Singh anju chauhan

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वे जोड़ने वाले लोग थेहर चीज जोड़ कर रखते थेचश्मा टूटा तब कतरन बांधीढीली अंगूठी पर लपेटा धागा फटे कुर्ते पर पैबंद चप्पल प...
15/09/2025

वे जोड़ने वाले लोग थे
हर चीज जोड़ कर रखते थे
चश्मा टूटा तब कतरन बांधी
ढीली अंगूठी पर लपेटा धागा
फटे कुर्ते पर पैबंद
चप्पल पर कील ढोंक रस्सी की गाँठ खींच ली।

बड़े चतुर, मेहनती लोग थे
पतीले के हैंडल पर लकड़ी जोड़ लेते
चाकू की धार खुद तेज करते
उनके घर की कुंडी कसी रही
लकड़ी एक कुल्हाड़ी से दो फांक कर लेते।

वे संभाल कर रखते थे
उनके यहाँ मैंने बेकार चीजें नहीं देखी
पुराने कपड़ों के गुदड़े बने
परात पर पतावे लगा कर संभाला गया
कहीं घिस न जाए
फूटी टोकनी पर तली लगवा ली
बाल्टी पर पैंदी
मटके की दरार पर सीमेंट लेप ली
साल भर का ईंधन समेटते थे
पूरे साल का अनाज।

वे मेरा मेरा नहीं
आपणी बेटी, आपणी बहू,
आपणा भाई, आपणा गाम पुकारते थे
सब साझा था
पंचायती बर्तनों में जीमते- जूठते
ऊँची परस( धर्मशाला) वाले लोग थे।

एक दिन जुड़ी जुड़ाई सब चीजें टूट गई
कैसे, कब पता नहीं
हाँ! इतना जानती हूँ
अब कोई जोड़ने वाला भी नहीं रहा
यहाँ टूटी चीजें बस फेंक दी जाती हैं।

प्रेम में रिश्ता हो तो मेरे राधे कृष्ण साअलौकिक अप्रतिम अद्भुत आध्यात्मिकजिसमें सिर्फ और सिर्फ प्रेम हो और बस प्रेम ही प...
12/09/2025

प्रेम में रिश्ता हो तो मेरे राधे कृष्ण सा
अलौकिक अप्रतिम अद्भुत आध्यात्मिक
जिसमें सिर्फ और सिर्फ प्रेम हो
और बस प्रेम ही प्रेम, पवित्र प्रेम...
जिसमें न कोई कामना हो, न कोई लालसा
न कहीं स्थान हो जरा सा भी वासना का
एक के हृदय में हो निवास दुजे का,
दोनो बने हो ज्यो एक दुसरे के वास्ते ही,
अधूरा हो नाम एक का दुसरे के बिना
एक की मुरत में तस्वीर ज्यो दिखती हो दुजे की
अस्तित्व हो ऐसा प्रेम का कि
अलग करने पर भी अलग हो न पाए नाम एक दुसरे से
दूर कितने भी हो एक दुसरे से
पर हृदय में निकटता कभी कम न हो
स्पर्श में स्नेह हो, ममता हो, वात्सल्य हो, प्रेम हो, सम्मान हो एक दुसरे के लिए
न कोई वासना हो, आवेग हो, आकांक्षा हो न कोई आवेश हो,
ऐसा अदम्य निराला अपूर्व प्रेम हो, तो हो....!! श्री राधे कृष्णा 🌺

