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व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशीSunday, 11 May 2025नृसिंह जयंतीनियम का केसर से रंगे मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर केसर से र...
11/05/2025

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी
Sunday, 11 May 2025

नृसिंह जयंती

नियम का केसर से रंगे मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर केसर से रंगी मलमल की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.
आज प्रभु को आभरण में विशेष रूप से बघनखा धराया जाता है. इसके अतिरिक्त प्रभु के श्रीहस्त में सिंहमुखी कड़े और एक छड़ीजी (वेत्रजी) भी सिंहमुखी धराये जाते हैं (चित्र में दृश्य नहीं परन्तु धराये जाते हैं).

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगाये जाते हैं. आज भोग के फीका के स्थान पर बीज चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्याआरती के ठोड़ के स्थान पर सतुवा के बड़े गोद के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को केसर से रंगे मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन श्रृंगार धराया जाता है.
मोती की प्रधानता के हीरा मोती के मिलवा आभरण धराये जाते हैं. आभरण में नीचे पदक व ऊपर हीरा, मोती के माला एवं हार आते हैं.
आज हांस, पायल व चोटीजी नहीं धराये जाते.
श्रीमस्तक पर केसर से रंगी मलमल की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक मोती व एक नृसिंहजी के) धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी सोने की कूदते बाघ-बकरी की व आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

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श्री नृसिंह भगवान का जन्म सूर्यास्त पश्चात एवं रात्रि से पूर्व हुआ था अतः इस भाव से संध्या-आरती दर्शन पश्चात नृसिंह भगवान के जन्म के दर्शन होते हैं और जन्म के दर्शन में प्रभु के सम्मुख शालिग्रामजी को झांझ, घंटा, झालर और शंख की मधुर ध्वनियों के मध्य पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और बूरा) स्नान कराया जाता है. स्नान के पश्चात शालिग्रामजी को तिलक कर तुलसी समर्पित की जाती है व पुष्प-माला धरायी जाती है.

प्रभु को जन्म के उपरांत जयंती फलाहार के रूप में दूधघर में सिद्ध खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) का भोग अरोगाया जाता है.

🌼आज के दिन श्रीजी मथुरा सतघरा से गोपालपुर (जतीपुरा) श्री गिरिराजजी के ऊपर पधारे थे.
वहां पधारकर शयन समय राजभोग भी संग अरोगें इस भाव से आज प्रभु को शयनभोग में आधे राजभोग जितनी सखड़ी की सामग्रियां अरोगायी जाती है.

श्री नृसिंह भगवान उग्र अवतार हैं और उनके क्रोध का शमन करने के भाव से शयन की सखड़ी में आज विशेष रूप से शीतल सामग्रियां - खरबूजा का पना, आम का बिलसारू, घोला हुआ सतुवा, शीतल, दही-भात, श्रीखण्ड-भात आदि अरोगाये जाते हैं.

सभी वैष्णवजन को नृसिंह जयंती की बधाई
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व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया Wednesday, 30 April 2025अक्षय-तृतीया से प्रभु सुखार्थ होने वाले परिवर्तनआज से पुष्टिमार्ग में ...
07/05/2025

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया
Wednesday, 30 April 2025

अक्षय-तृतीया से प्रभु सुखार्थ होने वाले परिवर्तन

आज से पुष्टिमार्ग में भी चन्दन यात्रा का आरम्भ होता है. आज से उष्णकाल एक सोपान और बढ़ जाता है अतः आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है.

यद्यपि आज से प्रभु को प्रतिदिन चंदन धराया जाता है परन्तु अक्षय-तृतीया के चन्दन की एक विशेषता है कि आज धराये चंदन में मलयगिरी पर्वत की प्राचीन चन्दन की लकड़ी का चन्दन भी मिश्रित होता है और इसमें केशर की मात्रा विशेष होती है.

आज से श्रीजी के सेवाक्रम में कई परिवर्तन होते हैं. टेरा, चंदुआ आदि बदल कर श्वेत आते हैं. सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वैत्रजी आदि सभी चांदी के साजे जाते हैं.

आज से ठाकुरजी की सेवा में (विशेष रूप से मन्दसौर से पधारे) श्वेत माटी के करवा, कुंजा, चन्दन बरनी नित्य में आते हैं.

