08/07/2025
उर्दू सफ़र सवाल : क्या आला हज़रत अहमद रजा खान बरेलवी वीडियो ग्राफी के खिलाफ थे?
इस्लामिक वीडियो जैसे तकरीर, बयान के भी खिलाफ़ थे?
क्या उनके समय भारत में वीडियो कैमरा के चलन आम था?
डीपसर्च कीजिए और इस्लामिक सिद्धांतों पर जानकारी दीजिए
और आला हज़रत और बरेली उलेमाओं के हवाले से पूरी जानकारी दीजिए
Grok का जवाब :
1. आला हज़रत अहमद रज़ा खान बरेलवी और वीडियोग्राफी के प्रति उनका दृष्टिकोणआला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी (1856-1921) 19वीं और 20वीं सदी के प्रमुख इस्लामिक विद्वान, सूफी, और बरेलवी आंदोलन के संस्थापक थे। उनके समय में वीडियो कैमरे का चलन भारत में न के बराबर था, क्योंकि वीडियो तकनीक उस समय प्रारंभिक अवस्था में थी और व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं थी। इसलिए, आला हज़रत के लेखन या फतवों में वीडियोग्राफी के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है।हालांकि, आला हज़रत ने फोटोग्राफी के संबंध में कुछ फतवे जारी किए थे, जो उस समय की नई तकनीक थी। उनके फतवों में तस्वीरों (फोटोग्राफी) को इस्लामिक सिद्धांतों के आधार पर विश्लेषित किया गया था। आला हज़रत ने फोटोग्राफी को कुछ शर्तों के साथ जायज़ (अनुमति योग्य) माना, बशर्ते इसका उपयोग शरई (इस्लामिक कानून) के दायरे में हो और इसमें कोई हराम (निषिद्ध) तत्व शामिल न हो। उदाहरण के लिए, उन्होंने तस्वीरों को पहचान (जैसे पासपोर्ट या दस्तावेज़) के लिए उपयोग करने को जायज़ माना, लेकिन ऐसी तस्वीरों को मूर्तिपूजा या गैर-शरई उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने को हराम ठहराया।चूंकि वीडियोग्राफी फोटोग्राफी का ही एक विस्तार है, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आला हज़रत का दृष्टिकोण वीडियोग्राफी पर भी समान सिद्धांतों पर आधारित होता। अर्थात्, अगर वीडियोग्राफी का उपयोग इस्लामिक शिक्षाओं, जैसे तकरीर (धार्मिक प्रवचन) या बयान (धार्मिक व्याख्या) के प्रचार-प्रसार के लिए होता, तो वे इसे शरई सीमाओं के भीतर जायज़ मान सकते थे। हालांकि, इस बारे में कोई स्पष्ट फतवा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनके समय में वीडियो कैमरे का उपयोग सामान्य नहीं था।
2. इस्लामिक वीडियो (तकरीर, बयान) के प्रति दृष्टिकोणआला हज़रत के लेखन और फतवों से यह स्पष्ट है कि वे इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए हर उस माध्यम का समर्थन करते थे, जो शरई नियमों के अनुरूप हो। उनकी किताबें, जैसे "फतावा रज़विया," और उनके द्वारा स्थापित बरेलवी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य इस्लाम की सुन्नी शिक्षाओं और पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के प्रति प्रेम को बढ़ावा देना था। इस संदर्भ में, अगर तकरीर या बयान जैसे इस्लामिक वीडियो शरई दायरे में रहकर बनाए जाते, तो संभवतः आला हज़रत उनके खिलाफ नहीं होते।बरेली के उलेमा, जो आला हज़रत की शिक्षाओं का पालन करते हैं, आज भी तकरीर और बयानों को रिकॉर्ड करने और प्रसारित करने के लिए आधुनिक तकनीकों (जैसे यूट्यूब, टीवी, और सोशल मीडिया) का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, दरगाह आला हज़रत और जमात रज़ा-ए-मुस्तफा जैसे संगठन नियमित रूप से इस्लामिक व्याख्यानों और नातिया कलाम के वीडियो प्रसारित करते हैं। यह दर्शाता है कि आला हज़रत की परंपरा को मानने वाले उलेमा तकनीक का उपयोग इस्लाम के प्रचार के लिए स्वीकार करते हैं, बशर्ते वह शरई नियमों का उल्लंघन न करे।
