जाट सभा नोएडा

जाट सभा नोएडा जय यदुवंशी जाट दादा कृष्णा
जय यदुवंशी दादा सूरजमल जी
जाट बलवान
जय भगवान

21/07/2025

जय हो बाबा शाहमल तोमर जी की
🙏🙏🙏🙏

बाबा शाहमल का जीवन परिचयबाबा शाहमल जाट (तोमर) बागपत जिले में बिजरौल गांव के एक साधारण परन्तु आजादी के दिवाने क्रांतिकारी...
21/07/2025

बाबा शाहमल का जीवन परिचय
बाबा शाहमल जाट (तोमर) बागपत जिले में बिजरौल गांव के एक साधारण परन्तु आजादी के दिवाने क्रांतिकारी किसान थे । वे मेरठ और दिल्ली समेत आसपास के इलाके में बेहद लोकप्रिय थे। मेरठ जिले के समस्त पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भाग में अंग्रेजों के लिए भारी खतरा उत्पन्न करने वाले बाबा शाहमल ऐसे ही क्रांतिदूत थे। गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए इस महान व्यक्ति ने लम्बे अरसे तक अंग्रेजों को चैन से नहीं सोने दिया था।

अंग्रेज हकुमत से पहले यहाँ बेगम समरू राज्य करती थी. बेगम के राजस्व मंत्री ने यहाँ के किसानों के साथ बड़ा अन्याय किया. यह क्षेत्र १८३६ में अंग्रेजों के अधीन आ गया. अंग्रेज अदिकारी प्लाउड ने जमीन का बंदोबस्त करते समय किसानों के साथ हुए अत्याचार को कुछ सुधारा परन्तु मालगुजारी देना बढा दिया. पैदावार अच्छी थी. जाट किसान मेहनती थे सो बढ़ी हुई मालगुजारी भी देकर खेती करते रहे. खेती के बंदोबस्त और बढ़ी मालगुजारी से किसानों में भारी असंतोष था जिसने १८५७ की क्रांति के समय आग में घी का काम किया.

शाहमल का गाँव बिजरौल काफी बड़ा गाँव था . १८५७ की क्रान्ति के समय इस गाँव में दो पट्टियाँ थी. उस समय शाहमल एक पट्टी का नेतृत्व करते थे. बिजरौल में उसके भागीदार थे चौधरी शीश राम और अन्य जिन्होंने शाहमल की क्रान्तिकरी कार्रवाइयों का साथ नहीं दिया. दूसरी पट्टी में ४ थोक थी. इन्होने भी साथ नहीं दिया था इसलिए उनकी जमीन जब्त होने से बच गई थी.

शाहमल की क्रान्ति प्रारंभ में स्थानीय स्तर की थी परन्तु समय पाकर विस्तार पकड़ती गई. आस-पास के लम्बरदार विशेष तौर पर बडौत के लम्बरदार शौन सिंह और बुध सिंह और जौहरी, जफर्वाद और जोट के लम्बरदार बदन और गुलाम भी विद्रोही सेना में अपनी-अपनी जगह पर आ जामे. शाहमल के मुख्य सिपहसलार बगुता और सज्जा थे और जाटों के दो बड़े गाँव बाबली और बडौत अपनी जनसँख्या और रसद की तादाद के सहारे शाहमल के केंद्र बन गए.

१० मई को मेरठ से शुरू विद्रोह की लपटें इलाके में फ़ैल गई. शाहमल ने जहानपुर के गूजरों को साथ लेकर बडौत तहसील पर चढाई करदी. उन्होंने तहसील के खजाने को लूट कर उसकी अमानत को बरबाद कर दिया. बंजारा सौदागरों की लूट से खेती की उपज की कमी को पूरा कर लिया. मई और जून में आस पास के गांवों में उनकी धाक जम गई. फिर मेरठ से छूटे हुये कैदियों ने उनकी की फौज को और बढा दिया. उनके प्रभुत्व और नेतृत्व को देख कर दिल्ली दरबार में उसे सूबेदारी दी.

12 व 13 मई 1857 को बाबा शाहमल ने सर्वप्रथम साथियों समेत बंजारा व्यापारियों पर आक्रमण कर काफी संपत्ति कब्जे में ले ली और बड़ौत तहसील और पुलिस चौकी पर हमला बोल की तोड़फोड़ व लूटपाट की। दिल्ली के क्रांतिकारियों को उन्होंने बड़ी मदद की। क्रांति के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण की भावना ने जल्दी ही उनको क्रांतिवीरों का सूबेदार बना दिया। शाहमल ने बिलोचपुरा के एक बलूची नवीबख्श के पुत्र अल्लादिया को अपना दूत बनाकर दिल्ली भेजा ताकि अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए मदद व सैनिक मिल सकें। बागपत के थानेदार वजीर खां ने भी इसी उद्देश्य से सम्राट बहादुरशाह को अर्जी भेजी। बागपत के नूर खां के पुत्र मेहताब खां से भी उनका सम्पर्क था। इन सभी ने शाहमल को बादशाह के सामने पेश करते हुए कहा कि वह क्रांतिकारियो के लिए बहुत सहायक हो सकते है और ऐसा ही हुआ शाहमल ने न केवल अंग्रेजों के संचार साधनों को ठप किया बल्कि अपने इलाके को दिल्ली के क्रांतिवीरों के लिए आपूर्ति क्षेत्र में बदल दिया।

