श्री रामचरितमानस

श्री रामचरितमानस यह पेज भारतीय दर्शन,संस्कृति और सनातन धर्म के महत्व को पूरी दुनिया तक पहुंचाने के लिए है,फॉलो करें�

एक बार एक व्यक्ति रोज़ हनुमान चालीसा का पाठ करता था और हनुमान जी में उसकी अटूट श्रद्धा थी। एक दिन वह व्यक्ति अपने काम से...
27/05/2025

एक बार एक व्यक्ति रोज़ हनुमान चालीसा का पाठ करता था और हनुमान जी में उसकी अटूट श्रद्धा थी। एक दिन वह व्यक्ति अपने काम से कहीं बाहर जा रहा था। रास्ते में उसका एक्सीडेंट हो गया और उसकी गाड़ी पलट गई। गाड़ी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई, लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उस व्यक्ति को एक खरोंच तक नहीं आई।

लोगों ने जब उससे पूछा कि वह कैसे बच गया, तो उसने बताया कि एक्सीडेंट के समय उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे अपनी मजबूत बाहों में जकड़ लिया हो और गाड़ी पलटने के बाद भी वह सुरक्षित बाहर आ गया। वह व्यक्ति मानता है कि यह हनुमान जी की कृपा और उनकी रक्षा थी, जिसने उसकी जान बचाई।

सीख
इस घटना से यह संदेश मिलता है कि यदि हम सच्चे मन से हनुमान जी की भक्ति करते हैं और उन पर विश्वास रखते हैं, तो वे हर संकट में हमारी रक्षा करते हैं। हनुमान चालीसा, सुंदरकांड या बजरंग बाण का पाठ करने से मन को शांति और साहस मिलता है, और जीवन के कठिन समय में भी हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

16/05/2025

सनातन धर्म की विशेषता

 #लक्ष्मी_जी_किसके_पास_आती_हैंएक बार भगवान नारायण लक्ष्मी जी से बोले, “लोगो में कितनी भक्ति बढ़ गयी है सब “नारायण नारायण...
02/05/2025

#लक्ष्मी_जी_किसके_पास_आती_हैं

एक बार भगवान नारायण लक्ष्मी जी से बोले, “लोगो में कितनी भक्ति बढ़ गयी है सब “नारायण नारायण” करते हैं !”

तो लक्ष्मी जी बोली, “आप को पाने के लिए नहीं, मुझे पाने के लिए भक्ति बढ़ गयी है!”

तो भगवान बोले, “लोग “लक्ष्मी लक्ष्मी” ऐसा जाप थोड़े ही ना करते हैं !”

तो माता लक्ष्मी बोली
कि , “विश्वास ना हो तो परीक्षा हो जाए!”
भगवान नारायण एक गाँव में ब्राह्मण का रूप लेकर गए। एक घर का दरवाजा खटखटाया…घर के यजमान ने दरवाजा खोल कर पूछा , “कहाँ के है ?”
तो भगवान बोले, “हम तुम्हारे नगर में भगवान का कथा-कीर्तन करना चाहते है…”

यजमान बोला, “ठीक है महाराज, जब तक कथा होगी आप मेरे घर में रहना…”

गाँव के कुछ लोग इकट्ठा हो गये और सब तैयारी कर दी, पहले दिन कुछ लोग आये। अब भगवान स्वयं कथा कर रहे थे तो संगत बढ़ी ! दूसरे और तीसरे दिन और भी भीड़ हो गयी….भगवान खुश हो गए कि कितनी भक्ति है लोगो में….!

लक्ष्मी माता ने सोचा अब देखा जाये कि क्या चल रहा है।

लक्ष्मी माता ने बुढ्ढी माता का रूप लिया और उस नगर में पहुंची, एक महिला ताला बंद करके कथा में जा रही थी कि माता उसके द्वार पर पहुंची ! बोली, “बेटी ज़रा पानी पिला दे!”
तो वो महिला बोली,”माताजी ,
साढ़े 3 बजे है…मेरे को प्रवचन में जाना है!”
लक्ष्मी माता बोली..”पिला दे बेटी थोडा पानी…बहुत प्यास लगी है..”
तो वो महिला लौटा भर के पानी लायी….माता ने पानी पिया और लौटा वापिस लौटाया तो सोने का हो गया था!!

