30/07/2024
इस देश में अगर सबसे ज्यादा ज्यादती किसी तबके के साथ हुई है तो वह है "छात्र " क्योंकि पहले तो उसको माँ बाप के द्वारा बडे़ बडे़ सपने दिखाए जाते हैं।
और फिर जब वह छात्र अपना सब कुछ दाव पर लगाकर उन सपनों के पिछे दौडता है तो उसे समझ आता है कि यह सपना तो मुझ पर थोपा गया है, क्योंकि यह सपना तो मैंने कभी अपनी आखो से देखा ही नहीं।
मगर जैसे तैसे करके वह उस सपने कि चाह में अपने घर परिवार को छोड़, हादसों कि नगरी दिल्ली में प्रवेश करता है।
जहाँ कि सडकों, खंबों और कुछ बडे चौक चौराहों के द्वारा उसे सफलता कि अफीम बेची जाती है
जिसकी गिरफ्त में आकर वह छात्र ,कई साल उन छोटे छोटे कमरों के गुलाम बन कर अपनी सफलता तलाशते नजर आते हैं। मगर क्या सफलता इतनी जल्दी मिल जाती है? क्या वह मंजिल जिसके पिछे उनको, बिना अपने मन कि इजाजत के दौडना पड़ता है, वह इतनी नजदीक होती है?
जी नहीं।
तो इस जद्दोजहद के बाद उन छात्रों को मिलती है निराशा असफलता कि निराशा, घर वालों के हालातों कि निराशा, अपने मन की निराशा।
मगर इस सबके बाद भी वह छात्र लगातार अपने दुःख तकलीफ छुपाकर उस भट्टी में तपने पर लगा रहता है।
मगर यह संघर्ष सिर्फ मन का संघर्ष नहीं होता बल्कि इस संघर्ष में प्रवेश करती है भारत कि सडी गली प्रशासनिक व्यवस्था।
जहाँ कालाबाजारी है, जहाँ धांधलगर्दी है, जहाँ सरकार कि सुविधाओं के अलावा कुछ नहीं है।
छात्र महज किताबों से नहीं लडता , बल्कि वो लडता है इस पुरे सरकारी तंत्र से, इस पुरी प्रशासनिक व्यवस्था से, परिजनों के तानो से, और अपने मन से।
और जिस शहर में इन छात्रों का जमावड़ा है वहा ब्लेम गैम के अलावा कुछ नहीं, वहा छात्रों कि म्रत्यु भी "आम आदमी के लिए आम है"
MSD के लिए महज़ दो दिन कि मेहनत है
और केन्द्र सरकार के केन्द्र से दिल्ली बहार है
विकास कि बात करते तो वो महज तजुर्बा है।
अवध के लिए वो धंधा है।
और बाकीयो के लिए भी जिसकों मरना है उनको तो मरना है।