Sartaj Siddiqui

Sartaj Siddiqui अल्लाह रब्बुल इज्ज़त इस दोनों जहां के जालिमों से मज़लूम,बेबस, लाचार, इंसानों की हिफाज़त फरमाएं।

पुरुष  उसके जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है, थाली बजाई जाती है, लड्डू बांटे जाते हैं क्योंकि वो एक दुधारू गाय है, जिसे हर क...
17/01/2025

पुरुष
उसके जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है, थाली बजाई जाती है, लड्डू बांटे जाते हैं क्योंकि वो एक दुधारू गाय है, जिसे हर कोई दुहता है, उसके मन में सुख है या दुख इसकी परवाह कोई नहीं करता है....!

वह हर पल अपनों के लिए जीता है, जीवन का एक एक पल दूसरों के लिए समर्पित करता है, बचपन से जवानी तक माँ बाप के सपनों को साकार करने के लिए दिन रात संघर्ष करता है, तो कभी पितृहीन होकर परिवार की बागडोर मुखिया के रुप में संभालता है....!

कभी छोटे भाई बहनों के लिए अपने सपनों की बलि देता है तो कभी परिवार की परम्परा के लिए अपने प्यार की तिलांजलि देता है और परिवार की खुशी के लिए अनचाही शादी करता है....!

पत्नी कैसी भी हो उसे निभाता है, पत्नी सुन्दर सुशील हो तो अपनी किस्मत को सराहता है और बदसूरत...बददिमाग हो तो ताउम्र नरक की सजा भुगतता है, पिता बन कर संतानों की परवरिश करने में अपना तन मन धन सब कुछ समर्पित करता है....

अपनी हर लड़ाई में रहता है वह मौन, अपना संघर्ष किसी को नहीं बता पाता है, एक एक तिनका इकट्ठा करके अपने सपनों का आशियाना बनाने की कोशिश करता है, ताउम्र एक एक पैसे का हिसाब रखता है, जिम्मेदारियों के पहाड़ के नीचे दबा उफ तक नहीं कर पाता है....

इस सफर में आदमी जीतता है या हारता लेकिन अंतत: अपने मन में अपनी इच्छाओं की कब्र मेंअकेला ही रहता है,
हर कोई उससे मांगता ही मांगता है, उसे देने कोई नहीं आता है.....!

और एक दिन चुपचाप चल देता है अनजान सफर पर जहाँ जाकर कोई वापस नहीं आता ....!!✍️

09/01/2025

बच्चों के बिगड़ने या कामयाबी के
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लिए वालिदैन कितने जिम्मेदार :---
************************ वैसे तो हर वालिदैन का एक ही सपना होता है कि मेरी औलाद सबसे ज्यादा कामयाब हो सबसे ज्यादा उनका नाम रौशन करे.
क्या केवल सपना देखने से सपने सच हो सकते हैं ?
क्या वालिदैन अपने इस सपने को सच करने के लिए संजीदा रहते हैं ?
जवाब आपको आगे मिल सकता है शर्त ये है कि आप एक वालिदैन की तरह नीचे लिखे को पढ़ते रहिए.

मुस्लिम लोग साल में 20-30 शादियाँ, 10-15 मंगनी 20-30 दोस्तों के साथ पार्टी शार्टी, फैमिली प्रोग्राम, 20-30 मौत/दफीना, 20/30 दसवां, बीसवां, चालीसवाँ इसके अलावा, ईद, बकरा ईद, मुहर्रंम चहल्लुम , मेले, नुमाइश में भी 20,दिन
कुल मिलाकर कर साल में करीब 150 दिन तो इन जरूरी कामों के लिए चाहिए ही चाहिए..

सबसे अहम सवाल क्या ये 150 के करीब दिन , इनके साथ पढ़ने वाले बच्चों के भी खर्च होते हैं ?

दूसरा अहम सवाल.... दावत ज्यादा जरूरी है या बच्चों की पढाई.....

तीसरा सवाल....... इन दावतों में जाने के लिए महंगे कपड़े और जूते चाहिए
कपड़े, जूते जरूरी है या बच्चों की कॉपी किताबें...

चौथा सवाल.. दावतों में आने जाने के लिए किराया भाड़ा, डीजल, पैट्रोल का पैसा खर्च होता है
ये सब खर्च ज्यादा जरूरी है या बच्चों की स्कूल फीस...