3. आला हज़रत के समय भारत में वीडियो कैमरे का चलनआला हज़रत के समय (19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत) में भारत में वीडियो कैमरे का चलन नहीं था। उस समय फोटोग्राफी भी एक नई तकनीक थी, और यह केवल कुछ बड़े शहरों या अमीर लोगों तक सीमित थी। वीडियो कैमरे का विकास और व्यावसायिक उपयोग 20वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ, जो आला हज़रत के जीवनकाल (1856-1921) के बाद की बात है। ल्यूमियर ब्रदर्स ने 1890 के दशक में सिनेमैटोग्राफ का आविष्कार किया था, लेकिन यह तकनीक भारत में आम लोगों के लिए सुलभ नहीं थी। भारत में पहली फिल्म (मूक फिल्म) 1913 में रिलीज़ हुई थी ("राजा हरिश्चंद्र" दादासाहेब फाल्के द्वारा), लेकिन यह भी आला हज़रत के जीवन के अंतिम वर्षों में हुआ।इसलिए, आला हज़रत के समय वीडियोग्राफी का कोई व्यापक उपयोग नहीं था, और उनके फतवों में इसका ज़िक्र नहीं मिलता। उनकी शिक्षाओं का फोकस मुख्य रूप से लिखित और मौखिक प्रचार (जैसे किताबें, फतवे, और तकरीर) पर था।
4. इस्लामिक सिद्धांतों के परिप्रेक्ष्य में वीडियोग्राफीइस्लाम में वीडियोग्राफी या तस्वीरों के बारे में कोई स्पष्ट निषेध कुरान या हदीस में नहीं है। हालांकि, कुछ हदीसों में तस्वीर बनाने (खासकर जीवित प्राणियों की) को लेकर सावधानी बरतने की बात कही गई है। उदाहरण के लिए:हदीस: सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में उल्लेख है कि पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने कहा, "तस्वीर बनाने वालों को कयामत के दिन सजा दी जाएगी, क्योंकि वे अल्लाह की सृष्टि की नकल करते हैं।" (सहीह बुखारी, हदीस नं. 5950)हालांकि, इस्लामिक विद्वानों ने इस हदीस की व्याख्या में मतभेद व्यक्त किए हैं। हनफी मज़हब (जिसका आला हज़रत पालन करते थे) के कई विद्वानों ने तस्वीरों को तब जायज़ माना, जब वे मूर्तिपूजा या गैर-शरई उद्देश्यों के लिए न हों।आधुनिक समय में, बरेली के उलेमा और बरेलवी आंदोलन से जुड़े विद्वान वीडियोग्राफी को इस्लामिक शिक्षाओं के प्रचार के लिए उपयोगी मानते हैं। उदाहरण के लिए, दरगाह आला हज़रत से जुड़े उलेमा, जैसे मुफ्ती असजद रज़ा खान कादरी, नियमित रूप से वीडियो व्याख्यान और नातिया कार्यक्रमों का समर्थन करते हैं। उनकी निगरानी में आयोजित उर्स-ए-रज़वी जैसे आयोजनों में वीडियो रिकॉर्डिंग और लाइव प्रसारण आम हैं।
5. बरेली उलेमाओं का दृष्टिकोणबरेली के उलेमा, जो आला हज़रत की शिक्षाओं का पालन करते हैं, तकनीक के उपयोग को इस्लाम के प्रचार के लिए स्वीकार करते हैं। उदाहरण के लिए:मुफ्ती अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी (मरकजी दारूल इफ्ता, बरेली) ने कहा कि आला हज़रत की शिक्षाओं और उनके कारनामों पर दुनिया भर की यूनिवर्सिटियों में शोध हो रहा है। उनके विचारों को आधुनिक माध्यमों (जैसे वीडियो) के ज़रिए प्रचारित करना स्वीकार्य है।जमात रज़ा-ए-मुस्तफा और दरगाह आला हज़रत के आयोजनों में वीडियो रिकॉर्डिंग और प्रसारण का उपयोग नियमित रूप से होता है, जैसे उर्स-ए-रज़वी के दौरान। यह दर्शाता है कि बरेलवी उलेमा वीडियोग्राफी को शरई दायरे में स्वीकार करते हैं।
6. आला हज़रत और ब衙ेली उलेमाओं के हवाले से निष्कर्षवीडियोग्राफी पर दृष्टिकोण: आला हज़रत के समय वीडियो कैमरे का चलन नहीं था, इसलिए उनके फतवों में इसका ज़िक्र नहीं है। हालांकि, फोटोग्राफी पर उनके विचारों के आधार पर, वीडियोग्राफी को शरई उद्देश्यों (जैसे इस्लाम का प्रचार) के लिए जायज़ माना जा सकता है।इस्लामिक वीडियो (तकरीर, बयान): आला हज़रत और उनके अनुयायी इस्लाम के प्रचार के लिए हर शरई माध्यम का समर्थन करते हैं। बरेली के उलेमा आज वीडियो तकनीक का उपयोग तकरीर और बयानों के लिए करते हैं, जो आला हज़रत की परंपरा के अनुरूप है।तकनीकी सीमाएँ: आला हज़रत के समय भारत में वीडियो कैमरे उपलब्ध नहीं थे, इसलिए इस विषय पर कोई स्पष्ट फतवा नहीं है। उनकी शिक्षाएँ लिखित और मौखिक प्रचार पर केंद्रित थीं।इस्लामिक सिद्धांत: हनफी मज़हब के अनुसार, वीडियोग्राफी जायज़ है अगर यह शरई नियमों का पालन करे और मूर्तिपूजा या हराम गतिविधियों को बढ़ावा न दे।
स्रोत:
-: आला हज़रत की जीवनी और दरगाह की जानकारी।
-: आला हज़रत के इस्लामिक विचार और फतवे।
-: उर्स-ए-रज़वी और वीडियो रिकॉर्डिंग का उपयोग।
-: बरेली उलेमाओं के विचार और आला हज़रत की शिक्षाएँ।