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एक वक्त था जब श्रीदेवी संजय दत्त से बहुत ज़्यादा घबराती थी। क्योंकि एक दिन नशे में संजय दत्त श्रीदेवी के मेकअप रूम में प...
24/09/2025

एक वक्त था जब श्रीदेवी संजय दत्त से बहुत ज़्यादा घबराती थी। क्योंकि एक दिन नशे में संजय दत्त श्रीदेवी के मेकअप रूम में पहुंच गए थे। मगर बाद में स्थिति सामान्य हुई और श्रीदेवी ने इस फिल्म में संजय दत्त संग काम किया। इस फिल्म के अन्य प्रमुख कलाकार थे अनुपम खेर, राहुल रॉय, रीमा लागू, सोनी राज़दान, टॉम ऑल्टर, सुदेश इस्सर, बॉब क्रिस्टो, अनंग देसाई, लक्ष्मीकांत बेर्डे, कामिनी कौशल, अवतार गिल, महेश आनंद और मुश्ताक खान। फिल्म में कुल छह गीत थे जिन्हें आनंद बक्शी जी ने लिखा था। और कंपोज़ किया था लक्ष्मी-प्यारे ने। इस फिल्म के गाने संगीत प्रेमियों को पसंद आए थे।

गुमराह, 24 सितंबर 1993 को रिलीज़ हुई महेश भट्ट द्वारा निर्देशित और यश जौहर द्वारा उनके बैनर धर्मा प्रोडक्शन्स में निर्मित एक फिल्म जिसकी रिलीज़ डेट विकीपीडिया पर 3 अगस्त बताई जाती है। लेकिन वो गलत है। सही तारीख 24 सितंबर है। ये श्रीदेवी और संजय दत्त की साथ में की गई इकलौती फिल्म है। इंटरनेट पर कहा जाता है कि धर्मा प्रोडक्शन्स की ही कलंक में पहले श्रीदेवी ही थी। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद माधुरी को फिल्म में लेना पड़ा। अगर श्रीदेवी की मृत्यु ना हुई होती तो 25 साल बाद दोनों फिर से साथ नज़र आते। आज गुमराह फिल्म कगे 32 साल पूरे हो गए हैं। चलिए इस फिल्म की मेकिंग से जुड़े कुछ रोचक फैक्ट्स जानते हैं।

गुमराह की अधिकतर शूटिंग हॉन्ग कॉन्ग में हुई थी। उस वक्त श्रीदेवी और संजय दत्त को देखने के लिए हॉन्ग कॉन्ग में रहने वाली इंडियन कम्यूनिटी के लोगों के बीच बड़ी उस्तुकता थी। बहुत बड़ी तादाद में भारतीय मूल के लोग श्रीदेवी और संजय दत्त से मिलने आ पहुंचे थे। भीड़ इतनी ज़्यादा हो गई थी कि फिल्म क्र्यू को स्थानीय पुलिस की मदद लेनी पड़ी थी।

गुमराह का बजट और कलेक्शन एग्ज़ैक्टली कितना था ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। वैसे तो कुछ लोग दावा करते हैं कि इस फिल्म का बजट तीन करोड़ रुपए था। और इसने आठ करोड़ रुपए का कलैक्शन किया था। लेकिन इस पर पूरी तरह से यकीन नहीं किया जा सकता। क्योंकि ऐसे दावे करने वालों के पूर्व में कई दावे गलत ही निकले हैं।

गुमराह वास्तव में 1989 की ऑस्ट्रेलियन टीवी सीरीज़ बैंकॉक हिल्टन से प्रेरित थी। गुमराह से पहले भी इस ऑस्ट्रेलियन टीवी सीरीज़ पर एक फिल्म बॉलीवुड में बनने जा रही थी जिसे दीपक आनंद डायरेक्ट करने जा रहे थे। उस फिल्म में ऋषि कपूर और करिश्मा कपूर पिता-पुत्री के किरदार में नज़र आने वाले थे। लेकिन किन्हीं वजहों से वो फिल्म बन ना सकी।

कहा जाता है कि पहले गुमराह के लीड हीरो राहुल रॉय थे। लेकिन बाद में राहुल रॉय के अधिकतर दृश्य एडिटिंग के बाद निकाल दिए गए। राहुल का रोल आखिर में इतना छोटा रह गया था कि मेकर्स को उन्हें गेस्ट अपीयरेंस के तौर फिल्म में क्रेडिट दिया था। राहुल रॉय इससे काफी नाराज़ हुए थे। लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सके। राहुल की नाराज़गी की वजह ये भी थी कि कहां तो उन्हें पहले संजय दत्त का रोल गेस्ट अपीयरेंस बताया जा रहा था। और कहां उनका रोल ही गेस्ट अपीयरेंस कर दिया गया।

राहुल रॉय को इस फिल्म के एक सीन से बड़ी आपत्ति हुई थी। उस सीन में श्रीदेवी राहुल रॉय के गाल पर थप्पड़ लगाती हैं। राहुल रॉय ये सीन करना नहीं चाहते थे। पहले ये सीन स्क्रिप्ट में नहीं था। इसलिए राहुल को जब ये सीन करने को कहा गया तो वो पहले तो हैरान, और बाद में नाराज़ हुए। उन्होंने महेश भट्ट से इस सीन को करने से मना कर दिया था। राहुल रॉय का कहना था कि उनकी कुछ फिल्में ऐसी आने वाली हैं जिसमें वो मुख्य हीरो हैं। अगर लोग उन्हें ऐसे हीरोइन से थप्पड़ खाते देखेंगे तो उनकी इमेज पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। लेकिन महेश भट्ट नहीं माने। उन्होंने राहुर रॉय को ये सीन शूट करने पर विवश किया। राहुल रॉय को तब और भी ज़्यादा बुरा लगा जब उन्हें पता चला कि एडिटिंग में इस फिल्म में से उनके सभी अहम सीन्स काट दिए गए हैं। लेकिन वो थप्पड़ वाला सीन रखा गया है। इस फिल्म के बाद राहुल रॉय ने महेश भट्ट की किसी और फिल्म में काम नहीं किया।

