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सतना 21 सितम्बर 2025/ कार्यकारी अध्यक्ष राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण एवं न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय माननीय न्यायमूर्त...
22/09/2025

सतना 21 सितम्बर 2025/ कार्यकारी अध्यक्ष राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण एवं न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत द्वारा “दावेदार प्रतिपूर्ति एवं जमा प्रणाली हेतु डैशबोर्ड ( MACT) का शुभारंभ किया।

(A.S. News) - मोटर दुर्घटना पीड़ितों को शीघ्र और पारदर्शी मुआवज़ा दिलाने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण पहल के तहत, माननीय श्री न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय एवं कार्यकारी अध्यक्ष, एनएएलएसए ने 21 सितम्बर 2025 को नई दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) हेतु दावेदार प्रतिपूर्ति एवं जमा प्रणाली के डैशबोर्ड का शुभारंभ किया।
यह पहल माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 22 अप्रैल 2025 के आदेश (सुओ मोटू रिट याचिका (सिविल) सं. 7/2024) के अनुपालन में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विकसित की गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट के सेंट्रल प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर अथवा उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार (कंप्यूटर/आईटी) को संबंधित राज्य सरकारों की सहायता से ऐसा डिजिटल डैशबोर्ड विकसित करना होगा, जो एक केंद्रीय भंडार (Central Repository) के रूप में कार्य करेगा। इस पर मोटर वाहन अधिनियम, 1988 एवं कर्मचारी (वर्कमेन) क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 के अंतर्गत दिए गए मुआवज़े से संबंधित राशि और विवरण नियमित रूप से अपलोड किए जाएंगे।

इस अवसर पर माननीय न्यायाधीशों एवं अधिकारियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। जिनमें माननीय न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय, माननीय न्यायमूर्ति आलोक अराधे न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय, माननीय न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा मुख्य न्यायाधीश मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, माननीय न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन प्रशासनिक न्यायाधीश, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय एवं कार्यकारी अध्यक्ष म.प्र. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण माननीय न्यायमूर्ति विवेक रूसिया न्यायाधीश मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, माननीय न्यायमूर्ति आनंद पाठक न्यायाधीश मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, माननीय न्यायमूर्ति मिलिंद रमेश फड़के न्यायाधीश मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय।

शुभारंभ अवसर पर माननीय श्री न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा —
“यह मंच न्याय प्रदाय प्रणाली को तेज़, सरल और आम नागरिकों के लिए अधिक सुलभ बनाने की दिशा में एक सार्थक कदम है। दुर्घटना से पीड़ित परिवारों को पहले से ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में उन्हें न्याय पाने के लिए विलंब या जटिल प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना चाहिए। मध्यप्रदेश न्यायपालिका ने इस प्रणाली को शीघ्र और प्रभावी रूप से लागू करके अनुकरणीय कार्य किया है, जो अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श स्थापित करता है।”

प्रणाली से होने वाले लाभ
• बीमा कंपनियों अथवा जिम्मेदार पक्षों द्वारा मुआवज़े की ऑनलाइन जमा सुविधा।
• दावेदारों के बैंक खातों में सीधे धनराशि का अंतरण — बिचौलियों की आवश्यकता समाप्त।
• डैशबोर्ड पर वास्तविक समय में ट्रैकिंग — जमा एवं मामले की स्थिति आसानी से उपलब्ध।
• ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों के दावेदारों को विशेष लाभ, जिन्हें अक्सर न्यायालय पहुँचने या मुआवज़ा प्राप्त करने में कठिनाई होती है।

प्रदेशभर में न्यायाधीशों ने सुना शुभारंभ
इस उद्घाटन कार्यक्रम का सीधा प्रसारण मध्यप्रदेश के सभी जिलों और तहसीलों की अदालतों में न्यायाधीशों द्वारा देखा और सुना गया।
सतना जिले में यह कार्यक्रम प्रधान जिला न्यायाधीश श्री अजय प्रकाश मिश्रा की उपस्थिति में आयोजित हुआ, जहाँ जिला मुख्यालय में पदस्थ सभी न्यायाधीश कॉन्फ्रेंस कक्ष में एकत्रित होकर इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बने।