पिछोड़ा, आड़बंद, परधनी, धोती-उपरना और मल्लकाछ आदि ऊष्णकालीन वस्त्र ही धराये जाते हैं.
रंगों में भी प्रभु को श्वेत, अरगजाई, गुलाबी, चंपाई, चंदनिया आदि हल्के शीतल रंगों के वस्त्र ही धराये जायेंगे.
ज्येष्ठाभिषेक (स्नानयात्रा) के पश्चात गहरे रंग पुनः धराये जा सकते हैं.

आज से मोती, छीप, चंदन व पुष्प आदि के श्रृंगार धराये जा सकते हैं.

भीतर के द्वारों पर खस के परदा बांधे जाते हैं जिन पर प्रभु सुखार्थ जल का छिडकाव किया जाता है.
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व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया Wednesday, 30 April 2025अक्षय-तृतीया से प्रभु सुखार्थ होने वाले परिवर्तनपुष्टिमार्ग वास्तव में...
30/04/2025

व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया
Wednesday, 30 April 2025

अक्षय-तृतीया से प्रभु सुखार्थ होने वाले परिवर्तन

पुष्टिमार्ग वास्तव में विलक्षण रीति नियमों का मार्ग है. ऋतुओं के परिवर्तन के समय प्रभु के सुख का पूरा ख्याल रखा जाता है.
उदाहरणार्थ बसंतपंचमी से शीत विदा होना आरंभ होती है तो विविध उत्सवों जैसे पाटोत्सव, डोलोत्सव, चैत्री नववर्ष, रामनवमी और श्री महाप्रभुजी के उत्सव तक हर रीतियों में क्रमानुसार परिवर्तन होकर धीरे-धीरे शीत विदा होती है और इसी के मध्य श्ने श्ने डोलोत्सव से ऊष्णकाल क्रमानुसार आरम्भ हो जाता है.
ऊष्णकाल में उत्तरोत्तर वृद्धि होने के साथ ही प्रभु के सुख में भी उसी क्रम में वृद्धि होती रहती है जिससे श्री ठाकुरजी को ऊष्ण का अनुभव न हो.
प्रभु सुखार्थ इतनी सूक्ष्मता से सेवाक्रम का निर्धारण निस्संदेह अद्भुत है.

आज से पुष्टिमार्ग में भी चन्दन यात्रा का आरम्भ होता है. आज से उष्णकाल एक सोपान और बढ़ जाता है अतः आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है.

यद्यपि आज से प्रभु को प्रतिदिन चंदन धराया जाता है परन्तु अक्षय-तृतीया के चन्दन की एक विशेषता है कि आज धराये चंदन में मलयगिरी पर्वत की प्राचीन चन्दन की लकड़ी का चन्दन भी मिश्रित होता है और इसमें केशर की मात्रा विशेष होती है.

प्रभु को चंदन धराने का भाव यह है कि प्रभु-भक्त अपनी विरहभावना (विरहाग्नि) निवेदन करते हैं एवं चंदन आदि शीतल सामग्रियां अंगीकार करा प्रभु के दर्शन कर अपने हृदय में शीतलता अनुभव करते हैं.

आज से श्रीजी के सेवाक्रम में कई परिवर्तन होते हैं. टेरा, चंदुआ आदि बदल कर श्वेत आते हैं. सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वैत्रजी आदि सभी चांदी के साजे जाते हैं.

आज से ठाकुरजी की सेवा में (विशेष रूप से मन्दसौर से पधारे) श्वेत माटी के करवा, कुंजा, चन्दन बरनी नित्य में आते हैं.

पिछोड़ा, आड़बंद, परधनी, धोती-उपरना और मल्लकाछ आदि ऊष्णकालीन वस्त्र ही धराये जाते हैं.
रंगों में भी प्रभु को श्वेत, अरगजाई, गुलाबी, चंपाई, चंदनिया आदि हल्के शीतल रंगों के वस्त्र ही धराये जायेंगे.
ज्येष्ठाभिषेक (स्नानयात्रा) के पश्चात गहरे रंग पुनः धराये जा सकते हैं.

आज से मोती, छीप, चंदन व पुष्प आदि के श्रृंगार धराये जा सकते हैं.