गुमराह की शूटिंग मॉरिशस में भी हुई थी। वहां भी भारतीय मूल के लोगों ने इस फिल्म की स्टारकास्ट को लेकर बड़ी उत्सुकता दिखाई थी। खै़र, मॉरिशस में शूटिंग के दौरान राहुल रॉय एक बड़ी मुसीबत में फंसते-फंसते बचे थे। हुआ कुछ यूं कि जब इस फिल्म की शूटिंग मॉरिशस में चल रही थी तभी मॉरिशस पुलिस ने रियाजत हुसैन नाम के एक गैंगस्टर को गिरफ्तार किया था। उस गैंगस्टर ने पुलिस से कहा कि उसकी राहुल रॉय के साथ दोस्ती है। उसने पुलिस को राहुल रॉय संग अपनी कुछ तस्वीरें भी दिखाई। फिर तो मॉरिशस के अखबारों में ये किसी ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह छप गई। वहां हंगामा मच गया। पुलिस ने पूछताछ के लिए राहुल रॉय को बुलाया। राहुल ने पुलिस को बताया कि उस गैंगस्टर के साथ उनका कोई ताल्लुक नहीं है। जैसे तमाम दूसरे फैंस उनके साथ आकर तस्वीरें खिंचाते हैं वैसे ही वो गैंगस्टर भी आ गया होगा। इस मामले पर तब मॉरिशस में बड़ी कंट्रोवर्सी हुई थी। मगर बाद में वो मामला शांत हो गया था।

लेट एक्टर महेश आनंद पहले गुमराह में एक फाइट सीन को कोरियोग्राफ करने वाले थे। उन्हें एक फाइटर को एक फाइट सीक्वेंस के लिए तैयार करना था। उन्होंने एक फाइटर को तैयारी भी कराई थी। लेकिन जिस दिन वो सीन शूट होना था उसी दिन वो फाइटर छुट्टी मार गया। ऐसे में महेश आनंद को खुद वो सीन शूट करना पड़ा। और महेश आनंद को लोगों ने उस सीन में काफी पसंद किया। यानि उस फाइटर का ना आना महेश आनंद के लिए एक तरह से फायदेमंद ही रहा।

गुमराह को अफ्रीकी देश नाइजीरिया में भी दिखाया गया था। नाइजीरिया के लोगों को ये फिल्म बहुत पसंद आई थी। कहा जाता है कि नाइजीरियन्स इस फिल्म के फाइट सीन्स देखकर कुर्सी पर खड़े होकर तालियां बजाने लगे थे। गुमराह के एक्टर्स, खासतौर पर संजय दत्त और श्रीदेवी के नाइजीरियन्स तभी से फैन बन गए थे। आज भी नाइजीरिया के लोग संजय दत्त की फिल्म बड़े शौक से देखना पसंद करते हैं।

1963 में गुमराह नाम से एक फिल्म आई थी जिसमें हीरो थे संजय दत्त के पिता सुनील दत्त जी। इत्तेफ़ाक से ठीक 30 साल बाद संजय दत्त भी गुमराह नाम की एक फिल्म में हीरो बने। वैसे साल 1993 में संजय दत्त की और भी कुछ फिल्में आई थी जैसे खलनायक, क्षत्रिय व साहिबान। ये सभी फिल्में गुमराह से पहले रिलीज़ हुई थी। और खलनायक इनमें सबसे बड़ी हिट थी। खलनायक उस साल कमाई के मामले में नंबर दो पर रही थी।

गुमराह में एक सीन है जिसमें संजय दत्त को हॉन्ग कॉन्ग की एक जेल में रखा जाता है। उस सीन में संजय दत्त कहते हैं कि बॉम्बे की जेल इससे बैटर हैं। ये भी एक इत्तेफाक है कि गुमराह जिन दिनों रिलीज़ हुई थी उन दिनों संजय दत्त को पहली दफा 1993 के बॉम्ब ब्लास्ट केस में गिरफ्तार किया गया था।

खोसला का घोसला फ़िल्म से एक सप्ताह पहले ही प्यार के साइड इफ़ैक्ट नामक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी। और इन दोनों ही फ़िल्मों में ...
22/09/2025

खोसला का घोसला फ़िल्म से एक सप्ताह पहले ही प्यार के साइड इफ़ैक्ट नामक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी। और इन दोनों ही फ़िल्मों में एक एक्टर ने काम किया था। हालांकि बॉक्स ऑफिस पर इन दोनों ही फ़िल्मों का प्रदर्शन उतना बढ़िया नहीं था। दोनों फ़िल्में एवरेज कंसीडर की गई थी। मगर उस एक्टर को काफ़ी फ़ायदा मिला था इन फ़िल्मों से। क्योंकि क्रिटिकली ये दोनों ही फ़िल्में सराही गई थी। वो एक्टर थे रणवीर शौरी। एएनआई के एक पोडकास्ट में रणवीर शौरी ने कहा था कि उनके पास काम का ढेर भले ही ना लगा हो। मगर वो बेरोज़गार नहीं रहे अगले कुछ सालों तक। उन्हें भी काम मिलता रहा।

खोसला का घोसला फ़िल्म के आज 19 साल पूरे हो गए। 22 सितंबर 2006 के दिन ये फ़िल्म रिलीज़ हुई थी। जबकी शादी के साइड इफ़ैक्ट 15 सितंबर को आई थी। कुछ जगहों पर बताया गया है कि ये दोनों ही फ़िल्में एक दिन, 22 सितंबर को रिलीज़ हुई थी। मगर ऐसा नहीं है। शादी के साइड इफ़ैक्ट एक सप्ताह पहले आई थी। वैसे जिस दिन खोसला का घोसला आई थी ठीक उसी दिन ज़ायद खान और ईशा शरवानी स्टारर एक फ़िल्म आई थी जिसका नाम था रॉकी। उस फ़िल्म में रजत बेदी भी थे, जो हाल ही में नेटफ़्लिक्स पर आए आर्यन खान की शो की वजह से चर्चाओं में हैं। मगर ज़ायद खान की रॉकी डिज़ास्टर साबित हुई थी।

बात करेंगे खोसला का घोसला फ़िल्म के बारे में। रणवीर शौरी ने बताया था कि जब उन्होंने खोसला का घोसला की स्क्रिप्ट पढ़ी तो उन्हें वो बहुत पसंद आई थी। आखिरी पन्ना फ़िनिश करने के बाद रणवीर ने मन ही मन खुद से कहा कि ये होता है स्क्रीनप्ले। रणवीर शौरी ने ही ये भी बताया था कि खोसला का घोसला फ़िल्म काफ़ी पहले ही बन गई थी। मगर डिस्ट्रीब्यूटर्स ना मिलने की वजह से ये फ़िल्म दो-ढाई साल की देरी से रिलीज़ हुई थी। उस वक्त फ़िल्म के सभी स्टार्स जैसे अनुपम खेर, बमन ईरानी, तारा शर्मा, प्रवीन डबास, जयदीप इत्यादि ने अपने स्तर पर भी इस फ़िल्म को रिलीज़ कराने की कोशिशें की थी। ये लोग उन संभावित लोगों से मिला करते थे जिनसे इन्हें उम्मीद रहती थी कि वो इस फ़िल्म को कंप्लीट करने में पैसा खर्च कर सकते हैं। आखिरकार यूटीवी मोशन पिक्चर्स ने इस फ़िल्म को डिस्ट्रीब्यूट किया।

