्बोलिक अधिकार थे। लेकिन फिर भी, कहने को तो संविधान के 370 का पन्ना जुड़ा हुआ था।

उसे फाड़कर जश्न मनाया गया।
यहां ठीक है।
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जब 370 हटाई गई, तो स्टेट के दो टुकड़े हुए। दोनो को यूनियन टेरेटरी बना दिया गया।

गृहमंत्री ने संसद में वादा किया, की दावा कि यह अस्थायी अवस्था है। और जल्द ही स्टेटहुड रिस्टोर कर देंगे।

यहां तक भी ठीक है।
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अब कश्मीर छोड़िए, जम्मू में भी, जहाँ इनका काफी होल्ड था, पब्लिक नाराज है। स्टेटहुड न मिलने को लेकर।

कश्मीर घाटी में तो नामलेवा नही है। एक बार महबूबा ने इनसे मिलकर सरकार बना ली, तो उनकी हालत भी पतली है। लद्दाख में सोनम वांगचुक अलग ही मोर्चा खोले हुए है। वे पैदल यात्रा करके कभी चीन बार्डर की तरफ जाते हैं, कभी दिल्ली मार्च नकर रहे हैं।

वहां इनका सांसद हुआ करता था।

हार गया। स्टेटहुड की मांग है। हालत सांप छछूँदर की हो रखी है।

स्टेटहुड दें तो कैसे दें।
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फुल स्टेट में सेंटर का रोल नही होता।

वहां आप सेना, अर्धसैनिक बल वगैरह का स्टेट की मर्जी के बगैर इस्तेमाल कर नही सकते। और कश्मीर में आंतरिक, बाहरी हालात ऐसे हैं, की सुरक्षा बलों के बगैर चलेगा नहीं।

370 में यह व्यवस्था थी, की सेंटर इन बलों की तैनाती कर सकेगा। पूछने अनुमति लेने की जरूरत नही थी। वह व्यवस्था तो छाती ठोककर हटा दी। अब स्टेटहुड देंगे, तो नार्मल स्टेटहुड ही देंगे।

पर कैसे दें?? अपने हाथ पैर काट लेने का काम हो जाएगा।

तो यूनियन टेरेटरी रखकर ही काम चला रहे हैं, जब तक चल जाये। कम से कम एलजी के मार्फ़त पुलिस पर तो कन्ट्रोल है।
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कुछ लोग कहेंगे कि ऐसे कैसे? नार्थ ईस्ट में भी तो स्टेटहुड है, और सुरक्षा बल भी। तो भईया, गूगल मारो न।

उधर भी धारा 371 और 372 लागू है। यह वही है, जो कश्मीर में 370 था। पर आपको नही पता, क्योकि आपको हिस्ट्री, पॉलिटिक्स व्हाट्सप से पढ़नी है, किताबो से नहीं।

और खुद आपकी अक्ल उतनी ही कौड़ी की है, जितने आपके गैंग की बॉस की।
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पर राष्ट्र के तौर पर एक विकट स्थिति है। बार्डर स्टेट, चीन, पाक सबकी ललचाई आंख, उद्विग्न भड़की पब्लिक है।

जम्मू में आपके थोड़े बहुत समर्थंक भी छिटक रहे हैं। वहां जो मल फैलाया है, बाकी के देश मे इत्र बनाकर बेचा है।

क्या करें, क्या न करें??
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कोई रास्ता सुझाइये।

🙏

28/08/2024

World's Oldest Bank is Situated in Morocco. Watch till the end

25/08/2024

Beautiful Night in Jesalmer Rajasthan India.

ग़दर का रंगमंच.. !! 1857 की क्रांति का सबसे प्रमुख कारण अवध के सैनिकों का विद्रोह था..और अवधियों को ही ज्यादा दिक्कत क्य...
25/08/2024

ग़दर का रंगमंच.. !!

1857 की क्रांति का सबसे प्रमुख कारण अवध के सैनिकों का विद्रोह था..और अवधियों को ही ज्यादा दिक्कत क्यो थी?

क्योकि उन्हें अग्निवीर बना दिया गया था।
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अंग्रेजो ने बंगाल, बिहार में कब्जा जमा लिया। पर फौजी, लोकल नही रखना चाहते थे।

वे फॉरेन से फौजी लाये।
याने पड़ोसी देश, अवध से..