भीतर के द्वारों पर खस के परदा बांधे जाते हैं जिन पर प्रभु सुखार्थ जल का छिडकाव किया जाता है.
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व्रज - वैशाख कृष्ण तृतीया Wednesday, 16 April 2025पचरंगी लहरियाँ का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक प...
17/04/2025

व्रज - वैशाख कृष्ण तृतीया
Wednesday, 16 April 2025

पचरंगी लहरियाँ का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा पर फेटा का साज के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : नट)

नातर लीला होती जूनी।
जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।
दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।
सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।

साज – श्रीजी में आज पचरंगी लहरियाँ की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया के तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं खुलेबन्द के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (छेड़ान का कमर तक) श्रृंगार धराया है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेंटा पर कतरा अथवा चंद्रिका धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी एवं कमल माला धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी बाघ बकरी की आती है.
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व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी Sunday, 06 April 2025नौमी चैत की उजियारी ।दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी ll 1 llराम ...
06/04/2025

व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी
Sunday, 06 April 2025

नौमी चैत की उजियारी ।
दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी ll 1 ll
राम लच्छमन भरत सत्रुहन भूतल प्रगटे चारी l
ललित विलास कमल दल लोचन मोचन दुःख सुख कारी ll 2 ll
मन्मथ मथन अमित छबि जलरुह नील बसन तन सारी l
पीत बसन दामिनी द्युति बिलसत दसन लसत सित भारी ll 3 ll
कठुला कंठ रत्न मनि बघना धनु भृकुटी गति न्यारी l
घुटुरुन चलत हरत मन सबको ‘तुलसीदास’ बलिहारी ll 4 ll

रामनवमी

🌸 आज श्रीजी में जन्माष्टमी के दिन धरायी जाने वाली लाल पिछवाई साजी जाती है. इसके अतिरिक्त आज प्रभु को नियम के केसरी जामदानी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

🌼 गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी भी अरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज अयोध्या प्रगटे राम।
दशरथ वंश उदय कुल दीपक शिव विरंची मुनि भयो विश्राम।।१।।
घर घर तोरन वंदनमाला मोतिन चौक पुरे निज धाम।
परमानंददास तिहि अवसर, बंदीजन के पूरत काम।।२।।

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - आज श्रीजी को केसरी जामदानी के चोली तथा खुलेबंद के (तनी बाँध के धराये जाते हैं) चाकदार वागा धराये जाते हैं. सूथन लाल छापा का धराया जाता हैं.सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता सहित एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी जामदानी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर हीरा एवं माणक के शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में उत्सव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है.
बाजु, पोची, पान हीरा माणक के धराये जाते हैं.
नीचे पदक ऊपर हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती है.
आज मोती का कमल धराया जाता हैं.
(आगे का सेवाक्रम आज की दूसरी पोस्ट में )

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व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठीThursday, 03 April 2025यदुनाथजी का उत्सव चतुर्थ (काजली, श्याम अथवा केसरी) गणगौर,आज काजली (श्याम)...
03/04/2025

व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठी
Thursday, 03 April 2025

यदुनाथजी का उत्सव चतुर्थ (काजली, श्याम अथवा केसरी) गणगौर,

आज काजली (श्याम) गणगौर है और श्री यमुनाजी के भाव की है अतः इसे घर की गणगौर भी कहा जाता है.

पारंपरिक रूप से इस दिन महिलाएं श्याम चौफूली चूंदड़ी के वस्त्र धारण करती आयी हैं.

परन्तु वर्ष 1950 में जब वर्तमान तिलकायत श्री राकेशजी महाराज का जन्म हुआ तो उनके जन्म के लगभग एक माह उपरान्त ही गणगौर का त्यौहार था.
तब उनकी मातृचरण अ. सौं. नित्यलीलास्थ विजयलक्ष्मी बहूजी के कथनानुसार श्याम के स्थान पर केसरी पहना जाने लगा.
और तब से नाथद्वारा में केसरी गणगौर की परंपरा आरंभ हुई.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवा युक्त बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की उत्सव की मलमल की, रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर कमल का काम किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे पर माणक का पान, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल और उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना को) धराये जाते हैं.
पट पिला गोटी स्याम मीना की व आरसी श्रृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है.
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संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. कुल्हे रहे लूम-तुर्रा नहीं धराया जाता है.
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