Poetry by
Shobha Rani Chaudhary

साभार 🙏🏻















#स्त्री
Image credit PINTEREST

12/09/2025

पीड़ा जब चरम पर होती है तब बहुत बोलना चाहने पर भी शब्द साथ नहीं देते। और मौन रहना चाहो तो अंतर्मन इतना अधिक शोर करता है कि हृदय के कान फटने लगते हैं। एक ओर खूब जोर से चीखने और चिल्लाकर रोने की इच्छा होती है तो दूसरी ओर सारी दुनिया से दूर कहीं क्षितिज की गहराई में छिप जाने का मन करता है। इस अजीब सी कश्मकश में इनसान यूँ टुकड़े-टुकड़े होकर बिखरता है कि फिर उन टुकड़ों को जोड़कर वैसी सुन्दर कृति दोबारा कभी नहीं बन पाती। मन रेत होकर उड़ जाता है हवा के साथ और बिना मन का तन पड़ा रह जाता है स्टोर रूम में पड़ी बिगड़ी हुई दीवार घड़ी की तरह जिसकी सूइयाँ हिलती तो हैं पर आगे कभी नहीं बढ़ पातीं........

  में लोकतंत्र प्रारंभ से हीं वेंटीलेटर पर रहा है।16 साल में 13 पीएम बदले और अब ओली भी अपनी गति जा चुके हैं।ओली ने अपने ...
11/09/2025

में लोकतंत्र प्रारंभ से हीं वेंटीलेटर पर रहा है।

16 साल में 13 पीएम बदले और अब ओली भी अपनी गति जा चुके हैं।

ओली ने अपने इस कार्यकाल में एक बार भी भारत का दौरा नहीं किया।

वहीं नेपाल के पूर्ववर्ती पीएम की परिपाटी को तोड़ते हुए शपथ के बाद भारत के बदले पहला विदेश दौरा ओली ने चीन का किया......

ये है मुंबई मेरी जान❤️❤️❤️❤️
08/09/2025

ये है मुंबई मेरी जान❤️❤️❤️❤️

Old is always gold 💞💞💞💞
08/09/2025

Old is always gold 💞💞💞💞

🌷🔥 *ओ३म्* 🔥🌷 *”जिनके किरदार से आती हो सदाक़त Truth) की महक,**उनकी तदरीस (Teaching) से पत्थर भी पिघल सकते हैं।*”*A TEACHE...
05/09/2025

🌷🔥 *ओ३म्* 🔥🌷

*”जिनके किरदार से आती हो सदाक़त Truth) की महक,*
*उनकी तदरीस (Teaching) से पत्थर भी पिघल सकते हैं।*”

*A TEACHER speaks Truth, practices Truth and experiences Truth. Let us be Teachers of this kind. *

**बहुत कुछ सिखाया ज़िन्दगी के*
*सफ़र ने अनजाने में*
*वो किताबों में दर्ज था ही नही*
*पढ़ाया जो सबक़ जमाने ने।।*

*In the journey of life one has learnt* *many lessons by accident*,
*What life has taught so far does not find mention in any books.*

*(LIFE IS SUCH A GREAT TEACHER THAT WHEN YOU DON’T LEARN A LESSON, IT WILL REPEAT.)*

*संसार सबसे अच्छी पुस्तक है।*
*The world in itself is the best book*

*परिस्थितियाँ सबसे अच्छी अध्यापक है।*
*Circumstances that one faces are the best teachers.*

*हृदय सबसे अच्छा उपदेशक है*
*Heart is the best Guide *

*ईश्वर सबसे अच्छा मित्र है*
*God is the best friend*

**Many Teachers **
_________________________
*Sanskrit words for ‘Teacher’ based on their unique abilities…..*

*1. The Teacher who gives you information is called: Adhyapak. *

*2. The one who imparts knowledge combined with information is called : Upadhyaya. *

*3. The one who imparts skill is called : Acharya *

*4. The one who able to give a deep insight into a subject is called : Pandit.*

*5. The one who has a visionary view on subject and teaches you to think in that manner is called : Dhrishta. *

*6. The one who is able to awaken wisdom in you, leading you from darkness to light, is called : Guru.*

*Sanskrit is, Perhaps, the only language that has such a refined vocabulary to distinguish the different kind of teachers.*

Teachers don't teach for an INCOME
They teach for an OUTCOME.
Teachers don't just fill in the information,
They draw out the talents in you,
They don't just help you get a pass certificate,
They unveil your potential personality and make the world admire you.
They don't just teach you to count,
They make your life count for your parents, society and Nation
*A very happy TEACHER 's Day.*
🙏

