02/01/2024
यही है सनातन धर्म पर आधारित समाजिक समरसता, जातियाँ जन्म के आधार पर नहीं, योग्यता पर आधारित हैं सदा से ही।
पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित, यथार्थ गीता में भी यही संदेश है - "जो ब्रह्म को जानता है, वह ब्राह्मण है, जो ब्रह्म को जानने हेतु आसुरी नकारात्मक शक्तियों (व्यक्तिगत, सामाजिक) से संघर्ष रत है, वह क्षत्रिय, जो इंद्रिय संयम पुण्य कर्मों के अर्जन इत्यादि के द्वारा ब्रह्म ज्ञान के रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू कर रहा है, वह वैश्य तथा जो ब्रह्मज्ञान प्राप्ति हेतु, सद्गुरु, प्रभु की सेवा में तत्पर हो चुका है, वह शूद्र।
अतः यदि आप पाण्डेय के घर पैदा हुये हैं लेकिन ब्रह्मज्ञान की ओर बढ़ने की इच्छा जागृत नहीं है, तो आपकी योग्यता शूद्र स्तर से भी नीचे की है।
वहीं यदि कोई कथित अनुसूचित जाति (वर्तमान समाज के हिसाब से) का व्यक्ति ब्रह्म को जान गया है - वह ब्राह्मण है।
कुत्सित सोच वालों ने सिर्फ अपने स्वार्थ और पीढ़ियों तक अपने परिवार का पोषण करने हेतु, शासन करने हेतु, दकियानूसी मूर्खता पूर्ण, जन्म आधारित जाति निर्धारण की परंपरा शुरू की और बंटे हुये समाज पर युगों युगों से शासन कर रहे हैं।
इसे और पोषित किया घाघ महस्वार्थी राजनेताओं ने,और सुनिश्चित किया कि समाज सोया रहे, मूर्ख बना रहे और पीढियों तक इनका मालिकाना हक़ और सामाजिक अँधेरा कायम रहे।- आलोक पाण्डेय भारत