महत्व
इस एप्लिकेशन का शुभारंभ ई-कोर्ट्स परियोजना में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो न्यायपालिका की आधुनिकीकरण, पारदर्शिता और नागरिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता को पुनः पुष्ट करता है। म.प्र. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (MPSLSA) इस प्रणाली की सतत निगरानी करेगा, ताकि मुआवज़ा राशि दावेदारों तक बिना विलंब के पहुँचे।

*वक़्फ़ पर सुप्रीम कोर्ट का तर्क मौलिक ढांचे के सिद्धांत को कमज़ोर करने वाला - शाहनवाज़ आलम**आरएसएस के एजेंडे को लागू करने म...
21/09/2025

*वक़्फ़ पर सुप्रीम कोर्ट का तर्क मौलिक ढांचे के सिद्धांत को कमज़ोर करने वाला - शाहनवाज़ आलम*

*आरएसएस के एजेंडे को लागू करने में बीआर गवई डीवाई चंद्रचूड़ को कड़ी टक्कर दे रहे हैं*

*क्या सुप्रीम कोर्ट किसी मंदिर के ट्रस्ट में गैर हिन्दुओं को रखने का आदेश देने की हिम्मत रखता है?*

*साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 213 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता*

(A.S. News) - नयी दिल्ली, 21 सितम्बर 2025. वक़्फ़ क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट का अतंरिम फैसला न्यायिक कम राजनीतिक ज़्यादा है. इसमें सरकार के मुस्लिम विरोधी उद्देश्यों को वैधता देने का षड्यंत्र देखा जा सकता है. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 213 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जब 1930 में पी रामारेड्डी केस में मद्रास हाईकोर्ट, 1940 में अरूर सिंह केस में लाहौर हाईकोर्ट और 1956 में अब्दुल गफूर केस में सुप्रीम कोर्ट यह फैसला दे चुका है कि गैर मुस्लिम भी वक़्फ़ कर सकते हैं तो फिर सुप्रीम कोर्ट अपने ही पुराने फैसलों को पलट कर किसको ख़ुश करना चाहता है? उन्होंने यह भी कहा कि जब सरकार के हिसाब से गैर मुस्लिम वक़्फ़ नहीं कर सकता तो फिर वो वक़्फ़ बोर्ड में क्या करने के लिए रहेगा? इसका जवाब भी सुप्रीम कोर्ट नहीं दे पाया.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि क्या सुप्रीम कोर्ट में इतनी हिम्मत है कि वो राम मंदिर ट्रस्ट या किसी भी मंदिर के ट्रस्ट में मुसलमानों को सदस्य बनाने का आदेश दे सके? इस सवाल का जवाब आज देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि न्यायपालिका में इतनी हिम्मत नहीं है और जो जज ऐसी हिम्मत दिखायेगा उसका हश्र जस्टिस लोया जैसा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि यह आदेश दरअसल मुस्लिम संस्थाओं में आरएसएस और भाजपा के लोगों को घुसाने का षड्यंत्र है जिसपर सुप्रीम कोर्ट से मुहर लगवाई गयी है.

उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में ऐसे कई फैसले आए हैं जो भारत को ढांचागत स्तर पर आरएसएस के एजेंडे की तरफ ले जाने वाले हैं. इस मामले में मौजूदा सीजेआई बीआर गवई सीधे भगवान राम से निर्देश पाकर फैसला देने वाले पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं.

उन्होंने कहा कि क़ानून के इस प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी कि सरकारी रिकॉर्ड वाली ज़मीन वक़्फ़ की प्रॉपर्टी नहीं हो सकती इस सामान्य समझ को नकारने वाली है कि भारत में मुसलमान सरकारों के गठन के बाद नहीं आए थे. ये उससे हज़ारों साल पहले से हैं इसलिए उनकी मस्जिदें और मदरसे स्वाभाविक वज़हों से रिकॉर्ड में हो ही नहीं सकते. जबकि वो ज़मीन ज़रूर सरकार की हो सकती है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस तर्क का इस्तेमाल मुस्लिम विरोधी सत्ता सरकारी ज़मीनों पर बनी मस्जिदों पर बुलडोज़र चलवाकर बहुसंख्यकवादी कुंठाओं का तुष्टिकरण करेगी.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि सरकार द्वारा बनाए गए क़ानून को संवैधानिक मानना उसकी परम्परा है, पूरे प्रकरण का गलत और गुमराह करने वाला विश्लेषण है. जिसका मकसद भाजपा सरकार को बहुमत के बल पर कोई भी क़ानून बना लेने का हौसला देना है. जिसका अंतिम मकसद मौलिक ढांचे के सिद्धांत को ख़त्म करना है जो यह स्थापित करता है कि समाजवादी और सेक्युलर शब्दों वाले संविधान के प्रस्तावना में संसद कोई बदलाव नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही संविधान की प्रस्तावना में से समाजवादी और सेक्युलर शब्दों को हटाने के उद्देश्य से मौलिक ढांचे के सिद्धांत को ख़त् करने के लिए संसद, सड़क और कोर्ट तक में भाजपा के लोग मांग कर चुके हैं.