औरतों के काम कभी खत्म नहीं हुएघर के कामबाहर के कामदफ़्तर के कामये भी तुम्हारा कामवो भी तुम्हारा कामघूमने जाने से पहले के...
03/09/2025

औरतों के काम कभी खत्म नहीं हुए

घर के काम
बाहर के काम
दफ़्तर के काम
ये भी तुम्हारा काम
वो भी तुम्हारा काम
घूमने जाने से पहले के काम
घूम के आने के बाद के काम
कुछ की गिनती भी नहीं
ऐसे काम
ये भी कोई काम जैसा काम
मन से किए काम
बेमन से किए काम
अपने काम से काम
काम भी एक काम

मरने की भी फ़ुर्सत नहीं
इतने काम

ये कहते कहते
एक दिन आ गईं
मृत्यु शैय्या पर

जब कर नहीं सकती कोई काम
जब कह नहीं सकता कोई
कि ज़रा करना तो ये काम
तब भी सोचती होंगी मन में
कहीं छूट तो नहीं गया कोई काम
कि निकलते निकलते निबटा लेती ये काम
कि बाद में ये न कह दे कोई
कर के नहीं गई ये काम

औरतें कहीं भी गईं
काम से गई
औरतें कहीं से भी लौटीं
काम पर ही लौटीं ।।

देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते  हैं..🌹🌹सुबह की सैर में कभी चक्कर खा जाते है ..सारे मौहल्ले को पता है...पर हमसे...
03/09/2025

देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..🌹🌹
सुबह की सैर में कभी चक्कर खा जाते है ..
सारे मौहल्ले को पता है...पर हमसे छुपाते है
दिन प्रतिदिन अपनी खुराक घटाते हैं और🌹
तबियत ठीक होने की बात फ़ोन पे बताते है.
ढीली हो गए कपड़ों को टाइट करवाते है,
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..🌹

किसी के देहांत की खबर सुन कर घबराते है, 🌹
और अपने परहेजों की संख्या बढ़ाते है,🌹
हमारे मोटापे पे हिदायतों के ढेर लगाते है,
"रोज की वर्जिश"के फायदे गिनाते है.🌹
‘तंदुरुस्ती हज़ार नियामत "हर दफे बताते है,
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..🌹

हर साल बड़े शौक से अपने बैंक जाते है, 🌹
अपने जिन्दा होने का सबूत देकर हर्षाते है,
जरा सी बढी पेंशन पर फूले नहीं समाते है,
और FIXED DEPOSIT रिन्ऊ करते जाते है, 🌹
खुद के लिए नहीं हमारे लिए ही बचाते है.
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..🌹

चीज़ें रख के अब अक्सर भूल जाते है, 🌹
फिर उन्हें ढूँढने में सारा घर सर पे उठाते है,
और एक दूसरे को बात बात में हड़काते है,
पर एक दूजे से अलग भी नहीं रह पाते है.🌹
एक ही किस्से को बार बार दोहराते है,
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..🌹

चश्में से भी अब ठीक से नहीं देख पाते है, 🌹
बीमारी में दवा लेने में नखरे दिखाते है,
एलोपैथी के बहुत सारे साइड इफ़ेक्ट बताते है,🌹
और होमियोपैथी/आयुर्वेदिक की ही रट लगाते है,
ज़रूरी ऑपरेशन को भी और आगे टलवाते है.
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..🌹

उड़द की दाल अब नहीं पचा पाते है,🌹
लौकी तुरई और धुली मूंगदाल ही अधिकतर खाते है,
दांतों में अटके खाने को तिली से खुजलाते हैं,🌹
पर डेंटिस्ट के पास जाने से कतराते हैं,
"काम चल तो रहा है" की ही धुन लगाते है.
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..🌹

