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“दुःख और कष्ट !” इसलिए धनी आदमी दुखी हो जाते हैं। गरीब आदमी इतना दुखी नहीं होता। यह जरा अजीब लगेगी मेरी बात।गरीब आदमी कष...
15/10/2024

“दुःख और कष्ट !”

इसलिए धनी आदमी दुखी हो जाते हैं। गरीब आदमी इतना दुखी नहीं होता। यह जरा अजीब लगेगी मेरी बात।

गरीब आदमी कष्ट में होता है, दुख में नहीं होता। अमीर आदमी कष्ट में नहीं होता, दुख में होता है। कष्ट का मतलब है अभाव और दुख का मतलब है, भाव। कष्ट हम उस चीज से उठाते हैं, जो हमें नहीं मिली है और जिसमें हमें आशा है कि मिल जाये तो सुख मिलेगा। इसलिए गरीब आदमी हमेशा आशा में होता है, सुख मिलेगा, आज नहीं कल, कल नहीं परसों; इस जन्म में नहीं, अगले जन्म में, मगर सुख मिलेगा। यह आशा उसके भीतर एक थिरकन बनी रहती है। कितना ही कष्ट हो, अभाव हो, वह झेल लेता है, इस आशा के सहारे कि आज है कष्ट, कल होगा सुख। आज को गुजार देना है। कल की आशा उसे खींचे लिए चली जाती है। फिर एक दिन यही आदमी अमीर हो जाता है।

अमीर का मतलब, जो—जो इसने सोचा था आशा में, वह सब हाथ में आ जाता है। इस जगत में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं है, जब आशा आपके हाथ में आ जाती है। तब तत्सण सब फ्रस्ट्रेशन हो जाता है, सब विषाद हो जाता है। क्योंकि इतनी आशाएं बांधी थीं, इतने लंबे—लंबे सपने देखे थे, वे सब तिरोहित हो जाते हैं। हाथ में कोहिनूर आ जाता है, सिर्फ पत्थर का एक टुकड़ा मालूम पड़ता है। सब आशाएं खो गयीं। अब क्या होगा? अमीर आदमी इस दुख में पड़ जाता है कि अब क्या होगा? अब क्या करना है? कोई आशा नहीं दिखायी पड़ती आगे।
धन बड़े विषाद में गिरा देता है; कष्ट में नहीं, दुख में गिरा देता है। इसलिए दुख जो है वह समृद्ध आदमी का लक्षण है, कष्ट जो है गरीब आदमी का लक्षण है। और कष्ट और दुख, भाषाकोश में भले ही उनका एक ही अर्थ लिखा हो, जीवन के कोष में बिलकुल विपरीत अर्थ हैं। और मजा यह है कि कष्ट कभी इतना कष्टपूर्ण नहीं है, जितना दुख। क्योंकि दुख आंतरिक हताशा है और कष्ट बाहरी अभाव है। लेकिन भीतर आशा भरी रहती है।

आपको पता नहीं है कि आप खोज रहे हैं कि ईश्वर का दर्शन हो जाये, ईश्वर का दर्शन हो जाये। हो जाये किसी दिन तो उससे बड़ा दुख फिर आपको कभी न होगा। अगर आपने सारी आशाएं इसी पर बांध रखी हैं कि ईश्वर का दर्शन हो जाये।

समझ लो कि किसी दिन ईश्वर आपसे मजाक कर दे—ऐसे वह कभी करता नहीं— और मोर मुकुट बांध कर, बांसुरी बजा कर आपके सामने खड़ा हो जाये, तो थोड़ी बहुत देर देखिएगा फिर! फिर क्या करिएगा? फिर करने को क्या है? फिर आप उससे कहेंगे कि आप तिरोधान हो जाओ, तब आप फिर पहले जैसे लुप्त हो जाओ ताकि हम खोजें।
रवींद्रनाथ ने लिखा है कि ईश्वर को खोजा मैंने बहुत—बहुत जन्मों तक। कभी किसी दूर तारे के किनारे उसकी झलक दिखायी पड़ी, लेकिन जब तक मैं अपनी धीमी—सी गति से चलता—चलता वहां तक पहुंचा, तब तक वह दूर निकल गया था। कहीं और जा चुका था। कभी किसी सूरज के पास उसकी छाया दिखी, और मैं जन्मों—जन्मों उसको खोजता रहा, खोज बड़ी आनंदपूर्ण थी। क्योंकि सदा वह दिखायी पड़ता था कि कहीं है।