खोसला का घोसला फ़िल्म को दिबाकर बनर्जी ने डायरेक्ट किया था। दिबाकर बनर्जी की ये पहली फ़िल्म थी। इससे पहले वो विज्ञापन फ़िल्मों के डायरेक्टर हुआ करते थे। जयदीप साहनी ने कहानी लिखी थी। रॉनी स्क्रूवाला व सविता राज इसके प्रोड्यूसर थे। इस फ़िल्म का गीत "चक दे फट्टे" बहुत लोकप्रिय हुआ था। बजट था इस फ़िल्म का 3 करोड़ 75 लाख रुपए। और नेट कमाई रही थी इसकी 4 करोड़ 60 लाख रुपए। मगर क्रिटिकली ये फ़िल्म बहुत सराही गई थी। और टीवी पर इस फ़िल्म को लोगों ने खूब पसंद भी किया था। हालांकि बहुत सी बड़ी न्यूज़ वेबसाइट्स कहती हैं कि इस फ़िल्म ने अपने बजट से दोगुना कमाई की थी। इस फ़िल्म को बेस्ट फ़ीचर फ़िल्म नेशनल अवॉर्ड मिला था।

अभिनेता बोमन ईरानी ने एक बार इस फ़िल्म के बारे में कहा था कि जब उन्होंने अपने रोल की शूटिंग शुरू की थी तब उन्हें लग रहा था कि वो इस रोल में फिट नहीं लग रहे हैं। मगर डायरेक्टर दिबाकर बनर्जी का मानना था कि बोमन एकदम सही लग रहे हैं। दिबाकर बनर्जी का कॉन्फ़िडेंस देखकर ही बोमन ईरानी इस फ़िल्म में काम करते रहे। और जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई तो सभी ने बोमन ईरानी के अभिनय को सराहा। अभिनेता अनुपम खेर ने इस फ़िल्म का लीड कैरेक्टर मिस्टर खोसला निभाया था। हालांकि उनसे पहले ये रोल परेश रावल साहब को ऑफ़र हुआ था। मगर परेश रावल ने ये रोल निभाने से इन्कार कर दिया था। आपको ये फ़िल्म कैसी लगी थी साथियों? मुझे तो बहुत पसंद आई थी।

साल 1941 में आई फिल्म नया संसार के एक दृश्य की ये तस्वीर है। कलाकार हैं रेणुका देवी, अशोक कुमार और मुबारक। बात करेंगे रे...
22/09/2025

साल 1941 में आई फिल्म नया संसार के एक दृश्य की ये तस्वीर है। कलाकार हैं रेणुका देवी, अशोक कुमार और मुबारक। बात करेंगे रेणुका देवी की। जिनका वास्तविक नाम था बेगम खुर्शीद मिर्ज़ा। 4 मार्च 1918 को अलीगढ़ में इनका जन्म हुआ था। बॉम्बे टॉकीज़ की मालकिन देविका रानी ने इन्हें रेणुका देवी नाम दिया था।

देविका रानी की एक बहन हुआ करती थी जिनका नाम रेणुका देवी था। उनकी असमय मृत्यु हो गई थी। उन्हीं की याद में देविका रानी ने बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा को ये नाम दिया था। इनके पिता शेख़ अब्दुल्ला एक ज़माने में अलीगढ़ के नामी वकील हुआ करते थे। रेणुका देवी उर्फ बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा के बारे में पढ़ते हुए ही मुझे पता चला कि इनके पिता शेख़ अब्दुल्ला का जन्म जम्मू और कश्मीर के एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असल नाम ठाकुर दास था।

उनके पिता यानि बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा के दादा का नाम था मेहता गुरमुख सिंह। हालांकि बाद में उनकी आस्था इस्लाम धर्म में हो गई और वो मुस्लिम बन गए। ये रेणुका देवी उर्फ बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा के पिता श़ेख अब्दुल्ला ही थे जिन्होंने अलीगढ़ स्थित वुमन्स कॉलेज की स्थापना की थी। और उन्हीं की बेटी यानि बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा की बहन मुमताज़ जहां हैदर इस कॉलेज की पहली प्रिंसिपल थी।

साल 1934 में बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा की शादी दिल्ली के एक पुलिस अफसर अकबर मिर्ज़ा से हुई थी। उन्हीं से शादी के बाद इनके नाम के साथ मिर्ज़ा टाइटल जुड़ा था। वर्ना उससे पहले इनका नाम बेग़म खुर्शीद जहां था। इनकी शादी के कुछ साल बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में भयानक बाढ़ आई जिससे जान-माल का काफी नुकसान हुआ थ। मुसीबत के उस वक्त में सरकारी अफसरों की पत्नियों ने बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए कई प्रकार के शोज़ आयोजित किए थे। ताकि रुपया जमा किया जा सके। और उन शोज़ में 10 रुपए मिनिमम दान रकम तय की गई थी। जो उस वक्त ठीक-ठाक रकम थी।

बॉम्बे में हुए ऐसे ही एक शो में बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा ने स्टेज पर सितार बजाया था। वो शो बहुत हिट हुआ। बहुत पसंद किया गया। बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा की बहुत तारीफें हुई। स्टेज पर इनकी प्रज़ेंस इतनी ज़बरदस्त थी कि उस वक्त कईयों ने कहा था कि ये मैडम तो फिल्मों में बहुत अच्छी लगेंगी। उन तारीफों का असर ये हुआ कि ये भी फिल्मों की तरफ आकर्षित होने लगी।

अब ये जानकारी मुझे नहीं मिल सकी कि फिल्मों में आने का इनका सीन कैसे बना। इनके करियर की पहली फिल्म कौन सी थी। लेकिन अपने करियर में इन्होंने जीवन प्रभात, भाभी, भक्ति, बड़ी दीदी, सहारा, ग़ुलामी, सम्राट चंद्रगुप्त जैसी फिल्मों में काम किया था। एक जगह मैंने पढ़ा की 1944 की फरवरी में इन्होंने फिल्मों से खुद के रिटायर होने का ऐलान कर दिया था। हालांकि इनकी फिल्मोग्राफी में मुझे साल 1963 में आई एक बंगाली फिल्म भी दिखाई देती है।