अपनी बढ़ती फौज की ताकत से उन्होंने बागपत के नजदीक जमुना पर बने पुल को नष्ट कर दिया. उनकी इन सफलताओं से उन्हें ८४ गांवों का आधिपत्य मिल गया. उसे आज तक देश खाप की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. वह एक स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार वह जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े क्षेत्र के अधिपति बन गए.

कुछ अंग्रेजों जिनमें हैवेट, फारेस्ट ग्राम्हीर, वॉटसन कोर्रेट, गफ और थॉमस प्रमुख थे को यूरोपियन फ्रासू जो बेगम समरू का दरबारी कवि भी था, ने अपने गांव हरचंदपुर में शरण दे दी। इसका पता चलते ही शाहमल ने निरपत सिंह व लाजराम जाट के साथ फ्रासू के हाथ पैर बांधकर काफी पिटाई की और बतौर सजा उसके घर को लूट लिया। बनाली के महाजन ने काफी रुपया देकर उसकी जान बचायी। मेरठ से दिल्ली जाते हुए डनलप, विलियम्स और ट्रम्बल ने भी फ्रासू की रक्षा की। फ्रासू को उसके पड़ौस के गांव सुन्हैड़ा के लोगों ने बताया कि इस्माइल, रामभाई और जासूदी के नेतृत्व में अनेक गांव अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो गए है। शाहमल के प्रयत्‍‌नों से हिंदू व मुसलमान एक साथ मिलकर लड़े और हरचंदपुर, ननवा काजिम, नानूहन, सरखलान, बिजरौल, जौहड़ी, बिजवाड़ा, पूठ, धनौरा, बुढ़ैरा, पोईस, गुराना, नंगला, गुलाब बड़ौली, बलि बनाली (निम्बाली), बागू, सन्तोखपुर, हिलवाड़ी, बड़ौत, औसख, नादिर असलत और असलत खर्मास गांव के लोगों ने उनके नेतृत्व में संगठित होकर क्रांति का बिगुल बजाया।

कुछ बेदखल हुये जाट जमींदारों ने जब शाहमल का साथ छोड़कर अंग्रेज अफसर डनलप की फौज का साथ दिया तो शाहमल ने ३०० सिपाही लेकर बसौड़ गाँव पर कब्जा कर लिया. जब अंग्रेजी फौज ने गाँव का घेरा डाला तो शाहमल उससे पहले गाँव छोड़ चुका था. अंग्रेज फौज ने बचे सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया और ८००० मन गेहूं जब्त कर लिया. इलाके में शाहमल के दबदबे का इस बात से पता लगता है कि अंग्रेजों को इस अनाज को मोल लेने के लिए किसान नहीं मिले और न ही किसी व्यापारी ने बोली बोली. गांव वालों को सेना ने बाहर निकाल दिया पर दिल्ली से आये दो गाजी एक मस्जिद में मोर्चा लेकर लड़ते रहे और सेना नाकामयाब रही। शाहमल ने यमुना नहर पर सिंचाई विभाग के बंगले को मुख्यालय बना लिया था और अपनी गुप्तचर सेना कायम कर ली थी। हमले की पूर्व सूचना मिलने पर एक बार उन्होंने 129 अंग्रेजी सैनिकों की हालत खराब कर दी थी।

इलियट ने १८३० में लिखा है कि पगड़ी बांधने की प्रथा व्यक्तिको आदर देने की प्रथा ही नहीं थी, बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा भी थी. शाहमल ने इस प्रथा का पूरा उपयोग किया. शाहमल बसौड़ गाँव से भाग कर निकलने के बाद वह गांवों में गया और करीब ५० गावों की नई फौज बनाकर मैदान में उतर पड़ा.

दिल्ली दरबार और शाहमल की आपस में उल्लेखित संधि थी. अंग्रेजों ने समझ लिया कि दिल्ली की मुग़ल सता को बर्बाद करना है तो शाहमल की शक्ति को दुरुस्त करना आवश्यक है. उन्होंने शाहमल को जिन्दा या मुर्दा उसका सर काटकर लाने वाले के लिए १०००० रुपये इनाम घोषित किया.

डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा. इसने अपनी डायरी में लिखा है -

"चारों तरफ से उभरते हुये जाट नगाड़े बजाते हुये चले जा रहे थे और उस आंधी के सामने अंग्रेजी फौजों का जिसे 'खाकी रिसाला' कहा जाता था, का टिकना नामुमकिन था."
एक सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि

एक जाट (शाहमल) ने जो बड़ौत परगने का गवर्नर हो गया था और जिसने राजा की पदवी धारण कर ली थी, उसने तीन-चार अन्य परगनों पर नियंत्रण कर लिया था। दिल्ली के घेरे के समय जनता और दिल्ली इसी व्यक्ति के कारण जीवित रह सकी।
छपरा गांव के त्यागियों, बसोद के जादूगर और बिचपुरी के गूर्जरों ने भी शाहमल के नेतृत्व में क्रांति में पूरी शिरकत की। अम्हेड़ा के गूर्जरों ने बड़ौत व बागपत की लूट व एक महत्वपूर्ण पुल को नष्ट करने में हिस्सा लिया। सिसरौली के जाटों ने शाहमल के सहयोगी सूरजमल की मदद की जबकि दाढ़ी वाले सिख ने क्रांतिकारी किसानों का नेतृत्व किया।

जुलाई 1857 में क्रांतिकारी नेता शाहमल को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना संकल्पबद्ध हुई पर लगभग 7 हजार सैनिकों सशस्त्र किसानों व जमींदारों ने डटकर मुकाबला किया। शाहमल के भतीजे भगत के हमले से बाल-बाल बचकर सेना का नेतृत्व कर रहा डनलप भाग खड़ा हुआ और भगत ने उसे बड़ौत तक खदेड़ा। इस समय शाहमल के साथ 2000 शक्तिशाली किसान मौजूद थे। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में विशेष महारत हासिल करने वाले शाहमल और उनके अनुयायियों का बड़ौत के दक्षिण के एक बाग में खाकी रिसाला से आमने सामने घमासान युद्ध हुआ.

डनलप शाहमल के भतीजे भगता के हाथों से बाल-बाल बचकर भागा. परन्तु शाहमल जो अपने घोडे पर एक अंग रक्षक के साथ लड़ रहा था, फिरंगियों के बीच घिर गया. उसने अपनी तलवार के वो करतब दिखाए कि फिरंगी दंग रह गए. तलवार के गिर जाने पर शाहमल अपने भाले से दुश्मनों पर वार करता रहा. इस दौर में उसकी पगड़ी खुल गई और घोडे के पैरों में फंस गई. जिसका फायदा उठाकर एक फिरंगी सवार ने उसे घोड़े से गिरा दिया. अंग्रेज अफसर पारकर, जो शाहमल को पहचानता था, ने शाहमल के शरीर के टुकडे-टुकडे करवा दिए और उसका सर काट कर एक भाले के ऊपर टंगवा दिया.

फिरंगियों के लिए यह सबसे बड़ी विजय पताका थी. डनलप ने अपने कागजात पर लिखा है कि अंग्रेजों के खाखी रिशाले के एक भाले पर अंग्रेजी झंडा था और दूसरे भाले पर शाहमल का सर टांगकर पूरे इलाके में परेड करवाई गई. चौरासी गांवों के 'देश' की किसान सेना ने फिर भी हार नहीं मानी. और शाहमल के सर को वापिस लेने के लिए सूरज मल और भगता स्थान-स्थान पर फिरंगियों पर हमला करते रहे. इसमें राजपूतों और गुजरों ने भी बढ़-चढ़ कर साथ दिया. शाहमल के गाँव सालों तक युद्ध चलाते रहे.

21 जुलाई 1857 को तार द्वारा अंग्रेज उच्चाधिकारियों को सूचना दी गई कि मेरठ से आयी फौजों के विरुद्ध लड़ते हुए शाहमल अपने 6000 साथियों सहित मारा गया। शाहमल का सिर काट लिया गया और सार्वजनिक रूप से इसकी प्रदर्शनी लगाई गई। पर इस शहादत ने क्रांति को और मजबूत किया तथा 23 अगस्त 1857 को शाहमल के पौत्र लिज्जामल जाट ने बड़ौत क्षेत्र में पुन: जंग की शुरुआत कर दी। अंग्रेजों ने इसे कुचलने के लिए खाकी रिसाला भेजा जिसने पांचली बुजुर्ग, नंगला और फुपरा में कार्रवाई कर क्रांतिकारियों का दमन कर दिया। लिज्जामल को बंदी बना कर साथियों जिनकी संख्या 32 बताई जाती है, को फांसी दे दी गई।

शाहमल मैदान में काम आया, परन्तु उसकी जगाई क्रांति के बीज बडौत के आस पास प्रस्फुटित होते रहे. बिजरौल गाँव में शाहमल का एक छोटा सा स्मारक बना है जो गाँव को उसकी याद दिलाता रहता है.

