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कुछ दिनों पहले एक बहु-प्रतिष्ठित समाचार पत्र में एक खबर छपी थी| हालाँकि ये समाचार पत्र माउंट आबू में वितरण नहीं होता है,...
08/09/2025

कुछ दिनों पहले एक बहु-प्रतिष्ठित समाचार पत्र में एक खबर छपी थी| हालाँकि ये समाचार पत्र माउंट आबू में वितरण नहीं होता है, हाँ...इसकी डिजिटल कॉपी व्हाट्सएप्प में साझा जरुर होती है| और वही से मुझे भी ये प्राप्त हुई| उपरोक्त समाचार पत्र में, जो खबर थी, उसकी कोई धरातलीय सच्चाई मुझे कही नजर नहीं आई| हाँ...जिन महोदय ने ये स्क्रिप्ट लिखी होगी, उनकी आत्मा पूर्वाग्रह से ग्रसित जरुर होगी, और ये उस खबर में साफ़ साफ़ झलक रहा था| अब आप सोच रहे होंगे, ऐसा उस खबर में क्या था?
आइये उस खबर का हम कुछ विश्लेषण करते है, और धरातलीय सच्चाई से आपको कुछ रूबरू करवाने का प्रयास करने की कौशिश करते है|

पाठको...खबर सीधी वन-विभाग माउंट आबू से जुडी थी, जिसमे भालुओ का शहर में आना, मुद्दा था| अब मुद्दा भालुओ से चला और ख़त्म आबू में आने वाले पर्यटकों की सुविधा असुविधा पर आकर ख़त्म हुआ| और वो मै इसलिए कह रहा हूँ क्योकि, खबर लिखने वाले हमारे पत्रकार बंधू ने, जो बेबुनियाद तर्क दिए, वो हास्यास्पद तो थे ही साथ ही पढ़ कर ऐसा आभास हो रहा था, जैसे कोई प्राइमरी क्लास के बच्चे, कोई गलती करने पर पकडे जाते है, तब वो बड़ी मासूमियत से सारा ठीकरा अपने दुसरे सहपाठियों पर फोड़ देते है| ठीक वैसे ही, माउंट आबू में भालुओ का विचरण करना, पर्यटकों में कमी आना इत्यादि...इत्यादि का ठीकरा बड़ी सफाई से वन-विभाग पर फोड़ दिया गया| अभी कुछ दिनों पहले ही, माउंट आबू प्रशासन ने इस मुद्दे पर दो बार कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमे कई पर्यावरण प्रेमी, वन विभाग, नगरपालिका, स्काउट विभाग, होटल व्यवसाई, और अन्य लोगो ने इस कार्यशाला में भाग लिया था| लम्बी चर्चा चली, और माउंट आबू और इसके इर्द-गिर्द के आबादी क्षेत्रो में जगह जगह फैला हुआ कचरा, मुख्य और एकमात्र कारण सभी उपस्थित लोगो ने इस पर सहमती जताई| हालांकि...उक्त कार्यशाला में प्रशासन और नगरपालिका ने इस विषय की गंभीरता का समझा और, और इसके निराकरण का आश्वासन भी दिया|

अब आते है सीधे मुद्दे पर..| छपी खबर में तीन मुद्दे और उनके दिए गए तथ्य गले नहीं उतरते, जैसे...1. वन-विभाग द्वारा जगह जगह टेक्स के नाम पर दुसरे शुल्क लेकर पर्यटकों को लुटा जायेगा| 2. बिना अनुमति के वन क्षेत्र में प्रवेश करने पर जुर्माना लगाया जायेगा| 3. देलवाडा जैन मंदिर में फोटोग्राफी बंद होने के कारण पर्यटक आना बंद हुए| 4. जन-प्रतिनिधियों ने कहाँ कि, कचरा पहले भी होता था, लेकिन भालू नहीं आते थे| आइये..हम इन चार बिन्दुओ पर चर्चा करते है, और इसका विश्लेषण कम शब्दों में करते है|
1. वन-विभाग द्वारा जगह जगह टेक्स के नाम पर दुसरे शुल्क लेकर पर्यटकों को लुटा जायेगा| हमने इस विषय पर उप-वन संरक्षक शुभम जैन जी से सीधे बात की, उन्होंने बताया की, वन विभाग द्वारा 145 रूपये प्रति-व्यक्ति शुल्कं लिया जा रहा है, जिसमे वो वनक्षेत्र में आने वाले तीन मुख्य पॉइंट पर जा कर शाम 6 बजे तक आराम से घूम सकता है| इसके अलावा किसी भी तरह का शुल्क, ना तो लिया जा रहा है, और ना ही लिया जायेगा| पाठको को एक बात स्पष्ट करना चाहूँगा, कि आप हमारे देश के किसी भी फारेस्ट सेन्चुरी में जाये या विश्व की, आपको उनका निर्धारित शुल्क देना होगा, और उनके नियमो की कड़ाई से पालना भी करनी पड़ेगी| रही बात...वनविभाग द्वारा कोई और टेक्स या शुल्क लिया जायेगा की नहीं..तो सपष्ट है की नहीं लिया जायेगा| लेकिन...एक बात समझनी जरुरी है, की वनविभाग अपने क्षेत्र में, वन्य जीवो की सुरक्षा हेतु प्रतिबद्ध होती है, और उसके कानून के अनुसार उसके अधिकार को उपयोग में लेने पर किसी तरह की कोई रोक या जोर जबरदस्ती नहीं की जा सकती| ये वन विभाग तय करेगा की किसे और कैसे प्रवेश देना है या नहीं|