फासला था। फासला पूरा हो सकता था। फिर एक दिन बड़ी मुश्किल हो गयी। मैं उसके द्वार पर पहुंच गया। जहां तख्ती लगी थी कि भगवान यहीं रहता है। बड़ा चित्त प्रसन्न हुआ छलांग लगाकर सीढ़ियां चढ़ गया। हाथ में सांकल लेकर ठोंकने जाता ही था दरवाजे पर, पुराने किस्म का दरवाजा होगा, कालबेल नहीं रही होगी। रवींद्रनाथ ने कविता भी लिखी, उसको काफी समय हो गया। कालबेल होती तो वह मुश्‍किल में पड़ जाते क्योंकि वह एकदम से बज जाती।
सांकल हाथ में लेकर ठोंकने ही जाता था कि तभी मुझे खयाल आया कि अगर आवाज मैने कर दी और दरवाजा खुल गया और ईश्वर सामने खड़ा हो गया, फिर! फिर क्या करिएगा? फिर तो सब अंत हो गया, फिर तो मरण ही रह गया हाथ में, फिर कोई खोज न बची; क्योंकि कोई आशा न बची। फिर कोई भविष्य न बचा, क्योंकि कुछ पाने को न बचा।

ईश्वर को पाने के बाद और क्या पाइएगा? फिर मैं क्या करूंगा? फिर मेरा अस्तित्व क्या होगा? सारा अस्तित्व तो तनाव है, आशा का, आकांक्षा का, भविष्य का। जब कोई भविष्य नहीं, कोई आशा नहीं, कोई तनाव नहीं, फिर मै क्या करूंगा? मेरे होने का क्या प्रयोजन है फिर? फिर मैं होऊंगा भी कैसे? वह तो होना बहुत बदतर हो जायेगा।

रवींद्रनाथ ने लिखा है, धीमे से छोड़ दी मैंने वह सांकल कि कहीं आवाज हो ही न जाये। पैर के जूते निकालकर हाथ में ले लिए, कहीं सीढ़ियों से उतरते वक्त पग ध्वनि सुनायी न पड़ जाये। और जो मैं भागा हूं उस दरवाजे से, तो फिर मैने लौटकर नहीं देखा। हालांकि अब मैं फिर ईश्वर को खोज रहा हूं और मुझे पता है कि उसका घर कहां है। उस जगह को भर छोड़कर सब जगह खोजता हूं। बहुत मनोवैज्ञानिक है, सार्थक है बात, अर्थपूर्ण है। आप जहां—जहां सम्मोहन रखते है,

सम्मोहन का अर्थ—जहां—जहां आप सोचते हैं, सुख छिपा है, वहां—वहां पहुंचकर दुखी होंगे। क्योंकि वह आपकी आशा थी, जगत का अस्तित्व नहीं था। वह जगत का आश्वासन न था, आपकी कामना थी, वह आपने ही सोचा था, वह आपने ही कल्पित किया था, वह सुख आपने आरोपित किया था। दूर—दूर रहना, उसके पास मत जाना, नहीं तो वह नष्ट हो जायेगा। जितने पास जायेंगे उतनी मुसीबत होने लगेगी।
इंद्रधनुष जैसा है सुख। पास जायें, खो जाता है; दूर रहें, बहुत रंगीन।

– ओशो

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:।।श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आपको एवं आपके परिवार को हा...
26/08/2024

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:।।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आपको एवं आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ।
राधे-राधे 🙏🏻🙏🏻

🌳🌳 *सत्य सनातन* 🌳🌳*क्या आप जानते हैं शालिग्राम पत्थर क्या है??*शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धार्मिक आधार पर ...
21/05/2024

🌳🌳 *सत्य सनातन* 🌳🌳

*क्या आप जानते हैं शालिग्राम पत्थर क्या है??*

शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धार्मिक आधार पर इसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है।

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शालिग्राम मूलरूप से नेपाल में स्थित दामोदर कुंड से निकलने वाली काली गंडकी नदी से प्राप्त किया जाता है। इसलिए शालिग्राम को गंडकी नंदन भी कहते हैं।

वैष्णव (हिंदू) पवित्र नदी गंडकी में पाए जानेवाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पूजते हैं। शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रसिद्ध नाम है। जो इन्हें देवी वृंदा के शाप के बाद मिला नाम है।

