26/05/2025
संभोग वासना और हवस में क्या अन्तर है ???
सेक्स (संभोग) और वासना और हवस तीनों एक जैसे होने के बावजूद भी तीनों एक दूसरे से अलग है।
वासना और हवस:- ये सेक्स की वह मानसिक विकृति है जो नर-नारी छोटे-बड़े आदि मे भेद नहीं करती जब ये विकृति मन में उत्पन्न होती है तो वासना से ग्रसित इंसान किसी के भी साथ कुकृत्य कर देता है।
जिसके अंदर हवस और वासना पाई जाती है, वो जानवर के समान होते हैं और उन्हें प्रेम से कोई लेना देना नहीं होता है।
वहीं सेक्स या संभोग कि बात करें तो ये दो लोगों की रजामंदी से किया जाने वाला वह सुख है जिसे न पाने वाला अतृप्त रहता है, ये वह क्रिया है जिसके बिना संसार की कल्पना करना भी नहीं कर सकते क्योंकि संभोग नहीं होगा तो प्रजनन नहीं होगा और प्रजनन नहीं होगा तो संसार की कल्पना कैसी ??
जहां तक सेक्स कि बात करूं तो प्रेम में सेक्स उतना ही आवश्यक है जितना आपके निर्वस्त्र शरीर पर कपड़े का होना
वह कपड़ा आपके शरीर को परिपूर्णता देता है।
प्यार के शुरुआत का पहला बिंदु आकर्षण होता है जो इंसान के व्यक्त्तिव उसके अच्छे आचरण इत्यादि से शुरू होता है और जैसे जैसे समय बीतता जाता है प्यार की गहराई उतनी ही बढ़ती जाती है।
साइंस कहता है कि जब तक हम फिजिकली रिलेशन में नहीं रहते तब तक हम अपने प्रेमी या प्रेमिका के प्रति लापरवाह होते हैं क्योंकि हम सिर्फ उससे मेंटली (मानसिक) रूप से जुड़े होते हैं मगर हम जैसे फिजिकली(शारीरिक) रूप से जुड़ते हैं हम अपने प्रेमी/प्रेमिका की छोटी छोटी चीजों के बारे में सोचने लग जाते हैं उसके प्रति वफादारी और आत्मसम्मान बढ़ जाता है ।
अतः प्यार की मजबूती में सेक्स( संभोग) अहम भूमिका निभाता है।
संभोग प्यार की भावनाओं को स्पर्श करता है
जबकि वासना सिर्फ शारीरिक सुख चाहती है।
प्रेम और काम के बीच सामंजस्य और महत्ता खजुराहो के मंदिरों में भली भांति दर्शाया गया है, इसलिए प्रेम में संभोग गलत नहीं है लेकिन प्रेम में वासना के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
और हवस का तो प्रेम से कोई संबंध हो ही नहीं सकता जिसके अंदर हवस है वह अमानवीय है उसमें पशुता है ऐसे ही लोग बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं।