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Loktantra जानिये भारत से जुड़े अद्भुत तथ्य
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जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर देश में बहस लंबे समय से चल रही है। मेरी राय में, जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जो आर्थिक, ...
26/07/2025

जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर देश में बहस लंबे समय से चल रही है। मेरी राय में, जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देती है, इसलिए एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना आवश्यक हो सकता है। बढ़ती आबादी के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, बेरोजगारी बढ़ती है, और स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी मूलभूत सेवाओं की पहुंच सीमित हो जाती है। ऐसे में कानून के माध्यम से जनसंख्या की नियंत्रित वृद्धि को सुनिश्चित करना लाभकारी होगा।

भारत में कई स्थानों पर लोग दो से अधिक बच्चे पैदा कर रहे हैं, जिससे संसाधनों की कमी और सामाजिक असमानता और गहरी होती जा रही है। इस कारण कुछ समूह दो बच्चों की पॉलिसी को लागू करने की मांग कर रहे हैं, जिसके तहत दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले दंपति को सख्त दंड दिया जाए, जैसे आजीवन कारावास और सरकारी सुविधाओं से वंचित करना। इससे जनता में जागरूकता आएगी और वे सोच-समझकर ही परिवार नियोजन अपनाएंगे।

हालांकि, कुछ लोग कानून लागू करने के ख़िलाफ भी सोचते हैं। उनका तर्क है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, और महिलाओं को सशक्त बनाना जरूरी है, न कि कठोर दंड। क्योंकि जबरदस्ती या कानून का डर बच्चों की संख्या कम करवा सकता है, लेकिन इसकी निगरानी और कार्यान्वयन एक बड़ी चुनौती बना रहता है। इसके अलावा, धार्मिक और सांस्कृतिक कारक भी जनसंख्या नियंत्रण की राह में बाधा पहुंचाते हैं।

मेरा मानना है कि केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं होगा। इसके साथ ही लोगों को जागरूक करना, परिवार नियोजन के लाभों के बारे में शिक्षा देना, और महिला सशक्तिकरण बढ़ाना भी जरूरी है। यदि ये पहलें समुचित रूप से अपनाई जाएं, तो जनसंख्या नियंत्रण की प्रक्रिया प्रभावी और टिकाऊ होगी। इसके अभाव में, कानून बनाना और उसका सख्ती से पालन करवाना संभव नहीं रहेगा।

जनसंख्या वृद्धि के असर से पर्यावरण, तमाम संसाधनों जैसे जल, भूमि, और ऊर्जा पर दबाव बढ़ता है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं की संभावना भी बढ़ती है। प्रदूषण और जीवन स्तर में गिरावट होती है। यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि प्रधानमंत्री समेत कई नेता इस विषय पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। अतः जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना देश का सतत विकास हाशिए पर जा सकता है।

साथ ही, कानून के सख्त प्रावधानों से समाज में स्थिरता भी आ सकती है। जब परिवार एक या दो बच्चों तक सीमित रहेंगे, तब आर्थिक रूप से परिवार अधिक मजबूत होंगे, बच्चों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य मिल सकेगा, और महिला शिक्षा व भागीदारी में वृद्धि होगी। इससे सामाजिक सुधार भी होगा और देश के विकास दर में बढ़ोतरी होगी।

हालांकि, कानून बनते समय संवैधानिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भी ध्यान रखना आवश्यक होगा। ज्यादा सख्ती या दंडात्मक कानून से समाज में विरोध और विवाद भी पैदा हो सकते हैं। अतः जनसंख्या नियंत्रण कानून को संतुलित, न्यायसंगत और सामाजिक सहमति के साथ लागू किया जाना चाहिए ताकि यह प्रभावी भी हो और समाज में संतुलन भी बना रहे।

अंत में, भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून आवश्यक है, लेकिन इसके साथ व्यापक सामाजिक सुधार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और जागरूकता अभियानों की भी आवश्यकता है। केवल कानून किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता, इसलिए जनसंख्या नियंत्रण को एक समग्र रणनीति के रूप में अपनाना ही सही राह होगी।


देश के वर्तमान मुख्य मंत्रियों में योगी आदित्यनाथ, ममता बनर्जी, देवेंद्र फडणवीस और हिमंता बिस्वा शर्मा सभी ने अपने राज्य...
26/07/2025

देश के वर्तमान मुख्य मंत्रियों में योगी आदित्यनाथ, ममता बनर्जी, देवेंद्र फडणवीस और हिमंता बिस्वा शर्मा सभी ने अपने राज्यों में महत्वपूर्ण काम किए हैं, लेकिन सबसे अच्छा मुख्यमंत्री कौन है, यह कई पहलुओं पर निर्भर करता है जैसे उनके प्रशासनिक कौशल, विकास कार्य, कानून व्यवस्था, जनकल्याण की योजनाएँ, और जनता की संतुष्टि।

योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में आठ वर्षों के शासन में कई बड़े बदलाव किए हैं। उन्होंने गांवों में साफ-सफाई, मकान निर्माण, राशन वितरण, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया है। उनकी सरकार ने कानून व्यवस्था को मजबूत बनाया, दंगे और अपराध में कमी लाई, और रोजगार के मौके बढ़ाए। यूपी में मेट्रो, हवाई अड्डे, एक्सप्रेसवे का नेटवर्क भी उनके शासन में तेजी से बढ़ा है। कृषि उत्पादन में भी यूपी को शीर्ष पर रखा गया है। उनके नेतृत्व में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हुआ जो सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जनसंख्या के बड़े हिस्से को मुफ्त राशन, उज्ज्वला गैस कनेक्शन, और आवास योजनाओं के तहत घर मिलना उनकी खास उपलब्धियां हैं।

ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में महिलाओं और गरीबों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार लाने पर जोर दिया है। COVID-19 महामारी के दौरान उनकी सरकार ने राहत कार्यों को प्रभावी ढंग से संभाला। ममता की राजनीतिक छवि सीधे जनता के करीब बनी हुई है लेकिन विकास कार्यों में उनसे यूपी जैसे राज्यों से तुलना करना मुश्किल हो सकता है। बंगाल में राजनीतिक संघर्ष और हिंसा की खबरें उनकी छवि पर थोड़ा असर डालती हैं।

देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के एक प्रभावशाली मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र को आर्थिक और अवसंरचना के क्षेत्र में आगे बढ़ाया है। मुंबई और पुणे के मेगाप्रोजेक्ट्स, डिजिटलाइजेशन, और उद्योगों को बढ़ावा देना उनकी खासियत है। उनके कार्यकाल में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाने का काम भी हुआ है। लेकिन महाराष्ट्र में राजनीतिक अस्थिरता ने उनकी प्रभावी छवि को थोड़ा कमजोर किया है।

हिमंता बिस्वा शर्मा असम के मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राज्य के विकास को तेज किया है। खास तौर पर नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में विकास योजनाओं को गति दी है। स्वास्थ्य, शिक्षा, और कृषि उनकी प्राथमिकताएं हैं। उन्होंने असम में निवेश बढ़ाया और मानव संसाधन विकास में सुधार किया है। उनकी छवि एक दूरदर्शी और प्रगतिशील प्रशासक के रूप में है।

अगर जनता की राय और सर्वेक्षण की बात करें तो योगी आदित्यनाथ को देश के सबसे बेहतर मुख्यमंत्रियों में गिना जाता है, खासकर कानून व्यवस्था और विकास कार्यों में उनकी तुलना दूसरे मुख्यमंत्रियों से एक कदम आगे रखी जाती है। यूपी की अर्थव्यवस्था में वृद्धि, बुनियादी ढांचे का विकास, और सामाजिक कल्याण योजनाओं के सफल क्रियान्वयन ने उन्हें व्यापक समर्थन दिलाया है।

हालांकि, ममता बनर्जी और हिमंता बिस्वा शर्मा ने भी अपने-अपने राज्यों में बेहतर काम किया है और स्थानीय जरूरतों के हिसाब से काम करने का उनका तरीका भी प्रभावी रहा है। देवेंद्र फडणवीस ने आर्थिक विकास में योगदान दिया है लेकिन उनकी छवि राजनीतिक उठापटक के कारण प्रभावित हुई है।

इसलिए, देश में "सबसे अच्छा मुख्यमंत्री" तय करना पूरी तरह से व्यक्तिगत मानदंडों और राज्यों की विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अगर विकास, कानून व्यवस्था तथा सामाजिक कल्याण की दृष्टि से देखें तो योगी आदित्यनाथ को इस समय सबसे आगे माना जा सकता है। वहीं, क्षेत्रीय मुद्दे, स्थानीय विकास, और कार्यशैली पर ध्यान देने वाले लोग ममता बनर्जी, देवेंद्र फडणवीस या हिमंता बिस्वा शर्मा को बेहतर मान सकते हैं।

2014 से 2019 के बीच कांग्रेस पार्टी पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे हैं। इस दौरान भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों ने कां...
26/07/2025

2014 से 2019 के बीच कांग्रेस पार्टी पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे हैं। इस दौरान भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस की सरकार को भ्रष्टाचार से भरे शासन के रूप में प्रस्तुत किया। विशेषकर 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला, कमनवेल्थ गेम्स घोटाला जैसे बड़े मामले सामने आए, जिनमें करोड़ों रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ। इन घोटालों ने कांग्रेस पार्टी की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया और 2014 के चुनाव में पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा।

