LAMHE the moments

LAMHE the moments writer, urdu and hindi poetry, digital creator

मैं एक जस्त में क़ैद-ए-अना से बाहर थाफिर उस के बाद बहुत दूर तक समंदर थाये किस हुनर से लिखी सरगुज़िश्त-ए-जाँ उस नेवरक़ तो...
27/09/2025

मैं एक जस्त में क़ैद-ए-अना से बाहर था
फिर उस के बाद बहुत दूर तक समंदर था

ये किस हुनर से लिखी सरगुज़िश्त-ए-जाँ उस ने
वरक़ तो ख़ुश्क था सारा ही हाशिया तर था

जो सोचता हूँ तो इक धूंद से गुज़रता हूँ
वहाँ पे कोई गली थी वहाँ कोई घर था

इक आँख ख़्वाब में इक वाक़िए में रहती थी
हद-ए-निगाह तलक झुटपुटे काम मंज़र था

उसे भुलाने में इक सानिया लगा है मुझे
वही जो लफ़्ज मिरे दोस्तों का अज़बर था

नज़र मिली तो हँसे फिर मिले मिले न मिले
किसी से अपना तअल्लुक़ बस इक नज़र भर था

इसी ख़ला को मगर देखते हैं सब ‘शहपर’
ये कौन जाने कि दिल था यहाँ कि पत्थर था
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कोई साया न कोई हम-सायाआब ओ दाना ये किस जगह लायादोस्त भी मेरे अच्छे अच्छे हैंइस मुख़ालिफ़ बहुत पसंद आयाहल्का हल्का सा इक ...
27/09/2025

कोई साया न कोई हम-साया
आब ओ दाना ये किस जगह लाया

दोस्त भी मेरे अच्छे अच्छे हैं
इस मुख़ालिफ़ बहुत पसंद आया

हल्का हल्का सा इक ख़याल सा कुछ
भीनी भीनी सी धूप और छाया

इक अदा थी कि राह रोती थी
इक अना थी कि जिस ने उकसाया

हम भी साहिब दलां में आते हैं
ये तिरे रूप की है सब माया

चल पड़े हैं तो चल पड़ें साईं
कोई सौदा न कोई सरमाया

उस की महफ़िल तो मेरी महफ़िल थी
बस जहाँ-दारियों से उकताया

सब ने तारीफ़ की मिरी ‘शहपर’
और मैं अहमक़ बहुत ही शर्माया
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कब चला जाता है ‘शहपर’ कोई आ के सामनेसूई का गिरना भी क्या आवाज़-ए-पा के सामनेरोज़ बे-मक़सद ख़ुशामद क़त्ल करती है उसेरोज़ ...
27/09/2025

कब चला जाता है ‘शहपर’ कोई आ के सामने
सूई का गिरना भी क्या आवाज़-ए-पा के सामने

रोज़ बे-मक़सद ख़ुशामद क़त्ल करती है उसे
रोज़ मर जाता है वो अपनी अना के सामने

कर्ब की मासूम लहरें तेज़ तर होने लगीं
रख दिया किस ने चराग़-ए-दिल हवा के सामने

क़ल्ब की गहराइयों में सिर्फ़ तेरा अक्स है
देख ले क्या कह रहा हूँ मैं ख़ुदा के सामने

रोज़ कोई आस भर जाती है इन में रंग-ए-यास
रोज़ रख लेता हूँ मैं ख़ाके बना के सामने

दूसरों के ज़ख़्म बुन कर ओढ़ना आसाँ नहीं
सब क़बाएँ हेच हैं मेरी रिदा के सामने
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हर्फ़-ए-जाँ दिल में निहाँ हर्फ़-ए-ज़बाँ शहर में थाआग का नाम न था फिर भी धुआँ शहर में थाशोर सहरा का सुना शोर समंदर का सुन...
26/09/2025

हर्फ़-ए-जाँ दिल में निहाँ हर्फ़-ए-ज़बाँ शहर में था
आग का नाम न था फिर भी धुआँ शहर में था

शोर सहरा का सुना शोर समंदर का सुना
शोर का नाम ही था शोर कहाँ शहर में था

बस ज़रा अक्स ही उभरा था सफ़ों में मेरा
एक हँगामा-ए-कोताह क़दाँ शहर में था

रात ही रात यक़ीं ने कई शक्लें बदलीं
जो नहीं था वही होने का गुमाँ शहर में था

आतिश ओ क़त्ल नहीं शोर नहीं चीख़ नहीं
सिर्फ़ और सिर्फ़ धुआँ सिर्फ़ धुआँ शहर में था

देखना आँख ने क्या सीख लिया था साहब
एक दो चीज़ नहीं सारा जहाँ शहर में था

मुस्तक़र किस को बनाते कहाँ रहते ‘शहपर’
गाँव में था तो कभी सर्व-ए-रवाँ शहर में था
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हमारे दर्द की जानिब इशारा करती हैंफ़क़त कहानियाँ हम को गवारा करती हैंये सादगी ये नजाबत जो ऐब हैं मेरेसुना था इन पे तो नस...
26/09/2025

हमारे दर्द की जानिब इशारा करती हैं
फ़क़त कहानियाँ हम को गवारा करती हैं

ये सादगी ये नजाबत जो ऐब हैं मेरे
सुना था इन पे तो नस्लें गुज़ारा करती हैं

ख़ुद अपने सामने डट जाती हैं जो शख़्सियतें
वो जीतती हैं किसी से न हारा करती हैं

शरीफ़ लोग कि जैसे सुकूत-ए-आब-ए-रवाँ
कुछ ऐ मौजें मगर सर उभारा करती हैं

बदल गए हैं इरादे तो हसरतों में मगर
कुछ आरज़ूएँ अभी इस्तिख़ारा करती हैं

सितारे उन की चमक में समाना चाहते हैं
मगर वो आँखें फ़लक को सितारा करती हैं

बजा हैं अपने मसाइल बजा हैं अपनी हुदूद
कहीं किनारों से लहरें किनारा करती हैं

ज़बान-ए-शहर तो पैबंद-ए-ख़ाक-ए-जहल हुई
मगर वो महफ़िलें अब भी पुकारा करती है
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हंसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँबच्चों से किस जहाँ की कहानी कहा करूँया रब अज़ाब-ए-हर्फ़-ओ-तख़य्युल से दे नजातग़ज़लें...
26/09/2025

हंसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ
बच्चों से किस जहाँ की कहानी कहा करूँ

या रब अज़ाब-ए-हर्फ़-ओ-तख़य्युल से दे नजात
ग़ज़लें कहा करूं न मज़ामीं लिखा करूँ

क़दमों में किस के डाल दूं ये नाम ये नसब
कुछ तो बताओ किस का क़सीदा पढ़ाक करूँ

अब तक तो अपने आप से पीछा न छुट सका
मुमकिन है कल से आप के हक़ में दुआ करूँ

कितनी नई ज़बान हो कैसा नया सुख़न
इस अहद को तो देख लूँ ‘ग़ालिब’ को क्या करूँ

‘शहपर’ मिरी हदों का तअय्युन करे कोई
आँखों से बह रहूँ कि रगों में फिरा करूँ
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