एयरपोर्ट के नाम पर किसानों की जमीन छीनने के खिलाफ किसान एकता समिति ने जिला मुख्यालय पर किया प्रदर्शन, दिया ज्ञापन(A.S. N...
18/09/2025

एयरपोर्ट के नाम पर किसानों की जमीन छीनने के खिलाफ किसान एकता समिति ने जिला मुख्यालय पर किया प्रदर्शन, दिया ज्ञापन

(A.S. News) - आजमगढ़ 18 सितंबर 2025। किसान एकता समिति द्वारा एयरपोर्ट के नाम पर किसानों की जमीन छीनने के खिलाफ आजमगढ़ जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया गया। मंदुरी क्षेत्र के बीसियो गावों के किसानों ने प्रधानमंत्री के नाम चार सूत्री ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से भेजा। सैकड़ों की संख्या में किसान जजी मैदान से एयरपोर्ट का विस्तारित कर नहीं होगा, किसानों की जमीन छीनना बंद करो, किसान एकता समिति जिंदाबाद के नारे लगाते हुए जिला अधिकारी कार्यालय पहुंचे। प्रशासनिक अधिकारी राजीव कुमार ने ज्ञापन लिया।

किसानों ने कहा कि एयरपोर्ट के विस्तारीकरण से ग्राम वासियों का विकास नहीं, विनाश होगा। किसानों ने सालों पहले कह दिया कि जमीन नहीं देंगे और भारत सरकार के मंत्री ने भी कह दिया है कि कोई प्रस्ताव नहीं है तो किस आधार पर सर्वे की बात कही जा रही है। भारत कृषि प्रधान और गावों का देश है खेती और आबादी उजाड़ने से देश कमजोर होगा। एयरपोर्ट विस्तारीकरण के नाम पर बहुफसली जमीन छीनने का प्रबल विरोध होगा।

किसानों ने कहा कि जमीन ही खाद्यान, पशुपालन और अजीविका का आधार है। सघन आबादी वाले इस क्षेत्र में किसी प्रकार का जमीन अधिग्रहण हजारों की संख्या में ग्रामीणों को विस्थापित करेगा। अधिकारियों द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा कि एयरपोर्ट विस्तारीकरण से विकास होगा। भारत सरकार द्वारा जब कह दिया गया है कि एयरपोर्ट विस्तारीकरण का कोई प्रस्ताव नहीं है तो किसी भी तरह का सर्वे नहीं किया जाए और किसी भी प्रकार के विस्तारीकरण की योजना भी न बनाई जाए।

किसान एकता समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव, एडवोकेट प्रकाश रंजन राय, महेन्द्र यादव, किसान नेता राजीव यादव, डाक्टर राजेंद्र यादव, योगेंद्र यादव, साहब लाल, नन्दलाल यादव, साहबदीन, सुभाष यादव, एडवोकेट सलटू यादव, बलिराम यादव, विजय यादव, विजय निषाद, राम सिंह यादव, राम चंद्र यादव, राम बेलास यादव, संदीप, एडवोकेट विनोद यादव, दुर्गा यादव, रवीन्द्र यादव यादव, प्रमोद कुमार, प्रदीप, महादेव यादव, मद्धू यादव, मिथिलेश यादव, सुनील यादव आदि ने ज्ञापन दिया।

*देश को संवैधानिक विघटन की तरफ ले जाना चाहता है चुनाव आयोग- शाहनवाज़ आलम**साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 212 वीं कड़ी में...
14/09/2025

*देश को संवैधानिक विघटन की तरफ ले जाना चाहता है चुनाव आयोग- शाहनवाज़ आलम*

*साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 212 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता*

(A.S. News) - नयी दिल्ली, 14 सितम्बर 2025. केंद्र सरकार के दबाव में चुनाव आयोग ने एसआइआर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट को ही चैलेंज नहीं किया है बल्कि देश को संवैधानिक विघटन की तरफ ढकेलने की कोशिश की है. यह भ्रष्ट चुनाव आयोग के माध्यम से देश पर तानाशाही थोपने की कोशिश है. जिसे देश बर्दाश्त नहीं करेगा.

ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 212 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान का अभिरक्षक है. इसलिए चुनाव आयोग या कोई भी संस्था यह नहीं कह सकती कि सुप्रीम कोर्ट उसके काम की समीक्षा या निगरानी नहीं कर सकता. उसके सामने यह भी विकल्प नहीं है कि वो कोर्ट से ये कहे सके कि वो उसे निर्देशित नहीं कर सकता कि उसे कब और क्या करना चाहिए. इसलिए चुनाव आयोग का सुप्रीम कोर्ट में दिया गया यह हलफनामा कि सुप्रीम कोर्ट उससे इलेक्टोरल रोल या एसआइआर कराने के समय पर सवाल नहीं कर सकता, सीधे-सीधे संविधान को चुनौती है. इसलिए यह राजद्रोह के दायरे में आता है जिसके आधार पर ज्ञानेश कुमार को न सिर्फ़ बर्खास्त कर देना चाहिए बल्कि गिरफ्तार कर जेल भी भेज देना चाहिए.

उन्होंने कहा कि आज अगर चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर रहा है तो कल पुलिस, सीबीआई और ईडी भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को मानने से यह कहकर इनकार कर सकते हैं कि यह उसके कार्यक्षेत्र में है कि वो किसे गिरफ्तार करे और किसके घर छापा मारे. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की इतनी गंभीर धमकी के बावजूद मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की चुप्पी भी संदेह पैदा करती है कि कहीं वो ख़ुद भी तो संवैधानिक विघटन के षड्यंत्र के हिस्सेदार नहीं हैं?

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अब इसमें कोई दो राय नहीं रह गया है कि मोदी सरकार ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से सीजेआई को बाहर करने और चुनाव आयुक्त के खिलाफ़ किसी भी कोर्ट में मुकदमा चलाये जाने से दिए गए छूट का मकसद देश पर अपनी तानाशाही थोपना था. इन दोनों बुनियादों पर ही आज मोदी सरकार चुनाव आयोग के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रही है. उन्होंने कहा कि देश की जनता अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. भाजपा और आरएसएस के किसी भी षड्यंत्र को सफल नहीं होने दिया जाएगा.

मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट नया फैसला(A.S. News) - भारतीय संविधान में शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र म...
07/09/2025

मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट नया फैसला

(A.S. News) - भारतीय संविधान में शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में समान अवसर सुनिश्चित करने की व्यवस्था की गई है। सामाजिक और ऐतिहासिक विषमताओं को दूर करने के लिए आरक्षण को एक औज़ार के रूप में अपनाया गया। इसी संदर्भ बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक ऐसा आदेश दिया है, जिस पर विमर्श ज़रूरी है। कोर्ट ने साफ़ कहा है कि उत्तर प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अनुसूचित जाति वर्ग को 21 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

गौरतलब है कि इससे पहले हाईकोर्ट की एकल पीठ ने आदेश दिया था कि कुछ मेडिकल कॉलेजों में अनुसूचित जाति वर्ग के अभ्यर्थियों को 70 प्रतिशत तक आरक्षण का लाभ मिले। इस आदेश को राज्य सरकार ने चुनौती दी और मामला डिवीजन बेंच तक पहुँचा। डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार के पक्ष को मानते हुए कहा कि आरक्षण की सीमा तय है और इससे अधिक की अनुमति नहीं दी जा सकती। हालाँकि, जिन छात्रों का प्रवेश पहले से हो चुका है, उनका एडमिशन सुरक्षित रहेगा। आगे की काउंसलिंग में यही सीमा लागू होगी।

वर्तमान में मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण की स्थिति पर बात करें तो ऑल इंडिया कोटा (15 प्रतिशत सीटें) में अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (केंद्रीय सूची) को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। उत्तर प्रदेश के राज्य कोटे (85 प्रतिशत सीटें) में अनुसूचित जाति को 21 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है।