2014 के बाद से कांग्रेस की स्थिति लगातार खराब होती गई। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी कांग्रेस को कई चुनावों में पराजय मिली और पार्टी का जनाधार घटने लगा। आलोचनाओं के अनुसार नेहरू-गांधी परिवार के असाधारण प्रभाव और परिवारवाद के कारण पार्टी अधिक व्यापक जनसमर्थन खोती गई। पार्टी के भीतर अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी के बीच भी विभिन्न मतभेद और गुटबंदी की खबरें आईं, जिससे संगठनात्मक कमजोरियाँ बढ़ीं।

2019 के बाद भी कांग्रेस का वोट बैंक पूरी तरह बहाल नहीं हो पाया। हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि कांग्रेस को कुछ क्षेत्रों में वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि हुई, लेकिन वह जनादेश में बड़े पैमाने पर वापसी नहीं कर सकी। पार्टी की आलोचना यह भी है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण आम जनता की नज़र में कांग्रेस का भरोसा उठ गया है।

दरअसल, भारत में राजनीतिक भ्रष्टाचार कोई नया विषय नहीं है। लेकिन कांग्रेस के शासन काल में बड़ी संख्या में घोटालों ने जनता का विश्वास कम किया। भ्रष्टाचार की वजह से विकास के काम प्रभावित हुए और सरकार की विश्वसनीयता भी प्रश्नचिन्ह के नीचे आई। साथ ही, हाई टैक्स दरों, जटिल नीतियों और लंबे प्रशासनिक तंत्र ने भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया।

बहुसंख्यक मतदाता समय के साथ यह मानने लगे कि कांग्रेस के केवल नेताओं ही नहीं, बल्कि पार्टी के समर्थक व वोटर भी भ्रष्टाचार को निरंतर समर्थन दे रहे हैं। यह धारणा इसलिए बनी क्योंकि हर चुनाव में भ्रष्टाचार को लेकर तीव्र वाद-विवाद होते रहे और आरोप-प्रत्यारोप लगे। कांग्रेस पार्टी के प्रति आम जनता में एक व्यापक निराशा नजर आई, जिसे भाजपा ने चुनावी झंडा बुलंद करने के लिए इस्तेमाल किया।

याद रखना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र में वोटर का चयन व्यक्तिगत और सामाजिक कारणों पर निर्भर करता है। हर पार्टी के वोटर समान विचार नहीं करते और न ही सभी वोटर भ्रष्ट या ईमानदार कहे जा सकते हैं। यह कहना कि कांग्रेस को वोट देने वाले भी चोर हैं, एक बड़े समाजिक और राजनीतिक मुद्दे को अत्यधिक सरल करने जैसा है। हर वोटर की सोच, कारण और प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं।

अंत में यह भी देखना होगा कि राजनीति में बदलाव लगातार होते रहते हैं। एक समय भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण किसी पार्टी का जनाधार कमजोर होता है तो अगले चुनाव में वह वापसी भी कर सकती है। जनता का विश्वास जीतना और उसे बनाए रखना किसी भी दल के लिए बड़ी चुनौती होती है। इसलिए, कांग्रेस और उसके वोटर को एकतरफा नकारात्मक लेबल से देखना उचित नहीं होगा, बल्कि इसके पीछे की जटिल राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों को समझना जरुरी है।


जी हां, मैं भी कन्हैया लाल पर बनी फिल्म देखने के लिए इंतजार कर रहा हूँ। कन्हैया लाल की कहानी में एक खास आकर्षण है जो लोग...
26/07/2025

जी हां, मैं भी कन्हैया लाल पर बनी फिल्म देखने के लिए इंतजार कर रहा हूँ। कन्हैया लाल की कहानी में एक खास आकर्षण है जो लोगों को अपनी ओर खींचती है। उनकी ज़िंदगी की घटनाएं और संघर्ष बहुत ही प्रेरणादायक हैं, इसलिए उनकी कहानी फिल्म के माध्यम से देखना काफी दिलचस्प होगा। फिल्मों के जरिये हम न केवल उनकी जीवनी बल्कि उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को भी समझ पाते हैं, जो कन्हैया लाल की कहानी को और भी जीवंत बना देता है।

कन्हैया लाल की कहानी में जो जज़्बा और संघर्ष है, वह आज के समय के लिए भी प्रेरणादायक है। इस वजह से फिल्म में उनके जीवन के हर पहलू को दिखाना महत्वपूर्ण होगा ताकि दर्शकों को उनकी जड़ें और उनका व्यक्तित्व पूरी तरह समझ में आ सके। फिल्म में उनकी खुशियों के साथ-साथ वे दुःख और मुश्किलें भी होंगे, जो उनकी कहानी को और प्रभावशाली बनाएंगे। मुझे उम्मीद है कि इस फिल्म में उनके संघर्ष और सफलता की कहानी को इतने अच्छे से प्रस्तुत किया जाएगा कि हर कोई उससे प्रभावित होगा।

