SaCh ki Awaj

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22/05/2025

ये है सांसद सहारनपुर इमरान मसूद जो नकुड विधायक मुकेश चौधरी व सहारनपुर के अन्य नेताओं के बारे में बात कर रहे हैं इनके शब्दों व भाषा का खेल बड़ा कमजोर है बोटी बोटी से भाजपा कि लहर यही लेकर आए थे, और खुद भी इसी कमजोरी कि वजह से 17 साल बाद वापसी कि हैं।
सवाल है कि क्या ये भाषा ये शब्द जायज़ है? जनता द्वारा चुने गए एक व्यक्ति के खिलाफ इस तरह कि शब्दावली प्रयोग करना सही है?
तो जवाब है बिल्कुल नहीं।
आप बडे़ नेता हो सकते हो, हो सकता है तुम नेता बनाते हो लेकिन अपने शब्दों के हेर फिर को दुरुस्त किजिए सहाब

#इमरानमसूद

इस देश में अगर सबसे ज्यादा ज्यादती किसी तबके के साथ हुई है तो वह है "छात्र " क्योंकि पहले तो उसको माँ बाप के द्वारा बडे़...
30/07/2024

इस देश में अगर सबसे ज्यादा ज्यादती किसी तबके के साथ हुई है तो वह है "छात्र " क्योंकि पहले तो उसको माँ बाप के द्वारा बडे़ बडे़ सपने दिखाए जाते हैं।
और फिर जब वह छात्र अपना सब कुछ दाव पर लगाकर उन सपनों के पिछे दौडता है तो उसे समझ आता है कि यह सपना तो मुझ पर थोपा गया है, क्योंकि यह सपना तो मैंने कभी अपनी आखो से देखा ही नहीं।
मगर जैसे तैसे करके वह उस सपने कि चाह में अपने घर परिवार को छोड़, हादसों कि नगरी दिल्ली में प्रवेश करता है।
जहाँ कि सडकों, खंबों और कुछ बडे चौक चौराहों के द्वारा उसे सफलता कि अफीम बेची जाती है
जिसकी गिरफ्त में आकर वह छात्र ,कई साल उन छोटे छोटे कमरों के गुलाम बन कर अपनी सफलता तलाशते नजर आते हैं। मगर क्या सफलता इतनी जल्दी मिल जाती है? क्या वह मंजिल जिसके पिछे उनको, बिना अपने मन कि इजाजत के दौडना पड़ता है, वह इतनी नजदीक होती है?
जी नहीं।
तो इस जद्दोजहद के बाद उन छात्रों को मिलती है निराशा असफलता कि निराशा, घर वालों के हालातों कि निराशा, अपने मन की निराशा।
मगर इस सबके बाद भी वह छात्र लगातार अपने दुःख तकलीफ छुपाकर उस भट्टी में तपने पर लगा रहता है।
मगर यह संघर्ष सिर्फ मन का संघर्ष नहीं होता बल्कि इस संघर्ष में प्रवेश करती है भारत कि सडी गली प्रशासनिक व्यवस्था।
जहाँ कालाबाजारी है, जहाँ धांधलगर्दी है, जहाँ सरकार कि सुविधाओं के अलावा कुछ नहीं है।
छात्र महज किताबों से नहीं लडता , बल्कि वो लडता है इस पुरे सरकारी तंत्र से, इस पुरी प्रशासनिक व्यवस्था से, परिजनों के तानो से, और अपने मन से।

और जिस शहर में इन छात्रों का जमावड़ा है वहा ब्लेम गैम के अलावा कुछ नहीं, वहा छात्रों कि म्रत्यु भी "आम आदमी के लिए आम है"
MSD के लिए महज़ दो दिन कि मेहनत है
और केन्द्र सरकार के केन्द्र से दिल्ली बहार है
विकास कि बात करते तो वो महज तजुर्बा है।
अवध के लिए वो धंधा है।
और बाकीयो के लिए भी जिसकों मरना है उनको तो मरना है।



25/07/2024

इस वीडियो में जिस शख्स को लात घुसों से नवाजा जा रहा है, जिस शख्स पर बिहार पुलिस अपनी लाठी कला का प्रदर्शन कर रहीं हैं।
यह कोई ओर नहीं बल्कि वो व्यक्ति हैं जिसको "आक्सीजन मैन" के नाम से जाना जाता है। वो व्यक्ति जिसको "SOS Man" कि उपाधि दी गई है।
यही वो व्यक्ति हैं जिसने असंख्य जानों को बचाने का काम किया है।
मगर ऐसा क्या कारण है कि इनकी सारी मेहनत, सारी तपस्या का फल इनको कंधे पर मेडल के बजाए कंधे पर लाठी के गहरे,नीले निशानों के रूप में दिया जा रहा है?