हर त्यौहार पर हमारे आने की बाट देखते है,🌹
अपने पुराने घर को नई दुल्हन सा चमकाते है,
हमारी पसंदीदा चीजों के ढेर लगाते है,🌹
हर छोटी बड़ी फरमाईश पूरी करने के लिए माँ रसोई और पापा बाजार दौडे चले जाते है,
पोते-पोतियों से मिलने को कितने आंसू टपकाते है,
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते है..🌹

देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते है..🌹
पोस्ट फेसबुक आभार 🙏🙏

02/09/2025

जिनका जन्म 1960, 1961, 1962, 1963, 1964, 1965, 1966, 1967, 1968, 1969, 1970, 1971, 1972, 1973, 1974, 1975, 1976, 1977, 1978, 1979, 1980 में हुआ है – खास उन्हीं के लिए यह लेख

यह पीढ़ी अब 45 पार करके 65- 70 की ओर बढ़ रही है।
इस पीढ़ी की सबसे बड़ी सफलता यह है कि इसने ज़िंदगी में बहुत बड़े बदलाव देखे और उन्हें आत्मसात भी किया।…

1, 2, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे देखने वाली यह पीढ़ी बिना झिझक मेहमानों से पैसे ले लिया करती थी।
स्याही–कलम/पेंसिल/पेन से शुरुआत कर आज यह पीढ़ी स्मार्टफोन, लैपटॉप, पीसी को बखूबी चला रही है।

जिसके बचपन में साइकिल भी एक विलासिता थी, वही पीढ़ी आज बखूबी स्कूटर और कार चलाती है।
कभी चंचल तो कभी गंभीर… बहुत सहा और भोगा लेकिन संस्कारों में पली–बढ़ी यह पीढ़ी।

टेप रिकॉर्डर, पॉकेट ट्रांजिस्टर – कभी बड़ी कमाई का प्रतीक थे।

मार्कशीट और टीवी के आने से जिनका बचपन बरबाद नहीं हुआ, वही आखिरी पीढ़ी है।

कुकर की रिंग्स, टायर लेकर बचपन में “गाड़ी–गाड़ी खेलना” इन्हें कभी छोटा नहीं लगता था।

“सलाई को ज़मीन में गाड़ते जाना” – यह भी खेल था, और मज़ेदार भी।

“कैरी (कच्चे आम) तोड़ना” इनके लिए चोरी नहीं था।

किसी भी वक्त किसी के भी घर की कुंडी खटखटाना गलत नहीं माना जाता था।

“दोस्त की माँ ने खाना खिला दिया” – इसमें कोई उपकार का भाव नहीं, और
“उसके पिताजी ने डांटा” – इसमें कोई ईर्ष्या भी नहीं… यही आखिरी पीढ़ी थी।

कक्षा में या स्कूल में अपनी बहन से भी मज़ाक में उल्टा–सीधा बोल देने वाली पीढ़ी।

दो दिन अगर कोई दोस्त स्कूल न आया तो स्कूल छूटते ही बस्ता लेकर उसके घर पहुँच जाने वाली पीढ़ी।

किसी भी दोस्त के पिताजी स्कूल में आ जाएँ तो –
मित्र कहीं भी खेल रहा हो, दौड़ते हुए जाकर खबर देना:
“तेरे पापा आ गए हैं, चल जल्दी” – यही उस समय की ब्रेकिंग न्यूज़ थी।

लेकिन मोहल्ले में किसी भी घर में कोई कार्यक्रम हो तो बिना संकोच, बिना विधिनिषेध काम करने वाली पीढ़ी।

कपिल, सुनील गावस्कर, वेंकट, प्रसन्ना की गेंदबाज़ी देखी,
पीट सम्प्रस, भूपति, स्टेफी ग्राफ, अगासी का टेनिस देखा,
राज, दिलीप, धर्मेंद्र, जितेंद्र, अमिताभ, राजेश खन्ना, आमिर, सलमान, शाहरुख, माधुरी – इन सब पर फिदा रहने वाली यही पीढ़ी।