बाबा शाहमल जाट पर पुस्तक

सन सत्तावन का क्रांतिवीर बाबा शाहमल जाट
पुस्तक: सन सत्तावन का क्रांतिवीर बाबा शाहमल जाट

लेखक: डॉ महेंद्र नारायण शर्मा और डॉ राकेश कुमार शर्मा

प्रकाशकीय टीप - प्रस्तुत पुस्तक में लेखक द्वय ने 1857 के क्रांतिवीर बाबा शाहमल जाट की यात्रा की एक प्रस्तुति है। बाबा शाहमल ने 1857 की जनक्रांति में तत्कालीन जनपद के तहसील बड़ौत और उसके आसपास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका भूमिका निभाई थी। उन्होंने हजारों किसानों का कुशलतापूर्वक नेतृत्व किया और मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। बाबा शाहमल ने अपनी वीरता से अंग्रेजों के साधनों कोठप्प किया साथ ही इस क्षेत्र को दिल्ली के लिए आपूर्ति क्षेत्र में बदल दिया, बाबा शाहमल ने हिंडन के पुल को तोड़ अंग्रेजो के लिए बहुत मुश्किल पैदा कर दी। 19 जुलाई 1857 को अंग्रेजों की एकफील्ड राइफलों से सुसज्जित सेना के साथ भयंकर युद्ध करते हुए लगभग 200 सैनिकों के साथ वीरगति प्राप्त की। बाबा शाहमल का यह बलिदान एक आदर्श के रूप में याद किया जाता रहा है, किंतु जैसा कि देश के भक्तों के साथ होता है उन्हें इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल पाता हालांकि स्थानीय कथाओं में, लोकगीतों में, राग रागनियों व सांगोन में उनकी अमर कथा को जिंदा रखा जाता है। बड़े परिश्रम से युगपुरुष से संबंधित घटनाओं को इतिहास के मापदंड से परख कर यह ग्रंथ तैयार कर 1857 के क्रांतिकारियों के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। 1857 की क्रांति के 150 वें वर्ष में इस ग्रंथ को प्रकाशित कर क्रांतिकारियों के प्रति सम्मान व श्रद्धा के सुमन समर्पित किये गये हैं। इतिहास के शोधरथियों के साथ-साथ इतिहास में रुचि रखने वाले भी इससे लाभानवित होंगे। .....डॉ देवेश चन्द्र शर्मा, प्रमुख संपादक

शाहमल पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म
महाराजा सूरजमल स्मारक शिक्षा संस्थान दिल्ली क्रांतिकारी बाबा शाहमल पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म तैयार करा रहा है। फिल्म निर्माता डॉ. केसी यादव एवं गुलबहार सिंह के निर्देशन में फिल्म तैयार की जा रही है। फिल्म क्रांतिकारी बाबा शाहमल के जीवन पर आधारित है। बाबा शाहमल ने अंग्रेजों के खिलाफ लम्बी जंग लड़ी थी। देश की आजादी में उनके बलिदान को लोग भूल नहीं पायेंगे। डॉक्यूमेंट्री फिल्म तैयार करने के लिए महाराज सूरजमल अनुसंधान एवं प्रकाशन केन्द्र दिल्ली ने कुछ शॉट वहां फिल्माये। बाबा शाहमल जिस कुएं पर बैठकर अपने साथियों के साथ रणनीति तय करते थे, वहां के शॉट फिल्माये गये। इसके अलावा बाबा शाहमल के गांव व घर के शॉट तैयार किये गये। इस दौरान गांव के लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। फिल्म निर्माता ने बताया कि फिल्म शोध करने में भी काम में आयेगी तथा क्रांतिकारी शाहमल पर अभी तक कोई फिल्म तैयार भी नहीं हुई है।[2]

Jats in 1857 Independence Movement, Shahmal Jat is Tomar Gotra
Jats in 1857 Independence Movement, Shahmal Jat is Tomar Gotra

अधिक जानकारी के लिए पढें
डॉ भगवान सिंह:जाट सामाज पत्रिका आगरा, अक्टूबर-नवम्बर २००१, पृष्ठ ३५-३६
डा. विघ्नेश त्यागी, डा.मुदित त्यागी हस्तिनापुर शोध संस्थान, मेरठ।
दैनिकजागरण,मेरठ, 5 मई 2007

जाट बलवान जय भगवान 💪 क्या आप जानते हो आज ऐसे महावीर योद्धा का बलिदान दिवस है ---- जिसने भरे मुगल दरबार में निहत्थे ही दो...
21/07/2025

जाट बलवान जय भगवान 💪
क्या आप जानते हो आज ऐसे महावीर योद्धा का बलिदान दिवस है ----
जिसने भरे मुगल दरबार में निहत्थे ही दो शेरों को बीच में से फाड़ कर मुगल दरबार में कंपकपी भर दी थी।।
वीर सनातनी योद्धा राजा खेमकरण सोगरिया जी के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटिश: नमन और विनम्र श्रद्धांजलि 🙏💐

❌ "ये इंसान नहीं, दरिंदे हैं..."एक मासूम आवाज़ ने सिर्फ़ इतना कहा — "बाइक ठीक से चलाओ",और जवाब में मिली शराब की बोतल से ...
21/07/2025

❌ "ये इंसान नहीं, दरिंदे हैं..."
एक मासूम आवाज़ ने सिर्फ़ इतना कहा — "बाइक ठीक से चलाओ",
और जवाब में मिली शराब की बोतल से हमला,
⚠️ 3 दांत टूटे, 35 टांके, 10 से ज्यादा गहरे जख्म!