हिंदू धर्म में शालिग्राम को सालग्राम के रूप में भी जाना जाता है। शालिग्राम का संबंध सालग्राम नामक गांव से भी है। यह गांव नेपाल में गंडकी नामक नदी के किनारे पर स्थित है।

शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान का विग्रह रूप माना जाता है और पुराणों के अनुसार भगवान के इस विग्रह रूप की ही पूजा की जानी चाहिए। शिवलिंग के तो भारत में लाखों मंदिर हैं, लेकिन शालिग्रामजी का एक ही मंदिर है।

हिंदू धर्म में आमतौर पर मानवरूपी धार्मिक मूर्तियों के पूजन की प्रथा है। लेकिन इन मूर्तियों के पहले से भगवान ब्रह्मा को शंख, विष्णु को शालिग्राम और शिवजी को शिवलिंग रूप में ही पूजा जाता था। भगवान कृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता के 12वें अध्याय के 5वें श्लोक में कहा है…

”जिन लोगों के मन परमात्मा के अप्रत्यक्ष, अवैयक्तिक गुणों से जुड़े होते हैं, उन लोगों के लिए उन्नति बहुत कठिन है। शरीर युक्त जीव को इस अनुशासन में प्रगति करना सदैव मुश्किल होता है।”

🔷️ शालिग्राम का स्थित....
शालिग्राम का एकमात्र मंदिर नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र में स्थित है। यह वैष्‍णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफी कठिन है। माना जाता है कि यहां से लोगों को हर तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

काठमांडु से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए पोखरा जाना होता है। पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते हैं, यहां से जोमसोम जाना होता है। जोमसोम से मुक्तिनाथ जाने के लिए हेलिकॉप्‍टर या फ्लाइट ले सकते हैं। सड़क मार्ग से जाने के लिए पोखरा तक कुल 200 कि.मी. की दूरी तय करनी होती है।

🔷️ शालिग्राम कैसे होती है....
शिवलिंग की तरह शालिग्राम भी दुर्लभ है। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र, काली गण्डकी नदी के तट पर पाए जाते हैं। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और सुनहरी आभा युक्त शालिग्राम भी होता है। लेकिन सुनहरा और ज्योतियुक्त शालिग्राम मिलना अत्यंत दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति प्राकृतिक तौर पर बनी होती है।

🔷️ शालिग्राम का प्रकार....
लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं, जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना जाता है। मान्यता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं।

भगवान विष्णु के अवतारों के अनुसार, शालिग्राम यदि गोल है तो वह भगवान विष्णु का गोपाल रूप है। मछली के आकार का शालिग्राम श्रीहरि के मत्स्य अवतार का प्रतीक माना जाता है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो इसे विष्णुजी के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम पर उभरनेवाले चक्र और रेखाएं विष्णुजी के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण रूप में उनके कुल को इंगित करती हैं।

20/05/2024

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20/05/2024

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🌳🦚 *आज की कहानी - सत्य सनातन की प्रेरणादायक कहानी* 🦚🌳💐💐 *राजा विक्रमादित्य*💐💐_(सत्य सनातन से जुड़ने के लिए इस लिंक पर क्...
08/05/2024

🌳🦚 *आज की कहानी - सत्य सनातन की प्रेरणादायक कहानी* 🦚🌳

💐💐 *राजा विक्रमादित्य*💐💐

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राजा विक्रमादित्य एक बढ़िया शासक थे, उनके राज्य में कभी किसी बात की कमी नहीं रहती थी ,वह प्रजा का बराबर ख्याल रखते थे , उनकी प्रजा खुशहाल थी , पर कभी कभी कोई ऐसा भी होता है जो परेशान भी होता है ,!!!
और उसी में से थे राज्य के खजांची चित्रशाल वह राजा विक्रमादित्य के बहुत ही करीबी भी थे और निश्छल भी थे ,,!!!