यह देख कर महिला अचंभित हो गयी कि लौटा दिया था तो स्टील का और वापस लिया तो
सोने का ! कैसी चमत्कारिक माता जी हैं !..अब तो वो महिला हाथ-जोड़ कर कहने लगी कि, “माताजी आप को भूख भी लगी होगी ..खाना खा लीजिये..!” ये सोचा कि खाना खाएगी तो थाली, कटोरी, चम्मच, गिलास आदि भी सोने के हो जायेंगे।
माता लक्ष्मी बोली, “तुम जाओ बेटी, तुम्हारा प्रवचन का टाइम हो गया!”

वह महिला प्रवचन में आई तो सही लेकिन आस-पास की महिलाओं को सारी बात बतायी

अब महिलायें यह बात सुनकर चालू सत्संग में से उठ कर चली गयी !!
अगले दिन से कथा में लोगों की संख्या कम हो गयी….तो भगवान ने पूछा कि, “लोगो की संख्या कैसे कम हो गयी ?”

किसी ने कहा, ‘एक चमत्कारिक माताजी आई हैं नगर में… जिस के घर दूध पीती हैं तो गिलास सोने का हो जाता है,…. थाली में रोटी सब्जी खाती हैं तो थाली सोने की हो जाती है !… उस के कारण लोग प्रवचन में नहीं आते..”

भगवान नारायण समझ गए कि लक्ष्मी जी का आगमन हो चुका है!
इतनी बात सुनते ही देखा कि जो यजमान सेठ जी थे, वो भी उठ खड़े हो गए….. खिसक गए!

पहुंचे माता लक्ष्मी जी के पास ! बोले, “ माता, मैं तो भगवान की कथा का आयोजन कर रहा था और आप ने मेरे घर को ही छोड़ दिया !”
माता लक्ष्मी बोली, “तुम्हारे घर तो मैं सब से पहले आने वाली थी ! लेकिन तुमने अपने घर में जिस कथा कार को ठहराया है ना , वो चला जाए तभी तो मैं आऊं !”
सेठ जी बोले, “बस इतनी सी बात !…
अभी उनको धर्मशाला में कमरा दिलवा देता हूँ !”

जैसे ही महाराज (भगवान्) कथा कर के घर आये तो सेठ जी बोले,

महाराज आप अपना बिस्तर बांधो ! आपकी व्यवस्था अबसे धर्मशाला में कर दी है !!
महाराज बोले, “ अभी तो 2/3 दिन बचे है कथा के…..यहीं रहने दो”
सेठ बोले, “नहीं नहीं, जल्दी जाओ ! मैं कुछ नहीं सुनने वाला ! किसी और मेहमान को ठहराना है।

इतने में लक्ष्मी जी आई , कहा कि, “सेठ जी , आप थोड़ा बाहर जाओ… मैं इन से निबट लूँ!”
माता लक्ष्मी जी भगवान् से बोली,

प्रभु , अब तो मान गए?”
भगवान नारायण बोले, “हां लक्ष्मी तुम्हारा प्रभाव तो है, लेकिन एक बात तुम को भी मेरी माननी पड़ेगी कि तुम तब आई, जब संत के रूप में मैं यहाँ आया!!
संत जहां कथा करेंगे वहाँ लक्ष्मी तुम्हारा निवास जरुर होगा…!!”
यह कह कर नारायण भगवान् ने वहां से बैकुंठ के लिए विदाई ली। अब प्रभु के जाने के बाद अगले दिन सेठ के घर सभी गाँव वालों की भीड़ हो गयी। सभी चाहते थे कि यह माता सभी के घरों में बारी-बारी आये। पर यह क्या ? लक्ष्मी माता ने सेठ और बाकी सभी गाँव वालों को कहा कि, अब मैं भी जा रही हूँ। सभी कहने लगे कि, माता, ऐसा क्यों, क्या हमसे कोई भूल हुई है ? माता ने कहा, मैं वही रहती हूँ जहाँ नारायण का वास होता है। आपने नारायण को तो निकाल दिया, फिर मैं कैसे रह सकती हूँ ?’ और वे चली गयी।

शिक्षा :- जो लोग केवल माता लक्ष्मी को पूजते हैं, वे भगवान् नारायण से दूर हो जाते हैं। अगर हम नारायण की पूजा करें तो लक्ष्मी तो वैसे ही पीछे-पीछे आ जाएँगी, क्योंकि वो उनके बिना रह ही नही सकती ।

