30/07/2025
पलवल के निजी अस्पताल की लापरवाही: मृत घोषित नवजात बच्चा निकला जीवित,
पिता की सतर्कता से बची जान : अब अन्य निजी अस्पताल में उपचाराधीन
बच्चा तीन घण्टे पड़ा रहा -उसके बाद मिला ईलाज
पलवल 30 जुलाई : पलवल जिले के एक निजी अस्पताल में लापरवाही का हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। फिरोजपुर गांव निवासी एक दंपती के नवजात बेटे को अस्पताल प्रशासन ने मृत घोषित कर परिजनों को सौंप दिया, लेकिन जब परिवार अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहा था, तभी उन्हें पता चला कि बच्चा अभी जीवित है। सांसें चल रही थीं, धड़कनें महसूस हो रही थीं और हाथ-पैर में मूवमेंट था। यह देखकर शोक संतप्त पिता आनन-फानन में नवजात को एक अन्य अस्पताल ले गया, जहां बच्चे को भर्ती कर इलाज शुरू किया गया।
जानकारी के अनुसार मामले का पूरा घटनाक्रम इस प्रकार से है, फिरोजपुर गांव निवासी अमर ने बताया कि उसकी पत्नी मनीषा साढ़े छह माह की गर्भवती थी। गत सोमवार, 28 जुलाई को अचानक तबीयत बिगड़ने पर उसे पलवल स्थित गुरु नानक अस्पताल में भर्ती कराया गया। अमर के अनुसार, अस्पताल की महिला डॉक्टर ने उनकी पत्नी की हालत को गंभीर बताते हुए तुरंत इलाज शुरू कर दिया। ईलाज के चलते मंगलवार दोपहर करीब 2:30 बजे मनीषा ने एक प्रीमैच्योर बच्चे को जन्म दिया।
प्रसव के बाद डॉक्टरों ने परिजनों को बताया कि बच्चा मृत पैदा हुआ है, जबकि मनीषा की हालत स्थिर है। अस्पताल प्रशासन ने बच्चे को मृत बताकर कुछ "फॉर्मेलिटी" का हवाला देकर तीन घंटे तक इंतजार कराया। शाम को जब बच्चे को कपड़े में लपेटकर सौंपा गया, तो पिता ने देखा कि बच्चे की सांसें चल रही हैं, धड़कनें महसूस हो रही हैं और हाथ-पैर भी हिल रहे हैं।
तुरंत दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया
हालात समझते ही अमर ने बच्चे को तुरंत एक अन्य निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां डॉक्टरों ने बच्चे को इलाज के लिए भर्ती किया और फिलहाल उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है। अमर ने आरोप लगाया कि गुरु नानक अस्पताल के डॉक्टरों और स्टाफ की गंभीर लापरवाही के कारण उनके बच्चे की जान जोखिम में पड़ गई। उन्होंने बताया कि इलाज न मिलने के कारण बच्चे के हाथ में फ्रैक्चर भी हो गया है और वह नीला पड़ चुका है।
कैम्प थाने और स्वास्थ्य विभाग में शिकायत
परिजनों ने इस मामले की शिकायत पलवल कैम्प थाना और मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) कार्यालय में की है। हालांकि CMO कार्यालय से शिकायत की पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन डीएसपी (क्राइम) मनोज कुमार वर्मा ने बताया कि उन्हें मामले की शिकायत प्राप्त हुई है और जांच शुरू कर दी गई है। उनके अनुसार बच्चा मात्र 600 ग्राम का था और उसकी उम्र लगभग 25 सप्ताह (6 महीने से कम) की थी। विशेषज्ञ डॉक्टरों से राय लेने के बाद आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अस्पताल प्रशासन ने दी सफाई
गुरु नानक अस्पताल के संचालक डॉ. अनूप सिंह और गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. तनु वर्मा ने सफाई देते हुए कहा कि मनीषा की हालत अस्पताल में लाते वक्त ही बहुत नाजुक थी। उसे हार्ट की समस्या थी और पूर्व में पैरालिसिस भी हो चुका था। उन्होंने कहा कि बच्चा प्रीमैच्योर था, जिसका वजन केवल 600 ग्राम था और ऐसे बच्चों के जीवित रहने की संभावना बहुत कम होती है। उनका कहना है कि उन्होंने परिवार को यह स्पष्ट रूप से बताया था कि बच्चे के बचने की संभावना लगभग नहीं है।
प्रसव कराने वाली डॉ. तनु सोनी का कहना है कि उन्होंने बच्चे को मृत घोषित नहीं किया था, बल्कि उसकी गंभीर स्थिति के बारे में बताया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों का हाथ या पैर शरीर से बाहर होने पर नीला पड़ना सामान्य है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ और कानून?
चिकित्सकीय विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी नवजात को तब तक मृत नहीं माना जा सकता, जब तक वह क्लिनिकल डेथ की सभी शर्तों (सांस, हृदयगति, न्यूरो रिस्पॉन्स) पर खरा न उतरे। नवजात को मृत बताने से पहले कम से कम 10 मिनट तक मॉनिटरिंग जरूरी मानी जाती है।
बी.एन.एस. के आसार चिकित्सीय लापरवाही के कारण किसी की जान को खतरा हुआ हो या मृत्यु हुई हो, तो यह दंडनीय अपराध है।
लोगों में आक्रोश, अस्पताल की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
इस घटना के बाद आमजन में रोष है। स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर एक नवजात को कैसे मृत घोषित किया जा सकता है, जबकि वह जीवित था? परिजनों ने प्रशासन से मांग की है कि ऐसी अमानवीय लापरवाही करने वाले अस्पताल और डॉक्टरों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।
यह मामला न केवल चिकित्सीय लापरवाही का है, बल्कि आम लोगों के अस्पतालों और डॉक्टरों के प्रति विश्वास को गहरे स्तर पर चोट पहुंचाने वाला है। जांच के निष्कर्ष और प्रशासन की कार्रवाई पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं।
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