03/07/2025
अमित शाह जी का यह बयान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक बड़े वर्ग की सोच को दर्शाता है, जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लागू करने की वकालत की जाती है। इस बयान का मुख्य उद्देश्य यह सवाल उठाना है कि मुस्लिम समुदाय, विशेषकर पुरुष, शरिया कानून के कुछ प्रावधानों (जैसे चार शादियां करने की अनुमति) का लाभ क्यों उठाना चाहते हैं, जबकि वे शरिया के अन्य पहलुओं को पूरी तरह से नहीं अपनाते हैं।
अमित शाह के बयान का संदर्भ
यह बयान अक्सर विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत कानूनों के संदर्भ में आता है। भारत में, विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अपने-अपने पर्सनल कानून हैं। मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है, जो काफी हद तक शरिया पर आधारित है।
शाह का तर्क यह है कि यदि मुस्लिम समुदाय शरिया को अपने व्यक्तिगत कानूनों के आधार के रूप में देखता है, तो उन्हें इसे समग्र रूप से स्वीकार करना चाहिए, न कि केवल उन हिस्सों को जो उनके लिए सुविधाजनक हों। उनके कहने का मतलब यह है कि अगर शरिया के तहत चार शादियां जायज हैं, तो शरिया के अन्य सख्त प्रावधानों, जैसे कि दंड संहिता या अन्य सामाजिक-आर्थिक नियमों को भी क्यों नहीं माना जाता? यह एक तरह से "चुनिंदा शरिया" के उपयोग पर सवाल उठाना है।
इस बयान के पीछे के मुद्दे
* यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की वकालत: बीजेपी लंबे समय से UCC की समर्थक रही है। UCC का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, विरासत आदि में एक समान कानून लागू करना है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। शाह का यह बयान UCC की आवश्यकता पर जोर देने के लिए एक तर्क के रूप में देखा जा सकता है।
* महिलाओं के अधिकार: कई लोग बहुविवाह (एक से अधिक पत्नियां रखना) को महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ मानते हैं। यह तर्क दिया जाता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह की अनुमति महिलाओं के साथ असमानता पैदा करती है।
* धर्मनिरपेक्षता पर बहस: यह बयान भारत की धर्मनिरपेक्षता की प्रकृति पर भी बहस छेड़ता है। कुछ का तर्क है कि प्रत्येक समुदाय को अपने व्यक्तिगत कानूनों का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जबकि अन्य का मानना है कि सभी नागरिकों के लिए समान कानून होने चाहिए।
* राजनीतिक पहलू: ऐसे बयान अक्सर चुनावी अभियानों या राजनीतिक बहसों के दौरान दिए जाते हैं और इनका उद्देश्य एक विशेष राजनीतिक संदेश देना होता है।
विभिन्न दृष्टिकोण
* शरिया का बचाव करने वाले: उनका तर्क है कि शरिया एक व्यापक धार्मिक और कानूनी प्रणाली है, और बहुविवाह की अनुमति कुछ विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है, न कि मनमाने ढंग से। वे यह भी कहते हैं कि पर्सनल लॉ धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा है और इसमें सरकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
* प्रगतिशील मुस्लिम: कुछ मुस्लिम विद्वान और एक्टिविस्ट भी शरिया के कुछ पहलुओं में सुधार की वकालत करते हैं, खासकर महिलाओं के अधिकारों के संबंध में। वे मानते हैं कि कुरान और हदीस की व्याख्या समय के साथ बदल सकती है और बदलते सामाजिक संदर्भों के अनुरूप होनी चाहिए।
संक्षेप में, अमित शाह का बयान भारतीय समाज में धार्मिक कानूनों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लैंगिक समानता और एक समान नागरिक संहिता के बीच जटिल बहस को दर्शाता है।