जहाँ परमात्मा की याद है, वहाँ लक्ष्मी का वास होता है। केवल लक्ष्मी के पीछे भागने वालों को न माया मिलती ना ही राम।

१. तंत्र में शरीर का महत्वतंत्र का सामान्य अर्थ तन (शरीर) से, मंत्र का मन से और यंत्र का किसी साधन से है। तंत्र व्यवस्था...
29/04/2025

१. तंत्र में शरीर का महत्व

तंत्र का सामान्य अर्थ तन (शरीर) से, मंत्र का मन से और यंत्र का किसी साधन से है। तंत्र व्यवस्था का भी प्रतीक है। तंत्र मानता है कि शरीर ही सभी क्रियाओं का केंद्र है, अतः इसे स्वस्थ और सशक्त रखना आवश्यक है। इसी शरीर के माध्यम से आध्यात्मिक साधना संभव है, जैसा कि योग भी कहता है।

तंत्र का मांस, मदिरा या विकृत कामनाओं से कोई संबंध नहीं है। जो व्यक्ति इन कर्मों में लिप्त है, वह तांत्रिक नहीं हो सकता। तंत्र का वास्तविक उद्देश्य सिद्धि और आत्मसाक्षात्कार है, जो अंतर्मुखी साधना द्वारा प्राप्त होता है।

 #अमरकथा_का_प्रसंग:मां पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से अनुरोध किया:"प्रभु! आप अजर-अमर हैं, मृत्यु आप पर कोई प्रभाव नहीं ड...
28/04/2025

#अमरकथा_का_प्रसंग:

मां पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से अनुरोध किया:
"प्रभु! आप अजर-अमर हैं, मृत्यु आप पर कोई प्रभाव नहीं डालती। कृपया मुझे बताइये कि अमरत्व का रहस्य क्या है?"

शिवजी ने पार्वतीजी के अनुरोध पर एक गुप्त और अत्यंत पावन कथा सुनाई, जिसे "अमरकथा" कहा जाता है। यह कथा जीव को जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त कर सकती थी।

कहते हैं कि शिवजी इस रहस्य को अत्यंत एकांत स्थान पर सुनाना चाहते थे, ताकि कोई और न सुन सके। इसलिए वे पार्वतीजी को लेकर अमरनाथ गुफा गए। रास्ते में उन्होंने हर जीवित वस्तु (यहां तक कि अपने वाहन नंदी बैल तक) को छोड़ दिया ताकि कथा का रहस्य सुरक्षित रहे।

जब शिवजी कथा सुनाने लगे, तो पार्वती ध्यानपूर्वक सुन रही थीं। लेकिन कथा के दौरान पार्वती को नींद आ गई। उसी समय पास में एक अंडे में छुपा शुक (तोता) कथा सुन रहा था। शुक ने पूरी कथा सुन ली। जब कथा समाप्त हुई तो शिवजी को ज्ञात हुआ कि कोई और भी कथा सुन चुका है।

गुस्से में आकर शिवजी ने उस शुक का पीछा किया। शुक भागता-भागता महर्षि व्यास की पत्नी के गर्भ में प्रवेश कर गया और वहीं जन्म लिया। यही शुक आगे चलकर महर्षि शुकदेव बने, जिन्होंने "भागवत कथा" सुनाई।

➡️ पढ़ें ! शिव सती प्रेम 🕉️शिव और सती की कथा"सती, दक्ष प्रजापति और उनकी पत्नी प्रसूति की कन्या थीं। सती भगवान शिव की परम...
27/04/2025

➡️ पढ़ें ! शिव सती प्रेम 🕉️

शिव और सती की कथा"

सती, दक्ष प्रजापति और उनकी पत्नी प्रसूति की कन्या थीं। सती भगवान शिव की परम भक्त थीं और ह्रदय से उन्हें पति रूप में वरना चाहती थीं। अनेक कठिन तपस्याओं के बाद सती ने शिवजी को प्रसन्न किया और उनसे विवाह किया।
शिव और सती कैलाश पर प्रेमपूर्वक रहने लगे। परंतु सती के पिता दक्ष शिवजी को पसंद नहीं करते थे। वे शिवजी को असभ्य और वैरागी समझते थे।