तो सुनिए इतना सब कुछ देश हित में करने के बाद इनकी सबसे बड़ी गलती है राजनीतिक विचारधारा, जो सत्ताधारी दल के साथ ना होकर उसके खिलाफ है।

दूसरी इनकी गलती यह है कि ये जमीनी स्तर पर लडाई लडते नजर आते है जो शायद सत्ता धारी दल को रास नहीं आती।

यह विडियो जिस घटना का है, वो बिहार कि घटना है जब Srinivas BV कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ विधानसभा घेराव करने पहुंचे थे। और उनका यह सहास बिहार पुलिस को रास नहीं आया इसलिए उन्होंने तस्सली बख्श अपने दुस्साहस का परिचय देते हुए इनकी अच्छी खातिरदारी कि।

अब सवाल यह है कि
क्या आपकी राजनीतिक सोच आपकी इंसानियत पर भी हावी है?
खैर जरूर बताए।

24/07/2024

ये सुधीर चौधरी जी है।
जो सरकार के जाने माने प्रवक्ता है.
ये वही है जिन्होंने तीन काले कानुनो को सही ठहराया।
नोटबंदी के कसीदे पढ़े।
अग्निपथ को सही ठहराया।
और सरकार की हर उस योजना के फायदे गिनवाए जिससे प्रत्यक्ष तौर आम जन की जेब काटी गई हो।
मगर जब बात खुद कि जेब पर आई तो उछाल पडे, मैं मानता हूँ कि सही है।मगर क्या अब ये तेवर हर मुद्दे पर बरकरार रहेंगे?

24/07/2024

नेपाल के काठमांडू में हुए प्लेन हादसे का विडियो।
👉प्लेन के रनवे से फिसलने के कारण हुई यह घटना।
👉करीब 19 लोग सवार थे प्लेन में।

24/07/2024

यही वो असमाजिक तत्व है जिनकी वजह से पुरा धर्म बदनाम होता है।

और ये दोनों तरफ है!

मगर ये घटना मुज़फ्फरनगर की है जहाँ कुछ कावड़ियों ने एक कार को तोड डाला और एक फुड प्लाजा में तोडफोड कर डाली, यह आरोप लगाते हुए कि गाड़ी वाले के द्वारा उनकी कावड़ को खंडित कर दिया।

उसके बाद जो उन्होंने कावड़ को "अखंडित" करने के लिए उत्पात मचाया वो आपके सामने है।

मुझे पता है कि मेरी ये बातें शायद उन लोगों को तकलीफ दे जो सिर्फ राजनीतिक हिन्दू है। मगर मैं अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र हु।
आप सब इस बात से सहमत होंगे कि कावड़ियों में करीब करीब 40% वो लोग होते हैं जो आते वक्त नशे में धुत होतें है। ये जमीनी सच्चाई है।

उनमें करीब करीब 30% नौजवान ऐसे भी होतें है जो इस मानसिकता के होते है कि वो एक भीड़ का हिस्सा है, इसलिए वो कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है और वो धर्म के नाम पर कुछ भी कर जातें हैं जिसकी वजह से यह घटनाएं होती है।

उनमें करीब करीब 10 से 20 प्रतिशत वो होते हैं जो एक दिखावे मात्र का हिस्सा बनकर बड़ी मात्रा में जल उठाकर लाते हैं, और उसको आस्था से जोडकर हम सबके सामने रखते हैं जबकि ऐसा किसी ग्रंथ पुराण में नहीं लिखा हुआ।

फिर एक जमात है "डाक कावड़" कि जो शर्त लगाकर जातें हैं कि कोन सबसे पहले जल लेकर गाँव में आएगा, जिसमें ना जाने कितने घरों के चिराग सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हुए हैं। लेकिन हौड जारी है। सडको पर बिना साईलेनसर कि बाइकों का हुड़दंग जारी है।

तो जाने वाले 10% ही वो लोग है जो अपनी आस्था से जल/कावड़ लेने जातें हैं और ये सच्चाई है हम‌ सब जानते हैं मगर बोलते नहीं, पता नहीं क्यों?

अब सवाल है
कि क्या धर्म के नाम पर ये चीजें जायज है?
क्या इन चीजों से हमारी आस्था को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए?
क्या इन चुनिंदा लोगों की वजह से तमाम धर्म कि बदनामी नही होती?

जरूरत है विचार करने कि। सवाल करने कि।
आप तमाम लोगों से उम्मीद है कि आप अपनी राय जरूर देंगे।

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