📍 नूंह (हरियाणा) — 17 साल की किशोरी पर हुआ क्रूर हमला,
👮‍♂️ पुलिस की लापरवाही चौकाने वाली — 4 दिन बाद भी FIR नहीं!

ये कैसा समाज बना रहे हैं हम?
👉 अब आवाज़ उठाने पर भी खामोश कर दिया जाता है।

🛑 न्याय की मांग करो!

“25 साल का इंतज़ार, न प्लॉट मिला न इंसाफ़ – ज़िंदगी की लड़ाई कोर्ट-कचहरी में ही गुज़र गई। अब 500 से ज़्यादा पीड़ित फिर स...
21/07/2025

“25 साल का इंतज़ार, न प्लॉट मिला न इंसाफ़ – ज़िंदगी की लड़ाई कोर्ट-कचहरी में ही गुज़र गई। अब 500 से ज़्यादा पीड़ित फिर से एकजुट, आंदोलन की तैयारी में।”

इस देश में कोई भी कभी भी कही भी ठगा जा सकता है फिर चाहे आप देश सेवक हो या फिर बड़े अधिकारी चाहे आप कोई मजदूर हों या फिर अफसर लेकिन हर आदमी अपने स्तर पर आपको लूटने की कोशिश करता ही है और सबसे बड़ा मजाक इस देश में की कानून सबके लिए बराबर है 🤣
कुछ लोग तो इंसाफ का इंतजार करते करते बेचे ऊपर चले जाते है और कुछ आत्महत्या कर लेते है और धोखेबाज लोग आराम से मजे के साथ जीते है और कानून सिर्फ आम जन के लिए ही है बाकी पैसे वाले लोगों के लिए तो ये सिस्टम भी एक खेल जैसा है कब किसको कहा पे इस्तेमाल करना है सब जानते है और उनको बताने के लिए बड़े बड़े सलाहकार होते है
ये सच्चाई है हमारे समाज की

यह रहा एक सोशल मीडिया पोस्टर जो इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकता है:

---

🛑 25 साल से प्लॉट का इंतज़ार!
🏠 देवी अहिल्या संस्था – कब मिलेगा इंसाफ़?

📍 इंदौर, मध्य प्रदेश
✅ 1100 प्लॉट्स का सपना दिखाया गया
⏳ 1998 से 2000 के बीच लोगों ने किए रजिस्ट्रेशन
⚖️ 25 साल बीत गए, आज भी न्याय अधूरा है
💔 कुछ लोग इंतज़ार करते-करते इस दुनिया से ही चले गए

📢 अब 500+ पीड़ित फिर से एकजुट
✊ आंदोलन की चेतावनी

❓आख़िर कब मिलेगा इंसाफ़? ❓सरकार और सिस्टम कब जागेगा?

📢 आवाज़ उठाइए!
#इंसाफ_दो #25साल_का_इंतजार #देवीअहिल्यासंस्था

21/07/2025
20/07/2025

हर हर शंभू
🙏🙏🙏

20/07/2025

15 मार्च 1938 ई. को हिसार में जन्मे मास्टर चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) के पिता चौधरी माडूराम एक मेहनती , इमानदार तथा धर्मपथ पर चलने वाले इन्सान थे | उनकी माता श्रवण देवी का निधन तभी हो गया जब चन्दगीराम सिर्फ दो वर्ष के थे | मास्टर चन्दगीराम कुश्तीकला में निपुण थे उन्हें दो बार भारत केसरी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | वे बहुत ही निश्चल और विन्रम स्वभाव के थे जिसके कारण देश के बच्चे बूढ़े सभी उनसे प्यार करते थे |

चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) ने 1954 ई. में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात जालन्धर से आर्ट्स-क्राफ्ट्स का डिप्लोमा प्राप्त किया | 1957 ई. में उनकी नियुक्ति गर्वनमेंट हाईस्कूल मुंढाल में एक ड्राइंग मास्टर के रूप में हुयी | इनके चाचा श्री सदाराम अपना जमाने के माने हुए पहलवान थे जिनकी मौत 1954 ई. में हो गयी थी | पहलवानी की वंश-परम्परा को बरकरार रखने के लिए उनके पिता ने इन्हें कुश्ती कला की ओर उकसाया | यह जानकर लोगो को काफी आश्चर्य होगा कि बचपन में चन्दगीराम हृष्ट-पृष्ट नही थे |


विद्यार्थी जीवन में उन्हें अपनी कमजोरी बहुत अखरती थी | वे शुरू से ही लम्बे कद के थे | बस फिर क्या था अध्यापक बनने के तुंरत बाद उन्होंने शरीर साधना शुरू कर दी | उनका सुगठित शरीर अपना और अपने देश का नाम ऊंचा करने का संकल्प – इन सबके संयोग से वह कुश्ती के क्षेत्र में उतर आये | अपने पिता को चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) ने पांच वर्षो के अंदर कुश्ती क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करने का वचन दिया था | तत्पचात उन्हें इसका अहसास हुआ कि कुश्ती एक कला है और बिना गुरु के इसमें पारंगत होना असम्भव है |

उस समय दिल्ली में दूर दूर तक चिरंजी का नाम चमक रहा था गुरु चिरंजी का सारा जीवन मल्लयुद्ध की पूजा और सेवा में गुजरा | सदाराम जी जो चन्दगीराम के चाचा थे उन्होंने भी अपना गुरु उन्ही को बनाया | दिसम्बर 1959 ई. में चन्दगीराम गुरु चिरंजी की शरण में आये और भारतीय संस्कृति और परम्परा के अनुसार उन्होंने गुरूजी के चरण छूकर पगड़ी बांधी | उनकी देखरेख में कुश्ती कला सीखने लगे | जिसके परिणामस्वरूप वे कुश्तीकला में निपुण हो गये |

सन 1961 ई. में भारत सरकार ने जाट रेजिमेंट में उन्होंने अपनी सेवा प्रदान की | 1957 ई, से 1961 ई. तक ड्राइंग मास्टर बनने के बाद सन 1962 ई. में वह जाट रेजिमेंट के बुलावे पर सेना में चले गये | सर्वप्रथम चन्दगीराम लाईट हेवी वेट वर्ग में शामिल थे | 1961 ई. में गुरूजी के साथ वह अजमेर आ गये , जहां महादेव मदने और अचम्भा हंचनाने को हराने के बाद भारतवर्ष के लाईटहैवी वेट चैंपियन बने | 1961 ई. में उन्होंने इंदौर के मशहूर पहलवान इसहाक को कोल्हापुर में केवल दो मिनट में चित्त कर दिया |

पहली जनवरी 1962 ई. को श्री मोहम्मद चार्ली कर्नाटक को , जो कोल्हापुर में हिन्द केसरी श्रीपत ख्च्नाले पहलवान के बराबर रहा था को सोलह मिनटों के भीतर ही उसे पराजित कर दिया | कुछ मिनटों में ही उन्होंने इंदौर में ही पाकिस्तान के गुलाम कादिर को 18 मिनट में ही पटखनी देकर पराजित किया | इस प्रकार इस सच्चे पहलवान ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक अकेले ही अपनी कुश्ती-कला के जौहर से सभी को मन्त्रमुग्ध कर दिया | चन्दगीराम ने अपने देश के सभी समकालीन पहलवानों से मुकाबला किया तथा धुल चटाई |

चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) ने दो बार विवाह किया | दरअसल उनकी एक शादी बचपन में ही हो गयी थी जब वे सिर्फ सात वर्ष के थे | उनका विवाह प्राइमरी में प्रवेश पाते ही 7 वर्ष की आयु में हो गया था | उन दिनों देहातो में बाल-विवाह प्रथा की प्रथा थी | चन्दगीराम जब चौदह वर्ष के हुए तो उनके बड़े भाई टेकचंद की मृत्यु हो गयी तो गाँवों ने जातीय परम्परा के मद्देनजर बड़े भाई की पत्नी को भी इन्ही के घर बिठा दिया लेकिन चन्दगीराम से जब भी विवाह के बारे में प्रश्न किया जाता तो वे अक्सर कहते है


“बलवान बनने के लिए नियमित रूप से व्यायाम और ब्रह्मचर्य का पालन दोनों ही आवश्यक है | मै विवाहित हु (मेरी दो पत्नियाँ है) | मेरी शादी सात वर्ष की आयु में हो गयी थी पर मैंने अपने जीवन में विवाह को संयम का बाधक नही पाया | मेरे विचार में पहलवानी के लिए विवाहित जीवन अभिशाप नही वरदान है यदि उसका दुरुपयोग न किया जाए,पहलवान गृहस्थ आश्रम में रहकर भी ब्रह्मचारी रह सकता है,मै अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी धर्मपत्नी को देता हु”।

चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) इश्वर के प्रति असीम श्रुद्धाभक्ति रखते थे | किसी भी तरह के नशा और मांसाहार से वे परहेज करते थे | वे बहुत हल्के भोजन का सेवन किया करते थे | उनकी धारणा है कि पहलवान को लम्बी सांस या दमखम बनाने के लिए शाकाहारी भोजन करना चाहिए | उनकी खुराक में लगभग पाँव भर घी , दो-ढाई किलो दूध , एक किलो फल , डेढ़ पाँव बादाम और हरी सब्जिया थी | उनकी अनुसार पहलवान का शरीर अत्यंत सुगठित ,ताकतवर ,हल्का वजन एवं फुर्तीला होना चाहिए क्योंकि बहुत वजन के पहलवान अधिक देर तक नही लड़ सकते | गामा पहलवान भी बहुत भारी नही थे परन्तु उसके बावजूद भी उन्होंने अपने ड्योढ़े और दुगुने भारी वजन के पहलवानों को मिनटों और सैंकड़ो में चित्त कर दिया था |

चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) ने एक बार कहा था “मै इस देश के लगभग सभी पहलवानों से लड़ चूका हु और दो-दो, तीन-तीन बार उन्हें पराजित कर चूका हु अकेले महाराष्ट्र के मारुती माने से मेरी तीन घंटे की एक कुश्ती बराबर छूटी थी | झ्न्देलर , श्रीपत मेहरदीन , निर्मलसिंह , भीमसिंह , जीत सिंह से कई बार लड़ चूका हुआ | यो मेहरदीन से मै एक बार हार चूका हु “| मेहरदीन और चन्दगीराम एक दुसरे के प्रतिद्वन्दी थे | पहले भारत केसरी आयोजन में भी यही दोनों पहलवान फाइनल में पहुचे थे |

सन 1968 ई. में भारत में आयोजित की जाने वाली भारत केसरी कुश्ती प्रतियोगिता में मात्र 38 मिनट में चन्दगीराम ने मेहरदीन को पराजित कर दिया था तथा भारत केसरी की उपाधि प्राप्त की थी और दुसरी बार भारत केसरी के दंगल के फाइनल में मेहरदीन को आठ मिनट में ही अखाड़ा छोड़ दिया था और बिना लड़े ही पराजय मान ली थी | चन्दगीराम में घमंड का नामोनिशान तक नही था | वह कहते थे “जब मै लड़ने के लिए अखाड़े में जाता हु तो जनता के प्रोत्साहन और बच्चो की शुभकामनाये से मुझे विजय प्राप्त होती है” |

चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) भाग्य से ज्यादा परिश्रम और साधना में विश्वास करते थे | चन्दगीराम विचार से मेहनती और आशावादी थे | उन्हें भाग्य पर कोई विश्वास नही था | उनका मानना था कि परिश्रम के बल पर प्रत्येक इन्सान सभी प्रकार की सफलता अर्जित कर सकता है फिर उन्होंने अपनी कुश्ती कला के कई संस्मरण सुनाये |

सेना के वीर अर्जुन उपाधि प्राप्त पहलवान उदयचंद से भी कुश्ती में उनकी भिडंत हुयी | इस कुश्ती का आयोजन सन 1959 ई. में उकलाना मंडी में हुआ था | इसका समय तीस मिनिट निश्चित हुआ और पुरे तीस मिनट में ताबड़तोड़ घमासान कुश्ती चली | गाँवों में ज्यादातर लाग-डाग की कुश्ती आयोजित की जाती थी | समय हो जाने पर रेफरी ने कुश्ती छुडानी चाही परन्तु दोनों पहलवानों ने इंकार कर दिया कि इन्हें लड़ने दिया जाए तथा समय सीमा से मुक्त रखा गया परन्तु 45 मिनट बीतने के बाद दोनों पहलवान थककर चूर हो गये और कुश्ती छोडकर एक दुसरे से गले मिलकर अखाड़ा छोड़ दिया |

चन्दगीराम (Master Chandgi Ram) ने अपनी कुश्ती कला के बल पर दुनिया में भारत का नाम रोशन किया इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नही है कि वे भारत का गौरव है | सच है कि कुश्ती एक ऐसा खेल है जिस पर समुचित ध्यान दिया जाए तो क्रिकेट , हॉकी या फुटबाल की तरह यह भी भारत में लोकप्रिय साबित हो सकता है परंतु सरकार की उदासीनता की कारण अभी तक इस खेल को उपयुक्त स्थान नही प्राप्त हो सका है।

20/07/2025

भगत सिंह कहते थे, "बहरे कानों तक अपनी आवाज़ पहुँचाने के लिए अक्सर धमाकों की ज़रूरत पड़ती है।"

लेकिन उनको कहाँ पता था कि लोगों की स्मृति इतनी कमज़ोर है कि उनके जाने के बाद वे सिर्फ़ उनका 'धमाका' ही याद रखेंगे। और उनको भूल जाएँगे, उनके संघर्ष को भूल जाएँगे।

भगत सिंह पर आधारित कहानियाँ तो हम बचपन से ही देखते आए हैं। आज हम भगत सिंह के जीवन से कुछ तथ्य आपके लिए लाए हैं।

इन सारी घटनाओं के साथ, उस वक्त पर उनकी उम्र पर भी ध्यान दें। और विचार करें कि उस उम्र में आपका जीवन कैसा था।

