Aadhunik Gita - Inspired by Yatharth Gita - Realistic Religion

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Aadhunik Gita - Inspired by Yatharth Gita - Realistic Religion Inspired by holy epic Yatharth Gita & teachings of Sadguru Paramhans Shri Swami Adgadanand ji Maharaj and Pujya Gurudev Sri Bachha Maharaj.

Our mission is to empower society with holistic education and religious facts. Regards,
Alok Pandey
Sajag Prahari

ॐ श्री गुरुवे नमः! उस एक परमात्म को जानो, उस पर ही ध्यान दो, उसी एक से अनेक हैं, यह जो कुछ तुम हो या या देख रहे हो, उस ए...
26/01/2025

ॐ श्री गुरुवे नमः! उस एक परमात्म को जानो, उस पर ही ध्यान दो, उसी एक से अनेक हैं, यह जो कुछ तुम हो या या देख रहे हो, उस एक से ही है। खेल, खिलाड़ी और खेल का सामान सब वही है, और तुम उसका ही अंश हो। सद्गुरु की शरण हो जाओ, एवं चल पड़ो इस आत्मज्ञान मार्ग पर, सब जान कर मुक्त होने का यही परम मार्ग है। आलोक पाण्डेय (सजग प्रहरी)

ॐ,सन्यास का अर्थ सः न्यास है, अर्थात ईश्वर का सामीप्य, आत्म भाव में स्थिति ही सन्यास है। यही संकल्पों का अभाव, मुक्ति अर...
24/11/2024

ॐ,
सन्यास का अर्थ सः न्यास है, अर्थात ईश्वर का सामीप्य, आत्म भाव में स्थिति ही सन्यास है। यही संकल्पों का अभाव, मुक्ति अर्थात मोक्ष है। सद्गुरु की कृपादृष्टि पड़ जाये, तो आपके क़दम इस मार्ग पर स्वतः ही चल पड़ेंगे। - आलोक पाण्डेय

06/11/2024

ॐ!! इंद्रिय संयम के बिना मुक्ति संभव नहीं, यह दुष्कर प्रतीत होने वाला कार्य, निरंतर अभ्यास से , इष्ट में संपूर्ण समर्पण ...
16/09/2024

ॐ!! इंद्रिय संयम के बिना मुक्ति संभव नहीं, यह दुष्कर प्रतीत होने वाला कार्य, निरंतर अभ्यास से , इष्ट में संपूर्ण समर्पण और निरंतर उन्हीं के चिंतन के साथ संभव हो सकता है, अन्य कोई उपाय नहीं। यदि अनवरत चिंतन नहीं होगा, तो रिक्त स्थान पा कर अन्य विचार स्थान लेंगे तथा समर्पण अवरुद्ध होगा तथा इंद्रिय संयम दुष्कर होता जायेगा। आप जिसका चिंतन करते हैं, वही बनते जाते हैं, यह ब्रह्मांडीय नियम है, अतः ॐ का जाप करें, सद्गुरु या कहें इष्ट का चिंतन करें, धैर्यपूर्वक अभ्यास करते रहें, वे आपको स्वयं ही पार ले चलेंगे। :आलोक पाण्डेय

12/07/2024

"हिंदू" शब्द, अंग्रेजों से नहीं, अत्यंत प्राचीन हमारे वेदों से आया है, "हिंदवी" शब्द का उल्लेख, मुग़ल काल में शिवाजी के समय में भी प्रमुखता से मिलता है, एवं देश का सही शब्द "हिंदुस्थान" था, जिसे हम बिगाड़ कर 'हिंदुस्तान' कहते हैं।

(नीचे दी जा रही जानकारी इंटरनेट पर भी उपलब्ध है।)

"ऋग्वेद" के *"ब्रहस्पति अग्यम"* में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया हैं :-
*“हिमलयं समारभ्य*
*यावत इन्दुसरोवरं ।*
*तं देवनिर्मितं देशं*
*हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।*

*अर्थात : हिमालय से इंदु सरोवर तक, देव निर्मित देश को हिंदुस्तान* कहते हैं!

केवल *"वेद"* ही नहीं, बल्कि *"शैव" ग्रन्थ* में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया हैं:-

*"हीनं च दूष्यतेव्* *हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये।”

अर्थात :- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं!
इससे मिलता जुलता लगभग यही श्लोक *"कल्पद्रुम"* में भी दोहराया गया है :

*"हीनं दुष्यति इति हिन्दूः।”*

*अर्थात* जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं।

गुरु, आत्मा का ही प्रकट रूप है, आप जो जानना चाहते हो, उत्तर देने के लिये, अन्य शरीर रूप में प्रकट होने वाला प्राकट्य, गु...
03/07/2024