2. बिना अनुमति के वन क्षेत्र में प्रवेश करने पर जुर्माना लगाया जायेगा| जैसा की उपरोक्त बिंदु एक में यह स्पष्ट हो चूका है, की वनविभाग के अपने कानून है, जिसमे कुछ में तो सर्वोच्च न्यायालय भी हस्तक्षेप नहीं कर सकती है| ये ऐसा एकमात्र विभाग हे जिसे अपने देश के कानून के साथ साथ विश्व के ओर्ग्नाइजेशन WWF वर्ल्ड वाइल्ड फेडरेशन की नियमो की भी पालना करनी होती है| पिछले ही कुछ दिनों पहले उतरज जंगलो में एक प्रोफेसर भटक गए थे, ईश्वर ना करे उनके साथ कोई हादसा हो जाता, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेता, खुद वो? वनविभाग? प्रशासन? होटल व्यवसाई? जबकि उन्होंने ना तो किसी भी तरह की कोई अनुमति किसी विभाग से ली थी, और ना ही किसी को कोई सुचना दी थी| इसके अलावा इसी माउंट आबू के जंगलो में पिछले साल में कितने लोगो की लाशे और कंकाल मिले...इसका जिम्मेदार कौन है| वनअभ्यारण में प्रवेष करने की अनुमति लेना आवश्यक है, और ये अधिकार उनका कानून उन्हें देता है, इसके लिए किसी को कोई आपति करने का भी अधिकार नहीं है|

3. देलवाडा जैन मंदिर में फोटोग्राफी बंद होने के कारण पर्यटक आना बंद हुए| ये मामला किसी की धार्मिक भावनाओ से जुड़ा है| माउंट आबू और इसके अलावा भारत में कई ऐसे हिन्दू मंदिर है, जिसमे फोटोग्राफी करना मना है| तो क्या इससे...वहाँ श्रधालुओं का जाना बंद हो गया, या हो जायेगा? हर मंदिर और हर धर्म की अपनी मान्यता है, और उसे उसकी पालना करने का पूरा अधिकार है, और ये अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है| आप या हम उसे चुनौती नहीं दे सकते| सीधी बात...पर्यटक कम नहीं हुआ, नगरपालिका के आंकड़ो को सच माने तो, प्रतिवर्ष पर्यटको की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है| और इन आंकड़ो को झूठ मान ले, और मान लिया जाये की पर्यटक कम हुआ है, तो उसके कई और भी कारण है, जैसे सीजन समय में होटलों में रूम किराया तीनसे चार गुणा बढा दिया जाता है, खाने पिने की सामग्रियों पर भाव बढा दिया जाता है, टोलनाके पर अवैध रूप से भी वसूली होती है, हर चौराहे पर ट्राफिक पुलिस द्वारा, कागजो के नाम पर पर्यटकों को मानसिक तनाव दिया जाता है, छोटी छोटी बातो पर उनके साथ मारपीट हो जाती है| क्या....ये सब कारण वैध हैँ? और किसी को नजर आते है? नहीं...क्योकि इन सब से हमें फायदा होता है, मुनाफा होता है, पर्यटकों की उपरोक्त परेशानी से हमे सरोकार नहीं|