पैसे मिलाकर भाड़े पर VCR लाकर 4–5 फिल्में एक साथ देखने वाली पीढ़ी।

लक्ष्या–अशोक के विनोद पर खिलखिलाकर हँसने वाली,
नाना, ओम पुरी, शबाना, स्मिता पाटिल, गोविंदा, जग्गू दादा, सोनाली जैसे कलाकारों को देखने वाली पीढ़ी।

“शिक्षक से पिटना” – इसमें कोई बुराई नहीं थी, बस डर यह रहता था कि घरवालों को न पता चले, वरना वहाँ भी पिटाई होगी।

शिक्षक पर आवाज़ ऊँची न करने वाली पीढ़ी।
चाहे जितना भी पिटाई हुई हो, दशहरे पर उन्हें सोना अर्पण करने वाली और आज भी कहीं रिटायर्ड शिक्षक दिख जाएँ तो निसंकोच झुककर प्रणाम करने वाली पीढ़ी।

कॉलेज में छुट्टी हो तो यादों में सपने बुनने वाली पीढ़ी…

न मोबाइल, न SMS, न व्हाट्सऐप…
सिर्फ मिलने की आतुर प्रतीक्षा करने वाली पीढ़ी।

पंकज उधास की ग़ज़ल “तूने पैसा बहुत कमाया, इस पैसे ने देश छुड़ाया” सुनकर आँखें पोंछने वाली।

दीवाली की पाँच दिन की कहानी जानने वाली।

लिव–इन तो छोड़िए, लव मैरिज भी बहुत बड़ा “डेरिंग” समझने वाली।
स्कूल–कॉलेज में लड़कियों से बात करने वाले लड़के भी एडवांस कहलाते थे।

फिर से आँखें मूँदें तो…
वो दस, बीस… अस्सी, नब्बे… वही सुनहरी यादें।

गुज़रे दिन तो नहीं आते, लेकिन यादें हमेशा साथ रहती हैं।
और यह समझने वाली समझदार पीढ़ी थी कि –
आज के दिन भी कल की सुनहरी यादें बनेंगे।

हमारा भी एक ज़माना था…

तब बालवाड़ी (प्ले स्कूल) जैसा कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं था।
6–7 साल पूरे होने के बाद ही सीधे स्कूल भेजा जाता था।
अगर स्कूल न भी जाएँ तो किसी को फर्क नहीं पड़ता।

न साइकिल से, न बस से भेजने का रिवाज़ था।
बच्चे अकेले स्कूल जाएँ, कुछ अनहोनी होगी –
ऐसा डर माता–पिता को कभी नहीं हुआ।

पास/फेल यही सब चलता था।
प्रतिशत (%) से हमारा कोई वास्ता नहीं था।

ट्यूशन लगाना शर्मनाक माना जाता था।
क्योंकि यह “ढीठ” कहलाता था।

किताब में पत्तियाँ और मोरपंख रखकर पढ़ाई में तेज हो जाएँगे –
यह हमारा दृढ़ विश्वास था।

कपड़े की थैली में किताबें रखना,
बाद में टिन के बक्से में किताबें सजाना –
यह हमारा क्रिएटिव स्किल था।

हर साल नई कक्षा के लिए किताब–कॉपी पर कवर चढ़ाना –
यह तो मानो वार्षिक उत्सव होता था।

साल के अंत में पुरानी किताबें बेचना और नई खरीदना –
हमें इसमें कभी शर्म नहीं आई।

दोस्त की साइकिल के डंडे पर एक बैठता, कैरियर पर दूसरा –
और सड़क–सड़क घूमना… यही हमारी मस्ती थी।

स्कूल में सर से पिटाई खाना,
पैरों के अंगूठे पकड़कर खड़ा होना,
कान मरोड़कर लाल कर देना –
फिर भी हमारा “ईगो” आड़े नहीं आता था।
असल में हमें “ईगो” का मतलब ही नहीं पता था।