भारी मात्रा में रिक्रूटमेंट के लिए अवध नवाब ने अनुमति दी,

एक शर्त पर..
हमारे फौजियों की नौकरी पक्की होगी।
आप उन्हें जब मर्जी निकाल न सकेंगे।

अगर किसी को बर्खास्त करना हो, उस पर कोई आरोप हो, तो उसकी डिफेंस - अवध का एटॉर्नी जनरल करेगा।
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तो अवध का एटॉर्नी जनरल, या उसका जो भी उर्दू नाम हो, अवधिया फौजियों का सुरक्षा चक्र था।

किसी और राज्य के सिपाहियों को ऐसी सुरक्षा हासिल न थी। अवध वाले खुद को ऊंचा समझते, जैसे पुराना टीचर, खुद को शिक्षामित्रों से ऊपर समझता है।

ये सुरक्षा टूट गयी,
जब अवध हड़प लिया गया।

नवाब ही नवाब न रहा, तो उसका लीगल प्रोटेक्शन भी बेमानी हो गया। अवध के नेटिव सिपाही खुद को अस्थायी, अग्निवीर समझने लगे। फ्रस्टेशन घर करने लगी।

और गोरे हुक्मरान से नफरत भी।
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कुछ और भी कारण थे।

ज़बरन समुद्र यात्रा कराना, विदेश पोस्टिंग का भत्ता घटाना। मिशनरीज की गतिविधियां और गाय सूअर की चर्बी वाले कारतूस का हल्ला..

जो हल्ला मौलवी अहमदुल्ला ने फैलाया था।

दूर दक्षिण में पैदा हुआ ये पूर्वांचली, 1857 के "षड्यंत्र" का मास्टरमाइंड था। बेगम हजरत महल के साथ लखनऊ में क्रांति का झंडा इनने ही बुलंद किया।
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आजादी की लड़ाई को जात धर्म के चश्मे से नही देखा जाना चाहिए। पर जब ऐसा देखने की तमन्ना जोर मारे, और आप खुर्दबीन लगाकर देखें, तो साफ दिखता है कि 1857, मूलतः "मुस्लिम क्रांति" थी।

ग़दर का रंगमंच, झांसी नही..
अवध था,

स्पॉटलाइट में थी इसकी राजधानी लखनउ, लखनऊ की रेजीडेंसी..
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सौ साल तक रेसीडेंसी, अवध के नवाब की ताकत को धीरे धीरे सोख रही थी। और फिर उसे जब पूरी तरह हटा दिया, तो रेसिडेंट का घर सत्ता की नई सीट बन गयी।

मेरठ छावनी में विद्रोह, फौजियों के दिल्ली कूच की खबर से, लखनऊ में भी ग़दर फूटा। अंग्रेजो पर कहर टूटा, आसपास के इलाकों से अफसर, सिविलयन सब रेसीडेंसी में जा छुपे।

विद्रोहियों ने रेजीडेंसी पर घेरा डाल दिया। जबरजस्त गोले बरसाए, रेसीडेंसी तबाह हो गयी। इसकी कोठियां, चर्च, हस्पताल, ऑफिस, खंडहरों में बदल गए।

रेजिडेंट लारेंस सहित लगभग सारे अफसर मारे गए। महिलाये, बच्चे भी। बहुत थोड़े, रेस्क्यू फोर्स के आने पर भाग पाये।
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आगे की कथा आप जानते है। कुछ महीनों में ब्रिटिश ने वापस लखनऊ जीत लिया। हजरत महल नेपाल पलायन कर गयी, वहीं गुमनामी में उनकी मृत्यु हुई।

मौलवी अहमदुल्ला, की तलाश सरगर्मी से होती रही। उनके सर पर भारी इनाम रखा गया। मौलवी अपने एक मित्र जमींदार के यहां शरण लेने गए।

मित्र जगन्नाथ सिंह ने उन्हें गोली मारकर, सर काटकर, शाहजहांपुर के कलेक्टर के पास भिजवा दिया।

कलेक्टर साहब ने उसे थाने के सामने लटका दिया। कुछ लड़कों ने उसे जान पर खेल कर वहां से उठाया और फिर बाइज्जत दफनाया।
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रेसोडेंसी में घुसते ही सामने बेली गारद गेट है। कर्नल बेली के नाम से बने इस गेट पर, तोप के गोलों के निशान दिखाई देते है।

पीछे दायें आर्मरी है। थोड़ा आगे, बाएं आपको हस्पताल मिलेगा। यहां गोला खाये लारेंस ने आखरी सांस ली थी।

आगे बढिये, बैंक्वेट हाल मिलेगा। रेसीडेंसी केवल अंग्रेजो का ही ठिकाना था, ऐसा नही।पॉश कालोनी थी, शहर के रईसों के भी बंगले थे।

सभी की छत टूटी है, दीवारें घायल, गोलियों और गोलों के निशान, पतली चौड़ी ईंटो में पैवस्त हैं। चौड़ी दीवारें, रोमन आर्च, बड़े बडे हॉल..
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रेसोडेंसी के केंद्र का इलाका काफी हद तक संरक्षित है। शायद रिस्टोरेशन की वजह से।

सेलुलर जेल की तरह ये ग्लूमी प्लेस है। पर्यटन के लिए यहां जाना, आपके पर्यटकीय उत्साह को भंग कर सकता है।

धरती का ये कोना, आज भी 170 साल पहले, एक लम्हे में थमा हुआ है। हाथ पीछे बांधे, चुपचाप, इन भग्न कोठियों के गिर्द घूमिये।

निशानों को देखिए।
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आवाजे सुनाई देती है। चीख, पुकार,
धमाके.. !!
तोप के गोले इर्द गिर्द फटते दिखेंगे।
दीवारें भहराकर गिरती दिखेंगे।

धुएं, धूल का गुबार आपके आगे पीछे उठता दिखेगा। एक गोली कान के पास से सनसनाते गुजरेगी, नजदीकी दीवार में धंस जाएगी।
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ये ताजमहल नही, लाल किला नही, मन्दिर नही।किसी के धन दौलत, ऐश्वर्य, विजय का स्मारक नही।

दो देश,दो रेस के बीच जमीन के एक टुकड़े पर सत्ता के लिए हुई अनाम मौतों का भग्न शिलालेख है। आप, खुद को जिस दल, धर्म , रेस का मानते हों, वैसा भाव रख सकते हैं।

ये आपकी मर्जी है।
ये आपका रंगमंच हैं।

18/08/2024

धर्मांतरण करने वाली हिना की एक और वीडियो सुनिए -

'प्रेमशंकर गुप्ता ने अपना नाम निहाल खान बताया। मजार पर निकाह करने के नाम पर मुझे बरेली ले आया। वहां एक घर में रखा। पता चला कि वो हिन्दू है। मेरे गले पर चाकू रखा। मारने की धमकी दी। जबरन मेरा धर्मांतरण कराया'

📽️- द लीडर हिंदी

सितंबर 1690 जब अंग्रेज़ों के दूतों को हाथ बांधकर और दरबार के फ़र्श पर लेटकर मुग़ल बादशाह औरंगजेब से माफ़ी मांगनी पड़ी थी....
16/08/2024

सितंबर 1690 जब अंग्रेज़ों के दूतों को हाथ बांधकर और दरबार के फ़र्श पर लेटकर मुग़ल बादशाह औरंगजेब से माफ़ी मांगनी पड़ी थी. सिराजुद्दौला और टीपू सुल्तान पर जीत हासिल करने से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने औरंगज़ेब आलमगीर से भी जंग लड़ने की कोशिश की थी लेकिन इसमें बुरी हार का सामना करना पड़ा।

सेनापति सीदी याक़ूत ने अंग्रेजी क़िले से बाहर कंपनी के इलाक़े लूटकर वहां मुग़लिया झंडे गाड़ दिये और जो सिपाही मुक़ाबले के लिए गए उन्हें काट डाला. बाक़ियों के गले में ज़ंजीरें पहनाकर उन्हें बम्बई की गलियों से गुज़ारा गया।

बम्बई किले पर मुग़ल कब्जा होने के बाद अंग्रेजी दूत मुग़ल शहंशाह के तख़्त के क़रीब पहुंचे तो उन्हें फ़र्श पर लेटने का हुक्म दिया गया.
सख़्त बादशाह ने उन्हें सख़्ती से डांटा और फिर पूछा कि वह क्या चाहते हैं.

दोनों ने पहले गिड़गिड़ाकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अपराध को स्वीकार किया और माफ़ी मांगी, फिर कहा कि उनका ज़ब्त किया गया व्यापारिक लाइसेंस फिर से बहाल कर दिया जाए और सीदी याक़ूत को बम्बई के क़िले की घेराबंदी ख़त्म करने का हुक्म दिया जाए.

