05/06/2022
आयोजित हुआ नव संचेतन का रंग संवाद
जुटे दिग्गज साहित्यकार और रंगकर्मी
कला, संस्कृति और समाज को समर्पित जानी-मानी नाट्य संस्था नव संचेतन के तत्वावधान में रामवृक्ष बेनीपुरी महिला कॉलेज के सभागार में - मौजूदा समय में रंगकर्म की चुनौतियां - विषयक संवाद का आयोजन हुआ। अपने अध्यक्षीय उद्गार में संस्था के अध्यक्ष डॉ संजय पंकज ने कहा कि कला साहित्य संस्कृति और विशेष रूप से रंगकर्म के सामने सदा चुनौतियां रही हैं। जब कभी भी पूरी निष्ठा, समर्पण और संकल्प के साथ रंगकर्मी आगे आए हैं तब तब समाज ने उन्हें प्यार और सम्मान दिया है। नाटक एक जीवंत विधा है जो सीधे सीधे संवाद करता है। यह एक ऐसा दृश्य काव्य है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। रंगकर्म को वैचारिक गंभीरता से इतर भी सामाजिक विषयों को उठाना चाहिए। रंगकर्म की भूमिका प्रतिपक्षी की भूमिका होती है। विषय प्रवेश कराते हुए नवसंचेतन के सचिव रंगकर्मी प्रमोद आजाद ने कहा कि रंग कर्मियों के लिए उचित वातावरण का अभाव सबसे बड़ा संकट है। हमारी प्रस्तुति क्या रिहर्सल तक के लिए भी हमें सही जगह नहीं मिल पाती है हम लोग प्रयोग करते हुए नुक्कड़ नाटक पर विशेष बल देते हैं लेकिन बहुत सारे नाटक ऐसे भी हैं जिनके लिए प्रेक्षागृह और सही वातावरण चाहिए। मुख्य वक्ताओं में प्रसिद्ध कवि और रंगकर्मी डॉ शेखर शंकर मिश्र ने रंगकर्म की समृद्ध परंपरा का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य के पास जब भाषा नहीं थी तो मुद्राओं से अपने भावों को अभिव्यक्त करता था। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अन्य प्राणियों के माध्यम से रंगकर्म के शिल्प को विकसित करने का हुनर प्राप्त किया। रंग कर्मियों को हमेशा अपने लक्ष्य पर समर्पित होकर बढ़ते रहना चाहिए। बेगूसराय से आए वरिष्ठ रंगकर्मी प्रवीण कुमार गुंजन ने कहा कि हमें अब वाम और दक्षिण के चक्कर में ज्यादा पड़ने की जरूरत नहीं है। हम अभाव और मुफलिसी में ही अपनी प्रतिभा को निखारते हैं। संस्कृति कर्मियों के भीतर एक आग होती है और वह चाहता है कि इससे हम समाज को ऊर्जावान बनाएं। हाजीपुर से आए वरिष्ठ रंगकर्मी क्षितिज प्रकाश ने कहा कि कब हमारे सामने चुनौतियां नहीं रही हैं, लेकिन हम चुनौतियों से टकराते हुए निरंतर इस दिशा में संशोधन के साथ आगे बढ़ते रहें हैं। रंगकर्मी डॉ संतोष कुमार राणा ने पाश्चात्य और भारतीय रंगमंच की तुलना करते हुए कहा कि निश्चित रूप से हमारे सामने संसाधन का अभाव है फिर भी इसी में हम अपना काम बखूबी करते हैं। अपने विचार व्यक्त करने वालों में यशवंत पराशर, स्वाधीन दास, कामेश्वर प्रसाद, सुधीर कुमार, बैजू कुमार महत्वपूर्ण रहे। संवाद में रंग कर्मियों के साथ ही शंभू नाथ चौबे, अविनाश तिरंगा, कुंदन कुमार, राजेश चौधरी, धीरेंद्र कुमार, प्रमोद सहनी, धीरेंद्र जायसवाल, अनुराधा कुमारी, सुनील फेकानिया, सुमन वृक्ष दीपक टंडेल की गरिमामयी उपस्थिति रही। पुष्प कुछ और शॉल से अतिथियों का सम्मान किया गया।स्वागत प्रमोद आजाद , संचालन निशा कुमारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ कुमार विरल ने किया।