मार खाना तो रोज़मर्रा का हिस्सा था।
मारने वाला और खाने वाला – दोनों ही खुश रहते थे।
खाने वाला इसलिए कि “चलो, आज कल से कम पड़ा।”
मारने वाला इसलिए कि “आज फिर मौका मिला।”

नंगे पाँव, लकड़ी की बैट और किसी भी बॉल से
गली–गली क्रिकेट खेलना – वही असली सुख था।

हमने कभी पॉकेट मनी नहीं माँगा,
और न माता–पिता ने दिया।
हमारी ज़रूरतें बहुत छोटी थीं,
जो परिवार पूरा कर देता था।

छह महीने में एक बार मुरमुरे या फरसाण मिल जाए –
तो हम बेहद खुश हो जाते थे।

दिवाली में लवंगी फुलझड़ी की लड़ी खोलकर
एक–एक पटाखा फोड़ना – हमें बिल्कुल भी छोटा नहीं लगता था।
कोई और पटाखे फोड़ रहा हो तो उसके पीछे–पीछे भागना –
यही हमारी मौज थी।

हमने कभी अपने माता–पिता से यह नहीं कहा कि
“हम आपसे बहुत प्यार करते हैं” –
क्योंकि हमें “I Love You” कहना आता ही नहीं था।

आज हम जीवन में संघर्ष करते हुए
दुनिया का हिस्सा बने हैं।
कुछ ने वह पाया जो चाहा था,
कुछ अब भी सोचते हैं – “क्या पता…”

स्कूल के बाहर हाफ पैंट वाले गोलियों के ठेले पर
दोस्तों की मेहरबानी से जो मिलता –
वो कहाँ चला गया?

हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें,
लेकिन सच यह है कि –
हमने हकीकत में जीया और हकीकत में बड़े हुए।

कपड़ों में सिलवटें न आएँ,
रिश्तों में औपचारिकता रहे –
यह हमें कभी नहीं आया।

रोटी–सब्ज़ी के बिना डिब्बा हो सकता है –
यह हमें मालूम ही नहीं था।

हमने कभी अपनी किस्मत को दोष नहीं दिया।
आज भी हम सपनों में जीते हैं,
शायद वही सपने हमें जीने की ताक़त देते हैं।

हमारा जीवन वर्तमान से कभी तुलना नहीं कर सकता।

हम अच्छे हों या बुरे –
लेकिन हमारा भी एक “ज़माना” था…!

भगवान शिव के परिवार की कथाएँ बहुत ही विस्तृत और विविध हैं, जिनमें उनके रिश्ते, अवतार, और उनके कार्यों के विभिन्न पहलू शा...
01/09/2025