उनकी अर्ज़ी इस शर्त पर मंज़ूर की गई कि अंग्रेज़ मुग़लों से जंग लड़ने का डेढ़ लाख रुपये हर्जाना अदा करें, आगे से आज्ञाकारी होने का वादा करें और बम्बई में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रमुख जोज़ाया चाइल्ड भारत छोड़ दे और दोबारा कभी यहां का रुख़ न करे.

अंग्रेज़ों के पास ये तमाम शर्त सिर झुकाकर क़ुबूल करने के अलावा कोई चारा नहीं था, सो उन्होंने स्वीकार कर लिया और वापस बम्बई जाकर सीदी याक़ूत को औरंगज़ेब का ख़त दिया, तब जाकर उसने घेरेबंदी को ख़त्म की और क़िले में बंद अंग्रेज़ों को 14 महीनों के बाद छुटकारा मिला.

15/08/2024

क्या तुम अपने गांव के प्रधान या वार्ड के पार्षद से सवाल पूंछ सकते हो ?

क्या तुम जिलाधिकारी की आंख में आंख डाल कर गलत का विरोध कर सकते हो ?

क्या किसी भी डिपार्टमेंट का सरकारी बाबू तुमसे घूस मांगे तुम उसको बिना घूस दिए अपना काम करवा सकते हो ?

पुलिस वाला किसी भी बात पर तुम पर हांथ उठाए क्या तुम उसका विरोध कर सकते हो ?

सरकारी अस्पताल में इलाज न मिलने पर प्राइवेट में जाने के अलावा कोई रास्ता है क्या ?

सरकारी विद्यालयों की हालत को देखते हुए अपनी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा बच्चों की शिक्षा प्राइवेट स्कूलों में खर्च करने के अलावा कोई रास्ता है क्या ?

अगर इनमे से कुछ नही कर सकते तो कैसे आजाद हो बे तुम??
इस देश में आजाद वो है जो पैसे वाला है ।

15/08/2024

World's Oldest Bank is Situated in Morocco.

यह महान दृश्य है...आजादी की बेला, बरसों का स्वप्न, खुली हवा में सांस, औऱ उपर लहराता तिरंगा। सोचता हूँ कि फहराने वाले के ...
15/08/2024

यह महान दृश्य है...

आजादी की बेला, बरसों का स्वप्न, खुली हवा में सांस, औऱ उपर लहराता तिरंगा। सोचता हूँ कि फहराने वाले के मस्तिष्क में क्या चल रहा होगा?
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वह जो नीचे खड़े हैं, तिरंगे को देख रहे हैं, नेहरू को देख रहे हैं। उनका दृश्य सीमित है। विशाल असलियत दूसरी ओर से दिखती है।

क्योकि ऊंचे किले की प्राचीर पर खड़े होकर, दूर तक दिखता है।

ये विशाल जनसमूह !!

ये वोटर नही, कार्यकर्ता और समर्थक नही, मुग्ध श्रोता भी नही। उन्मादित गर्वीलों का जमावड़ा नही है, ये दीन हीन, आर्थिक- सामाजिक रूप से निचुड़ चुका राष्ट्र है।

अंगभंग के ताजे रिसते घाव के साथ, घिसटते हुए भी जश्न मनाने आया है। वो खड़ा होकर तिरंगे की लहरों के संग डोल रहा है। अपने देश, अपने नेता की जयकार कर रहा है।

यह डराता है।
अगर आप मनुष्य हैं, तो डराता है।

आशा से भरी लाखों आंखों का केंद्रबिंदु होना आसान नही होता। क्या नेहरू, दबाव महसूस कर रहे थे?
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इस किले से कुछ दूर ही, हथियारों के साथ कुछ लोग, आग लगा रहे हैं, घाव बांट रहे हैं। शिकार खोज रहे हैं। उनकी भी एक विचारधारा है।

या शायद नही है।

कुछ का आक्रोश है, कुछ के लिए मौका है। औरो के घाव में अपनी मजबूती देखने की हुनक है।

क्या नेहरू का दिमाग..
उस धुएं के गुबार पर गया?