यानि 1944 के बाद भी इन्होंने फिल्मों में काम किया है। तो मेरे सामने सवाल ये था कि इनके बारे में सटीक जानकारी कैसे मिले? अपना तो पाकिस्तान में से कोई कनैक्शन नहीं है। वैसे, पाकिस्तान का नाम आया है तो बता दूं कि विभाजन के वक्त ये अपने पति और बच्चों के साथ पाकिस्तान के कराची शहर में शिफ्ट हो गई थी। 70 के दशक में जब पाकिस्तान टीवी पर ड्रामाज़ की शुरुआत हुई तो रेणुका देवी उर्फ बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा एक दफा फिर अभिनय की तरफ लौटी।

उस वक्त पाकिस्तान टीवी यानि पीटीवी पर आए कई लोकप्रिय टीवी शोज़ में इन्होंने अभिनय किया था। और इनका पहला शो था अंकल उर्फी। लेकिन पाकिस्तान में इन्हें लोकप्रियता मिली अपने दूसरे टीवी शो से जिसका नाम था किरन कहानी, जो कॉमेडी जोनरा का एक शो था। उसके बाद इन्होंने कई और पाकिस्तानी टीवी शोज़ में काम किया। और फाइनली 1985 में इन्होंने एक्टिंग से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया। ये कराची से लाहौर शिफ्ट हो गई। वहीं पर साल 1989 में इनका निधन हो गया था।

तो बात उठी थी कि इनके बारे में सटीक जानकारी कैसे मिले। कुछ यूट्यूब वीडियोज़ मिले तो हैं जिनसे इनके बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। लेकिन उनमें दी गई जानकारियों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। इनकी खुद की लिखी एक किताब है। वो किताब इन्होंने अपने जीवन पर लिखी थी। यानि उस किताब से एकदम सटीक जानकारियां मिल सकती हैं।

लेकिन भईया उस किताब की कीमत तो 4500 रुपए दिखा रहे हैं एमाज़ोन वाले। इतनी महंगी किताब हम तो खरीदेंगे नहीं। फिर सोचा, क्या भी करना है। इतनी जानकारी दे दी ये कम है क्या। आज के दौर में पता नहीं इनके खुद के देश में कितने लोग इन्हें याद करते होंगे। हमने बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा के बारे में इतना भी लिखा है तो ये कोई छोटी बात तो नहीं है। तो ठीक है, इस लेख को यहीं पर खत्म करते हैं। और जाते-जाते बेग़म खुर्शीद मिर्ज़ा को ससम्मान याद करते हुए नमन करते हैं।

"अक्षय कुमार ने मुझसे दिल से माफ़ी नहीं मांगी। उसने तो बस ये ही कहा कि मैं मज़ाक कर रहा था। वो फ्लो-फ्लो में निकल गया। ज...
22/09/2025

"अक्षय कुमार ने मुझसे दिल से माफ़ी नहीं मांगी। उसने तो बस ये ही कहा कि मैं मज़ाक कर रहा था। वो फ्लो-फ्लो में निकल गया। जबकी मैं डिप्रेशन में चली गई थी अक्षय की वो बात सुनकर।" अभिनेत्री शांतिप्रिया ने ये बात कुछ दिनों पहले एक पोडकास्ट में बताई थी। साथियों आज शांतिप्रिया जी का जन्मदिन है। शांतिप्रिया आज 56 बरस की हो गई हैं। चलिए, इनके बारे में कुछ बातें जानते हैं।

22 सितंबर 1969 को शांतिप्रिया का जन्म आंध्र प्रदेश के राजामुंद्री शहर के पास स्थित राजापेटा गांव में हुआ था। इनकी बड़ी बहन भानूप्रिया भी नामी अदाकारा हैं। साउथ में तो भानूप्रिया बहुत बड़ी स्टार हैं ही। लेट 80s व अर्ली 90s भानूप्रिया जी ने कुछ नोटेबल हिंदी फ़िल्मों में भी काम किया था। शांतिप्रिया जी के एक बड़े भाई भी हैं जिनका नाम है गोपीकृष्ण। यानि तीन भाई-बहनों में शांतिप्रिया सबसे छोटी हैं। ये भाई-बहन छोटे ही थे जब इनके माता-पिता सपरिवार चेन्नई शिफ़्ट हो गए थे। साल 1983 में शांतिप्रिया की बड़ी बहन भानूप्रिया ने साउथ इंडस्ट्री में अपना करियर शुरू किया। और 1987 में शांतिप्रिया भी एक्टिंग लाइन में आ गई। इन्होंने कई तेलुगू, तमिल फ़िल्मों व कुछ कन्नड़ व मलयालम फ़िल्मों में काम किया।

साल 1991 में आई सौगंध शांतिप्रिया की पहली हिंदी फ़िल्म थी। बतौर हीरो अक्षय कुमार का डेब्यू भी सौगंध से ही हुआ था। इसके बाद शांतिप्रिया ने कुछ और हिंदी फ़िल्मों में काम किया। जैसे मेरे सजना साथ निभाना, फूल और अंगार, अंधा इंतक़ाम, मेहरबान, वीरता व इक्के पे इक्का। साल 1994 में आई इक्के पे इक्का फ़िल्म में शांतिप्रिया ने एक बार फिर से अक्षय कुमार के साथ काम किया। और इसी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान अक्षय कुमार ने शांतिप्रिया से वो बात कही थी जिसे शांतिप्रिया को डिप्रेशन में पहुंचा दिया था। और वो बहुत हर्ट हुई थी।

हुआ कुछ यूं था कि एक दिन अक्षय कुमार ने शांतिप्रिया के घुटनों की तरफ़ देखा और कहा,"क्या तुम्हें चोट लगी है? क्या तुम कहीं पर गिर गई थी?" अक्षय की ये बात सुनकर शांतिप्रिया ने कहा कि मुझे कोई चोट नहीं लगी है। ना ही मैं कहीं गिरी हूं। आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? तब अक्षय ने कहा,"तो तुम्हारे घुटने इतने डार्क और काले क्यों हैं? क्या हुआ? क्या ये कोई ब्लड क्लोट है?" शांतिप्रिया को समझ नहीं आया कि अक्षय की इस बात का वो कैसे जवाब दें। उन्हें बहुत हैरत हुई वो बात सुनकर। और बहुत दुख भी पहुंचा। शांतिप्रिया इतना हर्ट हुई कि वो डिप्रेशन में पहुंच गई।

