Rakesh Dubey

Rakesh Dubey जिंदगी जिंदादिली का नाम है मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं....

04/07/2025

🌧️ खेती और किस्मत का खेल – खुला आसमान, खुला भविष्य… 🌾

लगातार बारिश का मौसम बना हुआ है। इस वर्ष अच्छी तरह फसल बोने का भी मौका कई किसानों को नहीं मिल पाया। कुछ किसानों ने मक्के की सूखी जमीन में जल्दी बुवाई कर दी — और उनकी फसल शानदार अंकुरण के साथ खेत में जम भी गई। पर कई किसान यह सोचकर बैठे रहे कि बारिश के बाद खेतों को खरपतवार मुक्त करके व्यवस्थित बुवाई करेंगे। लेकिन बारिश की लगातार बौछारों ने अभी तक उन्हें मौका ही नहीं दिया। जो कर भी रहे हैं, वे भी रिस्क लेकर जैसे-तैसे बोवाई कर रहे हैं।

खेती हमेशा से ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। पहले दिन की बुवाई से लेकर फसल के कटकर घर आने तक सब कुछ खुले आसमान के भरोसे होता है। कई बार मेहनत का फल मौसम, किस्मत और समय पर निर्भर रह जाता है। सबसे सभी संवेदनशील विषय होता है इसमें कई पक्ष असर डालते हैं — जैसे मिट्टी की नमी, तापमान, खरपतवार, कीट-पतंगे, पशुओं का नुकसान, समय पर सिंचाई, और सबसे अहम — किसानों का धैर्य।

🌱 लोककथाओं में भी कहा गया है:
👉 “अंधर-धुंधर जो करे किसानी, जाकी बने बाय सयानी।

🌾 और घाघ की सीख:
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फिलहाल बारिश के रुकने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही, और मौसम विभाग भी अगले 8-10 दिन भारी वर्षा का अनुमान बता रहा है। आगे सब प्रभु की इच्छा पर निर्भर है —
कृषि हमेशा से आसमान और मेहनत का खेल रही है।
किसान भाइयों को शुभकामनाएँ कि मेहनत रंग लाए और मौसम मेहरबान रहे! 🙏

#किसान #खेती #बारिश #घाघ #कृषि_चुनौती #कृषि_जागरूकता

जमीन से उठे जुगाड़ और बड़ी कंपनियों के ‘आविष्कार’: किसका हक़?आज के समय में भारत के हर गांव, हर खेत में किसान और मजदूर अप...
30/06/2025

जमीन से उठे जुगाड़ और बड़ी कंपनियों के ‘आविष्कार’: किसका हक़?

आज के समय में भारत के हर गांव, हर खेत में किसान और मजदूर अपनी रोजमर्रा की समस्याओं का हल निकालने के लिए नए-नए तरीके सोचते रहते हैं। यही तकनीकी सोच ही असली ‘ग्रासरूट इनोवेशन’ है, जिसे हमारे किसान भाई अक्सर बहुत मामूली संसाधनों के साथ, घर के पिछवाड़े, बगीचे या खेत की मेड़ पर खड़े होकर विकसित करते हैं।

लेकिन दुखद बात यह है कि यही छोटे-छोटे जुगाड़, जो किसानों ने अपनी जरूरत के हिसाब से तैयार किए, बड़े वैज्ञानिक, शोध संस्थान या कंपनियां जब इन्हें देखकर इनका उन्नत रूप तैयार करती हैं, तो उन्हें अपने नाम से पेटेंट करा लेती हैं। इसके बाद वही तकनीक उस किसान या मजदूर की पहचान से कटकर बाजार में कंपनी का अविष्कार बनकर बिकने लगती है।

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जुगाड़: ज़रूरत की कोख से जन्मा नवाचार

गांव के किसान या मजदूर जुगाड़ क्यों बनाते हैं? क्योंकि उनके पास न महंगे उपकरण खरीदने के पैसे होते हैं और न ही उनके गांव में वह तकनीक तुरंत पहुंच पाती है। जैसे-जैसे खेती में चुनौतियां बढ़ती जाती हैं – मिट्टी की सख्ती, खरपतवार, जुताई के तरीके – किसान अपनी सुविधा के हिसाब से औजारों में फेरबदल करते हैं। यही फेरबदल ‘जुगाड़’ बन जाता है।

