18/05/2025
ढूंढते-ढूंढते थक जाना ये रोज का मंजर है, पता नहीं ऐसा क्या खोया है मैंने, अपने जीवन में जो चैन नहीं, आराम नहीं, सुकून नहीं मिल पाता है, फिर हारकर भरी आंखों से बैठ जाना, न जाने कैसी बेबसी है,
ये जीवन को कहा कैसे मोड़ पर ले आई हूं l
जीवन की कल्पना जिसके बिना नहीं, जीना उसके बिना ही l🥺