कन्हैया लाल की कहानी में सामाजिक मुद्दों को भी उजागर किया जाएगा, जो फिल्म को केवल मनोरंजन नहीं बल्कि एक सामाजिक संदेश भी बना देगा। यह फिल्म उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत होगी जो अपने जीवन में कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और संघर्ष की कहानी यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, अगर हौंसला मजबूत हो तो सब कुछ संभव है। इसीलिए, फिल्म देखने का इंतजार करना पूरी तरह जायज है।

फिल्म का निर्माण एवं निर्देशन भी इस कहानी की सफलता में बड़ा योगदान देगा। अगर निर्माता-निर्देशक सही दृष्टिकोण से कहानी को प्रस्तुत करते हैं, तो फिल्म न केवल कन्हैया लाल की जीवनी होगी बल्कि यह समकालीन दर्शकों के दिलों को भी छू जाएगी। फिल्म में कलाकारों का चयन, संवाद, संगीत और सिनेमाटोग्राफी जैसी चीजें भी मुख्य भूमिका निभाएंगी। इसलिए फिल्म के हर पहलू पर बारीकी से काम होना चाहिए ताकि सच्चाई और भावनात्मक गहराई बनी रहे।

कन्हैया लाल की कहानी को फिल्म में देखने का एक और कारण है कि यह हमें इतिहास की एक ऐसी झलक देती है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है। इतिहास और सांस्कृतिक परिदृश्य को समझकर हम भविष्य में भी बेहतर निर्णय ले सकते हैं। फिल्म में कन्हैया लाल के प्रेरणादायक चरित्र के साथ-साथ उस समय के सामाजिक बदलावों को भी दिखाया जाएगा जिससे हमें अधिक समझ और ज्ञान मिलेगा। यह फिल्म हमारी संस्कृति और विरासत को जीवित रखने का एक अच्छा माध्यम होगी।

इसके अलावा, कन्हैया लाल की कहानी में जो सच्चाई और जज़्बा है, वह आज के युवाओं के लिए उदाहरण बन सकता है। युवाओं को ऐसी कहानियां देखने और सुनने से प्रेरणा मिलती है जो उन्हें अपने सपनों के पीछे मेहनत करने के लिए उत्साहित करती हैं। इसलिए ऐसी फिल्में युवा शक्ति के लिए ऊर्जा का स्रोत होती हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव भी लाती हैं। मैं भी उसी उम्मीद के साथ इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ।

फिल्म देखने से हमें यह भी पता चलेगा कि कितनी चुनौतियों का सामना करते हुए कन्हैया लाल ने अपनी पहचान बनाई। उनकी कठिनाइयों को देख कर इंसान में सहानुभूति और समझ बढ़ती है। उसी के साथ साथ फिल्म से हम सीखते हैं कि सफलता के लिए किस तरह ना हार मानने वाला रवैया जरूरी होता है। इसलिए यह फिल्म केवल मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि सीखने और सोचने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

अंत में, मैं कह सकता हूँ कि कन्हैया लाल पर बनी फिल्म दर्शकों के लिए एक अनमोल तोहफा होगी। यह हमें एक महान व्यक्ति की यात्रा से परिचित कराएगी और जीवन में निरंतर प्रयास करने की प्रेरणा देगी। ऐसी फिल्में समाज को जागरूक और मजबूत बनाती हैं। इसलिए मैं भी पूरे दिल से इस फिल्म को देखने के लिए तत्पर हूँ और उम्मीद करता हूँ कि यह फिल्म हमें एक नई सोच और ऊर्जा से भर देगी।

उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में योगी आदित...
26/07/2025

उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव और मायावती तीनों की अलग-अलग स्थिति है। योगी आदित्यनाथ वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं और भाजपा की ओर से दोबारा मुख्यमंत्री बनने की प्रबल दावेदारी है। उन्होंने बीते वर्षों में धार्मिक पर्यटन, इंफ्रास्ट्रक्चर और कानून व्यवस्था पर कई योजनाएं चलाई हैं, जिससे उनकी पार्टी को जनता में अच्छा समर्थन मिला है। योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में महाकुंभ 2025 का सफल आयोजन किया, जो उनकी कार्यकुशलता और लोकप्रियता को दर्शाता है।