बहुत से मामलों में यही जुगाड़ इतनी उपयोगी चीज बन जाती है कि गांव के बाकी किसान भी उसे अपनाने लगते हैं और वह प्रचलन में आ जाती है।
कांटेदार रोलर से रोटावेटर तक का सफर: एक मिसाल

सामने जिस कांटेदार रोलर का उदाहरण है, वह बेहतरीन मिसाल है – पुराने समय में किसान भाई बैलों के साथ जुते हुए एक बड़े ड्रम में कांटे लगाकर मिट्टी के ढेलों को तोड़ने के लिए खेत में घुमाते थे। धीरे-धीरे यह विचार इतना लोकप्रिय हुआ कि कंपनियों ने उसी कांटेदार रोलर के सिद्धांत को अपनाकर मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए ‘रोटावेटर’ विकसित किया।

रोटावेटर बनाने वाली कंपनियों ने इस उपकरण के अलग-अलग आकार, वजन और रोटरी ब्लेड की गहराई तय कर इसे कमर्शियल स्तर पर लॉन्च कर दिया। आज रोटावेटर लाखों की संख्या में बिक रहा है और किसान इसे महंगे दाम पर खरीद रहे हैं – जबकि इसके शुरुआती विचारक उस किसान को शायद कोई जानता भी नहीं जिसने पहली बार कांटेदार रोलर बनाया था।
कितने और उदाहरण?

– गन्ना छीलने की मशीन: पहले गांवों में लकड़ी के बने औजार से हाथ से गन्ना छीला जाता था। कुछ किसानों ने इसमें रोलर और हैंडल जोड़ दिए। आज वही विचार मशीनों में बदल गया है जो बिजली से चलती हैं और कंपनियां उन्हें पेटेंट कर करोड़ों में बेच रही हैं।
- फसल काटने का जुगाड़: हंसिया में बदलाव कर किसानों ने उसे मल्टीपर्पज बनाया, जिसमें एक तरफ घास काटने के लिए चेन जुड़ी थी। आज कई कंपनियां उसी पर आधारित ‘मिनी हार्वेस्टर’ बेच रही हैं।
बीज बोने का तरीका: गांवों में पुरानी बोवाई पद्धतियों में किसान ने डंडे में डिब्बा बांधकर बीज गिराने का तरीका खोजा, जो बाद में ‘सीड ड्रिल मशीन’ का आधार बन गया।
क्यों होता है किसानों के हक़ का अतिक्रमण?

आज भी इनोवेशन के आईडिया किसानों के खलिहानों में पिछले कई सालों से डाले सड़,गल रहे हैं जो आज की उन्नत मशीनों का जन्मदाता है
क्या कारण है कि योग अनुसंधान करता को उसकी मेहनत या उसकी सोच का फायदा नहीं मिल पाता जैसे -
1️⃣ किसान के पास पेटेंट कराने की जानकारी या संसाधन नहीं होते।
2️⃣ कंपनियों या वैज्ञानिक संस्थानों के लोग ग्रामीण इलाकों में सर्वे के नाम पर जुगाड़ देखते हैं और फिर उन्हें अपने प्रोजेक्ट में जोड़ लेते हैं।
3️⃣ गांव में रहने वाले लोगों की तकनीकी खोज को अक्सर ‘अशिक्षित’ मानकर गंभीरता से नहीं लिया जाता, जबकि असल में वही खोज बाद में नई मशीन का आधार बनती है।
4️⃣ पेटेंट प्रक्रिया लंबी और महंगी है, जिससे किसान या मजदूर पीछे रह जाता है।
क्या समाधान हो सकता है?
✅ सरकार को चाहिए कि पंचायत स्तर से ही किसानों-मजदूरों के बनाए इन नवाचारों का दस्तावेजीकरण करे और उन्हें पेटेंट करवाने में मदद दे।
✅ कृषि विश्वविद्यालयों को किसानों से जुड़ी खोजों पर रिसर्च करने के बदले, उनकी खोज का श्रेय भी उन्हीं को दें।
✅ कंपनियों के लिए नियम बनें कि किसी गांव के जुगाड़ से प्रेरित प्रोडक्ट का फायदा बांटने के लिए इनोवेटर किसान को रॉयल्टी देनी होगी।
✅ किसानों को उनके बनाए उपकरणों के लिए ब्रांडिंग, मार्केटिंग और पेटेंट के बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
किसानों और मजदूरों की छोटी-छोटी तकनीकी खोजें देश की असली ताकत हैं। जो किसान मिट्टी में पैर गाड़कर अपने प्रयोगों से खेती को आसान बनाते हैं, असली वैज्ञानिक वही हैं। जब तक उनके ज्ञान और अधिकार का सम्मान नहीं होगा, तब तक गांवों से निकलने वाला असली ‘मेड इन इंडिया’ भी अधूरा ही रहेगा।
आज हम रोटावेटर, थ्रेशर, हार्वेस्टर जैसी मशीनों को वैज्ञानिक आविष्कार मानते हैं, लेकिन इनके पीछे असली सोच हमारे गांव के किसानों की रही है। इन्हें सही हक और पहचान दिलाना हम सबकी जिम्मेदारी है।