वह पिछले चालीस वर्षों से वह राज्य की सेवा कर रहे थे ,और जितनी उन्हे उस सेवार्थ पारिश्रमिक मिलता था , उसी से वह अपना घर परिवार चलाते थे, जिस कारण उनके पास कभी भी धन संचय नही हो पाया था !!!
उसी जगह दूसरे राज्य अधिकारी शानो शौकत से जिंदगी जी रहे थे ,और चित्रशाल
बेचारे एक निम्नवर्गीय जीवन व्यतीत कर रहे थे , !!!
चित्रशाल के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या थी उनकी इकलौती पुत्री कंचन का विवाह करना , उन्होंने कई रिश्ते देखे और उन्हे पसंद भी आया पर जब बात दहेज की आ जाती थी तो वह विचलित हो जाते थे , !!!
हर आदमी यह समझता था की वह राज्य के खजांची हैं तो खूब धन चुरा रखा होगा तो उसी प्रकार से सब दहेज की आशा भी रखते थे , !!!
अब उनसे छोटे अधिकारी अपनी पुत्रियों के विवाह में इतना दहेज दे दिए थे की साधारण आदमी सोच भी नही सकता था , तो लोगो का सोचना अनुचित नहीं था की राज्य के खजांची दहेज नही दे सकता है , !!!!

उनकी पत्नी और पुत्री से भी लोग कहा करते थे ,*" तुम्हे किस बात कि कमी है ,कोई छोटे मोटे अधिकारी थोड़े ना हैं , राज्य के खजांची हैं ,पूरा खजाना ही जब हाथ में है ,जितना चाहे निकल लो ,पर इन लोगो को तो यह नही पता था की बेचारे चित्रशाल तो बेहद ईमानदार थे ,और उनके पास धन नही है,*"!!

उनके घर में रोज महाभारत मचता था ,उनकी पत्नी और पुत्री उसे इतने ताने मारती की बेचारे मारे शर्म के कुछ बोल नहीं पाते थी , !!!

एक दिन तो हद हो गई जब उनकी पत्नी ने कह दिया *" आप से यदि कुछ हो नही सकता तो इसके लिए कोई भिखारी ढूंढ लाइए और इसका विवाह कर दीजिए अरे इतने दिनो में छोटे छोटे हीरे जवाहरात लाए होते तो अब तक इतना धन होता की हम भी और अधिकारियों की तरह शान से रह रहे होते और बेटी का विवाह भी धूम धाम से कर लेते ,पर तुम तो किसी लायक आदमी नही हो , तुम्हारे ईमानदारी का क्या फल मिला आज हम अपनी इकलौती पुत्री का विवाह तक नही कर पा रहे हैं,*"!!!

उस दिन चित्रशाल सोचने लगे की *" पत्नी की बात भी सत्य है मेरी ईमानदारी किस काम की जिस से मैं अपने परिवार को भी प्रसन्न नही रख सका , इतने साल में यदि साल में एक दिन भी कोई सामान उठा लाता तो अब तक चालीस जवाहर या लाल होते और बड़ी आसानी से सभी प्रसन्न भी रहते ,अब जो भी है मैं आज अपने पुत्री के लिए पहली और अंतिम बार ये काम करूंगा ,*"!!!