पांचवां सवाल... प्रोग्रामों में 500-1000 रु का गिफ्ट लेकर जाना या लिफ़ाफ़ा देना आम सी बात है
ये गिफ्ट ये लिफ़ाफ़ा देना ज्यादा जरूरी है या बच्चे का ड्रेस या बैग ?

आप अगर साल के 150 दिन इन प्रोग्राम को अटेंड करते रहते हैं , तो अपने बच्चे के बिगड़ने और न पढ़ने के लिए आप जिम्मेदार है.

और अगर आप इन 150 दिन के प्रोग्राम से ज्यादा जरूरी अपने बच्चों को वक़्त देना समझते हैं तो आप अपने बच्चे को एक कामयाब इंसान बनाना चाहते हैं...
आप एक जिम्मेदार वालिदैन के साथ साथ एक जिम्मेदार नागरिक भी है.....
...... इन दो कामों में से आप क्या कर रहे हैं एक बार सोचियेगा जरूर, क्योकि वक़्त किसी के लिए नहीं ठहरता, ठहरना आप को है.............

सादिक़ हुसैन वि न्यायिक मजिस्ट्रेट अलीगढ़...

09/01/2025

परिवर्तन प्रक्रति का नियम है:- .................................... उपभोग की वस्तु से लेकर व्यापार हो चाहे संसाधन हो या सोच समय के साथ साथ समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं तो वो अपने बजूद को जिंदा रखने में सक्षम रहती हैं.....
आज हम एक ऐसे समाज के बारे में बात करेंगे जिसने समय के साथ साथ खुद को परिवर्तित करके आदि काल से आज तक श्रेष्ठ बनाए रखा है..
धर्म, सत्ता और शासन तक अपनी उपस्थित मजबूत तरीके से दर्ज की हुई है....
वह समाज है ब्राहमन समाज..
इस समाज ने आदि काल में भी राजा, महा राजाओं के दरबार में उच्च स्थान प्राप्त किया, धर्म और धर्म की शिक्षा दीक्षा को पेशा बनाया..
अपनी शिक्षा के बल पर न केवल उच्च स्थान प्राप्त किया बल्कि सत्ता के केंद्र बिंदु में स्वम को स्थापित किया..
सत्ता और शासक बदलते रहे हिन्दू शासक हो , मुस्लिम शासक या अंग्रेजी शासन इस समाज ने वक़्त के साथ खुद को परिवर्तित करके अपना वर्चस्व हमेशा कायम रखा...
देश आजाद होने के बाद, संविधान लागू होने पर इस समाज ने महसूस किया कि अब जनता जागरूक होने लगी है, आंदोलन करना सीख गई है ऐसे में धर्म के नाम पर ज्यादा समय तक लोगों पर राज नही किया जा सकता इसलिए समय के अनुसार अपनी अगली पीडी को परिवर्तित किया जाए...
इस बार इस समाज ने परिवर्तन के लिए आधुनिक शिक्षा को चुना और ये परिवर्तन बहुत कामयाब रहा..
आज शिक्षा के बल पर सबसे ज्यादा IAS, IPS, जज, प्रोफेसर और जितनी भी बडी बडी पोस्ट है उन पर सिर्फ ब्राहमन समाज के लोग बैठे हैं..
भारत का मुसलमान जिसने 1000 साल तक राज किया आज हाशिए पर आ गया वजह उसने कभी परिवर्तन को स्वीकार ही नहीं किया. समय के साथ खुद को बदला नही, समय के हिसाब से अपने संसाधन तैयार नहीं किए नतीज़ा आज इस समाज को हर जगह से निकाला जा रहा है..
1000 साल की सत्ता का नशा ऐसा चढ़ा हुआ है कि अभी भी खुद को शहंशाह अकबर से कम नही समझ रहा है...
आज के मुसलमान को अब परिवर्तन को स्वीकार करते हुए खुद को बदल लेना चाहिए.. बदलाव का मतलब दीन से ख़ारिज होना नही है आप दीन पर चल कर खुद को बदल लीजिए वर्ना आने वाली नस्लें इस बदलाव की आंधी में टिक नहीं पाएंगी....
(ये मेरे व्यक्तिगत विचार है)
सादिक़ हुसैन वि न्यायिक मजिस्ट्रेट अलीगढ़..

21/12/2024
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई...
23/09/2024

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें ।
23-09-2024

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