सिद्धार्थ कन्नन के पोडकास्ट पर शांतिप्रिया ने बताया था कि अक्षय ने कभी अपनी इस बात के लिए दिल से माफ़ी नहीं मांगी। अक्षय को जब अहसास हो गया कि शांतिप्रिया को उनकी बात बुरी लगी है, तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि वो फ्लो-फ्लो में उनके मुंह से निकल गया था। वो बस मज़ाक कर रहे थे। और कुछ नहीं। साथियों इक्के पे इक्का शांतिप्रिया की पहली इनिंग की आखिरी फ़िल्म थी। उस वक्त भी शांतिप्रिया ने अपने कुछ क्लॉज़ फ़िल्म जर्नलिस्ट्स को अक्षय की ये बात बताई थी और दुख जताया था। तब कहा गया था कि शांतिप्रिया अक्षय के उस कमेंट से इतना हर्ट हुई, इतना डिप्रैस्ड हुई कि उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री ही छोड़ दी।

मगर सिद्धार्थ कन्नन से बात करते हुए शांतिप्रिया ने बताया था कि उन्होंने शादी के बाद फ़िल्मों से दूर होने का फ़ैसला किया था। साल 1992 में अभिनेता सिद्धार्थ रे से उन्होंने शादी कर ली थी। और शादी के बाद बचे हुए प्रोजेक्ट्स फिनिश किए थे। सिद्धार्थ रे वही हैं जो बाज़ीगर फ़िल्म में पुलिस ऑफ़िसर के रोल में दिखे थे और काजोल को मन ही मन पसंद करते थे। बाज़ीगर में सिद्धार्थ रे पर एक गाना "छुपाना भी नहीं आता। जताना भी नहीं आता" फ़िल्माया गया था। शांतिप्रिया ने एक पुराने इंटरव्यू में कहा था कि जिस वक्त उन्होंने शादी की थी उस वक्त उनका करियर पीक पर था। मगर पारिवारिक ज़िंदगी के लिए उन्होंने फ़िल्म करियर को छोड़ दिया।

शांतिप्रिया और सिद्धार्थ के दो बेटे हुए। शुभम रे व शिष्य रे। साल 2004 में एक सीवियर हार्ट अटैक की वजह से शांतिप्रिया के पति सिद्धार्थ रे की मृत्यु हो गई। उस वक्त सिद्धार्थ रे की उम्र मात्र 40 साल ही थी। शांतिप्रिया के लिए वो बहुत मुश्किल वक्त साबित हुआ। अपने बच्चों की परवरिश के लिए उन्हें बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अपने बेटों की परवरिश शांतिप्रिया को अकेले ही करनी पड़ी। किस्मत से आर्थिक मोर्चे पर शांतिप्रिया को उतना परेशान नहीं होना पड़ा था। क्योंकि अपने एक्टिंग करियर के दौरान इन्होंने काफ़ी कमाया था। प्लस, पति की कुछ विरासत भी इन्हें मिली थी।

शांतिप्रिया के बेटे जब बड़े हुए तो इन्होंने फ़िल्मों में वापसी करने की कोशिश की। मगर वापसी का इनका रास्ता लगभग बंद हो चुका था। तब इन्होंने कुछ टीवी शोज़ में काम किया। वैसे शांतिप्रिया जी ने पहली दफ़ा टीवी पर कम किया था साल 1989 में। उस साल दूरदर्शन पर प्रसारित हुए टीवी शो महर्षि विश्वामित्र में शांतिप्रिया जी ने शकुंतला का किरदार निभाया था। जबकी इनकी बड़ी बहन भानूप्रिया मेनका के किरदार में थी। उस शो में विश्वामित्र बने थे मुकेश खन्ना। और अरुण गोविल ने राजा हरीशचंद्र का किरदार निभाया था। उसी शो की बदौलत शांतिप्रिया को उनकी पहली हिंदी फ़िल्म सौगंध मिली थी।

साल 2002 में शांतिप्रिया ने मुकेश खन्ना के शो "आर्यमान- ब्रह्मांड का योद्धा" में भी एक किरदार निभाया था। उस वक्त तो इनके पति भी ज़िंदा थे। मगर पति की मौत के कुछ साल बाद जब इन्होंने फिर से फ़िल्मों में वापसी की कोशिश की थी तब इन्हें बहुत मुश्किलें आई। और उसी दौरान इन्होंने माता की चौकी, द्वारकाधीश- भगवान श्री कृष्ण नामक शो में काम किया। मगर फ़िल्मों में शांतिप्रिया को एंट्री नहीं मिली। उन दिनों जब शांतिप्रिया फ़िल्मों में वापसी करने की कोशिश कर रही थी तब कई लोगों ने उनसे कहा था कि आप तो अक्षय कुमार की पहली हीरोइन हैं। और अब अक्षय कुमार को देखिए, राज कर रहा है। आपको अक्षय से मिलना चाहिए।

जब शांतिप्रिया से कई लोगों ने अक्षय से मिलने की बात कही तो आखिरकार एक दिन शांतिप्रिया अक्षय से मिलने महबूब स्टूडियो पहुंच गई। उस वक्त अक्षय वहां हॉलीडे फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। शांतिप्रिया जब अक्षय से मिली तो अक्षय उनसे बहुत अच्छे से मिले। अक्षय ने शांतिप्रिया को बेबी फ़िल्म की अपनी हीरोइन सोनाक्षी सिन्हा से भी मिलाया। जब अक्षय को शांतिप्रिया ने बताया कि वो वापसी करना चाहती हैं तो अक्षय ने उन्हें सलाह दी कि आप साउथ में स्टार्ट करें तो आपके लिए अच्छा रहेगा। तब शांतिप्रिया ने अक्षय को बताया कि उनके बेटे अभी उन्हीं पर निर्भर हैं। और चूंकि वो मुंबई में रहती हैं तो उनके लिए साउथ में जाकर काम करना मुश्किल हो जाएगा।

अक्षय कुमार ने शांतिप्रिया को भरोसा दिया कि वो कुछ करेंगे उनके लिए। अक्षय ने शांतिप्रिया को अपने सेक्रेटरी से मिलाया और उसका नंबर भी दिया। कुछ दिन बाद जब शांतिप्रिया ने अक्षय के सेक्रेटरी से मैसेजेस के ज़रिए बात करनी शुरू की तो पहले तो उसने जवाब दिए। मगर बाद में उसने मैसेजेस देखने तक बंद कर दिए। और तो और, शांतिप्रिया के कॉल तक इग्नोर किए जाने लगे। चूंकि शांतिप्रिया के पास अक्षय का पर्सनल नंबर भी था, और वो अक्षय को पर्सनली कॉल नहीं करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने अक्षय को एक-दो मैसेजेस छोड़े। मगर कभी अक्षय की तरफ़ से उन मैसेजेस के जवाब नहीं आए।

साल 2022 में शांतिप्रिया नज़र आई ज़ी5 पर आई एक वेबसीरीज़ में। उस वेबसीरीज़ का नाम है धारावी बैंक। धारावी बैंक में सुनील शेट्टी व विवेक ओबेरॉय ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। जबकी शांतिप्रिया के किरदार का नाम था बोनम्मा। सालों बाद, आखिरकार 2025 की फरवरी में शांतिप्रिया की फ़िल्मों में वापसी हुई। शांतिप्रिया तमिल फ़िल्म बैड गर्ल में एक अहम किरदार में दिखी। और इस फ़िल्मे में शांतिप्रिया के काम को खूब सराहा भी गया। फिर एक दिन अचानक शांतिप्रिया का एक फोटोशूट उनके इंस्टाग्राम पर अपलोड हुआ। उस फोटोशूट में शांतिप्रिया ने अपना सिर मुंडवाया हुआ है। और एक ब्लेज़र भी पहना हुआ है।

शांतिप्रिया कहती हैं कि ये ब्लेज़र उनके पति सिद्धार्थ का है। और इसे पहनकर उन्हें महसूस हुआ कि सिद्धार्थ आज भी उनके काफ़ी करीब हैं। वैसे तो इस फोटोशूट के लिए शांतिप्रिया को बहुत तारीफ़ें भी मिली थी। मगर बहुत लोगों ने शांतिप्रिया के बाल्ड लुक की वजह से उन्हें बहुत क्रिटीसाइज़ भी किया था। इस पोस्ट के साथ जो तस्वीर लगी है उसमें नीचे की तरफ़ शांतिप्रिया के उसी फोटोशूट की दो झलकियां हैं। शांतिप्रिया जी को जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

ये वो फिल्म है जिसे जितेंद्र जी ने लगभग छोड़ ही दिया था। डायरेक्टर-प्रोड्यूसर राजकुमार कोहली से उनके इतने मतभेद हो गए थे...
22/09/2025

ये वो फिल्म है जिसे जितेंद्र जी ने लगभग छोड़ ही दिया था। डायरेक्टर-प्रोड्यूसर राजकुमार कोहली से उनके इतने मतभेद हो गए थे कि जितेंद्र ने शूटिंग शुरू होने के कुछ दिनों बाद राजकुमार कोहली को एक नोटिस भेजकर कहा कि वो इस फिल्म में काम नहीं करेंगे। जवाब में राजकुमार कोहली ने जितेंद्र से कहा कि ठीक है। आपको काम नहीं करना मत कीजिए। लेकिन आपको फिल्म के लिए बनाए गए सेट का पैसा चुकाना होगा। क्योंकि आपके फिल्म छोड़ने से सारा पैसा बर्बाद जाएगा।

जितेंद्र राजकुमार कोहली से इतने खफा थे कि उन्होंने सेट का पैसा चुकाने की हामी भी भर दी। जितेंद्र की नाराज़गी की वजह क्या थी? चलिए बताता हूं। जितेंद्र जी को लग रहा था कि राजकुमार कोहली ने उनके रोल को धर्मेंद्र व सुनील दत्त के रोल के सामने एकदम कमज़ोर कर दिया है। वो फिल्म के हीरो नहीं, बल्कि कोई सपोर्टिंग एक्टर रह गए हैं। लेकिन राजकुमार कोहली का कहना था कि जितेंद्र के रोल में कोई बदलाव नहीं किया गया था। जो रोल उन्हें नैरेट किया गया था वही शूट भी किया जा रहा था। इस फ़िल्म का नाम है "बदले की आग।"

उस वक्त की मीडिया में ये खबर भी चल रही थी कि राजकुमार कोहली ने जितेंद्र को उनकी फीस नहीं चुकाई है। इसलिए जितेंद्र ने "बदले की आग" फिल्म छोड़ दी है। राजकुमार कोहली ने इस पर कहा था कि ऐसी बातें एकदम झूठ है। उन्होंने अपने सभी कलाकारों को समय पर पैसा चुका दिया था। जितेंद्र को भी। कुछ दिन बाद जितेंद्र फिर से राजकुमार कोहली से मिले और उन्होंने अपने बर्ताव के लिए उनसे माफी मांगी। जितेंद्र ने फिर से इस फिल्म का हिस्सा बनने की गुज़ारिश की जिसे मान भी लिया गया।

राजकुमार कोहली को लगा कि अब मामला सुलट गया है। लेकिन एक नई दिक्कत उनके सामने आ खड़ी हुई। अब जितेंद्र ने उन्हें डेट्स की वजह से परेशान करना शुरू कर दिया। जितेंद्र के डेट्स ना देने के कारण ये फिल्म काफी डिले हुई थी। और ये जितेंद्र की राजकुमार कोहली के साथ आखिरी फिल्म साबित हुई। इससे पहले जितेंद्र राजकुमार कोहली की नागिन व जानी दुश्मन में काम कर चुके थे। और वो दोनों ही फिल्में बहुत सफल रही थी।

धर्मेंद्र जी ने इस फिल्म के ज़रिए पहली दफा राजकुमार कोहली के साथ काम किया था। इसके बाद धर्मेंद्र जी ने राजकुमार कोहली की ही नौकर बीवी का, जीने नहीं दूंगा, राज तिलक, इंसानियत के दुश्मन और विरोधी फिल्म में काम किया था। इस फिल्म में राजकुमार कोहली के बेटे अरमान कोहली ने भी बाल कलाकार की हैसियत से काम किया था। इस फिल्म में स्मिता पाटिल भी थी। फिल्म रिलीज़ होने के बाद स्मिता पाटिल जी ने कहा था कि इस फिल्म में काम करना उनकी एक बड़ी भूल थी।

उन दिनों जया बच्चन और अमिताभ बच्चन की शादी नहीं हुई थी। हां, दोनों रिलेशन में ज़रूर थे। चूंकि तब अमिताभ बच्चन एक स्ट्रगल...
22/09/2025