या वे कैबिनेट की अगली बैठक को सोच रहे थे?
देश ये आजाद हुआ है, पर बना नही है। सीमाएं तय नही, देश के भीतर 500 देश हैं।

त्रावणकोर, जूनागढ़, हैदराबाद, राजपूताना, कश्मीर.. दर्जन भर दूसरे भी अलगाव चाहते हैं। बाहर और भीतर की सीमाओं पर तनाव है।

पर सेना नही है, खुद उसमे बंटवारा चल रहा है। मुट्ठी भर हथियार, दर्जन भर जहाज, और फौजी..

उनका भी रेजीमेंट दर रेजिमेंट बंटवारा होना है। कुछ पाकिस्तान जाएंगे, कुछ इंग्लैंड।

राज्य नही है, पुलिस नही है, अफसर भी आधे इंग्लैंड लौट रहे हैं। जहां थोड़ी कुछ व्यवस्था है, अभी पक्की नही है।

नियम नही बने, कोई विधान नही है। चारो ओर धुंधलका, आतुर आंखों की आशायें, धुआं..

और जलते मांस की गंध..
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ऊबे जवाहर ने क्या, ऊपर तिरंगे को देखा होगा?

पिता तो नही रहे, तो पितातुल्य के पैरों में बैठकर कुछ सोचा जाये। पूछा जाये- इसकी गिरहें कहाँ से सुलझाना शुरू करूँ, बताओ न बापू।

पर वो निठुर भी इस वक्त पास नही। दूर बैठा है, हजारों मील.. कलकत्ता की हैदर मंजिल।

मियांवली की झुग्गी बस्ती में पनाह लिया वो वृद्ध, आजादी से उत्साहित नही। दंगे रोकने के लिए एक मुसलमान के घर सोया है।

गांधी दिल्ली आज नही लौटेंगे ।

कल भी नही, अगले हफ्ते भी नही। वो दंगाग्रस्त इलाकों जाएंगे। जलती बस्तियों के बीचोबीच, नंगे पैर घूमेंगे।

इसलिए कि जिस धरती पर इतना खून मिला हो, उस पर चप्पल पहनकर कैसे चलें।
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नेहरू ने फिर तिरंगे की ओर देखा होगा, और ताकत बटोरकर उन टिमटिमाती आंखों के सामने, वे मशहूर शब्द कहे होंगे।

रात को जाग कर लिखा भाषण, पढ़ा होगा।भीतर भीतर जलता हुआ दीपक जैसे सामने औरो को रोशन करे।

भाषण खत्म होता है।

सामने खड़े लाखो हाथ उठते है। तालियां बजाते हैं। जलसा खत्म...

यह तसवीर ले ली जाती है।
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जिसे आज आप देख रहे हैं। पचास, सौ या दो सौ साल बाद भी यह तसवीर देखी जाएगी।

जो दिखता है, वो तो सब देखेंगे। जो नही दिखता, कुछ ही लोग देख सकेंगे।

आपने देखा??
यह महान दृश्य है।

मुअम्मर गद्दाफ़ी की हत्या के असली कारण:1. लीबिया में बिजली का कोई बिल नहीं था, सभी नागरिकों को बिजली निःशुल्क प्रदान की ...
15/08/2024

मुअम्मर गद्दाफ़ी की हत्या के असली कारण:

1. लीबिया में बिजली का कोई बिल नहीं था, सभी नागरिकों को बिजली निःशुल्क प्रदान की जाती थी।

2. ऋणों पर कोई ब्याज नहीं था, बैंक राज्य के स्वामित्व में थे, और कानून के अनुसार नागरिकों को ऋण पर ब्याज दर 0% थी।

3. गद्दाफी ने वादा किया था कि वह अपने माता-पिता के लिए तब तक घर नहीं खरीदेंगे जब तक कि हर लीबियावासी के पास घर नहीं हो जाता।

4. लीबिया में प्रत्येक नवविवाहित जोड़े को सरकार से 60,000 दीनार मिलते थे, जिससे वे अपना खुद का अपार्टमेंट खरीद सकते थे और परिवार शुरू कर सकते थे।

5. गद्दाफी से पहले लीबिया में शिक्षा और चिकित्सा उपचार मुफ़्त था, केवल 25% आबादी पढ़ सकती थी, जो उनके शासनकाल में बढ़कर 83% हो गई।

6. यदि लीबिया के नागरिक खेत पर रहना चाहते थे, तो उन्हें घरेलू सामान, बीज और पशुधन मुफ्त में मिलते थे।

7. यदि उन्हें लीबिया में इलाज नहीं मिल सका, तो राज्य ने उन्हें आवास और यात्रा व्यय में $2300+ प्रदान किए।

8. अगर आपने कार खरीदी तो सरकार कीमत का 50% वित्त पोषण करती थी।

9. पेट्रोल की कीमत 0.14 डॉलर प्रति लीटर थी.

