10/01/2024
#रथकार
यह शब्द प्राचीन धर्मग्रन्थों में अनेक स्थलों पर आया है और उनकें शिल्पी ब्राह्मण के स्थान में प्रयोग हुआ है। अर्थात लोककार, काष्टकार, स्वर्णकार, सिलावट और ताम्रकार सब ही काम करने वाले कुशल प्रवीण शिल्पी ब्राह्मण का बोध केवल रथकार शब्द से ही कराया गया है। और यही शब्दों वेदों तथा पुराणों में भी शिल्पज्ञ ब्राह्मणों के लिए लिखा गया है। स्कन्द पुराण नागर खण्ड अध्याय 6 में रथकार शब्द का प्रयोग हुआ है।
सद्योजाता दि पंचभ्यो मुखेभ्यः पंच निर्भये।।
विश्वकर्मा सुता होते रथ कारास्तु पचं च।।
तास्मिन् काले महाभागो परमो मय रूप भाक्।।
पाषणदार कंटकं सौ वर्ण दशकं तदा।।
काष्ठं च नव लोहानि रथ कृद्यों ददौ विभुः।।
रथ कारास्तदा चक्रुः पचं कृत्यानि सर्वदा।।
षडदशनाद्य नुष्ठानं षट् कर्मनिरताश्च ये।।
#अर्थः-
शंकर बोले कि हे स्कंन्द, सद्योजात् वामदेव, तत्पुरूष, अधीर और ईशान यह पांच ब्रह्म सज्ञंक विश्वकर्मा के पांच मुखों से पैदा हुए। इन विश्वकर्मा पुत्रों की रथकार सज्ञां है। अनेक रूप धारण करने वाले उस विश्वकर्मा ने अपने पुत्रों को टांकी आदि दस शिल्प आयुध अर्थात दस औजार सोना आदि नौ धातु लोहा, लकडीं आत्यादि दिया। उसके यह षटेकर्म करने वाले रथकार सृष्टि कार्य के पंचनिध पवित्र कर्म करने लगे।
रथकार शब्द क ब्राह्मण सूचक होने के विषय में व्याकरण में भी अष्टाध्यायी पाणिनि सूत्र पाठ सूत्र - शिल्पिनि चा कुत्रः 6/2/76 सज्ञांयांच 6/2/77 सिद्धांत कौमुदी वृतिः- शिल्पि वाचिनि समासे अष्णते। परे पूर्व माद्युदात्तं, स चेदण कृत्रः परो न भवति। ततुंवायः शिल्पिनि किम- काडंलाव, अकृत्रः किं-कुम्भकारः। सज्ञां यांच अणयते परे तंतुवायो नाम कृमिः। अकृत्रः इत्येव रथकारों नाम ब्राह्मणः पाणिनिसूत्र 4/1-151 कृर्वादिभ्योण्यः।
ब्राह्मण जाति सूचक अर्थ को बताने वाले जो गोत्र शब्द गण सूत्र में दियें है, वह यह हैः कुरू, गर्ग, मगुंष, अजमार, ऱथकार, बाबदूक, कवि, मति, काधिजल इत्यादि, कौरव्यां, ब्राह्मणा, मार्ग्य, मांगुयाः आजमार्याः राथकार्याः वावद्क्याः कात्या मात्याः कापिजल्याः ब्राह्मणाः इति सर्वत्र।
तात्पर्य यह है कि व्याकरण शास्त्र में भी रथकार शब्द को आर्य गोत्र, ब्राह्मण जाति बोधक सिद्ध किया हुआ है और उसका उदाहरण भी रथकारों नाम ब्राह्मण दिया है। जिससे सिद्ध किया गया है कि रथकार शब्द ब्राह्मण जाति बोधक है क्योकिं- रथं करोतिं इति रथकारः। अर्थात रथ निर्माण करने वाले ब्राह्मण का बोध प्राचीन ग्रथों में रथकार शब्द से होता है। यहां यह भी लिख देना जरूरी जान पडतां है कि स्मृतियों में रथकार एक संकीर्ण जाति को भी लिखा है, परन्तु जहां पवित्र देव शिल्प आदि का वर्णन आता है। वहां शिल्पी ब्राह्मण संतति रथकार का ही मतलब होता है। आपको रतकार विषय में शास्त्र के मन्त्र और रथकार का प्राचीन समय में जो मान, समान्न प्रतिष्ठा थी उस समय विश्वकर्मा का रथकार रूप विस्तृत था। राजे महाराजा सभी विश्वकर्मा रथकारों को आदर देते थे क्योंकि कलाकार राष्ट्रं के निर्माण करने मे अग्रसर रखतें थे यह ब्राह्मण वर्ग रथकारों में था।
#विश्वकर्मा_ब्राह्मण_अंकित