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28/12/2024

क्रिसमस पर्व के उपलक्ष में विशेष प्रभु भोज का आयोजन

सभी देशवासियों को ईद मिलादुन्नबी की हार्दिक शुभकामनाएं।।                                                      हर धर्म की...
16/09/2024

सभी देशवासियों को ईद मिलादुन्नबी की हार्दिक शुभकामनाएं।। हर धर्म की अपनी अलग विशेषता होती है, और इस्लाम की विशिष्ट विशेषता विनम्रता है.’
–पैगम्बर मुहम्मद.

With best wishes
27/01/2023

With best wishes

स्टेट पोस्ट समाचार पत्र में अपने लेख एंव समाचार और विज्ञापन प्रकाशित कराने के लिए सम्र्पक करेंसम्र्पक सूत्र. 9897946213,...
23/06/2021

स्टेट पोस्ट समाचार पत्र में अपने लेख एंव समाचार और विज्ञापन प्रकाशित कराने के लिए सम्र्पक करें
सम्र्पक सूत्र. 9897946213, 9956019720

Some memorable
31/12/2020

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04/10/2020

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भारतीय संस्कृति आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित

जब भी किसी सृस्कृति की बात की जाती है तो भारतीय संस्कृति की बात किये बिना अधूरी रह जाती है। क्योकि वो संस्कृति ही सब से आगे खडी मिलती है। भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि हजारों वर्षों के बाद भी यह संस्कृति आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित है, जबकि मिस्र, असीरिया, यूनान और रोम की संस्कृतियों अपने मूल स्वरूप को लगभग विस्मृत कर चुकी हैं। भारत में नदियों, वट, पीपल जैसे वृक्षों, सूर्य तथा अन्य प्राकृतिक देवी - देवताओं की पूजा अर्चना का क्रम शताब्दियों से चला आ रहा है। देवताओं की मान्यता, हवन और पूजा-पाठ की प(तियों की निरन्तरता भी आज तक अप्रभावित रही हैं। वेदों और वैदिक धर्म में करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास आज भी उतना ही है, जितना हजारों वर्ष पूर्व था। गीता और उपनिषदों के सन्देश हजारों साल से हमारी प्रेरणा और कर्म का आधार रहे हैं। किंचित परिवर्तनों के बावजूद भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्त्वों, जीवन मूल्यों और वचन प(ति में एक ऐसी निरन्तरता रही है, कि आज भी करोड़ों भारतीय स्वयं को उन मूल्यों एवं चिन्तन प्रणाली से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और इससे प्रेरणा प्राप्त करते हैं। वही भारतीय संस्कृति की सहिष्णु प्रकृति ने उसे दीर्घ आयु और स्थायित्व प्रदान किया है। संसार की किसी भी संस्कृति में शायद ही इतनी सहनशीलता हो, जितनी भारतीय संस्कृति में पाई जाती है। भारतीय हिन्दू किसी देवी - देवता की आराधना करें या न करें, पूजा-हवन करें या न करें, आदि स्वतंत्रताओं पर धर्म या संस्कृति के नाम पर कभी कोई बन्धन नहीं लगाये गए। इसीलिए प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रतीक हिन्दू धर्म को धर्म न कहकर कुछ मूल्यों पर आधारित एक जीवन-प(ति की संज्ञा दी गई और हिन्दू का अभिप्राय किसी धर्म विशेष के अनुयायी से न लगाकर भारतीय से लगाया गया। भारतीय संस्कृति के इस लचीले स्वरूप में जब भी जड़ता की स्थिति निर्मित हुई तब किसी न किसी महापुरुष ने इसे गतिशीलता प्रदान कर इसकी सहिष्णुता को एक नई आभा से मंडित कर दिया। इस दृदृष्टि से प्राचीनकाल में बु( और महावीर के द्वारा, मध्यकाल में शंकराचार्य, कबीर, गुरु नानक और चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से तथा आधुनिक काल में स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द एवं महात्मा ज्योतिबा फुले के द्वारा किये गए प्रयास इस संस्कृति की महत्त्वपूर्ण धरोहर बन गए।भारतीय संस्कृति की सहिष्णुता एवं उदारता के कारण उसमें एक ग्रहणशीलता प्रवृत्ति को विकसित होने का अवसर मिला। वस्तुतः जिस संस्कृति में लोकतन्त्र एवं स्थायित्व के आधार व्यापक हों, उस संस्कृकृति में ग्रहणशीलता की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से ही उत्पन्न हो जाती है।