उन दिनों जया बच्चन और अमिताभ बच्चन की शादी नहीं हुई थी। हां, दोनों रिलेशन में ज़रूर थे। चूंकि तब अमिताभ बच्चन एक स्ट्रगलर ही थे तो उनके पास बहुत ज़्यादा काम नहीं होता था। इसलिए वो अक्सर इस फिल्म के सेट पर जया से मिलने आते रहते थे। यहां उनकी मुलाकात मनोज कुमार जी से भी होती रहती थी। आखिरकार मनोज कुमार से अमिताभ बच्चन की अच्छी दोस्ती हो गई। मनोज कुमार अमिताभ बच्चन की शख्सियत और उनके बातचीत करने के अंदाज़ से बहुत प्रभावित हुए थे।

मनोज कुमार को अमिताभ में काफी संभावनाएं दिख रही थी। आखिरकार एक दिन उन्होंने अमिताभ बच्चन को अपनी नेक्स्ट फिल्म रोटी कपड़ा और मकान में एक सपोर्टिंग रोल निभाने का ऑफर दिया। अमिताभ ने तब तक ज़ंजीर साइन नहीं की थी। मगर कुछ ही दिन बाद उन्हें ज़ंजीर भी मिल गई। और इत्तेफाक से ज़ंजीर पहले रिलीज़ हो गई। ज़ंजीर की कामयाबी ने अमिताभ बच्चन को रातोंरात स्टार बना दिया। यानि जब तक रोटी कपड़ा और मकान रिलीज़ हुई तब तक अमिताभ मशहूर हो चुके थे।

ये फिल्म है शोर जो साल 1972 की सितंबर में रिलीज़ हुई थी। बहुत जगह तो दावा यही किया गया है कि ये फिल्म 22 सितंबर को रिलीज़ हुई थी। लेकिन कुछ जगहों पर इसकी रिलीज़ डेट 8 सिंतबर व 15 सितंबर भी बताई गई है। जबकी कहीं-कहीं पर 29 सितंबर भी इस फ़िल्म की रिलीज़ डेट बताई गई है। इसलिए फिलहाल तो सही से नहीं कहा जा सकता कि शोर की एग्ज़ैक्ट रिलीज़ डेट क्या है। पर फ़िलहाल हम 22 सितंबर ही मान लेते हैं।

मनोज कुमार ने खुद ही शोर फिल्म की कहानी लिखी थी। और इसका डायरेक्शन व प्रोडक्शन भी उन्होंने खुद ही किया था। इस फिल्म से मनोज कुमार जी को बड़ी उम्मीदें थी। लेकिन कमर्शियली ये फिल्म बहुत खास नहीं रही थी। हालांकि इसके गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे। फिल्म में कुल पांच गीत थे। सभी गीतों को कंपोज़ किया था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी ने। इसी फिल्म में वो कालजयी गीत है जिसके बोल हैं "एक प्यार का नग़मा है। मौजों की रवानी है। ज़िंदगी और कुछ भी नहीं। तेरी मेरी कहानी है।" इस गीत को लता जी व मुकेश जी ने गाया था।

इसी फिल्म के दो और गीत भी बहुत पसंद किए गए थे, आज भी किए जाते हैं। वो गीत हैं पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, व जीवन चलने का नाम। चलते रहो सुबह शाम। 20वें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में ये फिल्म नॉमिनेट को कई कैटेगरीज़ में हुई थी। लेकिन खिताब इसे सिर्फ एक ही मिला था। वो था बेस्ट एडिटिंग अवॉर्ड। और चूंकि इस फिल्म की एडिटिंग मनोज कुमार ने ही की थी तो वो अवॉर्ड उन्होंने ही रिसीव किया था।

अभिनेता प्रेम नाथ ने इस फिल्म में खान बादशाह नामक एक पठान का किरदार निभाया था। मनोज कुमार ऑरिजिनली ये किरदार प्राण साहब से कराना चाहते थे। लेकिन प्राण साहब ने इस किरदार को निभाने से मना कर दिया। जबकी मनोज कुमार उनके बहुत अच्छे दोस्त थे। हालांकि प्राण साहब की भी मजबूरी थी ये किरदार ठुकराने की। दरअसल, प्राण साहब ने इससे पहले ही प्रकाश मेहरा की ज़ंजीर साइन कर ली थी। और ज़ंजीर में वो एक पठान का किरदार ही निभा रहे थे। प्राण साहब एक साथ दो फिल्मों में एक जैसे किरदार नहीं निभाना चाहते थे। मनोज कुमार उस वक्त ज़रा सा नाराज़ हुए थे प्राण साहब से। मगर बात में सब ठीक हो गया था दोनों के बीच। कहा जाता है(पता नहीं सच है कि झूठ), मनोज कुमार ने खान बादशाह का रोल शत्रुघ्न सिन्हा को भी ऑफर किया था। लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा के पास फुर्सत नहीं थी। इसलिए वो ये रोल साइन नहीं क सके थे। उन दिनों उनके पास पहले से ही बहुत सारा काम था।

मनोज कुमार कहते हैं कि उन्हें शोर नाम से फिल्म बनाने का आईडिया तब आया था जब वो दिल्ली में अपने फार्म हाउस पर कुछ वक्त बिताने आए थे। एक दिन मनोज कुमार के कुछ दोस्त भी उनके फार्म हाउस पर आए थे। वहां इतनी शांति थी कि उन दोस्तों में से एक ने कहा कि यहां कितनी शांति है। ज़रा भी शोर नहीं है। वहीं से शोर शब्द मनोज कुमार के मस्तिष्क में बस गया था।

मनोज कुमार ने शोर में जया बच्चन का कैरेक्टर उन्हें दिमाग में रखकर ही लिखा था। दरअसल, जया बच्चन उन दिनों उभरती हुई अदाकारा थी। मनोज कुमार जब शोर की कहानी लिखी और रानी का कैरेक्टर गढ़ा तो उनके दिमाग में जया की ही छवि थी। एक दिन उन्होंने जया को फिल्म की कहानी सुनने के लिए बुलाया। जया बच्चन जब आई तो मनोज कुमार ने उनसे पूछा कि कहानी सुनना पसंद करोगी या अपना किरदार जानना पसंद करोगी। जया बच्चन ने कहानी सुनाने को कहा। मनोेज कुमार ने जया बच्चन को कहानी तो सुनाई। लेकिन मोटे तौर पर ही सुनाई। जया ने कहा कि इस कहानी में उनका कैरेक्टर कहां फिट होगा? तब मनोज कुमार ने उन्हें उनका सिर्फ एक सीन सुनाया। जया बच्चन को वो पसंद आया। उन्होंने फिल्म में काम करने की हामी भर दी।