Grassroots Innovations and Big Companies’ “Inventions”: Whose Right Is It?

In today’s times, in every village and every field across India, farmers and laborers constantly come up with new ways to solve their everyday problems. This innovative thinking is the real “grassroots innovation,” which our farmer brothers often develop standing in their backyard, orchard, or on the edge of their fields, using minimal resources.

But the sad reality is that these small ‘jugaads’ (clever hacks) created by farmers out of necessity are later picked up by big scientists, research institutes, or companies. They refine these ideas into advanced products, patent them under their own names, and bring them to the market as their own inventions. As a result, the technology gets disconnected from the identity of the farmer or laborer who originally conceived it and becomes a company-owned invention sold in the market.

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Jugaad: Innovation Born from Necessity

Why do farmers and laborers in villages make these jugaads? Because they neither have the money to buy expensive equipment nor is such technology readily available in their villages. As challenges in farming increase—like hardened soil, w**ds, new plowing needs—farmers modify their tools to suit their convenience. These modifications become ‘jugaads.’

In many cases, these jugaads become so useful that other farmers in the village start adopting them, and they become common practice.

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From Spiked Rollers to Rotavators: A Case in Point

The spiked roller example you mentioned is a perfect illustration—earlier, farmers used to attach a large drum with spikes behind bullocks to break soil clods in the field. Over time, this idea became so popular that companies adopted the principle of this spiked roller and developed the “rotavator” to loosen and crumble the soil.

Companies manufacturing rotavators standardized different sizes, weights, and rotary blade depths, and launched them commercially. Today, rotavators are sold in the millions, and farmers buy them at high prices—while the original innovator, the farmer who first created the spiked roller, is unknown and uncredited.

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How Many More Examples?

– Sugarcane Peeling Machine: Earlier, sugarcane was peeled by hand using wooden tools. Some farmers added rollers and handles to make it easier. Today, the same concept has turned into electric machines patented and sold by companies for huge profits.

– Crop Cutting Jugaad: Farmers modified sickles by adding a chain on one side for cutting grass as well. Today, many companies sell “mini harvesters” based on the same idea.

– Seed Sowing Technique: In traditional sowing methods, a farmer attached a small box to a stick to drop seeds at intervals, which later became the basis for modern seed drill machines.

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Why Are Farmers’ Rights Overrun?

1️⃣ Farmers lack knowledge or resources to apply for patents.
2️⃣ People from companies or scientific institutes survey rural areas, observe these jugaads, and integrate them into their own projects.
3️⃣ The technical innovations of people living in villages are often dismissed as ‘uneducated’ ideas, even though these very ideas later become the foundation of new machines.
4️⃣ The patenting process is lengthy and expensive, causing farmers or laborers to fall behind.

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What Could Be the Solutions?

✅ The government should start documenting these grassroots innovations at the panchayat level itself and help farmers and laborers get them patented.
✅ Agricultural universities should not only research farmers’ ideas but also ensure that credit is given to the original innovators.
✅ There should be rules requiring companies to share profits with the innovative farmers if their products are inspired by village jugaads.
✅ Farmers should receive training in branding, marketing, and the patenting process for their inventions.

