
02/02/2025
।। Civilization को चश्मों ।।
आज ताऊ सुल्लड़ अपणे बच्चापण की बात बता रो हो अक बा तो भई एक बर की बात है। मेवात में एक बोहोत बड़ो और तगडो मेलो भरो, ए कैतो कई लाखन सु बी तगड़ी भीड़ इकट्ठी होगी होएगी।
सरेटी मेवात के नामी गिरामी VVIP माणस तो, नेता तो, समाजसेवी तो, सोशल मीडिया के छोटे- बड़े, नए- पुराणे influencer तो, यूट्यूबर तो, fb - Insta के बड़े - बड़े पेज धारी तो, जो बड़ी - बड़ी बात करें और छोटी - बड़ी मेवात के बड़े- बड़े इंटेलेक्चुअल माणस जो पब्लिक में लैक्चर देते देते न थके चा पब्लिक ख़ूब गाली देती होवे पाछे सु, ए बा तो मास्टर वे बी वा मेला में आए और अन्याई तू देख देश-विदेश सु बी घणैई माणस आए है।
ताऊ सुल्लड़ कहरो हो अक वा मेला में एक जिगह ताऊ सुल्लड़ ने बी एक ठेलो लगायो, जापे लिखो पड़ो हो- "विकास और सभ्यता का चश्माए पहरो और देखो दुनियाए नया नज़रिया सु....।"
मेवातकेन ने और बहार के माणासन ने बी यू बात बड़ी अजीब लगी। अक ई ताऊ सुल्लड़ कहा नयो सौदा है बैच रो है आज..!?
जभी हून ताऊ सुल्लड़ सु एक आदमी ने पूछी, अक "अंकल, नू बताओ जी यू सभ्यता को चश्मो कहा रहवे है ? जो आपने हीन लिख राखी है...!"
ताऊ सुल्लड़ ने मुस्कुराके कही- आ, "जनाब यू चश्मो ऐसो है अक जब आप याहे पहरो हो ने, तो तमने अपणी मेवात की सारी बुराइ अच्छी लगण लग जाएंगी। गंदगी साफ़ दिखण लग जाएगी, झूठ सच लगण लग जाएंगी, और हीन गरीबन पे होण वालो अन्याय न्याय लगण लग जाएगो ।"
लोग बागन ने ताऊ सुल्लड़ की यू बात तगड़ी रोचक और इंट्रेस्टिंग लगी। उनमें सु एक माणस ने कही- अक ताऊ अंकल अच्छो तो आप नू बताओं- यू चश्मो दियो कितना को ?"
ताऊ सुल्लड़ ने कही- ए कोई जादा कीमत नाय लाला "बस दस रुपया को दियो है।"
वा आदमी ने ताऊ सुल्लड़ लू दस रुपये दिए और ऊ चश्मो खरीदके पहर लियो। फिर वाने अपणी आँख खोलीं और चारु घांकू देखो तो जो पहले वाकी आँखन के सामैंई एक गंदी नाली ही, जामें कूड़ो-कचरो भरो पड़ो हो अपर वा चश्मे के जरिए ऊ नाली वाहे एक खूबसूरत फव्वारा सी लगी तो वा माणस ने कही, अक देखेने"अन्याई! कैसो सुंदर नज़ारो है।"
फिर वाने एक कच्ची झोंपड़ी वालो घर देखो, जाकी छान - वान टूटी पड़ी ही और वाके डंडे- डोली, टाटा - वाटा सरेटे बिल्कुल जर्जर हुया पड़ा हा। अपर वा चश्मे के जरिए ऊ झोंपड़ी वाहे एक आलीशान बंगला जैसी लगी। वाने कही अक, देखने अन्याई! "कैसो शानदार मकान है काई को।"
फिर यासू पाच्छे वाने वाने एक गरीब बालक देखो, जो बिचारो भूख सु टूटो पड़ो हो और वाने बाचक फटे पुराने से लत्ते कपड़े पहर राखे हा । अपर वा चश्मा के जरिए वाहे ऊ बालक एक high level को खुशहाल और बोहोत तगड़ो पैसा वालो सो लग रो हो ।
वाने कही- आ अन्याई देखने....! "कैसो मलूक बालक है काई को ए बिल्कुल बणियान को सो लग रो है।"
हूंन वाके साथ के लोग - बाग इन सब बात और सीनन ने देखके हैरान परेशान हा, अक अन्याई! यू कहा जुगाड है....।
उन्नें ताऊ सुल्लड़ सु पूछी- "अक यार अन्याई.... ताऊ अंकल यू चश्मो काम कैसे करे है ?"
ताऊ सुल्लड़ ने कही- "ई चश्मो तिहारी आँखन ने civilized बणा दियेगो और Recherche माणस गंदगी सु गंदगी ना कहवें बल्कि वे डेवलपमेंट कहवें हैं। गरीबी सु गरीबी ना कहवें, बल्कि वासु सादगी कहवें हैं। और अन्याय सु अन्याय ना कहवें, बल्कि scheme कहवें हैं। याई सु तो कहवे हैं "Civilization को चश्मो।"
हूंन मेला में आए सरेटे माणासन के यू बात अच्छी तर्या समझ में आगी। उन्ने कही- "अच्छो, तो यू चश्मो है जाहे हमारे मेवात के नेता और अधिकारी पहरे हैं।"
ताऊ सुल्लड़ ने कही, "हाँ, बिल्कुल सई पकड़े हो,यई चश्मो है जो सपेशल उनके मारेई बणों है। अपर अब तो यू चा कोई छोटे मोटे नेता होवें और चा समाज सेवी और चा बा कोई सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर होवे ए अब तो यू सबन के मारे Available है।"
उन माणासन ने फिर ताऊ सु पूछी- अक नू बता ताऊ यू चश्मो हमेशा के मारे काम करेगो !?"
ताऊ सुल्लड़ ने कही - "ना, ई चश्मो तो तब तुवडी काम करे है, जब तुवड़ी तिहारी आँखन पे सु पर्दो ना हट जाए। जैसेई तम याहे उतारेंगे, असल सच्चाई तिहारे सामैई आ जाएगी।"
उन माणासन ने कही-"तो नू बता ताऊ फिर यू चश्मो कहा काम को !?"
ताऊ सुल्लड़ ने मुस्कुराके हैनी कही- आ जब "ई चश्मो तो उनके मारे है, जो सच्चाई है देखणोई ना चहांवे । जो चाहावे हैं अक दुनिया जैसी हैने , वैसी की वैसी ही दिखे। ई चश्मो उनलू सुकून देवे है।"
लोग - बागन ने सोची - अक, अन्याई यूई तो वजह ना है जासु हमारे हीन मेवात के नेता और अधिकारी गण विकास के कामन में इतने साइलेंट और संतुष्ट दिखे हैं।"
और फिर ऐसेई, Civilization को ऊ चश्मो बिकतो रहो । लोग बाग आता गया वा चश्माए पहरता और दुनियाए एक नया नज़रिया सु देखता रहा । अपर जब बी कोई वा चश्मा है उतारतो, तो सरेटी सच्चाई वाके सामैई आ जाती। और फिर वे वा चश्माए वापस पहर लेता।
अक सच्चाई देखणों आसान ना रहवे। बल्कि Civilization को चश्मो पहरणों ज्यादा आसान रहवे है। जो आजकाल हीन के अक्सर माणासन ने पहर राखे हैं.....
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✍️
मजलिस ख़ान मेवाती