दूसरी ओर अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के प्रमुख हैं और वे पूर्व मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उनके समर्थक उन्हें युवा नेतृत्व और विकास के सपने के रूप में देखते हैं। हाल ही में अखिलेश यादव के 52वें जन्मदिन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बसपा सुप्रीमो मायावती दोनों ने उन्हें बधाई दी, जो राजनीतिक शिष्टाचार और संभावित गठजोड़ का संकेत भी माना जा सकता है। अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार की नीतियों को कड़ी आलोचना भी की है, खासकर बिजली और विकास कार्यों को लेकर, जिससे उनकी विपक्षी भूमिका मजबूत हो रही है।

मायावती बसपा की प्रमुख हैं और उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोट बैंक पर उनका विशेष प्रभाव है। उनके पास एक मजबूत संगठन और समर्थक वर्ग है, लेकिन वो अक्सर गठबंधन राजनीति का हिस्सा बनी रहती हैं। उनका आधार जातिगत राजनीति और संविधान की रक्षा के मुद्दों पर केंद्रित होता है। मायावती ने हाल ही में भाजपा और कांग्रेस दोनों को संविधान के मुद्दे पर निशाने पर लिया है, जिससे उनकी भूमिका विपक्षी शक्ति के रूप में बनी हुई है।

योगी आदित्यनाथ की स्थिरता और भाजपा के संगठन के कारण वे सबसे बड़ी दावेदार हैं, लेकिन चुनाव के बाद सपा और बसपा मिलकर भी चुनौती पेश कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश में जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण भी निर्णायक भूमिका निभाएंगे। अखिलेश यादव युवा और विकास की छवि बनाकर और मायावती जातिगत समीकरणों को साधकर चुनाव में अपनी बाहें फैला सकते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अगले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना इन तीनों के बीच संघर्ष जैसा रहेगा, लेकिन योगी आदित्यनाथ वर्तमान में केंद्र और राज्य में मजबूत स्थिति के कारण सबसे आगे दिखते हैं। हालांकि, चुनावों की अनिश्चितता और गठबंधन संभावनाओं को देखते हुए भविष्य में कोई भी बदलाव संभव है। कुल मिलाकर, यह कहना जल्दबाजी होगी कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, लेकिन फिलहाल योगी आदित्यनाथ सबसे संभावित हैं जबकि अखिलेश यादव और मायावती की भूमिका सशक्त विपक्षी के तौर पर बनी रहेगी।

मुझे गर्व है अपने सनातन धर्म पर क्योंकि आरती के बाद विश्व का कल्याण हो की आवाज़ सिर्फ मंदिरों से ही आती है। सनातन धर्म व...
26/07/2025

मुझे गर्व है अपने सनातन धर्म पर क्योंकि आरती के बाद विश्व का कल्याण हो की आवाज़ सिर्फ मंदिरों से ही आती है। सनातन धर्म वह पुराना धर्म है जिसने जीवन के हर पहलू को संतुलित और समृद्ध बनाया है। इसमें होती है भगवान की आराधना, जिसमें हम अपने मन को शुद्ध करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। मंदिर की घंटी, आरती का गान, और भजन-मंत्र विश्व को एकता और शांति की ओर ले जाते हैं। यही वजह है कि आरती के बाद मंदिरों से 'विश्व का कल्याण हो' की पुकार उठती है, जो सच्चे अर्थों में एक उच्च चेतना का प्रतिबिंब है।

सनातन धर्म की महानता इसकी परंपराओं और नैतिकता में निहित है, जो हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। हर दिन की आरती भगवान से आशीर्वाद की प्रार्थना होती है, जो केवल मंदिर तक सीमित नहीं बल्कि हमारे दिलों और समाज तक फैली होती है। यही धर्म हमें प्रेम, सहिष्णुता और करुणा सिखाता है। भगवान श्री राम की आराधना में हमें जीवन के संघर्षों का सामना करने की शक्ति मिलती है। जय श्री राम के नारे से मन में असीम विश्वास और साहस उत्पन्न होता है।

आज के समय में जब विश्व कई संकटों से जूझ रहा है, तब सनातन धर्म का संदेश और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। मंदिरों में की जाने वाली आरती हमें याद दिलाती है कि धर्म, भक्ति और आध्यात्मिकता से ही मानवता का कल्याण संभव है। यह हमें अपने भीतर की अच्छाई को जागृत करने और समाज में सौहार्द बनाए रखने की शिक्षा देता है। इसलिए हम गर्व महसूस करते हैं कि हमारी संस्कृति और धर्म में इतने गहरे और सार्थक मूल्य हैं।