अभी यह बात सोचते हुए चले जा रहे थे ,उसी समय राजा विक्रमादित्य के मन में एक बात आती है की मैने आज तक सभी अधिकारियों की निगरानी की किंतु कभी भी चित्रशाल कि निगरानी नही कि और नही कभी उनके कार्य का लेखा जोखा लिया उन्होंने जो बताया मान लिया ,यदि उन्होंने कुछ उसमे से आहरण भी किया होगा तो कैसे पता चलेगा ,आज मैं औचक निरीक्षण करूंगा ,*"!!!
राजा विक्रमादित्य अपने कक्ष से निकल कर खजाने की ओर चलते हैं , !!!
चित्रशाल ने खजाना खोला और सभी समान को व्यवस्थित देखा और फिर विचार करने लगे ,*" जब मैंने चालीस वर्ष में कोई घृणित कार्य नही किया तो इस बुढ़ापे में यदि करता हुआ पकड़ा गया तो लोग तो यही कहेंगे की यह पुराना चोर है , नही चाहे कितनी भी मुसीबत आए मैं चोरी नही करूंगा ,पुत्री का विवाह घर और पत्नी के गहने बेचकर कर दूंगा ,*"!!!
अपने विचार से सहमत होकर वह खजाने का द्वार बंद करते है और जो प्रति दिन के खर्च के लिए आवश्यकता होती है वह निकाल कर बाहर निकले ,*"!!
उसी समय खजाने के पास पहुंच कर राजा विक्रमादित्य सोचने लगे की इतने वर्ष बीत गए मैने चित्रशाल पर कभी भी अविश्वास नही किया और यदि अभी औचक निरीक्षण करूंगा तो उन्हे दुख होगा ,दोनो ही इसी सोच विचार में एक दूसरे के सामने आ जाते हैं , चित्रशाल के चेहरे पर उदासी तो थी है परंतु राजन को अपने समक्ष देख वह उनका अभिवादन करते हुए कहते हैं ,*" राजन को सेवक चित्रशाल का प्रणाम स्वीकार हो , *"!!
राजा विक्रमादित्य अभिवादन स्वीकार कर कहते हैं ," चित्रशाल आप सेवक तो राज्य के हो पर हमारे तो मित्र हो हम दोनो एक साथ एक ही गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण किए हैं ,*"!??
चित्रशाल कहते हैं ,*" अभी तो आप राज्य के राजा के रूप में मेरे समक्ष उपस्थित हैं जब मित्र बनकर आयेंगे तब मित्रवत व्यवहार करेंगे, "*!!!
राजा विक्रमादित्य उनको ध्यान से देखकर कहते हैं ,*" क्या बात है मित्र चित्रशाल तुम कुछ उदास लग रहे हो जो भी कारण हो मुझसे अभी बताओगे अब इसे चाहे मित्र का अनुरोध समझो या फिर राजा का आदेश ,क्योंकि मैं तो अपनी प्रजा को उदास नही देख पाता और तुम तो इतने बड़े राज्याधिकारी हो ,*"!!!

चित्रशाल को उनकी अपनत्व भरी वार्ता से इतना दुख होता है की उनकी आंखों से आंसु निकलते हैं ,!!
यह देख राजा भी द्रवित हो उठते हैं ,वह उस से कहते हैं ,*" देखो चित्रशाल जो भी बात है मुझे खुल कर बताओ यदि मेरे वश में हुआ तो मैं उसके निवारण का प्रयास करूंगा,और ना भी हुआ तो हम मिल कर उसका पर्याय निकालेंगे ,*"!!!
चित्रशाल से अब रहा नहीं गया और वह सारी बात सच सच बता देते है !!!!

और कहते हैं ,*" राजन मैं आपका दोषी हूं आप जो दंड देना चाहे दे सकते हैं,*"!!

राजा विक्रमादित्य कहते हैं ,*" दोषी तुम अकेले नहीं हो मैं भी उतना ही दोषी हूं जो कभी यह नहीं देख पाया की तुम्हे किसी बात की कमी है या नही सभी के पारिश्रमिक भी बढ़े पर तुमने तो कभी कहा ही नहीं और तुम्हारा बढ़ा भी नही ,तुमसे अधिक मेरा दोष है ,*"!!
राजा विक्रमादित्य सोचने लगे और फिर कहते हैं *" आओ चलो खजाना खोलो ,*"!!
चित्रशाल खजाने में राजन के साथ प्रवेश करते हैं ,!!!
राजा विक्रमादित्य कहते हैं*" यदि मैं अब तक का तुम्हारा हिसाब करू तो उस हिसाब से ब्याज और मुद्दल मिला कर काम से काम एक लक्ष्य अशर्फी तो हो जायेगा , तो मेरी इच्छा है कि तुम अपना पारिश्रमिक तो अभी निकालो और उसके अलावा हमारी पुत्री की शादी राज्य के कोश से होगा अर्थात मेरे स्वयं के खाते से ,*"!!!
चित्रशाल की आंखो से आंसु झर झर बहने लगता है ,वह इस बार राजन नही अपने मित्र के गले लगते हैं,!!

उनकी पुत्री का विवाह राजा विक्रमादित्य अपने ही देख रही में राज्य के सबसे धनवान व्यक्ति के लड़के से करते हैं ,और वह भी बिना दहेज के अब भला राजन से दहेज कौन मांग सकता था पर राजन ने उसे इतना दे दिया जितना वह सोच भी नही सकता था ,*"!!

इंसान जब भीं अच्छा या बुरा जो भी सोचता है ,वही सोच उसके सामने वाले इंसान में आती है इसलिए हमेशा अच्छा सोचो अच्छा पाओ,!!!