एक बार दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को निमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया।
सती ने जब यह सुना, तो बिना निमंत्रण के ही यज्ञ में जाने का निश्चय किया। शिवजी ने समझाया कि बिना बुलाए वहाँ जाना उचित नहीं है, परंतु सती अपने पिता के प्रति कर्तव्य समझकर चली गईं।

यज्ञ स्थल पर पहुँचने पर, सती ने देखा कि कहीं भी शिवजी का भाग (हवन कुंड में आहुति) नहीं रखा गया था।
उनके पिता दक्ष ने शिव का अपमान करते हुए कटु वचन कहे। यह अपमान सती सह नहीं सकीं। उन्होंने वहाँ उपस्थित सभी के सामने अपने को अग्नि में समर्पित कर दिया।
इस घटना से पूरा ब्रह्मांड हिल गया।

जब यह समाचार भगवान शिव तक पहुँचा, तो वे क्रोध में तांडव करने लगे। उन्होंने वीरभद्र और भद्रकाली को उत्पन्न किया और दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया। दक्ष का सिर काट दिया गया।
बाद में, शिवजी के शांत होने पर, ब्रह्मा आदि देवताओं के अनुरोध पर, शिव ने दक्ष को जीवनदान दिया और उसे बकरे का सिर प्रदान कर पुनर्जीवित किया।

सती का शरीर छोड़ने के बाद, शिवजी अत्यंत दुखी होकर सती के शव को लेकर ब्रह्मांड भर में भ्रमण करते रहे। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया, जिससे सती के अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

बाद में सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और फिर कठोर तप कर शिवजी से पुनः विवाह किया।

---

यह कथा शिव-सती के अमर प्रेम, त्याग और श्रद्धा की अनुपम मिसाल है।

 #क्यों_चाहिए_सबको_भरत_सा_भाई 1. निष्कलंक प्रेम और त्याग का प्रतीकभरत जी ने राज्य, सुख, ऐश्वर्य सब ठुकरा दिया — सिर्फ इस...
26/04/2025

#क्यों_चाहिए_सबको_भरत_सा_भाई

1. निष्कलंक प्रेम और त्याग का प्रतीक

भरत जी ने राज्य, सुख, ऐश्वर्य सब ठुकरा दिया — सिर्फ इसलिए कि वो जानते थे ये सब श्रीराम के हैं।
जिसने सिंहासन को ठुकरा दिया, और खड़ाऊं को राजा बना दिया — ऐसा भाई कौन नहीं चाहेगा?

2. भ्रातृ-प्रेम की चरम सीमा

भरत जी का प्रेम आत्मा से था, स्वार्थ से नहीं।
वे कहते हैं:

“राज्य मोह बस कैकेई माँगी,
मोह मोहि तो मृत्युही माँगी।”

(माँ ने राज्य माँगा, लेकिन मुझे तो जैसे मृत्यु ही मिल गई!)

---

3. कर्तव्य में अडिग, भावनाओं में कोमल

भरत जी ने न केवल भावुकता दिखाई, बल्कि धर्म और नीति का सर्वोच्च पालन भी किया।
उन्होंने राजकाज संभाला — पर राजा नहीं बने, बल्कि राम के प्रतिनिधि बनकर सेवा की।

---

4. हर युग में प्रेरणा

भरत केवल रामायण के पात्र नहीं, वे हर युग में आदर्श भाई की मिसाल हैं —

जो स्वार्थ नहीं,

जो स्पर्धा नहीं,

जो सम्मान और प्रेम में बड़ा है।

युधिष्ठिर और कर्ण की प्रेरक कथा - महाभारत में जीवन प्रबंधन, नैतिकता और नेतृत्व के गहरे सूत्र छिपे हैं। महाभारत में एक कथ...
25/04/2025

युधिष्ठिर और कर्ण की प्रेरक कथा -

महाभारत में जीवन प्रबंधन, नैतिकता और नेतृत्व के गहरे सूत्र छिपे हैं। महाभारत में एक कथा है, जिसमें युधिष्ठिर और कर्ण की तुलना होती है। कथा में जब एक व्यक्ति अपने पिता के दाह संस्कार के लिए चंदन की लकड़ियां खोजते हुए पहले युधिष्ठिर और फिर कर्ण के पास पहुंचता है। जानिए ये पूरी कथा और इस कथा की सीख...