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Farmers’ and laborers’ small technical innovations are the real strength of our country. The farmers who plant their feet firmly in the soil and conduct experiments to make farming easier are the real scientists. Until their knowledge and rights are respected, the true “Made in India” emerging from our villages will remain incomplete.

Today, we see rotavators, threshers, harvesters as scientific inventions, but the original thinking behind them came from our village farmers. It is our collective responsibility to give them the recognition and rights they deserve.

22/06/2025

@🌧️ बारिश की शुरुआत और नई उम्मीदें... अब खेती हो उन्नत तरीके से! 🌱अब वक्त है परंपरागत समतल खेतों से आगे बढ़कर बेड पर बीज बुवाई की ओर बढ़ने का — जहां हर बीज से बेहतर अंकुरण और हर पौधे से अधिक उत्पादन संभव है।👉 बेड (Raised Bed) तकनीक से खेती करने के प्रमुख फायदे:✅ बेहतर अंकुरण – पानी की निकासी बेहतर होने से बीज सड़ता नहीं और समान रूप से अंकुरित होता है।✅ बीज की कम मात्रा में अधिक परिणाम – एकसमान दूरी और गहराई से बुवाई होने के कारण बीज की बर्बादी नहीं होती।✅ खरपतवार पर नियंत्रण – समुचित लाइन में फसल उगने से निराई-गुड़ाई आसान होती है और खरपतवार कम पनपते हैं।✅ फूल ज्यादा, फल ज्यादा – पौधों को पर्याप्त धूप, हवा और जगह मिलने से हर फूल के फली में बदलने की संभावना अधिक होती है।✅ अत्यधिक बारिश में भी सुरक्षा – बेड की ऊँचाई के कारण अतिरिक्त वर्षा जल की निकासी स्वतः हो जाती है, जिससे फसल जलभराव से सुरक्षित रहती है।✅ नाइट्रोजन स्थिरीकरण बेहतर – विशेषकर अरहर और सोयाबीन जैसी दलहनी फसलों में जड़ों पर गाँठ बनने की प्रक्रिया तेज होती है जिससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है।✅ कम खाद, कम लागत – पोषक तत्व पौधों तक सीधे पहुंचते हैं, जिससे कम लागत में बेहतर उत्पादन संभव होता है।✅ कटाई में सुविधा – हार्वेस्टिंग के समय लाइन से फसल निकालना आसान होता है, समय और मेहनत दोनों बचते हैं।✅ फसल अवशेष प्रबंधन आसान – बेड की सतह पर फसल अवशेष साफ दिखते हैं और नमी कम होने से जल्दी सड़कर खाद में बदलते हैं।✅ अगली फसल की तैयारी सरल – खेत समतल बना रहता है, जिससे अगली बुवाई जल्दी और सटीक तरीके से हो पाती है।🌾 फसलें जिनके लिए बेड तकनीक विशेष उपयोगी है:सोयाबीन 🌱 | अरहर 🌿 | मक्का 🌽 | ज्वार 🌾📌 ध्यान रहे:👉 पारंपरिक समतल खेतों में जहाँ बीज, पानी और मेहनत तीनों अधिक लगते हैं — वहीं बेड पर की गई बुवाई में उत्पादन ज्यादा, लागत कम होती है।👉 अधिक वर्षा में जलनिकासी और पौधों को अधिक धूप मिलने से फसल का स्वास्थ्य बेहतर होता है — यही है बेड तकनीक की असली ताकत।🚜 अब समय है स्नने का —बदलाव की शुरुआत अपने खेत से कीजिए! #उन्नत_खेती #बेड_पर_बुवाई #जलनिकासी_सुरक्षित_फसल ूल_बने_फल #सोयाबीन2025 #अरहर #मक्का #ज्वार #कुशल_मंगल_ऑर्गेनिक_फार्म्स 🌿

🌧️ The onset of rains brings new hopes… Time to upgrade your farming techniques! 🌱
Now is the time to move beyond traditional flat fields and adopt Raised Bed Sowing — where every seed gets a better chance to sprout and every plant delivers higher yields.

