13/10/2025
आज जो राजनीति को गाली मिलती है, वो इसलिए नहीं कि राजनीति बुरी है — बल्कि इसलिए कि राजनेता चरित्रहीन हो गए हैं। चरित्र खो देने वाला नेता जनता का प्रतिनिधि नहीं, जनता का व्यापारी बन जाता है। जो राजनीति कभी महात्मा गांधी, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और डॉ. अंबेडकर जैसे तपस्वियों का तप थी, वही आज लोभ, लालच और झूठ का बाजार बन गई है।
पर जब कोई नेता उठ खड़ा होता है, जो अपने स्वार्थ से ऊपर सोचता है, जो अपने अंदर एक क्रांति की लौ जलाता है, तब राजनीति फिर से पवित्र हो जाती है।
वो नेता न मंदिर बनाता है, न मूर्तियाँ गढ़ता है — बल्कि अपने कर्म से चरित्र की मूर्ति गढ़ता है।
ऐसे नेता के लिए जनता ईश्वर होती है और जनसेवा उसकी पूजा।
राजनीति का असली अर्थ है — ‘राष्ट्र के हित में नीति’।
और जहां नीति का आधार चरित्र हो, वहां राजनीति अपने शुद्धतम रूप में इबादत बन जाती है।
वो देश भाग्यशाली होता है जहां नेता का चरित्र उसकी पार्टी से बड़ा हो, और जनता का हित उसके वोट बैंक से ऊपर।
अब वक्त है कि हम राजनीति को फिर से चरित्र से जोड़ें, क्योंकि बिना चरित्र की राजनीति केवल व्यापार है — और चरित्रवान राजनीति ही भारत का पुनर्जन्म है।
✊ शाह आलम भारतीय
“हक अपना अधिकार से लेंगे”
“जीना है जिम्मेदारी से”