एक व्यक्ति के पिता का देहांत हो गया तो वह सोचने लगा कि मुझे अपने पिता का अंतिम संस्कार चंदन की लकड़ियों से करना चाहिए। इस समय बारिश हो रही थी, इस कारण कहीं भी चंदन की सूखी लकड़ियां नहीं थीं। उस व्यक्ति ने विचार किया कि मुझे अपने राजा युधिष्ठिर के पास जाना चाहिए।

युधिष्ठिर के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं थी। जब व्यक्ति युधिष्ठिर के पास पहुंचा तो युधिष्ठिर ने उससे कहा कि चंदन की लकड़ियां तो बहुत हैं, लेकिन बारिश की वजह से भीग गई हैं। ये सुनकर वह व्यक्ति वहां से निराश होकर कर्ण के पास पहुंचा।

कर्ण की स्थिति भी वही थी, उसके पास की चंदन की लकड़ियां भी भीग चुकी थीं, लेकिन कर्ण ने थोड़ा सोच-विचार किया कि मेरे द्वार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं गया है, इसे भी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। कर्ण के पास जो सिंहासन था, वह चंदन की लकड़ी से ही बना था। कर्ण ने तुरंत ही अपना सिंहासन तोड़कर उस व्यक्ति को चंदन की लकड़ियां दे दीं।

चंदन की लकड़ी का सिंहासन तो युधिष्ठिर के पास भी था, लेकिन युधिष्ठिर ऐसा कुछ सोच नहीं सके। इस घटना के बाद ये चर्चा होने लगी थी कि ज्यादा बड़ा दानी कौन है- युधिष्ठिर या कर्ण।

इस कथा से जीवन प्रबंधन की तीन बातें हम सीख सकते हैं।

पहली बात - समस्या नहीं, उसके समाधान पर ध्यान देना चाहिए।

युधिष्ठिर ने देखा कि लकड़ियां भीगी हैं और निष्कर्ष पर पहुंच गए कि उनके चंदन की सूखी लकड़ियां नहीं हैं। दूसरी ओर कर्ण ने समस्या के समाधान के बारे में सोचा। यही सफल जीवन प्रबंधन का मूलमंत्र है, जब परिस्थिति जटिल हो, तब समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।

दूसरी बात - दान समझदारी से देना चाहिए। कर्ण ने ये नहीं सोचा कि सिंहासन कट जाएगा, बल्कि ये देखा कि किसी की अंतिम इच्छा पूरी हो सकती है। यही सच्ची उदारता है, जो समय, स्थान और पात्र को समझकर निर्णय लेती है। हमें भी दान देते समय समझदारी से काम लेना चाहिए।

तीसरी बात - सम्मान पद से नहीं अच्छे कर्म से मिलता है। युधिष्ठिर राजा थे, पर कर्ण का ये कर्म श्रेष्ठ था। ऐसे ही कर्मों की वजह से कर्ण को दानवीर कहा जाता है।

किसी की मदद करनी हो तो हमें सिर्फ अपना सामर्थ्य देखना काफी नहीं, समय और सामने वाले की भावना भी समझनी चाहिए। जब कोई जरूरतमंद दिखाई दे तो उसकी जरूरत को समझकर दान करें। कर्ण और युधिष्ठिर की यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची सेवा वही है जो सहानुभूति और दूरदृष्टि से की जाए। तभी हम भी अपने जीवन में दानवीर बन सकते हैं।

शबरी और भगवान राम का मिलनप्रसंग:दंडक वन में विचरण करते हुए भगवान श्रीराम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ शबरी नामक एक भक्ति स...
25/04/2025

शबरी और भगवान राम का मिलन

प्रसंग:
दंडक वन में विचरण करते हुए भगवान श्रीराम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ शबरी नामक एक भक्ति से परिपूर्ण स्त्री के आश्रम पहुंचे। शबरी एक वृद्ध वनवासी महिला थी, जो अपने गुरु मतंग ऋषि के आदेशानुसार वर्षों से रामजी के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने अपने आश्रम को स्वच्छ और सुंदर बना रखा था और प्रतिदिन भगवान राम के लिए जंगली बेर इकट्ठे करती थी।