भगवान शिव के परिवार की कथाएँ बहुत ही विस्तृत और विविध हैं, जिनमें उनके रिश्ते, अवतार, और उनके कार्यों के विभिन्न पहलू शामिल हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कहानियाँ दी गई हैं:
पार्वती और शिव की विवाह कथा: देवी सती के वियोग में शिव जी गहन तपस्या में लीन थे. देवी सती ने देह त्याग दी थी. पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, और अंततः शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया.
गणेश का जन्म और हाथी का सिर: एक दिन देवी पार्वती स्नान के लिए गईं, और उन्होंने अपनी देह की मैल से एक बालक बनाया, जिसे उन्होंने अपने दरवाजे पर पहरा देने के लिए कहा. जब शिव जी वापस आए, तो गणेश ने उन्हें रोका. क्रोध में शिव जी ने गणेश का सिर काट दिया. बाद में, पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए, शिव जी ने एक हाथी का सिर लगाकर गणेश को फिर से जीवित किया. गणेश ज्ञान और बुद्धि के देवता बन गए.
कार्तिकेय का जन्म और तारकासुर का वध: देवताओं को तारकासुर नामक राक्षस से पीड़ा हो रही थी, जिसका वध केवल शिव और पार्वती के पुत्र द्वारा ही संभव था. शिव जी के तेज से कार्तिकेय का जन्म हुआ, और उन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं को मुक्त कराया.
गणेश और कार्तिकेय की दौड़: एक बार गणेश और कार्तिकेय में श्रेष्ठता को लेकर एक दौड़ हुई. शिव और पार्वती ने शर्त रखी कि जो भी पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वह श्रेष्ठ होगा. कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए. गणेश ने अपनी बुद्धि का उपयोग किया और अपने माता-पिता की तीन परिक्रमाएं की, यह कहकर कि उनके लिए उनके माता-पिता ही पूरा संसार हैं. उनके इस तर्क से शिव और पार्वती प्रसन्न हुए, और गणेश को विजयी घोषित किया.
शिव की बेटियां: पुराणों में भगवान शिव की पांच पुत्रियों का वर्णन है, जिनका जन्म मनुष्य रूप में न होकर नाग रूप में हुआ था. माता पार्वती को इसकी जानकारी नहीं थी. बाद में, शिव जी ने पार्वती को इस रहस्य से अवगत कराया, और पार्वती ने भी उन्हें अपनी पुत्रियों के रूप में स्वीकार कर लिया. कुछ ग्रंथों में अशोकसुंदरी का भी उल्लेख मिलता है, जिनका जन्म कल्पवृक्ष से हुआ था.
इन कहानियों में भगवान शिव के परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच प्रेम, बुद्धि, शक्ति और त्याग जैसे गुणों को दर्शाया गया है. शिव परिवार हिंदू धर्म में एक पवित्र और पूजनीय परिवार माना जाता है.
🙏 जय श्री गणेश महाराज की जय हो 🚩🚩
अपने जीवन को हीरे जैसा बनाने के लिए
आज ही फॉलो करके परिवार का हिस्सा बनें।

 #कुछ_दिल_की_बातें 😊हमारी पीढ़ी आख़िरी पीढ़ी जिन्हेंपचास पार के बाद भी रसोई में लगना होगा।हमारी पीढ़ी आख़िरी पीढ़ी,जिन्हें बहु...
30/08/2025

#कुछ_दिल_की_बातें 😊
हमारी पीढ़ी आख़िरी पीढ़ी जिन्हें
पचास पार के बाद भी रसोई में लगना होगा।
हमारी पीढ़ी आख़िरी पीढ़ी,
जिन्हें बहु, माँ और सास के रूप
में भी काम करना होगा।
हमारी पीढ़ी आखिरी पीढ़ी
जिन्होंने रिश्तों की अहमियत समझी है,
हमारी पीढ़ी आख़िरी पीढ़ी
जिन्होंने सबकी ख़ुशी को स्वयं की हँसी समझी है।
हमारी पीढ़ी आख़िरी पीढ़ी
जिन्होंने पढ़ लिखकर भी
बेवकूफ़ होने का तमगा सहा है,
हमारी पीढ़ी आखिरी पीढ़ी
जिन्होंने गर्म रोटियां खिलाने में
ख़ुद को महान समझा है।
हमारी पीढ़ी ही वो आखिरी पीढ़ी
जो निरंतर चलती रहती है,
स्वयं ही कुछ दवा खाकर ख़ुद में सम्भलती रहती है।
जब तक पूरी तरह टूटती नहीं
आराम वह करती नहीं।
कौन कहता है कि पहले का ज़माना ख़राब था,
औरतों पर अधिक अत्याचार था।
कम से कम तब की औरतें
पचास पार करके तो आराम करती थीं,
अच्छी बेटी,अच्छी बहु पाने का
दम्भ तो भरती थीं।
हमारे हिस्से शायद 70 की
उम्र में भी वही सुबह होगी,
उबलती हुई चाय और ट्रे
फिर सबसे आख़िरी में अख़बार मिलना,
हाँ, फर्क होगा तो बस ट्रे पहुँचाने वाले कुछ कमरों का
पर लेकर जाने वाले हम ही रहेंगे,
जीवन के आख़िरी पड़ाव तक भी हुक्म हम ही सहेंगे।

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