👉 Major benefits of farming with Raised Bed technique:

✅ Improved germination – Proper drainage prevents seed rotting and ensures uniform sprouting.
✅ Higher yield with fewer seeds – Sowing at uniform spacing and depth reduces seed wastage.
✅ W**d control – Straight-line planting makes w**ding easier and reduces w**d growth.
✅ More flowers, more fruits – Adequate sunlight, air, and space help convert more flowers into fruits.
✅ Protection during heavy rainfall – Elevated beds naturally drain excess water, preventing waterlogging damage.
✅ Better nitrogen fixation – Especially in legumes like pigeon pea and soybean, root nodules form faster, improving soil fertility.
✅ Lower fertilizer use, reduced cost – Nutrients directly reach the plant roots, resulting in better output at a lower input cost.
✅ Ease in harvesting – Line planting makes harvesting faster and less labor-intensive.
✅ Better crop residue management – Residues are clearly visible and decompose faster due to better aeration.
✅ Quick preparation for next crop – Fields remain leveled, allowing timely and precise sowing of the next crop.

🌾 Crops that benefit most from raised bed farming:
Soybean 🌱 | Pigeon Pea 🌿 | Maize 🌽 | Sorghum 🌾

📌 Keep in mind:
👉 Traditional flat-bed farming often requires more seeds, water, and labor — whereas bed sowing yields more with lower input.
👉 During heavy rains, effective drainage and better sunlight exposure improve crop health — and that’s the real strength of Raised Bed Technique.

🚜 It’s time to be a smart farmer —
Start the transformation right from your field!



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21/06/2025
🌿 अपनी ऊर्जा और प्रेरणा को संभालिए — यही आपकी सबसे बड़ी पूंजी है 🌿हम हर दिन कई लोगों से जुड़ते हैं।कुछ ऐसे होते हैं जो ह...
21/06/2025

🌿 अपनी ऊर्जा और प्रेरणा को संभालिए — यही आपकी सबसे बड़ी पूंजी है 🌿

हम हर दिन कई लोगों से जुड़ते हैं।
कुछ ऐसे होते हैं जो हमारे जीवन के प्रवाह में सहजता से शामिल हो जाते हैं,
और कुछ ऐसे भी जो हर क्षण हमें जाँचने, तौलने और परखने में लगे रहते हैं।

ये वे लोग हैं जो
आपके हँसने में छल,
आपकी चुप्पी में स्वार्थ,
और आपके प्रयासों में प्रतिस्पर्धा ढूँढ़ते हैं।

👉 ऐसे संबंधों में उलझना जरूरी नहीं — उनसे दूरी बनाना ही सच्चा समाधान है।

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🌸 मन एक बगिया है, जहाँ हर रिश्ता एक पौधे की तरह होता है।

कोई आपको सुकून की छाँव देता है,

कोई आपके जीवन में मिठास भरता है,

और कुछ सिर्फ नोकधार काँटे होते हैं।

अब यह आपकी समझदारी है —
किसे सिंचित करें, किसे उपेक्षित।

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🤲 सबको खुश करने की चाह एक धोखा है

हर किसी से मान्यता पाने की होड़
अक्सर आत्म-सम्मान को खोखला कर देती है।

👉 जिस दिन आप खुद से सच्चा रिश्ता बना लेते हैं,
उस दिन बाहर वालों की अपेक्षाएँ अपना प्रभाव खोने लगती हैं।

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🧘‍♀️ आपका असली मूल्य कहां छिपा है?

वह किसी की वाहवाही में नहीं,
बल्कि इस बात में है कि

आप किसे सुनते हैं,

किसके साथ अपने आप को सहज महसूस करते हैं,

और किस रिश्ते में समय और ऊर्जा लगाना चाहते हैं।

आपकी मौन स्वीकृति ही आपकी आत्मा की भाषा है।

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🔍 खुद से पूछिए — क्या यह संगत मुझे आगे बढ़ा रही है?