जब भगवान राम वहां पहुंचे, तो शबरी की वर्षों की प्रतीक्षा पूर्ण हुई। वह अत्यंत आनंदित हुई और प्रभु को बैठने के लिए आसन दिया। फिर उसने प्रेमपूर्वक अपने संग्रहित बेर राम को अर्पित किए। उसने हर बेर को पहले खुद चखकर देखा कि कहीं खट्टा तो नहीं है, और फिर केवल मीठे बेर प्रभु को दिए।

भगवान राम ने प्रेम और भक्ति से भरे उन जूठे बेरों को अत्यंत श्रद्धा से खाया। उन्होंने शबरी के प्रेम को ही सर्वोपरि माना और कहा:

"प्रेम भक्ति से बड़ा कोई भाव नहीं।"

संदेश:
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि ईश्वर को हमारी योग्यता नहीं, बल्कि हमारी भक्ति और प्रेम चाहिए। शबरी जैसे निष्कलंक प्रेम से भरे भक्त के लिए भगवान राम स्वयं चलकर आते हैं।

राम कथा महिमा का एक सुंदर और प्रेरणादायक प्रसंग:संत काकभुशुंडि और गरुड़ संवादप्रसंग:एक बार गरुड़ जी को यह संदेह हुआ कि भ...
24/04/2025

राम कथा महिमा का एक सुंदर और प्रेरणादायक प्रसंग:

संत काकभुशुंडि और गरुड़ संवाद

प्रसंग:
एक बार गरुड़ जी को यह संदेह हुआ कि भगवान राम क्या सच में परम ब्रह्म हैं? उन्होंने सोचा कि जो मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं, जो रोते हैं, युद्ध करते हैं, क्या वे वास्तव में ईश्वर हो सकते हैं?

इस संशय को लेकर गरुड़ जी संत काकभुशुंडि के पास पहुँचे। काकभुशुंडि जी परम रामभक्त थे और उन्होंने अनेक युगों में श्रीराम के लीला दर्शन किए थे। उन्होंने गरुड़ जी को रामकथा सुनाई और कहा:

“राम कथा जग माहिं प्रसिद्धा।
हरषहिं सुनत सकल बृंद सिधा।।
राम भगति बिनु मोक्ष न होई।
बिनु हरिकथा बिनसे न सोई।।"

(रामकथा इस जग में प्रसिद्ध है। सभी सिद्धजन इसे सुनकर हर्षित होते हैं। रामभक्ति के बिना मोक्ष नहीं होता और बिना रामकथा के भक्ति भी नहीं टिकती।)

काकभुशुंडि जी ने उन्हें यह समझाया कि भगवान राम की लीला मानव रूप में है, पर उनका स्वरूप अपरंपार ब्रह्म है। राम कथा केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीव के उद्धार का मार्ग है।
जो रामकथा को श्रवण करता है, उसके हृदय में स्वयं राम निवास करते हैं।

The history of the camera spans several centuries, evolving from basic optical devices to sophisticated digital systems....
24/04/2025

The history of the camera spans several centuries, evolving from basic optical devices to sophisticated digital systems. Below is an overview of key milestones:

1. Camera Obscura: displayed images but couldn’t capture pictures.

2. First Photograph: Niépce took the first photo (1826). Daguerreotype (1839) made the process faster.

3. Film Era: Calotype (1841), Kodak’s 100-photo camera (1888), and Leica’s 35mm film (1930s) popularized photography.

4. Color Photography: Autochrome (1907) and Kodachrome (1935) introduced color photos.

5. Instant Photography: Polaroid cameras (1948) produced physical photos within minutes.

6. Digital Cameras: CCD technology (1969) led to Kodak’s first digital camera (1991).

7. Camera Phones: Sharp J-SH04 (2000) initiated the camera phone trend.

8. Smartphone Cameras (2000s-present):

2007: iPhone made phone cameras ubiquitous.

2010s: Dual lenses, night modes, and portrait effects became standard.

Now: Smartphone cameras continue to improve with AI, zoom lenses, 4K/8K video, low-light shots, and professional-level editing—right in your pocket ✍️🙏✍️✍️✍️✍️✍️
#श्रीस्वामीसमर्थ #स्वामीजी

Address

Ulra Chandauki
Musafirkhana
227813

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when श्री रामचरितमानस posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share