05/09/2025
गोपाल से पत्नी बोली " दरवाजे पर तुम्हारी माँ खड़ी है। लगता है बुढ़िया को पैसे की जरूरत आन पड़ी है। तभी तो मुँह उठाये चली आई।
पैसे ले जाकर छोटे बेटे का पेट भरना चाहती है। मगर ये नही जानती बड़ा बेटा यहाँ शहर मे कितनी मुश्किलों से गुजर रहा है? गोपाल कुछ ना बोला। उसने जाकर चुपचाप गेट खोला। माँ को देखकर उसके पैर लगा।
फिर उसका बैग उठाकर अंदर ले आया। माँ बोली " क्या हुआ बेटा? बहुत दुबला पतला हो गया है? तबियत खराब है क्या? इस बार गाँव भी नही आया। डेढ़ साल हो गया तुम लोगों को देखे हुए। इसलिए चली आई।" ना कुछ गोपाल बोला ना बहु बोली।
माँ आगे बढ़कर पोते और पोती से बतियाने लगी। गोपाल चुपचाप माँ के पास बैठ गया। माँ गाँव से बेर का थैला भर कर लाई थी। पोते पोती को खिलाने लगी
उन्हे लाड लडाने लगी। पोते को प्यार करते हुए वह गोपाल से बोली " क्या हुआ रे? इतना दुबला कैसे हो गया? बहु के भी हाड़ दिखने लगे हैं। चेहरे पर जरा भी माँस नही बचा। " गोपाल बोला " कुछ नही माँ । आजकल थोड़ी टेंशन चल रही है। बरसात का मौसम चल रहा है ना। ठेले का काम नही चल रहा।" बहु चाय बना लाई थी। ज्यों ही सास ने चाय को चखा वापस थूक दिया। बोली " बहू ये कैसी चाय है? चिंचड़ों जैसी बांस आ रही है
मुझसे ना पी जायेगी।" बहु चाय का कप वापस उठा कर पैर पटकती हुई चली गई। उधर गोपाल चाय की चुस्की लेता हुआ बोला " चाय मे डिब्बे का दूध है माँ। इसलिए तुम्हे बुरी लग रही है। हम लोग तो यही पीते हैं।" माँ बोली " इतनी परेसानी झेल रहा है तो गाँव क्यों नही आ जाता? कम से कम बच्चों को असली दूध पीने को तो मिलेगा। " गोपाल चुप हो गया।
क्योंकि वह माँ को नही बता सकता था कि उसकी बहु गाँव मे नही रहना चाहती। माँ रात को रुकी मगर सुबह होते ही वापस जाने की तैयारी करने लगी। गोपाल को डर सता रहा था कि माँ पैसे माँगेगी। इस समय वह जिंदगी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था।
तीन महीने का मकान का किराया बकाया चल रहा था। बच्चों को फीस न देने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया था। पत्नी का कमर दर्द बढ़ गया था मगर डॉक्टर को दिखाने के लिए पैसे नही थे। जाने से पहले माँ ने गोपाल को पास बुलाया ।
इतना सुनते ही गोपाल का दिल धड़क उठा वह माँ को पैसे देने से मना करने के लिए शब्द ढूंढने लगा। उधर गोपाल की पत्नी रसोई की चौघाट पर कान लगा कर खड़ी हो गई। वह सोचने लगी की बुढ़िया को ऐसा जवाब देगी कि आइंदा पैसे माँगने कभी नही आयेगी।
माँ ने उसे पास बैठने के लिए कहा। फिर अपने थैले मे से अपनी पोटली निकाली और उसमे से नये पुराने नोटो की बनाई हुई एक गड्डी निकाली और गोपाल की तरफ बढ़ाती हुई बोली " ले रख ले। बीस हजार है।
तेरे काम आयेंगे। इस बार फ़सल अच्छी हुई थी।" गोपाल आगे हाथ न बढ़ा सका। उसका दिल भर आया था। मन कर रहा था माँ की गोद मे लेट जाए।
और थोड़ा सा रो ले। और कहे कि माँ इतना बुरा नही हूँ। बस जिम्मेदारियों ने मजबूर बना दिया है।" माँ बोली " क्या हुआ? माँ हूँ तेरी। मुझसे क्या छुपायेगा? दो साल से घर नही आया तभी से समझ गयी थी कि तू परेसानी मे है।
ले पैसे रख ले। ज्यादा बड़ा हो गया क्या? रख ले। " कहते हुए माँ ने बीस हजार रुपये उसकी हथेली पर ऐसे रख दिया जैसे बचपन मे अठन्नी रखा करती थी।" उधर रसोई से ये सब देख रही बहु की रुलाई फुट पड़ी।
उसने पल्लू मुँह मे दबा कर सुबकने की आवाज को दबा लिया।
सभार 🙏
लेखक डी आर सैनी।