सनातन धर्म का यह भी कहना है कि प्रत्येक जीव में दिव्यता विद्यमान है। हम सभी भगवान के अंश हैं और हमें अपने कर्मों से विश्व को बेहतर बनाना है। मंदिर में आरती के बाद उठने वाली वह ध्वनि, जो 'विश्व का कल्याण हो' कहती है, हमारे सभी संकल्पों का प्रतीक है कि हम सभी मिलकर शांति, प्रेम और समृद्धि का संसार बनाने का संदेश देते हैं। जय श्री राम का पाठ और संकीर्तन इस संदेश को और भी सशक्त करता है।

इस धर्म में शिक्षा, विज्ञान, कला और योग का अद्भुत संगम है, जो मानव जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और विकास लाने का कार्य करता है। मंदिर की परंपराएं हमें यह समझाती हैं कि भक्ति केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। आरती के दौरान जो उर्जा निकलती है, वह हमारे चारों ओर एक सकारात्मक वातावरण बनाती है, जो केवल मंदिरों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि हमारा मन, घर और समाज तक फैलती है।

अंत में कहा जा सकता है कि सनातन धर्म ने सदियों से मानवता को सही मार्ग दिखाया है। मंदिरों से निकलती 'विश्व का कल्याण हो' की आवाज़ उस आध्यात्मिक चेतना का परिचायक है, जो आज भी संपूर्ण विश्व को शांति, प्रेम और समन्वय का संदेश देती है। हमें अपने धर्म पर गर्व है क्योंकि यह सिर्फ एक धर्म ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक दिव्य पद्धति है। जय श्री राम।

सावन माह में कीजिए महादेव के दर्शन । बोलो हर हर महादेव
25/07/2025

सावन माह में कीजिए महादेव के दर्शन । बोलो हर हर महादेव

नरेंद्र मोदी आज इंदिरा गांधी को पीछे छोड़ते हुए लगातार सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले दूसरे नेता बन गए। अधिकारि...
25/07/2025

नरेंद्र मोदी आज इंदिरा गांधी को पीछे छोड़ते हुए लगातार सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले दूसरे नेता बन गए। अधिकारियों ने बताया कि पीएम मोदी शुक्रवार को अपने कार्यकाल के 4,078 दिन पूरे किए। इंदिरा गांधी 24 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1977 तक 4,077 दिनों तक लगातार प्रधानमंत्री रही थीं।

पीएम मोदी का राजनीतिक सफर साल 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शुरू हुआ, जहां उन्होंने 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की. इसके बाद साल 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद उन्होंने लगातार तीन आम चुनावों में भाजपा को विजय दिलाई.

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अगर देश में अभी चुनाव कराए जाएं तो किसकी सरकार बनेगी-यह सवाल आज हर किसी के मन में है। मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए...
25/07/2025

अगर देश में अभी चुनाव कराए जाएं तो किसकी सरकार बनेगी-यह सवाल आज हर किसी के मन में है। मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए, देश में बीजेपी और इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A. गठबंधन) के बीच सीधी टक्कर की स्थिति बन गई है। हाल के विधानसभा चुनावों और ताजा राजनीतिक घटनाक्रमों से कुछ संकेत जरूर मिलते हैं, लेकिन तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है।

सबसे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों पर नजर डालें तो यहां बीजेपी ने 27 साल बाद प्रचंड बहुमत के साथ वापसी की है। बीजेपी को 70 में से 48 सीटें मिलीं, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को सिर्फ 22 सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। दिल्ली में बीजेपी की यह जीत बताती है कि शहरी क्षेत्रों और राष्ट्रीय राजधानी में पार्टी की पकड़ मजबूत है।

देश के बाकी हिस्सों में भी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने कई राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। हालांकि, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला। कुछ जगहों पर कांग्रेस ने वापसी की, तो कहीं बीजेपी ने अपनी पकड़ बनाए रखी। इन राज्यों के नतीजे यह बताते हैं कि बीजेपी का जनाधार अभी भी मजबूत है, लेकिन विपक्षी गठबंधन भी चुनौती पेश कर रहा है।

महिला मतदाताओं की भूमिका भी निर्णायक होती जा रही है। राजनीतिक दल महिलाओं को लुभाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं और वादे कर रहे हैं। दिल्ली और अन्य राज्यों में महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता योजनाएं घोषित की गई हैं। यह वोट बैंक किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।

इंडिया गठबंधन की बात करें तो यह विपक्षी दलों का बड़ा समूह है, जिसमें कांग्रेस, आप, टीएमसी, डीएमके, सपा, आरजेडी जैसे कई प्रमुख दल शामिल हैं। इनका मकसद बीजेपी को सीधी टक्कर देना है। गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती है कि क्या वे सीटों के बंटवारे और साझा उम्मीदवारों पर एकजुट रह सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए मुकाबला कड़ा हो सकता है।