कला, संस्कृति और समाज को समर्पित जानी-मानी नाट्य संस्था नव संचेतन के तत्वावधान में रामवृक्ष बेनीपुरी महिला कॉलेज के सभागार में - मौजूदा समय में रंगकर्म की चुनौतियां - विषयक संवाद का आयोजन हुआ। अपने अध्यक्षीय उद्गार में संस्था के अध्यक्ष डॉ संजय पंकज ने कहा कि कला साहित्य संस्कृति और विशेष रूप से रंगकर्म के सामने सदा चुनौतियां रही हैं। जब कभी भी पूरी निष्ठा, समर्पण और संकल्प के साथ रंगकर्मी आगे आए हैं तब तब समाज ने उन्हें प्यार और सम्मान दिया है। नाटक एक जीवंत विधा है जो सीधे सीधे संवाद करता है। यह एक ऐसा दृश्य काव्य है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। रंगकर्म को वैचारिक गंभीरता से इतर भी सामाजिक विषयों को उठाना चाहिए। रंगकर्म की भूमिका प्रतिपक्षी की भूमिका होती है। विषय प्रवेश कराते हुए नवसंचेतन के सचिव रंगकर्मी प्रमोद आजाद ने कहा कि रंग कर्मियों के लिए उचित वातावरण का अभाव सबसे बड़ा संकट है। हमारी प्रस्तुति क्या रिहर्सल तक के लिए भी हमें सही जगह नहीं मिल पाती है हम लोग प्रयोग करते हुए नुक्कड़ नाटक पर विशेष बल देते हैं लेकिन बहुत सारे नाटक ऐसे भी हैं जिनके लिए प्रेक्षागृह और सही वातावरण चाहिए। मुख्य वक्ताओं में प्रसिद्ध कवि और रंगकर्मी डॉ शेखर शंकर मिश्र ने रंगकर्म की समृद्ध परंपरा का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य के पास जब भाषा नहीं थी तो मुद्राओं से अपने भावों को अभिव्यक्त करता था। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अन्य प्राणियों के माध्यम से रंगकर्म के शिल्प को विकसित करने का हुनर प्राप्त किया। रंग कर्मियों को हमेशा अपने लक्ष्य पर समर्पित होकर बढ़ते रहना चाहिए। बेगूसराय से आए वरिष्ठ रंगकर्मी प्रवीण कुमार गुंजन ने कहा कि हमें अब वाम और दक्षिण के चक्कर में ज्यादा पड़ने की जरूरत नहीं है। हम अभाव और मुफलिसी में ही अपनी प्रतिभा को निखारते हैं। संस्कृति कर्मियों के भीतर एक आग होती है और वह चाहता है कि इससे हम समाज को ऊर्जावान बनाएं। हाजीपुर से आए वरिष्ठ रंगकर्मी क्षितिज प्रकाश ने कहा कि कब हमारे सामने चुनौतियां नहीं रही हैं, लेकिन हम चुनौतियों से टकराते हुए निरंतर इस दिशा में संशोधन के साथ आगे बढ़ते रहें हैं। रंगकर्मी डॉ संतोष कुमार राणा ने पाश्चात्य और भारतीय रंगमंच की तुलना करते हुए कहा कि निश्चित रूप से हमारे सामने संसाधन का अभाव है फिर भी इसी में हम अपना काम बखूबी करते हैं। अपने विचार व्यक्त करने वालों में यशवंत पराशर, स्वाधीन दास, कामेश्वर प्रसाद, सुधीर कुमार, बैजू कुमार महत्वपूर्ण रहे। संवाद में रंग कर्मियों के साथ ही शंभू नाथ चौबे, अविनाश तिरंगा, कुंदन कुमार, राजेश चौधरी, धीरेंद्र कुमार, प्रमोद सहनी, धीरेंद्र जायसवाल, अनुराधा कुमारी, सुनील फेकानिया, सुमन वृक्ष दीपक टंडेल की गरिमामयी उपस्थिति रही। पुष्प कुछ और शॉल से अतिथियों का सम्मान किया गया।स्वागत प्रमोद आजाद , संचालन निशा कुमारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ कुमार विरल ने किया।