10. लीबिया पर कोई बाहरी ऋण नहीं था, और $150 बिलियन का भंडार (अब दुनिया भर में जमा हुआ) था।

11। यदि कुछ लीबियाई लोगों को स्कूल के बाद नौकरी नहीं मिल पाती, तो सरकार उन्हें औसत वेतन देती थी।

12. लीबिया में तेल की बिक्री का एक हिस्सा सीधे सभी नागरिकों के बैंक खातों में स्थानांतरित किया गया था।

13. जन्म देने वाली माँ को $5,000 मिले।

14. 40 रोटियों की कीमत $0.15 है।

15. गद्दाफी ने रेगिस्तान में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना, "बिग मैन प्रोजेक्ट" शुरू की।

लीज पर आजाद हुओं को खुशखबरी●●कल रात लीज वाले पेपर एलिजाबेथ की वाल्ट से चुरा लाया हूँ। कल उसमे फोटोशॉप से 500 साल लिखकर व...
15/08/2024

लीज पर आजाद हुओं को खुशखबरी
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कल रात लीज वाले पेपर एलिजाबेथ की वाल्ट से चुरा लाया हूँ। कल उसमे फोटोशॉप से 500 साल लिखकर वापस धर दूंगा।

अब आप लोग बेफिक्र होकर 423 साल बकछदोई करें।

थैंक्स मि लेटर

अंग्रेज़ों ने जब मुल्क में नई नई ट्रेन चलाई तो एक पीर साहब रोज़ाना ट्रेन देखने चले जाते, उनके मुरीदों ने एक दिन पूछ ही ल...
15/08/2024

अंग्रेज़ों ने जब मुल्क में नई नई ट्रेन चलाई
तो एक पीर साहब रोज़ाना ट्रेन देखने चले जाते,
उनके मुरीदों ने एक दिन पूछ ही लिया
आप रोज़ाना ट्रेन देखने क्यों चले आते हैं ?
पीर साहब ने जवाब में कहा
मुझे इस ट्रेन के इंजन से मोहब्बत हो गई है !
मुरीदों नें पुछा क्यों मोहब्बत हो गई है ?

जवाब में कहा इसकी कुछ वजह है;
पहली वजह है ट्रेन का इंजन
अपनी मंज़िल तक पहुँच कर ही रुकता है.
दूसरी वजह है, ये अपने हर डिब्बे को साथ लेकर चलता है.
तीसरी वजह है, ये आग ख़ुद खाता है;
डिब्बों को खाने नहीं देता.
चौथी वजह है, ये अपने तय शुदा रास्ते से नहीं भटकता
और पाँचवी वजह है, ये डिब्बे का मोहताज नहीं होता।
क़ौम के लीडर को भी ट्रेन के इंजन जैसा होना चाहिए।

14 अगस्त, 1947 बंटवारे का दिन है ...आम सोच है कि हिंदू और मुसलमानों ने इसे दो हिस्से मे बांट लिया। क्या ऐसा सोचना ठीक है...
14/08/2024

14 अगस्त, 1947 बंटवारे का दिन है ...

आम सोच है कि हिंदू और मुसलमानों ने इसे दो हिस्से मे बांट लिया।
क्या ऐसा सोचना ठीक है ??

यह ओवरसिंप्लीफिकेशन आपको एक कम्यूनल ऐंगल देता है, किसी पार्टी, किसी खास विचारधारा के लिए यह सूट करता है। पर गंभीरता से देखेंगे, तो आपको कुछ अलग रंग दिखाई देंगे।
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इस नक्शे से ही शुरूआत करें, जो उस दिन भारत की राजनीतिक अवस्था को बताता है।

उस दिन कोई 600 से ज्यादा पांलिटिकल यूनिट्स थी। आप उन्हे रजवाडे कहते है। वे एक दूसरे से स्वतंत्र ताकतें थी। रक्षा, विदेश, संचार के मामले वे ब्रिटिश को सम्हालने देते थे, मगर तमाम प्रेक्टिकल रीजन मे ये स्वतंत्र देश की तरह ही थे।

