
25/07/2025
"एक फैमिली के साथ रेस्टोरेंट आई थी।
सबके लिए खाना ऑर्डर हुआ — थालियाँ लगीं, प्लेटें सजीं।
लेकिन कोने में बैठी उस लड़की के लिए कुछ नहीं आया।
वो भूखी थी, लेकिन बोल नहीं सकी।
उसकी आँखें सिर्फ प्लेटें देख रही थीं…
और दिल शायद सिर्फ इतना सोच रहा था —
"क्या मैं इंसान नहीं हूँ?"
वो लड़की किसी की बेटी नहीं थी,
वो उनके घर काम करती थी।
पर उस दिन पहली बार उसे समझ आया कि
साथ लाना और साथ समझना — दो अलग बातें हैं।
अगर आप अपने साथ काम करने वालों को
सिर्फ काम के लिए साथ लाते हैं,
तो कम से कम उन्हें भूखे मत रखिए।
🙏 इज़्ज़त ना दे सकें, तो अपमान भी मत दीजिए।
क्योंकि जो आपके बच्चों के जूते उठाता है,
उसकी भी कहीं कोई माँ उसका इंतज़ार कर रही होती है।
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