30/09/2024
"महतो जी के दलान"
आज बात करते हैं महतो जी के दलान पर आखिर ये शब्द बिहार के हर जाति-धर्म के लोगों के मुंह से सुनने को क्यों मिल जाता हैं।
अगर कोई व्यक्ति बिना आज के समय बिना पूछे किसी स्थान पर बैठ जाए तो लोग मजाकिया अंदाज में बोल बोल देता है की रे महतो जी के दलान समझ ले ले ह जे बिना कुछ सोचे समझे आकर बैठ-सो गेले ह ।
ये शब्द का प्रचार मुख्यतः सामंती वर्ग (स्वघोषित राजा) के लोगों द्वारा किया जाता था चुकीं महतो उपनाम बिहार (संयुक्त झारखण्ड )में मुख्यतः कुशवाहा समुदाय के लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
गाँव में लगभग हर एक कुशवाहा के पास एक घर होता था और घर से 500 मीटर के दूरी पर एक डेरा (दलान) हुआ करता था आप चाहो तो इस बात का सत्यापन के लिए अपने आस-पास के अग्रज के समक्ष बातों को रखकर कर सकते हों।
महतो जी दलान पर मुख्यतः सभी समाज के लोग शाम और सुबह आकर बैठ कर चर्चा करते थे छोटी- मोटी मसलों को पंचायत के द्वारा हल करते थे और यहां भाईचारा और न्याय जाति/धर्म के भेद-भाव से उपर उठकर हुआ करता था।
अगर कोई राहगीर को सफ़र करते-करते शाम हो गया तो वो तो रात्री विश्राम के लिए महतो जी के दलान पर ही जाना ज्यादा उपयुक्त मानते थे क्योंकि महतो दलान पर खुद को सुरक्षित और संरक्षित महसूस करते थे और सबसे बड़ा बात की महतो जी के दरवाजे पर कोई भूखा नहीं रहता था चाहे शाही भोज के जगह नमक रोटी ही क्यों न मिले खाने को,कुलमिलाकर राहगीरों के लिए सबसे उपयुक्त जगह महतो जी के दलान हुआ करता था।
ठीक इसके विपरीत सामंती वर्ग के यहां हुआ करता था अगर कोई छोटी जाति के व्यक्ति बिना सामंती वर्ग से पूछे बैठ गए उनके दरवाजे पर तो उन्हें कठोर दंड दिया जाता था अगर कोई बैठने या सोने का इजाजत दे भी दिया तो महतो जी दलान वाला समानता नहीं मिल पाता था बल्कि अछूत के भांति व्यवहार किया जाता था इसी क्रम में कोई व्यक्ति बिना पूछे सामंती वर्ग के दरवाजे पर खटिया पर बैठ गया तो फिर उससे दण्डित करने एक साथ-साथ बोला जाता था
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" का रे महतो जी के दलान समझे ले ले ह जे जैसे मन वैसे बैठ वे "
वास्तव में महतो जी के दलान आपसी भाई चारा और समानता का प्रतीक हुआ करता था ।
CC:-thekushwahaman