अगर कोई बार-बार आपको छोटा करके खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश करता है,
तो हो सकता है आपकी थकावट उस व्यक्ति से नहीं,
उसकी अंदरूनी होड़ से हो रही हो।

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🙏 याद रखिए:

आपका जीवन कोई प्रदर्शनी नहीं है जहाँ सब निरीक्षण करने आएं।

यह एक आंतरिक मंदिर है —
जहाँ केवल शांति, सम्मान, और सत्यता को स्थान मिलना चाहिए।

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📌 अब समय है सीमाएँ तय करने का

✅ अपनी भावनाओं की सुरक्षा के लिए दायरे खींचिए
✅ जब ज़रूरत हो तो मौन ही सबसे बेहतर उत्तर है
✅ जहाँ शांति भंग हो — वहाँ स्पष्ट दूरी बनाएँ

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क्योंकि अंत में —

> आपके मन का चैन, आत्मा की स्पष्टता, और ऊर्जा की पवित्रता —
इन्हें किसके स्पर्श में लाना है, यह सिर्फ आपका निर्णय होना चाहिए। 🌼

शंभू🙏😃

19/06/2025

🌱 बीज है भविष्य की नींव 🌱 #कुशल_मंगल_जैविक_कृषि_फार्म से एक जरूरी बात...खेती में वर्षों के अनुभव ने एक बात तो साफ कर दी है —"उन्नत और सही बीज ही खेती की सफलता की पहली शर्त है।"हर साल जैसे ही बारिश की आहट सुनाई देती है, हमारा ध्यान दो बातों पर केंद्रित होता है —पुरातन बीजों की परख और नए बीजों का परीक्षण।इसी प्रक्रिया में JS-2303 नामक एक उन्नत बीज को हमने कुशल मंगल जैविक कृषि फार्म पर तैयार किया।👉 इस बीज को जब हमने संग्रहित किया था, तब इसकी कीमत आज के मूल्य से तीन गुना अधिक थी।👉 आज यह बीज हमारे फार्म पर किसानों के लिए उपलब्ध है, सीमित मात्रा में।👉बीज भविष्य है — यह सच है, मगर अधिकांश किसान अभी इससे अनजान हैं।🌾 बीज और अनाज में फर्क समझिए 🌾बीज को केवल बाजार में बिकने वाले अनाज की तरह मत देखिए।बीज "भविष्य" है, अनाज "वर्तमान"।बीज वह है जो एक खेत को सौ खेतों में बदलने की ताकत रखता है।🙏 कृपया बीज का मूल्य केवल पैसों में नहीं, उसकी संभावना और शक्ति में आंकें। #बीज_का_सम्मान_करें #उन्नत_कृषि_का_आधार #कुशल_मंगल_बीज #जैविक_क्रांति

"रोज़गार नहीं, भत्ता चाहिए!"(व्यंग्य — गांव की नई सोच)🌾 खेत में अब न हल की आवाज़ है,न पसीने की महक।पगडंडी तक तरस रही है ...
10/06/2025

"रोज़गार नहीं, भत्ता चाहिए!"
(व्यंग्य — गांव की नई सोच)
🌾 खेत में अब न हल की आवाज़ है,
न पसीने की महक।
पगडंडी तक तरस रही है उन पैरों के लिए
जो कभी सूरज से पहले निकल पड़ते थे।
📱 अब पुलिया पर मोबाइल है,
धुएं की लहरों में बीड़ी और चिलम है,
और ताश के पत्तों में भविष्य की गिनती।
"काम? वो तो सरकार कर रही है ना!"
🏛 सरकार कहती है —
"मदद देंगे घर बैठे",
पर असल में
💔 हाथों को खाली रखने का लाइसेंस दे रही है।
🧑‍🌾 "खेत में किसान अकेला...
और अगला कहता है –
'हम कोई बेवकूफ़ हैं क्या?
जो धूप में जले जब सरकार छांव में पैसा दे रही है!'"
📉 यह मदद नहीं, कर्मशीलत का मोहभंग है,
यह सहायता नहीं, आत्मनिर्भरता की मौत है।
👷‍♂️ मदद चाहिए? हां चाहिए!
पर हाथ में हल भी हो —
और हक भी।
🚜 देश घर बैठकर नहीं,
खेत-खलिहानों में मेहनत से बनेगा।
#व्यंग्य #गांवकीहकीकत #रोजगार_बनाम_भत्ता #खेती_बचाओ #ग्रामीण_भारत #काम_मांगे_भारत

✍️ जमीनी व्यंगकार

Address

Kartaj
Narsinghpur
487110

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