तो इतने सारे देशों का 14 अगस्त को बंटवारा नही, एकीकरण हो रहा था।
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ब्रिटिश द्वारा सीधे इलाके भी इसी नव-एकीकरण का हिस्सा थे। दिक्कत यह थी, कि दो संस्कृतियां एक साथ रहने को तैयार नहीं थी।

जो चुनावी नारें आप आज सुनते है, जो व्हाट्सप आप आज पढते है, उनका स्रोत उसी दौर से है। वह सोच, जो मोहम्मद घोरी और बाबर की संतानो से एक हजार साल पुराना बदला भंजाना चाहता है।

उन्हे सेकेण्ड कलस सिटिजन बनाना चाहता है। सत्य यह कि मुठ्ठी भर लोग ही तुर्क और अरब थे। शेष इसी धरती के निवासी थे। मगर धर्म बदल लिया था, तो हमारे बीच के कुछ लोग उन्हे इस भूमि पर जगह देने को तैयार नही थे।
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दूसरी ओर भी ऐसे लोग थे, जिन्हे फ्यूडल दौर की राजनीतिक सुप्रीमेसी का हैंगओवर था। यह वो मुस्लिम एलीट था, जिसे लगता था कि एकीकृत देश मे उनकी राजनीतिक भूमिका गौण हो जाएगी।

वे गलत भी नही थे। आज 80 बरस बाद, संसद और विधानसभाओं मे उनकी संख्या उन्हे सही साबित करती है।

तो उन्हे अपनी अवाज, अपनी भागीदारी चाहिए थी। इस सोशोपॉलिटिकल खाई के बीच, भारतीय उपमहाद्वीप के भूराजनीतिक इलाकों का एकीकरण दो ढेरियों मे हुआ।

तो बंटवारा शब्द, जो किसी एक चीज के हिस्से करता है, उस पर मेरी असहमति है। 14 अगस्त दरअसल 600 टुकडों का एकीकरण है।

मगर अफसोस, एक नही ....
दो खेमों मे एकीकरण है।
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जब आप यह समझ लेगें, तो यह भी स्पस्ट हो जाएगा कि जिम्मेदार कौन था। तब आपको तय करने मे आसानी होगी, कि वे लोग, जो हिंदू मुसलमान को बराबर बताते हुए उन्हे एक होने की समझाइश देते थे, क्या वे दो देशों के जन्म के जिम्मेदार है ...

या वे लोग दोषी हैं, जिन्होने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो पृथक संस्कृति है, ये कभी साथ नही रह सकती ....

यही टू नेशन थ्योरी है।
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लेकिन यहीं न रूकिये।

टू नेशन थ्योरी तो 30 साल से चल रही थी। जिन्ना द्वारा उसे उठाये 8 साल ही हुए थे। क्या नेहरू, जिन्ना या किसी भी भारतीय राजनीतिज्ञ, अथवा उसके दल मे ये ताकत थी, कि वह बंटवारा करवा देता??

कोई आंदोलन चलता है, बढता है, थकता है, खत्म होता है। गर्वमेन्ट ऑफ द डे, उसपर जो फैसला करती है, जो रूख लेती है .. इतिहास की धारा उससे बनती है।

जैसे कश्मीर को विलग करने के लिए आतंकी तंजीमो मे खूब कोशिश की। नक्सली आंदोलन सन 64 से शुरू हुआ था, क्या हुआ?? जीरो बटे सन्नाटा !!

तैलंगाना बना, झारखंड बना। तब बना जब गर्वमेण्ट आफ द डे ने बनाना चाहा। तो यह आंदोलन का नतीजा कम, सरकार का निर्णय ज्यादा था।

छत्तीसगढ के लिए भला किसने आंदोलन किया??
अभी कश्मीर को तोड़कर दो यूयिन टेरेटरी बना दिये गए, किसने आंदोलन किया??

