
20/12/2023
इन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहते हैं, मगर मुझे ऐसी संज्ञाएँ नापसंद हैं। अगर कोई शेक्सपियर को पश्चिम का भिखारी ठाकुर कहे तो मुझे यह भी पसन्द नही, भिखारी ठाकुर सिर्फ भिखारी ठाकुर हैं और शेक्सपियर सिर्फ शेक्सपियर । यह भिखारी ठाकुर हैं, जिन्होंने भोजपुरी की गम्भीरता को दुनिया के सामने रखा, अपनी शैली में एक नए रंग को उस वक़्त उभारा, जब हिन्दी-उर्दू के दिग्गज हर तरफ़ छाए हुए थे । भोजपुरी को लेकर अभी बड़े सवाल हैं मगर जब आप भिखारी ठाकुर जैसे गम्भीर हस्तक्षेप को पढ़ेंगे, तब लगेगा कि भाषाओ को तो उसके लेखक ही फर्श से अर्श तक ले जाते हैं ।
हम अक्सर सोचते थे कि मॉरीशस वगैरह में भोजपुरी का इतना दख़ल कैसे है । हालांकि मॉरीशस वगैरह में भोजपुरी पहले से बोली जा रही थी मगर इतनी समृद्ध कैसे हुई । तब हमे भिखारी ठाकुर की साहित्यिक,सांस्कृतिक रंगों से भरपूर जीवनयात्रा जो देश की सभी सीमाएं तोड़कर उन्होंने उसका दायरा फैलाया,उसकी अहमियत समझ आई । अपनी मंडली के साथ-साथ मॉरीशस, केन्या, सिंगापुर, नेपाल, ब्रिटिश गुयाना, सूरीनाम, युगांडा, म्यांमार, मैडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, त्रिनिडाड और अन्य जगहों पर उन्होंने दौरा किया जहां भोजपुरी संस्कृतियों के बीज थे । उन्हें फलने फूलने में मदद की,और इन आँगन में अब वह एक बड़ा दरख़्त बनकर खड़ी है ।
एक ज़िन्दगी में क्या क्या किया जा सकता है ।।यह बिहार में जन्मे भिखारी ठाकुर ने जीकर दिखा दिया । हम उन्हें आज क्यों याद कर रहे हैं, क्योंकि इस महान लेखक,कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता का जन्मदिवस 18 दिसंबर को था । हमें उनको याद करना चाहिए और बहुत सम्मान से क्योंकि भिखारी ठाकुर की कमी,अब भोजपुरी साहित्य में पग पग पर पता चलती है ।
भिखारी ठाकुर ने बिदेशिया, भाई-बिरोध
बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा, कलयुग प्रेम, गबर घिचोर, गंगा स्नान (अस्नान), बिधवा-बिलाप, पुत्रबध, ननद-भौजाई, बहरा बहार, कलियुग-प्रेम, राधेश्याम-बहार, बिरहा-बहार, नक़ल भांड अ नेटुआ के जैसे लोकनाटक रचे। उनमें तो जैसे चलते चलते नाटक रच देने का हुनर था। नाटक में बहुत घरेलू बात को प्रमुखता से उभारने की कला उनमें थी। उनके विचारों की झलक सब तरफ बिखरी पड़ी थी।
बिहार के बहुत ही पिछड़े परिवार से जन्म लेकर,दुनिया मे अपने होने की उन्होंने दस्तक दी। 18 दिसम्बर 1887 में जन्मे और 10 जुलाई 1971 को दुनिया को समृद्ध करके चले गए,मगर उन्हें याद करने में हमसे ज़रा कोताही हुई । हम भूल गए उस बुज़ुर्ग को,जिसने हमारे देश की एक संस्कृति को बहुत समृद्ध किया और इतना काम कर डाला कि लोगों को मेहनती व्यक्तित्व को देख संज्ञा देनी चाहिए थी कि, तुम तो यार भिखारी ठाकुर हो मगर हमने भिखारी ठाकुर को ही शेक्सपियर कहकर तसल्ली कर ली ।
आपको याद करते हुए, नमन और श्रद्धांजलि भिखारी ठाकुर, आप एक बहुत बड़े वर्ग का गर्व हैं । हमारे देश, संस्कृति और समाज का सम्मानीय चेहरा,नमन है आपको🙏💐