जन्म: 28 सितंबर 1907, लायलपुर (पंजाब) में जन्म हुआ।

➖ 10 की उम्र में कक्षा 9 तक पढ़ाई पूरी की।

➖ 12 की उम्र में जलियाँवाला बाग हादसा देखा। वहाँ की खूनभरी मिट्टी बोतल में बंद कर घर लेकर आए।

➖ 14 की उम्र में नेशनल कॉलेज, लाहौर गए। पहली बार किसी छात्र को 10वीं किए बिना, प्रतिभा के दम पर कॉलेज में एडमिशन मिला।

➖ 16 की उम्र में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। HRA (बाद में HSRA बना) जॉइन किया।

➖ 16 की उम्र में शादी के लिए दबाव के चलते घर से भागकर कानपुर चले गए।

➖ 16 की उम्र में 'प्रताप' नाम की पत्रिका में लेखन का काम मिला। साथ ही अलीगढ़ के एक स्कूल में हेडमास्टर की नौकरी मिली।

➖ 19 की उम्र में गरिबाल्डी व मज़ीनी की संस्था 'Young Italy' से प्रेरित होकर 'नौजवान भारत सभा' नाम की संस्था शुरू की।

➖ 20 की उम्र में पहली बार जेल गए। 5 हफ़्तों के लिए पुलिस हिरासत में रहे। 60 हज़ार रुपए देकर ज़मानत मिली। शहर से बाहर जाने पर पाबंदी लगी तो कीर्ति, अकाली, महारथी, प्रभा व चाँद जैसी पत्रिकाओं के लिए क्रांतिकारी लेख लिखे।

➖ 21 की उम्र में लाला लाजपत राय जी की हत्या का बदला लिया। लाहौर से वेश बदलकर निकल गए।

➖ 21 की उम्र में 'सेंट्रल असेम्ब्ली' (आज का संसद भवन) में बम व अपने मिशन से जुड़े पैम्फलेट फेंके।

➖ 22 की उम्र में राजनीतिक कैदियों के हितों के लिए 112 दिनों की भूख हड़ताल पर बैठे। साथ में, अपना केस भी लड़ा। केस के दौरान अलग-अलग मौक़ों पर आवाज़ ना सुने जाने पर दो बार फिर भूख हड़ताल पर बैठे।

➖ 23 की उम्र में 23 मार्च 1931 को फाँसी पर चढ़ गए। पार्थिव शरीर के टुकड़े कर, बोरे में भरा और गाँव के बाहर पुलिस कर्मियों द्वारा जला दिया गया।

विलक्षण प्रतिभा के धनी थे: 5 भाषाएँ जानते थे, कॉलेज के दिनों से ही अभिनय में रुचि रखते थे, उनके द्वारा लिखे गए 100+ लेख पत्रिकाओं व अख़बारों में प्रकाशित हुए, मृत्युदण्ड मिलने पर बिना कोई अपील दायर किए फाँसी पर चढ़ गए।

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कुछ ऐसे थे हमारे भगत सिंह। लेकिन आज हम उन्हें कैसे याद करते हैं?

आज हम उनके जीवन के किन पहलुओं का उत्सव मनाते हैं?

आज भी उनके नाम लेने भर से हमारी धड़कने तेज़ हो जाती हैं। पर हमारे भीतर भगत सिंह जैसी सत्यनिष्ठा और निडरता जगाने वाले कितने तत्त्व हैं हमारे जीवन में?

20/07/2025

दारा सिंह एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता और पहलवान थे, जिन्होंने अपने करियर में कई फिल्मों में काम किया। उन्होंने मुख्यतः हिंदी और पंजाबी फिल्मों में अभिनय किया और उन्हें एक्शन फिल्मों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। उनकी कुछ मशहूर फिल्में हैं "किंग कॉन्ग," "सिकंदर-ए-आज़म," और "धरम करम"। इसके अलावा, उन्होंने रामानंद सागर की टेलीविजन सीरीज़ "रामायण" में हनुमान की भूमिका निभाकर अपार लोकप्रियता हासिल की। उनका फिल्मी करियर उनकी मजबूत काया और बहुमुखी अभिनय प्रतिभा के लिए सदैव याद किया जाएगा।

***"दारा सिंह के फिल्मी करियर के रोमांचक सफर की कहानियां और उनकी अविस्मरणीय भूमिकाएं पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें, शेयर करें और कमेंट में अपने पसंदीदा किरदार का नाम बताएं!"



20/07/2025

हरियाणा राज्य के जींद जिले के मालवी गाँव में जन्मी कविता देवी WWE में लड़ने वाली पहली भारतीय फीमेल प्रोफेशनल रेसलर हैं



#हरियाणा

20/07/2025

पंजाब से लेकर अफगानिस्तान तक अखंड भारत के विजेता जाट सिख साम्राज्य स्थापित करने वाले महान योद्धा महाराजा रणजीत सिंह जी को पुण्यतिथि पर सादर नमन…

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