स्वर्गीय मनोज कुमार ने भले ही बड़े मन से जया बच्चन को शोर में कास्ट किया हो। लेकिन जब शोर की शूटिंग शुरू हुई तो दोनों के बीच टेंशन होने लगी। मनोज कुमार के काम करने का तरीका जया को ज़रा भी पसंद नहीं आ रहा था। मनोज कुमार से जया बच्चन को इतनी दिक्कत होने लगी कि उन्होंने मनोज कुमार को बुली(दादागीरी) करने वाला बता दिया। उन्होंने मनोज कुमार को बेहद एरोगेंट इंसान कहा। साथ ही ये भी कहा कि भारत कुमार की इमेज सिर्फ एक दिखावा है। जया का आरोप था कि मनोज कुमार ने उन्हें एक भी दफा शोर के ट्रायल शो में इनवाइट नहीं किया। जबकी मनोज कुमार का कहना था कि शोर के जो भी ट्रायल शोज़ उन्होंने रखे थे वो सब एडिटिंग परपज़ से रखे थे। फिल्म कंप्लीट नहीं हुई थी। इसलिए जया को नहीं बुलाया गया था।

किसी ने मनोज कुमार जी से पूछा था कि आपने अपनी इस फिल्म में अपने कैरेक्टर का नाम भारत क्यों नहीं रखा? शंकर क्यों रखा? जवाब में मनोज कुमार ने कहा कि चूंकि ये एक पिता-पुत्र की कहानी थी। भारत की किसी समस्या से इसका कोई लेना-देना नहीं था। इसिलिए इस फिल्म में उनके कैरेक्टर का नाम शंकर रखा गया था। एक्ट्रेस नंदा ने इस फिल्म में एक गेस्ट रोल निभाया था। वो शंकर यानि मनोज कुमार की पत्नी गीता के किरदार में दिखी थी। नंदा से पहले मनोज कुमार उस रोल का ऑफर लेकर तकरीबन हर बड़ी बॉलीवुड एक्ट्रेस के पास गए थे। लेकिन सभी ने वो रोल करने से इन्कार कर दिया था। मगर नंदा जी ने ना सिर्फ वो रोल निभाने की हामी भरी, बल्कि एक पैसा भी फीस नहीं ली।

मुगल-ए-आज़म में दुर्गा खोटे जी ने जोधाबाई का किरदार निभाया था। और अधिकतर लोग ये बात भी जानते होंगे कि जो मुगल-ए-आज़म 196...
22/09/2025

मुगल-ए-आज़म में दुर्गा खोटे जी ने जोधाबाई का किरदार निभाया था। और अधिकतर लोग ये बात भी जानते होंगे कि जो मुगल-ए-आज़म 1960 में रिलीज़ हुई थी वो के.आसिफ के दूसरे प्रयास का नतीजा थी। के.आसिफ ने 1945 में भी मुगल-ए-आज़म शुरू की थी। उस वक्त फिल्म की स्टारकास्ट एकदम अलग थी। सिर्फ दुर्गा खोटे ऐसी एक्ट्रेस थी जो उस वाली मुगल-ए-आज़म का भी हिस्सा थी। मगर जब देश का विभाजन हुआ तो उस वक्त मुगल-ए-आज़म पर पैसा लगा रहे प्रोड्यूसर शिराज़ अली हकीम पाकिस्तान चले गए। इसलिए के.आसिफ का पहला प्रयास असफल हो गया।

दुर्गा खोटे जी ने अपनी आत्मकथा 'I, Durga Khote' में पहले वाली मुगल-ए-आज़म का ज़िक्र करते हुए लिखा है,"उस वक्त बॉम्बे टॉकीज़ में हम लोगों ने मुगल-ए-आज़म की शूटिंग की थी। फिल्म की शूटिंग का एक चौथाई रास्ता पार ही हुआ था कि बंटवारे के चलते सब कुछ खत्म हो गया। फिल्म बंद हो गई। दो साल बाद उस वक्त का शूट किया हुआ स्टॉक कबाड़ में बेचा गया तो वो लगभग दस ट्रकों में भरा गया था। जाने कितने ही ज़ेवर(आर्टिफिशियल), कितनी ही कॉस्ट्यूम्स और लकड़ी का कितना ही सामान था जो कबाड़ में चला गया था।"

आज दुर्गा खोटे जी की पुण्यतिथि है। 22 सितंबर 1991 को 86 साल की उम्र में दुर्गा जी ये दुनिया छोड़कर चली गई थी। दुर्गा खोटे जी अपने समय की बहुत दिलेर महिला थी। वो जब फिल्मी दुनिया में आई थी तब समाज का बहुत विरोध उन्हें झेलना पड़ा था। लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। खैर, उनके संघर्षों की कहानी तो आप उनकी बायोग्राफी के ज़रिए जान लीजिएगा, जिसका लिंक मैं इस लेख के आखिर में दे ही दूंगा। फिलहाल एक और कहानी जानते हैं जिससे साबित होता है कि वाकई में दुर्गा खोटे कोई आम महिला नहीं थी। बहुत बहादुर महिला थी।

ये किस्सा है साल 1932 में आई वी.शांताराम की फिल्म माया मछिन्द्र की शूटिंग के दौरान का। उस फिल्म में दुर्गा खोटे जी ने एक रानी का किरदार निभाया था। ऐसी रानी जिसने चीता पाला हुआ था। उस फिल्म की शूटिंग कोल्हापुर में हुई थी। और कई चीते शूटिंग के लिए मंगवाए गए थे। उन चीतों के साथ एक फीमेल ट्रेनर भी थी। एक दिन उस ट्रेनर का ध्यान अपने चीतों से हटा। और एक चीता फिल्म के एक क्र्यू मेंबर पर झपट पड़ा। सेट पर चीख-पुकार मच गई। मगर उस क्र्यू मेंबर की मदद के लिए आगे कोई नहीं बढ़ा। लेकिन दुर्गा खोटे की नज़र जब उस चीते व क्र्यू मेंबर पर पड़ी तो वो फौरन मदद को आगे आई।

दुर्गा खोटे जी ने चीते को पकड़ लिया। तब तक ट्रेनर भी सेट पर आ गई और उसने अपने चीते को काबू करके उसे वापस पिंजरे में घुसाया। दुर्गा खोटे जी को हिम्मत और दिलेरी देखकर सबने उनकी तारीफ की।
शत शत नमन।

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