15/05/2025
*देवर के उपर भाभी **
राधिका अपने पति, रवि के छोटे भाई, अर्जुन के साथ छत पर खड़ी थी। हल्की बारिश की फुहारें उनके जिस्म को छू रही थीं, और ठंडी हवा में एक अजीब सी सिहरन थी। रवि के गुज़र जाने के बाद, राधिका एक खालीपन से घिरी हुई थी, और अर्जुन, अपनी शांत लेकिन गहरी आँखों से, अक्सर उसकी ओर देखता था।
उस शाम, छत पर एक अलग ही माहौल था। बारिश की रिमझिम और दूर से आती बादलों की गड़गड़ाहट उनके बीच एक नशीली चुप्पी घोल रही थी। राधिका ने महसूस किया कि उसकी पतली साड़ी बारिश की बूंदों से चिपक रही है, उसके बदन की नर्म रेखाएं अर्जुन की नज़रों में और साफ़ हो रही थीं। अचानक, एक ठंडी लहर उठी, और राधिका के कंधे सिकुड़ गए। अर्जुन ने बिना कुछ कहे अपनी शॉल उतारी और उसके नाजुक कंधों पर डाल दी।
"धन्यवाद, अर्जुन," राधिका की आवाज़ में एक धीमी कांपन थी।
"कोई बात नहीं, भाभी," अर्जुन ने जवाब दिया, उसकी आवाज़ में एक गहरापन था जो राधिका के दिल की धड़कनों को तेज़ कर गया। उसकी उंगलियां शॉल को ठीक करते वक़्त राधिका की गर्दन के करीब मंडरा रही थीं, एक हल्का सा स्पर्श जो बिजली की तरह दौड़ गया।
दोनों कुछ देर तक खामोश रहे, बारिश की भीगी हवा में सांस लेते हुए। फिर, अर्जुन का हाथ धीरे-धीरे बढ़ा और राधिका की नम हथेली को छू लिया। राधिका की सांसें थम गईं, लेकिन उसने अपना हाथ नहीं हटाया। अर्जुन की उंगलियों की गर्मी उसके पूरे शरीर में फैल रही थी।
उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में झाँका। उस पल, राधिका ने अर्जुन की आँखों में सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि एक दबी हुई चाहत की झलक देखी। और अर्जुन की नज़रों में, राधिका ने अपने अकेलेपन का जवाब, एक तड़प महसूस की।
बारिश अब तेज़ हो गई थी, उनकी साड़ियाँ और कुर्ते जिस्म से चिपक रहे थे, उनकी साँसों की गर्मी एक-दूसरे से टकरा रही थी। अर्जुन ने राधिका का हाथ पकड़ा और उसे खींचकर कमरे में ले गया। अंदर, हल्की रोशनी में, उनके भीगे हुए वजूद एक-दूसरे के करीब आ गए। अर्जुन की बाँहों का घेरा राधिका के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया, और उसकी साँसें अर्जुन के कानों में घुल रही थीं।
उनकी दबी हुई भावनाएं अब बेकाबू हो रही थीं। अर्जुन के होंठ धीरे-धीरे राधिका के माथे पर झुके, फिर उसकी आँखों पर, और फिर उसके होंठों पर एक हल्का सा स्पर्श किया। राधिका ने अपनी आँखें मूंद लीं, उस पहले स्पर्श की मिठास को महसूस करते हुए।
उस रात, विधवा भाभी और देवर के बीच की सारी दीवारें टूट गईं। उनकी दबी हुई इच्छाएं बारिश की बूंदों की तरह एक-दूसरे में समा गईं, एक ऐसा बंधन बन गया जो समाज की नज़रों से परे, सिर्फ उनके दिलों में धड़कता था।