गुरु, आत्मा का ही प्रकट रूप है, आप जो जानना चाहते हो, उत्तर देने के लिये, अन्य शरीर रूप में प्रकट होने वाला प्राकट्य, गुरु है। गुरु आपको यक़ीन या विश्वास की दहलीज़ पर बाँध कर आपको सीमित नहीं करता, बल्कि आपके प्रश्नों के उत्तर देता है, और मुक्ति अर्थात मोक्ष, जो दुर्लभ मानव जीवन का परम लक्ष्य है, उस परम उद्देश्य की ओर मार्ग दिखाता है। : आलोक पाण्डेय

ॐ परमात्मा से ही उत्पन्न प्रारंभिक नाद है, यह सृष्टि में सर्वत्र गुंजायमान है, आपके भीतर भी अनाहत नाद के रूप में लगातार ...
02/07/2024

ॐ परमात्मा से ही उत्पन्न प्रारंभिक नाद है, यह सृष्टि में सर्वत्र गुंजायमान है, आपके भीतर भी अनाहत नाद के रूप में लगातार गूँज रहा है, यह ईश्वर का नाम है। ॐ का सतत जाप, आपके जीवन में जागृति एवं आश्चर्यजनक परिवर्तन लाता है, इसका जाप परमात्मा को पुकारना ही है। : आलोक पाण्डेय

सन्यास शब्द पर ही ध्यान दें, तो अर्थ स्पष्ट हो जायेगा, यहाँ सः का अर्थ है,वह (परमात्मा) और न्यास का अर्थ है, स्थापित होन...
02/05/2024

सन्यास शब्द पर ही ध्यान दें, तो अर्थ स्पष्ट हो जायेगा, यहाँ सः का अर्थ है,वह (परमात्मा) और न्यास का अर्थ है, स्थापित होना, अर्थात, परमात्मा के सानिध्य में रहना, सन्यास मार्ग है, एवं उनमें खुद को विलीन कर लेना, अर्थात उनके ही निर्देशों पर चलने की योग्यता प्राप्त कर लेना - सन्यास है। : आलोक पाण्डेय

सभी जीवधारियों में परमात्मा का अंश "आत्मा" है, अतः सभी समान हैं, क्षमतानुसार, अध्यात्म मार्ग पर चलने का अधिकार सभी को है...
29/04/2024

सभी जीवधारियों में परमात्मा का अंश "आत्मा" है, अतः सभी समान हैं, क्षमतानुसार, अध्यात्म मार्ग पर चलने का अधिकार सभी को है। जाति संप्रदाय, स्त्री पुरुष के मध्य भेद भाव के आधार पर किसी को भी भजन से वंचित नहीं रहना चाहिये, परमात्म साक्षात्कार सभी के लिये सुलभ है, सद्गुरु के मार्गदर्शन में प्रयास एवं अभ्यास आवश्यक है। - आलोक पाण्डेय

13/02/2024
यही है सनातन धर्म पर आधारित समाजिक समरसता, जातियाँ जन्म के आधार पर नहीं, योग्यता पर आधारित हैं सदा से ही।पूज्य गुरुदेव द...
02/01/2024

यही है सनातन धर्म पर आधारित समाजिक समरसता, जातियाँ जन्म के आधार पर नहीं, योग्यता पर आधारित हैं सदा से ही।

पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित, यथार्थ गीता में भी यही संदेश है - "जो ब्रह्म को जानता है, वह ब्राह्मण है, जो ब्रह्म को जानने हेतु आसुरी नकारात्मक शक्तियों (व्यक्तिगत, सामाजिक) से संघर्ष रत है, वह क्षत्रिय, जो इंद्रिय संयम पुण्य कर्मों के अर्जन इत्यादि के द्वारा ब्रह्म ज्ञान के रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू कर रहा है, वह वैश्य तथा जो ब्रह्मज्ञान प्राप्ति हेतु, सद्गुरु, प्रभु की सेवा में तत्पर हो चुका है, वह शूद्र।

अतः यदि आप पाण्डेय के घर पैदा हुये हैं लेकिन ब्रह्मज्ञान की ओर बढ़ने की इच्छा जागृत नहीं है, तो आपकी योग्यता शूद्र स्तर से भी नीचे की है।

वहीं यदि कोई कथित अनुसूचित जाति (वर्तमान समाज के हिसाब से) का व्यक्ति ब्रह्म को जान गया है - वह ब्राह्मण है।

कुत्सित सोच वालों ने सिर्फ अपने स्वार्थ और पीढ़ियों तक अपने परिवार का पोषण करने हेतु, शासन करने हेतु, दकियानूसी मूर्खता पूर्ण, जन्म आधारित जाति निर्धारण की परंपरा शुरू की और बंटे हुये समाज पर युगों युगों से शासन कर रहे हैं।

इसे और पोषित किया घाघ महस्वार्थी राजनेताओं ने,और सुनिश्चित किया कि समाज सोया रहे, मूर्ख बना रहे और पीढियों तक इनका मालिकाना हक़ और सामाजिक अँधेरा कायम रहे।- आलोक पाण्डेय भारत

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