4. जन-प्रतिनिधियों ने कहाँ कि, कचरा पहले भी होता था, लेकिन भालू नहीं आते थे| ये किस जन के प्रतिनिधि है, इसकी जाँच पहले होनी चाहिए, क्योकिं इन प्रतिनिधियों, को जनता की परेशानियाँ दिखती नहीं है, ये वो प्रतिनिधि है, जो आपदाओ में अपना अवसर ढूंढते है| जैसे आज की तारीख में माउंट आबू में भवन निर्माण सामग्री को ब्लेक में बेचने का कारोबार जोरो पर चल रहा है, इन्ही में से कुछ लोग इस व्यापार से जुड़े है| और उसी जन को जिसका ये प्रतिनिधित्व करते है, उनको चार गुना भाव में बेच रहे है| पट्टो की दलाली में भी मलाई इनको मिली है| किसी ने भी इनके खिलाफ कोई आन्दोलन अभी तक किया, या आमजन के लिए इस विषय पर आवाज बुलंद की। अब ये कहते है की कचरा पहले भी था, भालू नहीं आते थे| आज से करीब 15 साल पहले, कचरा समस्या इतनी थी है नहीं, और सारा कचरा मिनी नक्की लेक, के करीब चिमनी नाम के जगह पर, जो वनविभाग की थी, वहाँ फेंका जाता था, ये वो समय था, जब आज के कुछ नये नवेले देता डाइपर में घूमते थे| उस समय भालू, और दुसरे जंगली जानवरों का जमावड़ा वहां लगता था, पर एकांत होने के कारण वहां शिकारियों की गतिविधिया बढ़ने लगी, तब वनविभाग ने वहाँ कचरा डालने पर रोक लगा दी| उसके बाद से आज तक नगरपालिका इसका कोई विकल्प नहीं ला पाई, और कचरा जगह जगह डलता गया| अब भालू और बाकि जानवर उसे ढूंढते हुए शहर और आबादी की और आकर्षित होने लगे|

कुलमिलाकर अगर देखा जाये तो, वनविभाग और भालू एक राजनितिक मुद्दा है, जो आने वाले चुनावों के लिए, और प्रशासन को खुश करने के लिए एक हथियार की तरह उपयोग किया जा रहा है| प्रशासन को खुश रखना जरुरी है, क्योकि कुछ लोग कही न कही गलती कर बैठे है या यूँ कहे, नियमो के विरुद्ध जाकर कुछ, अपने फायदे के लिए अवैध कार्य कर रहे है| प्रशासन उन पर सीधा कार्यवाही ना करे, और उसका ध्यान भटका रहे, इसलिए ऐसे मुद्दे कई बार उठ चुके है| उपरोक्त तथाकथित लोगो में कुछ लोग ऐसे भी है, जो तीन-चार साल पहले इसी प्रशासन के दुशमन बने बैठे थे, उनकी शिकायते आला नेताओं से करते थे, अपनी ही पार्टी के नेताओं की धोती उतारने की बाते करते थे| कल समय प्रशासन के विरुद्ध था, आज समय वनविभाग के विरुद्ध है, आनेवाले कल में समय किसी और विभाग के विरुद्ध होगा| यही तो राजनीति है| लेख के अंत में बस... आबू की जनता से एक ही अनुरोध हैँ, कि किसी के बहकावे में ना आये| क्योंकि हर नेता बुरा भी नहीं हैँ, पर कुछ नेता ऐसे भी हैँ जो, हमेसा असंतुष्ट ही रहे हैँ, अपनी व्यक्तिगत कटुता के कारण ये कभी नगरपालिका, कभी प्रशासन, कभी पुलिस विभाग, कभी वन विभाग, कभी चिकित्सा विभाग या किसी भी विभाग के विरुद्ध आमजन में भ्रम पैदा करते आये हैँ | अपने फायदे के लिए जनता का सहारा लेते आये हैँ, जनता इनके लिए मात्र भीड़ जुटाने का साधन हैँ | कड़वा सच यही हैँ, कि पर्यटक माउंट आबू की प्राकृतिक सुंदरता देखने आते हैँ, यहॉँ के वन्यजीवो की एक झलक देखने को आते हैँ, यहाँ के होटल या इंफ्रास्ट्रक्चर देखने नहीं आते हैँ |


लेखक
खुशवंत राज

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