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24/10/2025
24/10/2025

खोड़लधाम,कागवाड़(राजकोट)
गुजरात।

24/10/2025

खोड़लधाम, कागवाड़ (राजकोट)
गुजरात।

23/10/2025

"झूठी पत्तर चाट" - कबीर दास का वो दोहा जो दिखाएगा सच्चाई!💯🔥

21/10/2025

सब जग माया 🙏♥️

20/10/2025

🌍 दुनिया राजी नहीं करनी। 🌍

20/10/2025

आप और आपके पूरे परिवार को दीपावली की ढेर सारी बधाई। माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद आप पर सदा बना रहे।
​यह त्यौहार आपके लिए खुशियों की सौगात लेकर आए।

19/10/2025

रोजे रोज मोजे मौज।😀😃

18/10/2025

👋👋 Kem Chhe ? 👋👋

17/10/2025

🆕 मारा सतगुरु जागे। 🆕

16/10/2025

I got over 254,000 reactions on my posts last week! Thanks everyone for your support! 🎉

16/10/2025

🔔 एक मंदिर और घंटे वाला आदमी

​एक मंदिर था।

​उसमें सभी लोग वेतन (सैलरी) पर थे।

आरती करने वाला,

पूजा करने वाला,

घंटा बजाने वाला आदमी भी वेतन पर था...

​घंटा बजाने वाला आदमी आरती के समय भाव (लगन/श्रद्धा) में इतना मग्न हो जाता था, कि उसे होश ही नहीं रहता था।

​घंटा बजाने वाला आदमी पूरे भक्ति भाव से अपना काम करता था, जिससे मंदिर की आरती में आने वाले लोग भगवान के साथ-साथ, घंटा बजाने वाले आदमी के भाव के भी दर्शन करते थे। उसकी भी वाह-वाही होती थी...

​एक दिन मंदिर का ट्रस्ट बदल गया, और नए ट्रस्टी ने यह फरमान सुनाया, कि हमारे मंदिर में काम करने वाले सभी लोग पढ़े-लिखे होने चाहिए, जो पढ़े-लिखे न हों उन्हें नौकरी से निकाल दो।

​उस घंटे बजाने वाले भाई को ट्रस्टी ने कहा, 'आप आज तक का अपना वेतन ले लो, और अब से आप नौकरी पर मत आना।'

​उस आदमी ने कहा, "साहब भले ही पढ़ाई-लिखाई नहीं है, लेकिन मेरा भाव (लगन) देखिए!"

​ट्रस्टी ने कहा, "सुन लो, आप पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसलिए नौकरी पर नहीं रखा जाएगा..."

​दूसरे दिन से मंदिर में नए लोगों को रखा गया। लेकिन आरती में आने वाले लोगों को पहले जैसा मज़ा नहीं आता था। घंटा बजाने वाले भाई की गैर-हाज़िरी (अनुपस्थिति) लोगों को खलने लगी।

​कुछ लोग इकठ्ठा होकर उस भाई के घर गए। उन्होंने विनती की कि 'आप मंदिर में आइए।'

​उस आदमी ने जवाब दिया, "अगर मैं आऊंगा तो ट्रस्टी को लगेगा कि यह नौकरी लेने के लिए आ रहा है। इसलिए मैं नहीं आ सकूंगा।"

​वहां आए लोगों ने एक उपाय सुझाया कि 'हम आपको मंदिर के ठीक सामने एक दुकान खोल देते हैं। वहां आपको बैठना है। और आरती के समय घंटा बजाने आ जाना। बस फिर कोई नहीं कहेगा कि आपको नौकरी की ज़रूरत है..."

​अब उस भाई ने मंदिर के बाहर दुकान शुरू की, जो इतनी चली कि एक से सात दुकानें और सात दुकानों से एक फैक्ट्री बन गई।

​अब वह आदमी मर्सिडीज़ में बैठकर घंटा बजाने आता था।
​समय बीता। यह बात पुरानी हो गई।

​मंदिर का ट्रस्ट फिर से बदल गया।

​नए ट्रस्ट को मंदिर को नया बनाने के लिए दान की ज़रूरत थी।
​मंदिर के नए ट्रस्टियों ने सोचा कि सबसे पहले इस मंदिर के सामने की फैक्ट्री मालिक से बात करते हैं...

​ट्रस्टी मालिक के पास गए। सात लाख का खर्च है, ऐसा बताया।

​फैक्ट्री मालिक ने एक भी सवाल किए बिना चेक लिखकर ट्रस्टी को दे दिया। ट्रस्टी ने चेक हाथ में लिया और कहा, "साहब हस्ताक्षर (सिग्नेचर) तो बाकी है।"

​मालिक ने कहा, "मुझे हस्ताक्षर करना नहीं आता। लाइए अंगूठा लगा दूं, चल जाएगा..."

​यह सुनकर ट्रस्टी चौंक गए और कहने लगे, "साहब आप अनपढ़ (बिना पढ़े-लिखे) हैं तो इतने आगे हैं। अगर पढ़े-लिखे होते तो कहां होते...!!!"

​तो उस सेठ ने हंसकर कहा,

"भाई, अगर मैं पढ़ा-लिखा होता, तो बस मंदिर में घंटा ही बजाता होता।"

​⭐ सारांश (Moral of the Story):
​काम कैसा भी हो, हालात कैसे भी हों, आपकी काबिलियत आपकी भावनाओं (लगन/श्रद्धा) से ही तय होती है। भावनाएं शुद्ध होंगी, तो ईश्वर और एक सुंदर भविष्य निश्चित रूप से आपका साथ देंगे।
​क्या आप इस कहानी को किसी और भाषा में जानना चाहेंगे?

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