🌳🦚 *आज की कहानी - सत्य सनातन की प्रेरणादायक कहानी* 🦚🌳💐💐 *कर्मा बाई*💐💐_(सत्य सनातन से जुड़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजि...
07/05/2024

🌳🦚 *आज की कहानी - सत्य सनातन की प्रेरणादायक कहानी* 🦚🌳

💐💐 *कर्मा बाई*💐💐

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जगन्नाथ पुरी का मंदिर पूरे विश्व में चर्चित है, हमारे चार धामों में एक इनका भी नाम है, उसी जगन्नाथ पुरी मंदिर के पास ही एक छोटे से घर में कर्मा बाई नाम की बुजुर्ग महिला रहती थी, वह प्रतिदिन सुबह उठकर बाजरे की खिचड़ी बनाकर कृष्ण भगवान को भोग लगाती थी , उनके खिचड़ी कि खुशबू भगवान जगन्नाथ तक पहुंच जाती थी , एक दिन भगवान स्वयं सुबह सुबह बाल रूप में उनके घर में आ जाते हैं और कहते हैं, " मां आप कि खिचड़ी कि सुगंध बहुत ही अच्छी आती है ,रोज मेरा मन करता था कि आकर खाऊं आज रहा नही गया, तो मैं चला आया, "! कर्मा बाई प्यारे से बच्चे को देख कहती है," आओ आओ बेटा यह तो मेरा सौभाग्य जो कृष्ण रूप में तुम आए हो,बैठो,"!! वह प्यार से उन्हे खिचड़ी खिलाती है,वह बालक रूपी भगवान खिचड़ी खा कर मुंह धोकर पूछते हैं ," मां मैं कल भी खिचड़ी खाने आऊं, "?? तो वह खुशी खुशी कहती हैं ," कल ही क्यों बेटा तुम रोज आ सकते हो , मुझे भी अच्छा लगेगा , वैसे तुम रहते कहां हो ," !! भगवान मुस्कराकर बोले," बस यहीं मंदिर परिसर में ही रहता हूं, तुम्हारी खिचड़ी कि सुगंध से चला आया ,अब रोज आऊंगा और ऐसा ही स्वादिष्ट खिचड़ी बनाना, "!! वह जाता है ,अब तो रोज का काम हो गया, एक दिन एक साधु उनके घर भिक्छा मांगने आता है तो वह खिचड़ी देने लगती हैं तो वह साधु कहता है " माते तुमने यह बिना स्नान किए बनाया है,"!! वह भोलेपन में कहती है, " महाराज मैं तो प्रति दिन उठकर पहले खिचड़ी बनाकर कृष्ण भगवान को भोग लगाती हूं फिर दूसरा कार्य करती हूं,"!! वह कहता है," नही माते ,सुबह बिना स्नान के भोग लगाने से भगवान रूष्ट हो जाते हैं ,इसलिए सुबह पहले स्नान करके ही खिचड़ी बनाया करो,"!! कर्मा बाई को उनकी बात सही लगती है,तो वह दूसरे दिन सुबह सुबह उठकर स्नान करके फिर खिचड़ी चढ़ाती है ,लेकिन बालक तो अपने समय पर आ कर बैठ जाता है, वह कहता है,*" मां आज बहुत देर कर दिया तुमने मुझे मंदिर परिसर में जल्दी जाना है लोग मेरी बाट जोहते हैं, "!! भोली भाली कर्मा बाई को अब भी समझ नही आता है कि सामने बैठा बालक स्वयं मुरली मनोहर हैं, वह तो प्रतिदिन कि तरह उन्हे खिचड़ी खिलाती है, पुजारी जब मंदिर में आरती के लिए पट खोलते हैं तो उन्हे आश्चर्य होता है की सुबह सुबह तो उन्होंने भगवान को स्नान कराया था ,उनके मुंह में खिचड़ी किसने लगा दिया, "!! वह उनका मुंह फिर से साफ करते हैं ,ये अब प्रतिदिन का कार्य हो गया एक दिन तो वह स्नान करा कर वहीं बाहर छुप कर बैठ जाते हैं और देखते हैं कौन यह बदमाशी कर रहा है, पर उन्हे कोई दिखाई नही देता और पट खुलने पर फिर वही हाल था, पुजारी एकदम से विचलित हो उठते हैं, पूरा दिन उनसे कुछ खाया पिया नही जाता है ,रात पुजारी जी को भगवान स्वप्न में आकर बताते हैं ," मेरी भक्त कर्मा बाई मुझे प्रतिदिन खिचड़ी बनाकर खिलाती है ,एक दिन बाहर बैठे साधु ने उन्हे स्नान करके खिचड़ी बना कर भोग लगाने को कह दिया है तो अब खिचड़ी देर से बनती हैं तो मुझे खाने के बाद मुंह धोने का समय ही नहीं बचता है, उस साधु को समझा दीजिए, "!! पुजारी की नींद खुलती है तो वह बाहर धूनी जमा कर बैठे साधु को जाकर सारी बाते बताते हैं तो वह आश्चर्य चकित हो जाता है वह सोचता है हम इतने वर्षों से इनकी साधना कर रहे हैं हमे एक बार भी दर्शन नही दिए और उस माता के पास प्रतिदिन खिचड़ी खाने जाते है,धन्य है वो मां ,वह जगन्नाथ प्रभु को प्रणाम कर तुरंत कर्मा बाई के घर जाकर बिना स्नान किए ही खिचड़ी बनाने को कहते हैं, और उसे प्रणाम कर जाते हैं ,कई दिनो तक यह चलता रहा, एक दिन कर्मा बाई ने अंतिम सांस ली, पूरा गांव और मंदिर के सभी लोग उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए और विधिवत उनका अंतिम संस्कार किया, "!! दूसरे दिन सुबह जब मंदिर के पट खुलते हैं तो पुजारी को यह देख आश्चर्य होता है कि प्रभु के आंखो से आंसु निकलते हैं, दूसरे दिन भी यही हाल था ,बात राजा तक पहुंचती है वह भी आकर देखते हैं तो उन्हे भी आश्चर्य होता है,वह भगवान से प्रार्थना करते हैं "हे प्रभु यदि हम लोगो से कोई भूल हुई हो तो क्षमा करें ,और हमे बताए ताकि हम उसे सुधार सके, "!!
रात्रि में राजा और पुजारी दोनो को ही स्वप्न आता है ,भगवान कहते हैं" कर्मा बाई प्रतिदिन खिचड़ी का भोग खिलाती थी अब उसके जाने के बाद से में भूखा रहने लगा हूं,उसकी याद में मुझे सुबह रोना आता है, "!! महाराज की रात में ही नींद खुल जाती हैं और वह तुरंत पुजारी जी के पास जाते हैं , वहां पता चलता है कि उन्हें भी वही स्वप्न आया था, तो पुजारी तुरंत पहले बाजरे कि खिचड़ी बनाते हैं और उसी समय भोग लगाते हैं जब कर्मा बाई उन्हे खिलाती थी, उस दिन उनकी आंखों से आंसु नही आते हैं ,तो सभी खुश हो जाते हैं और उस दिन से भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी का भोग चढ़ने लगा जो आज भी जारी है ,कितनी महान थी कर्मा बाई जिनके हाथों से प्रतिदिन प्रभु स्वयं भोजन प्राप्त करते थे,।

