
27/07/2025
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्"
त्र्यंबकेश्वर मंदिर, जो कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, नासिक से लगभग 28 कि.मी. दूर स्थित है। इसका इतिहास पौराणिक कथाओं और मराठा शासकों के पुनर्निर्माण से जुड़ा है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 18वीं शताब्दी में तीसरे पेशवा, बालाजी बाजीराव (नाना साहब पेशवा) द्वारा बनवाया गया था, जिन्होंने एक पुराने मंदिर के स्थान पर इसका निर्माण कराया था.
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का इतिहास:
पौराणिक कथा:
मंदिर का संबंध गौतम ऋषि और गोदावरी नदी से है। गौतम ऋषि ने भगवान शिव से यहां निवास करने का आग्रह किया था, जिसके बाद शिव त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां स्थापित हुए.
मराठा शासन:
मंदिर का वर्तमान स्वरूप 18वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के पेशवाओं द्वारा बनवाया गया था। विशेष रूप से, तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव (नाना साहब पेशवा) ने इसे 1755 से 1786 के बीच बनवाया था.
पुनर्निर्माण:
मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ और 31 साल बाद 1786 में पूरा हुआ। इस पुनर्निर्माण में लगभग 16 लाख रुपये खर्च हुए थे, जो उस समय एक बड़ी रकम मानी जाती थी.
गोदावरी नदी:
त्र्यंबकेश्वर मंदिर गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित है, जो कि दक्षिण भारत की एक महत्वपूर्ण नदी है.
त्र्यंबक का महत्व:
इस मंदिर को तीन मुख वाले त्र्यंबक (शिव) के रूप में जाना जाता है, और यह मंदिर गौतम ऋषि की तपस्या स्थली भी रही है.
त्र्यंबकेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि अपनी स्थापत्य कला और पौराणिक कथाओं के लिए भी प्रसिद्ध है.
हर हर महादेव 💐