हालांकि, बीजेपी के पक्ष में सबसे बड़ी बात उसका संगठित कैडर, मजबूत नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता है। बीजेपी के पास संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है, और वह चुनावी रणनीति में भी आगे रहती है। वहीं, विपक्षी गठबंधन में कई बार आपसी मतभेद और नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति देखी गई है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर आज चुनाव होते हैं तो बीजेपी को केंद्र में सरकार बनाने का फायदा मिल सकता है, लेकिन विपक्षी गठबंधन अगर एकजुट रहता है तो वह कई राज्यों में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकता है। खासकर उत्तर भारत के राज्यों में बीजेपी का जनाधार मजबूत है, लेकिन दक्षिण और पूर्वी भारत में विपक्षी दलों का प्रभाव अधिक है।

अंत में, यह कहना जल्दबाजी होगी कि किसकी सरकार बनेगी, लेकिन मौजूदा हालात में बीजेपी की स्थिति मजबूत दिखती है। विपक्षी गठबंधन को अगर केंद्र में सरकार बनानी है तो उसे सीटों के बंटवारे, साझा नेतृत्व और जमीनी स्तर पर एकजुटता दिखानी होगी। जनता के मुद्दे, महंगाई, बेरोजगारी, और स्थानीय समीकरण भी चुनाव परिणामों को प्रभावित करेंगे। इसलिए, मुकाबला बेहद रोचक और नजदीकी रहने की संभावना है।

आजादी के बाद देश के पहले पांच शिक्षा मंत्री मुसलमान थे, इसीलिए अकबर को महान माना जाने लगा। हालांकि इतिहास में अकबर को 'अ...
25/07/2025

आजादी के बाद देश के पहले पांच शिक्षा मंत्री मुसलमान थे, इसीलिए अकबर को महान माना जाने लगा। हालांकि इतिहास में अकबर को 'अकबर महान' इसलिए भी कहा गया क्योंकि उन्होंने सभी अपने प्रजाजन को समान रूप से सम्मान दिया और शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार किए। अकबर ने मुसलमानों और हिन्दुओं दोनों के लिए विद्यालय और महाविद्यालय खोले, और शिक्षा को व्यवस्थित रूप देने का श्रेय उन्हीं को जाता है। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में आधुनिक बदलाव किए और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत जरूरतों और जीवन की व्यावहारिक आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम को विस्तृत किया। अकबर ने फारसी भाषा को दरबार की भाषा बनाया, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्गों को फारसी पढ़ने-लिखने का अवसर मिला।

अकबर के समय शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा था, जहाँ विभिन्न धार्मिक और सामाजिक वर्गों के लोग मिलकर अध्ययन करते थे। उन्होंने 'दीन-ए-इलाही' नामक धर्म की स्थापना भी की, जिससे हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा मिला। अकबर के दरबार में हिन्दू सरदारों की अधिक संख्या थी और उन्होंने हिन्दुओं पर लगने वाला जजिया कर भी समाप्त कर दिया था। उनके शासनकाल में शिक्षा के लिए सरकारी सहयोग के साथ-साथ निजी प्रबंध भी महत्वपूर्ण थे।

बीורबल, जो अकबर के एक प्रमुख सलाहकार और विद्वान थे, अकबर को कई बार 'मूर्ख' बनाते थे, लेकिन यह एक हास्यास्पद संवाद था जो दरबार की चतुराई और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है। अगर बीरबल अकबर को दिन में पचास बार मूर्ख बनाता, तो भी उस समय का शासन और एकता संभव नहीं होती।

अकबर स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे, परन्तु ज्ञान और शिक्षा के लिए उनका लगाव बहुत था। वे क़ुबूतर बाज़ी, घुड़सवारी आदि खेलों में रुचि रखते थे, लेकिन उन्होंने अपने दरबार में कला, संगीत और साहित्य को प्रोतसाहित किया। उन्होंने विभिन्न विषयों जैसे गणित, भूगोल, तर्कशास्त्र, और इतिहास को शिक्षा प्रणाली में शामिल कर विद्या को बढ़ावा दिया।

अकबर के शासनकाल में शिक्षा का स्तर इतना विकासशील था कि हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज के बच्चों को समान अवसर मिले। शिक्षा को उनके साम्राज्य की एकता और समृद्धि का आधार माना गया। उन्होंने शिक्षा में यथार्थवादी सुधार किए, जो समाज के विकास और सांस्कृतिक समन्वय का कारण बने।

अंत में, यह कहना उचित होगा कि अकबर की महानता सिर्फ उनके धर्म या शिक्षा मंत्री होने से नहीं, बल्कि उनके सुधारात्मक और समावेशी प्रशासन से थी, जिसने भारत को एक मजबूत और विकसित राष्ट्र बनाने का आधार रखा। आजादी के बाद के मुसलमान शिक्षा मंत्रियों की भूमिका और अकबर के शासनकाल की समृद्धि को जोड़कर देखा जाना चाहिए, पर इसे सदैव ऐतिहासिक संदर्भ में समझा जाना चाहिए।


