LAMHE the moments

LAMHE the moments writer, urdu and hindi poetry, digital creator

ये हम पर लुत्फ़ कैसा ये करम क्याबदल डाले हैं अंदाज़-ए-सितम क्याज़माना हेच है अपनी नज़र मेंज़माने की ख़ुशी क्या और ग़म क्...
25/10/2025

ये हम पर लुत्फ़ कैसा ये करम क्या
बदल डाले हैं अंदाज़-ए-सितम क्या

ज़माना हेच है अपनी नज़र में
ज़माने की ख़ुशी क्या और ग़म क्या

जब उस महफ़िल को हम कहते हैं अपना
फिर उस महफ़िल में फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम क्या

नज़र आती है दुनिया ख़ूब-सूरत
मेरे साग़र के आगे जाम ओ जम क्या

जबीं है बे-नियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ
दर-ए-बुत-ख़ाना क्या सेहन-ए-हरम क्या

तेरी चश्म-ए-करम हो जिस की जानिब
उसे फिर इम्तियाज़-ए-बेश-ओ-कम क्या

मेरे माह-ए-मुनव्वर तेरे आगे
चराग़-ए-दैर क्या शम्मा-ए-हरम क्या

निगाह-ए-नाज़ के दो शोबदे हैं
'अज़ीज़' अपना वजूद अपना अदम क्या
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उस ने मेरे मरने के लिए आज दुआ कीया रब कहीं निय्यत न बदल जाए क़ज़ा कीआँखों में है जादू तेरी ज़ुल्फ़ों में है ख़ुश-बूअब मु...
25/10/2025

उस ने मेरे मरने के लिए आज दुआ की
या रब कहीं निय्यत न बदल जाए क़ज़ा की

आँखों में है जादू तेरी ज़ुल्फ़ों में है ख़ुश-बू
अब मुझ को ज़रूरत न दवा की न दुआ की

इक मुर्शिद-ए-बर-हक़ से है देरीना तअल्लुक़
परवाह नहीं मुझ को सज़ा की न जज़ा की

दोनों ही बराबर हैं रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा में
जब तुम ने वफ़ा की है तो हम ने भी वफ़ा की

ग़ैरों को ये शिकवा है के पीता है शब ओ रोज़
मै-ख़ाने का मुख़्तार तो अब तक नहीं शाकी

ये भी है यक़ीन मुझ को सज़ा वो नहीं देंगे
ये और भी है तस्लीम के हाँ मैं ने ख़ता की

इस दौर के इंसाँ को ख़ुदा भूल गया है
तुम पर तो 'अज़ीज़' आज भी रहमत है ख़ुदा की
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तेरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवानेकहाँ सहर हो कहाँ शाम हो ख़ुदा जानेहरम हमीं से हमीं से हैं आज बुत-ख़ानेये और बात है दु...
25/10/2025

तेरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने
कहाँ सहर हो कहाँ शाम हो ख़ुदा जाने

हरम हमीं से हमीं से हैं आज बुत-ख़ाने
ये और बात है दुनिया हमें न पहचाने

हरम की राह में हाइल नहीं हैं बुत-ख़ाने
हरम से अहल-ए-हरम हो गए हैं बेगाने

ये ग़ौर तू ने किया भी के हश्र क्या होगा
तड़प उट्ठे जो क़यामत में तेरे दीवाने

'अज़ीज़' अपना इरादा कभी बदल न सका
हरम की राह में आए हज़ार बुत-ख़ाने
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तेरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगाफ़साना ही नहीं कोई तो उनवाँ कौन देखेगायहाँ तो एक लैला के न जाने कितने म...
25/10/2025

तेरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा
फ़साना ही नहीं कोई तो उनवाँ कौन देखेगा

यहाँ तो एक लैला के न जाने कितने मजनूँ हैं
यहाँ अपना गिरेबाँ अपना दामाँ कौन देखेगा

बहुत निकले हैं लेकिन फिर भी कुछ अरमान हैं दिल में
ब-जुज़ तेरे मेरा ये सोज़-ए-पिन्हाँ कौन देखेगा

अगर परदे की जुम्बिश से लरज़ता है तो फिर ऐ दिल
तजल्ली-ए-जमाल-ए-रू-ए-जानाँ कौन देखेगा

अगर हम से ख़फ़ा होना है तो हो जाइए हज़रत
हमारे बाद फिर अँदाज़-ए-यज़्दाँ कौन देखेगा

मुझे पी कर बहकने में बहुत ही लुत्फ़ आता है
न तुम देखोगे तो फिर मुझ को फ़रहाँ कौन देखेगा

जिसे कहता है इक आलम 'अज़ीज़' वारिस-ए-आलम
उसे आलम में हैरान ओ परेशाँ कौन देखेगा
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सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवाइश्क़ में कुछ भी नहीं दर्द की लज़्ज़त के सिवादिल में अब कुछ भी नहीं उन की म...
24/10/2025

सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा
इश्क़ में कुछ भी नहीं दर्द की लज़्ज़त के सिवा

दिल में अब कुछ भी नहीं उन की मोहब्बत के सिवा
सब फ़साने हैं हक़ीक़त में हक़ीक़त के सिवा

कौन कह सकता है ये अहल-ए-तरीक़त के सिवा
सारे झगड़े हैं जहाँ में तेरी निस्बत के सिवा

कितने चेहरों ने मुझे दावत-ए-जलवा बख़्शी
कोई सूरत न मिली आप की सूरत के सिवा

ग़म-ए-उक़बा ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-हस्ती की क़सम
और भी ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा

बज़्म-ए-जानाँ में अरे ज़ौक़-ए-फ़रावाँ अब तक
कुछ भी हासिल न हुआ दीदा-ए-हैरत के सिवा

वो शब-ए-हिज्र वो तारीक फ़ज़ा वो वहशत
कोई ग़म-ख़्वार न था दर्द की शिद्दत के सिवा

मोहतसिब आओ चलें आज तो मै-ख़ाने में
एक जन्नत है वहाँ आप की जन्नत के सिवा

जो तही-दस्त भी है और तही-दामन भी
वो कहाँ जाएगा तेरे दर-ए-दौलत के सिवा

जिस ने क़ुदरत के हर इक़दाम से टक्कर ली है
वो पशेमाँ न हुआ जब्र-ए-मशिय्यत के सिवा

मुझ से ये पूछ रहे हैं मेरे अहबाब 'अज़ीज़'
क्या मिला शहर-ए-सुख़न में तुम्हें शोहरत के सिवा
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