09/10/2025
1940 के दशक में, जब #भारत का #संविधान आकार ले रहा था और 'इंडिया एक्ट' पूरी तरह लागू था, एक अखंड भारत के निर्माण की संभावना प्रबल थी।
इसी दौरान,
यह दावा किया जाता है कि डॉ. अंबेडकर, पेरियार और जिन्ना ने एक साथ बैठकें कीं और भारत को तीन हिस्सों—पाकिस्तान, दलितिस्तान और द्रविड़स्तान—में बांटने का प्रस्ताव रखा। इस विषय पर कई चर्चाएं और बैठकें हुईं, लेकिन महात्मा गांधी, सरदार पटेल और #जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय नेताओं ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
यह तर्क दिया जाता है कि डॉ. #अंबेडकर कभी नहीं चाहते थे कि देश आज़ाद हो। #इतिहासकारों का मानना था कि वे कभी देश के साथ खड़े नहीं हुए और हिंदुओं को कमज़ोर करने के बदले अंग्रेजों का साथ देते रहे। उन्हें यह डर सता रहा था कि यदि सत्ता उन भारतीय नेताओं के हाथ में आ गई, जिनका उन्होंने अंग्रेजों के साथ मिलकर विरोध किया था, तो उनका क्या होगा।
इसलिए, उन्होंने पूरी ताक़त के साथ आज़ादी का विरोध किया। सितंबर 1945 में, उन्होंने लॉर्ड वावेल को कई पत्र लिखे (कुल 10 पत्र), जिसमें उन्होंने अनुरोध किया कि ब्रिटिश सरकार भारत को सत्ता हस्तांतरण के लिए तैयार न हो, क्योंकि इससे दलितों का शोषण बढ़ जाएगा और उन्हें मिलने वाला अलग #निर्वाचन का #आरक्षण समाप्त हो जाएगा।
यह भी कहा जाता है कि डॉ. अंबेडकर ने लगभग हर बड़े अंग्रेज अधिकारी—लॉर्ड लिनलिथगो से लेकर कैबिनेट मिशन तक—को पत्र लिखकर #दलितों को #हिंदुओं से अलग करने और उन्हें विशेष अधिकार देने की मांग की। उनका एक ही उद्देश्य था कि देश आज़ाद न हो पाए और सत्ता का हस्तांतरण न हो।
हालांकि, उनकी यह कोशिश सफल नहीं हुई। फिर भी, यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत धार्मिक रूप से ईसाईयत के प्रभाव में रहे, लॉर्ड वावेल ने नेहरू पर दबाव बनाकर #अंबेडकर को #संविधान सभा में शामिल करवाया।
बाद में, अंबेडकर ने अगड़े दलितों के लिए अलग से राजनीतिक आरक्षण और 1951 में पहले संवैधानिक संशोधन के ज़रिये शिक्षा और नौकरी में आरक्षण दिलाकर भारत को कथित तौर पर कमज़ोर कर दिया, जिसके परिणाम देश आज भी भुगत रहा है।
मद्रास प्रेसीडेंसी से संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद इस्माइल खान ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी: "प्रारूप समिति का काम तो केवल एक पहले से लिखी किताब पर जिल्द चढ़ाने जैसा था।" यह कथन इस धारणा को पुष्ट करता है कि संविधान का अधिकांश कार्य पहले ही हो चुका था।
यह सत्य है कि पूरे संविधान का निर्माण सर बी.एन. राउ ने किया था, और संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर ने उस पर "जिल्द चढ़ाकर" उसे प्रस्तुत किया। लेकिन 1990 के दशक के बाद, भारतीय नेताओं ने वोट बैंक के लालच में डॉ. अंबेडकर को ही संविधान निर्माता घोषित कर दिया और जो असली शिल्पकार थे, उन्हें भुला दिया गया।
आज डिजिटल युग में सही जानकारी तेजी से लोगों तक पहुँच रही है, और इसके साथ ही डॉ. बी.आर. अंबेडकर के बारे में कुछ धारणाएँ बदल रही हैं।
अब यह बात सामने आ रही है कि कुछ लोग उन्हें राम-विरोधी, कृष्ण-विरोधी और ईसाई मिशनरियों के इशारे पर हिंदू धर्म को कमजोर करने वाला मानते हैं।
यह दावा भी किया जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें इन कार्यों के लिए पुरस्कृत किया—पहले उन्हें वायसराय की कैबिनेट में लेबर मिनिस्टर बनाया गया, और फिर चुनाव हारने के बावजूद, अंग्रेजों के दबाव में ही नेहरू ने उन्हें संविधान सभा में शामिल किया, जिसके दुष्परिणाम देश आज भी भुगत रहा है।