अब फारूख अब्दुल्ला, या महबूबा मुफ्ती को कश्मीर के विभाजन का दोषी बताना मूर्खता होगी। उतना ही मूर्खतापूर्ण है जिन्ना या नेहरू, या इवन सावरकर को भारत विभाजन का दोषी बताना।
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ब्रिटिश सरकार इस मामले को 10 और साल खीेच देती,
जिन्ना, लियाकत, गांधी, सरदार सब स्वर्गवासी हो चुके होते।

ब्रिटिश की मर्जी थी, उसके जियोपॉलिटिकल इंट्रेस्ट थे। उसने हमारी फॉल्ट लाइंस का फायदा उठाया, दो देश बनाए।

आखिर पाकिस्तान के दो टृकड़े, शेख मुजीब ने नही, इंदिरा गांधी ने किये। उसकी मर्जी थी, भारत के जियोपॉलिटिकल इंट्रेस्ट थे। उसने दो देश बनाए।
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मेरी निगाह मे 14 अगस्त यही बताता है, कि राष्ट्र कोई अजर अमर चीज नही।

इसकी उम्र, तत्समय प्रवृत पॉपुलर डेफिनेशन.. क्या बनाइ गई, उस पर निर्भर करता है।

आप धर्म, भाषा, संस्कृति, खानपान को एक देश की परीभाषा रखते है ...???

या तमाम विविधताओं के बावजूद, जो इस धरती पर है ... उसकी डिग्निटी, उसकी भागीदारी, उसके कल्चर, भाषा को सम्मान देते हुए सबमे एकता का भाव भरने का प्रयास करते है??

फॉल्ट लाइंस को मेाहब्बत से भरते है। किसी निहित स्वार्थ को देश बांटने का कोई मौका नही देते है। यह गांधी की अवधारणा है,

नेहरू का रास्ता है।
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तब उनकी जिन्होने न मानी, बंटवारे का दंश दिया।
आज भी जो न मानेंगे, बंटवारें का ही दंश देंगे।

मुगल साम्राज्य एक संपन्न अर्थव्यवस्था वाला साम्राज्य था। सन 1600 ईस्वी के आसपास, यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्...
24/07/2024

मुगल साम्राज्य एक संपन्न अर्थव्यवस्था वाला साम्राज्य था। सन 1600 ईस्वी के आसपास, यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी, जिसका वैश्विक जीडीपी में योगदान लगभग 24.3% था ( कांसुलेट जनरल ऑफ इंडिया जद्देहा के अनुसार)। 17वीं शताब्दी के अंत तक, साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच गया था, संभावित रूप से यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और विनिर्माण शक्ति बन गया था, वैश्विक जीडीपी का एक चौथाई हिस्सा इसके उत्पादन से आता था।

हालांकि, यह आर्थिक दबदबा ज्यादा समय तक नहीं चला। 1820 तक, भारत का जीडीपी वैश्विक कुल का 16% रह गया था। यह गिरावट 19वीं शताब्दी के दौरान जारी रही, 1870 तक घटकर 12% और 1947 तक मात्र 4% रह गई।

अब आप फैसला कीजिए लुटेरे कौन थे ।
#इतिहास_की_एक_झलक



कोहलापुर का बाज़ार 1894 में कुछ इस तरह दिखता था।
01/07/2024

कोहलापुर का बाज़ार 1894 में कुछ इस तरह दिखता था।

Mumbai, India 1897 vs 2024.
27/06/2024

Mumbai, India 1897 vs 2024.

27/06/2024

इंसान इस फ़ानी दुनिया से कूचकर चला जाये फिर आप उसके नाम से ताजमहल से भी खूबसूरत इमारत बनवा दीजिये इससे कोई फायदा नही।

आप उसकी कब्र पर जाकर खूब रोइये और खूब माफी माँगिये इससे कोई फायदा नही ,, फायदा तब था जब आप उससे जिंदे में माफी मांगते और सुलह कर लेते।

आज ऐसे बहुत से लोगों को देखता हूँ जो ज़िन्दे में इंसान से बात नही करते और मरने पर उसकी कब्र पर रोते बिलखते है।

उत्तरप्रदेश: कानपुर में हिट एंड रन, वकील को भी गाड़ी से कुचलकर मार डाला…ये गाड़ी एक्सीडेंट करके भाग रही थी,अधिवक्ता "भोल...
25/06/2024

उत्तरप्रदेश: कानपुर में हिट एंड रन,
वकील को भी गाड़ी से कुचलकर मार डाला…
ये गाड़ी एक्सीडेंट करके भाग रही थी,
अधिवक्ता "भोला तिवारी" रोकने की कोशिश की तो
भोला तिवारी को भी कुचलकर मार डाला…
गाड़ी पर उत्तरप्रदेश सरकार लिखा हुआ है…

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