गाँव वाले भैया

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जमीन विवाद आज देशभर में गंभीर समस्या बन गया है, जिससे हर साल हजारों लोगों की जान जा रही है। छोटे-छोटे टुकड़ों और बंटवारे...
26/09/2025

जमीन विवाद आज देशभर में गंभीर समस्या बन गया है, जिससे हर साल हजारों लोगों की जान जा रही है। छोटे-छोटे टुकड़ों और बंटवारे को लेकर गांव-गांव में झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। अदालतों में वर्षों से लंबित मामलों के कारण पीड़ित परिवार न्याय से वंचित रह जाते हैं। विवादों के चलते खून-खराबा, दुश्मनी और सामाजिक तनाव भी बढ़ रहा है। ऐसे हालात में सरकार और समाज को मिलकर ठोस समाधान निकालना जरूरी है।

26/09/2025

हम चाहे कितनी भी उपयोगी पोस्ट कर दे किसी को बिलकुल मतलब नहीं है, लेकिन कोई महिला लिख दे कि भूख लगी है, तो सब टिफिन लेकर घर ही पहुंच जाएंगे! 😢

मिल बांटकर खा रहे थे, छीन लिया
26/09/2025

मिल बांटकर खा रहे थे, छीन लिया

26/09/2025

नरेगा में अगर मिट्टी इधर-उधर करवाने की बजाय पेड़ पौधे लगवाने का काम करवाया जाये तो 4-5 सालों मे देश हरा-भरा हो सकता है। काम किया हुआ भी दिखेगा सबसे बड़ी बात पैसे का सदुपयोग भी होगा और पेड़ पौधे होंगे तो हर साल बढ़ता तापमान नियंत्रित होगा

पटवारी जी तो मिल-बांटकर खाने में विश्वास रखते है 😄🙏
26/09/2025

पटवारी जी तो मिल-बांटकर खाने में विश्वास रखते है 😄🙏

भीड़ तो हमारे यहां जेसीबी की खुदाई देखने ही आ जाती है, यें तो फिर भी वन्दे भारत है 🙏🙏
26/09/2025

भीड़ तो हमारे यहां जेसीबी की खुदाई देखने ही आ जाती है, यें तो फिर भी वन्दे भारत है 🙏🙏

अब तो लगता ह मुझे भी मुद्दों पऱ चुप रहना पड़ेगा 😢😢
25/09/2025

अब तो लगता ह मुझे भी मुद्दों पऱ चुप रहना पड़ेगा 😢😢

अब इंसाफ होगा या खानापूर्ति होंगी 👍👍
25/09/2025

अब इंसाफ होगा या खानापूर्ति होंगी 👍👍

25/09/2025

वन्दे भारत किराया
सादुलपुर से दिल्ली 745
सादुलपुर से बीकानेर 900

किस उम्र में हाथ पीला करना सही रहता है???
25/09/2025

किस उम्र में हाथ पीला करना सही रहता है???

25/09/2025

"आप लोग हमारी पोस्ट देखकर चुपचाप ऐसे निकल जाते हो, जैसे जीमण आए और बान भी ना लिखवाये 😄

खाप पंचायतें – एक समय समाज की रीढ़ मानी जाने वाली ये परंपरागत व्यवस्थाएं अब कानून और आधुनिकता की भेंट चढ़ती नजर आ रही है...
25/09/2025

खाप पंचायतें – एक समय समाज की रीढ़ मानी जाने वाली ये परंपरागत व्यवस्थाएं अब कानून और आधुनिकता की भेंट चढ़ती नजर आ रही हैं। पहले जब किसी गांव में विवाद या सामाजिक अपराध होता था, तो समाज के बुजुर्ग, सरपंच, ताऊ और पंचायतें बिना किसी कोर्ट-कचहरी के समाधान निकाल देती थीं। फैसलों में कठोरता होती थी, लेकिन न्याय होता था। अपराधी को समाज से डर लगता था, इज्जत की परवाह होती थी।
लेकिन अब...
जैसे-जैसे खाप पंचायतों को अवैध घोषित करने की मांग, कोर्ट में केस और सोशल मीडिया ट्रायल का चलन बढ़ा, समाज के अंदर से डर और अनुशासन धीरे-धीरे खत्म होने लगा। जिन बुजुर्गों और समाज के कद्दावर लोगों की बात एक समय कानून से ऊपर मानी जाती थी, उन्हें अब कोर्ट के कटघरों में खड़ा किया जा रहा है।
क्या बदला?
खापों के फैसलों पर कोर्ट की दखल
समाज के लोगों द्वारा समाज के ही बुजुर्गों को घसीटना
सामूहिक अनुशासन की जगह व्यक्तिगत स्वार्थ हावी
न्याय की जगह बदले और अपमान की भावना
नतीजा?
अब न तो ताऊ से डर, न ही समाज की इज्जत की परवाह। नाबालिग से लेकर अधेड़ तक अपने फैसले खुद लेने लगे हैं। अपराधों में बढ़ोतरी, रिश्तों में दरारें, और सामाजिक ताने-बाने का विघटन – ये सब इसी बदलाव के दुष्परिणाम हैं।
न्याय जरूरी है, लेकिन अनुशासन उससे भी जरूरी होता है।
खाप पंचायतों की प्रथा में सुधार हो सकता है, लेकिन उन्हें पूरी तरह नकार देना समाज को दिशाहीन करने जैसा है।
सोचिए – डर खत्म हुआ या जिम्मेदारी?

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