💐💐 *सत्य सनातन* 💐💐

*सदैव प्रसन्न रहिए।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
सनातन धर्म सनातन धर्म ॐ नम शिवाय धर्म Everyone Should Know

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06/05/2024

*🌳🦚आज की कहानी सत्य सनातन की प्रेरणादायक कहानी 🦚🌳*

*💐💐चिड़िया की सीख💐💐*

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एक समय की बात है. एक राज्य में एक राजा राज करता था। उसके महल में बहुत ख़ूबसूरत बगीचा था। बगीचे की देखरेख की ज़िम्मेदारी एक माली के कंधों पर थी. माली पूरा दिन बगीचे में रहता और पेड़-पौधों की अच्छे से देखभाल किया करता था। राजा माली के काम से बहुत ख़ुश था।

बगीचे में एक अंगूर की एक बेल लगी हुई थी, जिसमें ढेर सारे अंगूर फले हुए थे। एक दिन एक चिड़िया बगीचे में आई।उनसे अंगूर की बेल पर फले अंगूर चखे । अंगूर स्वाद में मीठे थे. उस दिन के बाद से वह रोज़ बाग़ में आने लगी।

चिड़िया अंगूर की बेल पर बैठती और चुन-चुनकर सारे मीठे अंगूर खा लेती. खट्टे और अधपके अंगूर वह नीचे गिरा देती. चिड़िया की इस हरक़त पर माली को बड़ा क्रोध आता। वह उसे भगाने का प्रयास करता, लेकिन सफ़ल नहीं हो पाता।
बहुत प्रयासों के बाद भी जब माली चिड़िया को भगा पाने में सफ़ल नहीं हो पाया, तो राजा के पास चला गया। उसने राजा को चिड़िया की पूरी कारिस्तानी बता दी और बोला, “महाराज! चिड़िया में मुझे तंग कर दिया है।उसे काबू में करना मेरे बस के बाहर है. अब आप ही कुछ करें।

राजा ने ख़ुद ही चिड़िया से निपटने का निर्णय किया।अगले दिन वह बाग़ में गया और अंगूर की घनी बेल की आड़ में छुपकर बैठ गया।रोज़ की तरह चिड़िया आई और अंगूर की बेल पर बैठकर अंगूर खाने लगी. अवसर पाकर राजा ने उसे पकड़ लिया।

चिड़िया ने राजा की पकड़ से आज़ाद होने का बहुत प्रयास किया, किंतु सब व्यर्थ रहा।अंत में वह राजा से याचना करने लगी कि वो उसे छोड़ दें. राजा इसके लिए तैयार नहीं हुआ. तब चिड़िया बोली, “राजन, यदि तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हें ज्ञान की ४ बातें बताऊंगी।

राजा चिड़िया पर क्रोधित था. किंतु इसके बाद भी उसने यह बात मान ली और बोला, “ठीक है, पहले तुम मुझे ज्ञान की वो ४ बातें बताओ. उन्हें सुनने के बाद ही मैं तय करूंगा कि तुम्हें छोड़ना ठीक रहेगा या नहीं.”

चिड़िया बोली, “ठीक है राजन. तो सुनो. पहली बात, कभी किसी हाथ आये शत्रु को जाने मत दो।”

“ठीक है और दूसरी बात?” राजा बोला।

“दूसरी ये है कि कभी किसी असंभव बात पर यकीन मत करो.” चिड़िया बोली।

“तीसरी बात?”

“बीती बात पर पछतावा मत करो.”

“और चौथी बात।

“राजन! चौथी बात बड़ी गहरी है. मैं तुम्हें वो बताना तो चाहती हूँ, किंतु तुमनें मुझे इतनी जोर से जकड़ रखा है कि मेरा दम घुट रहा है. तुम अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करो, तो मैं तुम्हें चौथी बात बताऊं.” चिड़िया बोली,

राजा ने चिड़िया की बात मान ली और अपनी पकड़ ढीली कर दी। पकड़ ढ़ीली होने पर चिड़िया राजा एक हाथ छूट गई और उड़कर पेड़ की ऊँची डाल पर बैठ गई. राजा उसे ठगा सा देखता रह गया।

पेड़ की ऊँची डाल पर बैठी चिड़िया बोली, “राजन! चौथी बात ये कि ज्ञान की बात सुनने भर से कुछ नहीं होता. उस पर अमल भी करना पड़ता है। अभी कुछ देर पहले मैंने तुम्हें ज्ञान की ३ बातें बताई, जिन्हें सुनकर भी आपने उन्हें अनसुना कर दिया। पहली बात मैंने आपसे ये कही थी कि हाथ में आये शत्रु को कभी मत छोड़ना. लेकिन आपने अपने हाथ में आये शत्रु अर्थात् मुझे छोड़ दिया। दूसरी बात ये थी कि असंभव बात पर यकीन मत करें. लेकिन जब मैंने कहा कि चौथी बात बड़ी गहरी है, तो आप मेरी बातों में आ गए। तीसरी बात मैंने आपको बताई थी कि बीती बात पर पछतावा न करें और देखिये, मेरे आपके चंगुल से छूट जाने पर आप पछता रहे हैं।

इतना कहकर चिड़िया वहाँ से उड़ गई और राजा हाथ मलता रह गया.

*शिक्षा:-*
मात्र ज्ञान अर्जित करने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता. ज्ञानी वो होता है, जो अर्जित ज्ञान पर अमल करता है।

जीवन में जो बीत गया, उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं, किंतु वर्तमान हमारे हाथों में हैं। आज का वर्तमान कल के भविष्य कल का निर्माण करेगा। इसलिए वर्तमान में रहकर कर्म करें और अपना भविष्य बनाये

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*💐💐 सत्य सनातन 💐💐*

*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

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