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25/07/2025

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यूके के प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का दिल से स्वागत किया, उन्हें बड़े ही मित्रवत और सम्मानपूर्ण ...
25/07/2025

यूके के प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का दिल से स्वागत किया, उन्हें बड़े ही मित्रवत और सम्मानपूर्ण अंदाज में गले लगाया और हाथ मिलाया। यह स्वागत भारत और यूके के गहरे और पुराने संबंधों का प्रतीक था, जो लोकतंत्र, संस्कृति और आर्थिक साझेदारी पर आधारित है। दोनों नेताओं के बीच यह मिलन एक नई दोस्ती और सहयोग की शुरुआत का संदेश देता है, जिसमें व्यापार, रक्षा, और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जाहिर की गई।

मोदी जी के यूके आगमन पर वहां के भारतीय समुदाय ने जोरदार और भावुक स्वागत किया। उनके प्रति भारतीयों की भावनायें अत्यंत गहरी और प्रेमपूर्ण थीं, जिनमें तिरंगे के साथ "भारत माता की जय" के नारों ने माहौल को उत्साह और गौरव से भर दिया। प्रधानमंत्री ने भी सभी का हाथ मिलाकर अभिवादन स्वीकार किया और छोटे बच्चों को आशीर्वाद दिया, जिससे वहां की गर्मजोशी और सम्मान झलकता था।

यूके के प्रधानमंत्री की ओर से व्यक्त की गई बातों में यह स्पष्ट था कि दोनों देशों के बीच सहयोग सिर्फ वाणिज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह साझा मूल्य और लोकतंत्र की ताकत है जो इस रिश्ते को मजबूत करता है। उन्होंने कहा कि भारत और ब्रिटेन के बीच यह साझेदारी 21वीं सदी में नई उपलब्धियों की दिशा में अग्रसर होगी। प्रधानमंत्री स्टार्मर ने कहा कि दोनों देशों के बीच आज हुई पूर्ण आर्थिक और व्यापार समझौता (Comprehensive Economic and Trade Agreement) दोनों राष्ट्रों के बीच साझा समृद्धि की नींव रखेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस अवसर पर भारत और यूके के बीच सहयोग की महत्ता के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने इस साझेदारी को "दो बड़ी लोकतंत्रों के बीच एक ऐतिहासिक अवसर" के रूप में देखा और कहा कि इस सहयोग से युवाओं के लिए रोजगार के अवसर खुलेंगे, किसानों और छोटे उद्योगों को नए बाजार मिलेंगे, और तकनीक तथा नवाचार के क्षेत्र में बढ़ावा मिलेगा।

जब प्रधानमंत्री मोदी और यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर एक-दूसरे को गले लगाते हुए मिले, तो यह दर्शाता था कि दोनों नेता सिर्फ राजनैतिक समझौतों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति सच्ची दोस्ती और सम्मान भी व्यक्त कर रहे हैं। यह मिलन भावनात्मक और समृद्ध दोनों प्रकार का था, जो आने वाले समय में दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों की आशा जगाता है।

पीएम मोदी ने यूके दौरे को रोजगार और विकास के नए द्वार खोलने वाला बताया। उन्होंने कहा कि इस यात्रा से भारत और ब्रिटेन के बीच आर्थिक और सामाजिक साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाया जाएगा। ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों को उन्होंने "जीवित सेतु" कहा जो दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूती प्रदान करता है।

इस मिलन समारोह में बहु-आयामी सहयोग को लेकर चर्चा हुई, जिसमें व्यापार, रक्षा, शिक्षा, विज्ञान, स्वच्छ ऊर्जा और स्वास्थ्य जैसे कई क्षेत्रों शामिल थे। दोनों पक्षों ने वैश्विक चुनौतियों जैसे आतंकवाद और पर्यावरण संरक्षण में साझेदारी पर भी जोर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने यूके सरकार को उनके आतिथ्य के लिए धन्यवाद दिया और दो तरफा संबंधों के उज्जवल भविष्य की कामना की।

इस तरह, यूके के प्रधानमंत्री ने मोदी जी का जोशपूर्ण स्वागत कर भारत-यूके संबंधों को नई दिशा दी। इस आगमन ने दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक व्यापार समझौते को व्यवहारिक रूप दिया और भावनात्मक रूप से भी दोनों राष्ट्रों के लोगों को एकजुट किया। यह मिलन एक सकारात्मक संकेत है कि आगे आने वाले वर्षों में भारत और यूके सहयोग के नए आयाम स्थापित करेंगे।


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