27/01/2023
सोंची कइसन गाँव रहे
- पिंकू कुमार सिंह
बड़का बरगद के छाँव रहे,
सुखदुख बाँटें के ठांव रहे।
बाबा चाचा के पाँव रहे,
बबुआ सुनला के चाव रहे।
सुंदर कोमल स्वभाव रहे,
सब केहू के परभाव रहे।
कनिया, दुलहिन बोलाव रहे,
भौजी से बहुत लगाव रहे।
सोंची कइसन गाँव रहे।।
घरसे हट दूर बथान रहे,
सटले बड़का खलिहान रहे।
पुअरा मानी सुख खान रहे,
सूतल बैठल मुस्कान रहे।
आई पंडीजी मान रहे,
हर पूजा नेग बिधान रहे।
पंडीजी के जजमान रहे,
बोलस जयहो कल्याण रहे।
सोंची कइसन गाँव रहे।।
मीठा चूड़ा जलपान रहे,
दूधे सानी नेवान रहे।
लड्डु बतासा मिष्ठान रहे।
भोज भात परधान रहे।
डेहरी में भरल धान रहे,
दउरा में चाउर खान रहे।
दउरी पीसल पीसान रहे,
डलिया, मौनी, सामान रहे।
सोंची कइसन गाँव रहे।।
पाहुन के कतना मान रहे,
बाहर भीतर गुनगुना रहे।
ससुरारी मानी धाम रहे,
आते जाते परनाम रहे।
का आन रहे, का शान रहे,
सगरे लागे की जान रहे।
मिश्री से मीठ जुबान रहे,
जीवन में सदा उड़ान रहे।
सोंची कइसन गाँव रहे।।
स्वरचित
पिंकू कुमार सिंह
नवादा बिहार