यदि जनसंख्या और आरक्षण की तुलना करें तो तस्वीर और साफ होती है। देश में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 16.6 प्रतिशत है जबकि उत्तर प्रदेश में यह 21 प्रतिशत है। अन्य पिछड़े वर्ग की संख्या 40 से 45 प्रतिशत के बीच आँकी जाती है। इसके विपरीत, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS), जो उच्च जातियों का गरीब वर्ग है, उसकी वास्तविक जनसंख्या 10 प्रतिशत से भी कम है, लेकिन उन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिया गया है। इस दृष्टि से देखें तो बहुजन समाज (SC, ST, OBC) कुल आबादी का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा रखते हुए भी आरक्षण की सीमा से बंधा हुआ है, जबकि एक विशेष समाज को उनकी संख्या से अधिक लाभ उपलब्ध है।

सामाजिक न्याय की दृष्टि से यह सवाल अहम है कि क्या आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था वास्तव में समान अवसर उपलब्ध कराती है? मेडिकल जैसी प्रोफ़ेशनल शिक्षा ग्रामीण और वंचित वर्ग के लिए पहले से ही कठिन है। कोचिंग, अंग्रेज़ी माध्यम और आर्थिक दबाव जैसी चुनौतियाँ पिछड़े और दलित छात्रों को और पीछे धकेलती हैं। ऐसे में 21 प्रतिशत की सीमा कानूनी रूप से उचित भले लगे, लेकिन वास्तविक समानता के लक्ष्य तक पहुँचने में बाधक है।

इस आदेशित दृष्टिकोण से यह साफ है कि आरक्षण केवल सीटों का बँटवारा नहीं है, बल्कि लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व और बराबरी का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंद्रा साहनी मामले में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की थी, किंतु सामाजिक न्याय की दृष्टि से यह सीमा मनमानी प्रतीत होती है। जब असमानता 70 प्रतिशत से अधिक आबादी को झेलनी पड़ रही है तो प्रतिनिधित्व की सीमा भी उसी अनुपात में होनी चाहिए।

इस प्रकार इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश कानूनी रूप से व्यवस्था संचालन की तो बात करता है, लेकिन सामाजिक न्याय का सवाल अधूरा छोड़ देता है। यदि वास्तव में लोकतंत्र को मजबूत करना है तो शिक्षा और रोज़गार में बड़ी आबादी की वास्तविक हिस्सेदारी सुनिश्चित करनी होगी। आरक्षण की नीतियों की समीक्षा जनसंख्या और पिछड़ेपन के वास्तविक आँकड़ों के आधार पर की जानी चाहिए, तभी सामाजिक न्याय का सपना साकार हो सकेगा।

(सत्यम प्रजापति,
सामयिक विमर्शकार)

मोहसिन खान  वक्फ बादशाह साई ईदगाह  कमेटी के बने अध्यक्षभाजपा जिला अध्यक्ष ने दी शुभकामनाएँ(A.S. News) - पन्ना , मुख्यकार...
06/09/2025

मोहसिन खान वक्फ बादशाह साई ईदगाह कमेटी के बने अध्यक्ष

भाजपा जिला अध्यक्ष ने दी शुभकामनाएँ

(A.S. News) - पन्ना , मुख्यकार्यपालन अधिकारी म.प्र वक्फ बार्ड भोपाल द्वारा वक्फ बादशाह साई ईदगाह प्रबंध कमेटी बेनीसागर पन्ना कि कमेटी का गठन किया गया है जिसमें अध्यक्ष मोहसिन खान निवासी बेनीसागर मो. पन्ना को नियुक्त किया गया है। श्री मोहसिन खान कि नियुक्ति पर भा.ज.पा जिला अध्यक्ष ने हर्ष व्यक्त किया है साथ ही शुभकामनाएँ दी है देश वा समाज के लिए वक्फ बोर्ड के नियमानुसार काम करे ।श्री मोहसिन खान कि नियुक्ति पर अल्पसख्यक मोर्चा पदाधिकारियों ने शुभकामनाएँ एवं बधाई दी भा.ज.मा कार्यालय में बधाई देते समय उपस्थित रहे ,पूर्व राष्ट्रीय कार्यकरणी सदरय भा.ज.पा अल्पसंख्यक मोर्चा के वरिष्ठ नेता श्री निजाम खान, पिछडा वर्ग मोर्चा के अध्यक्ष श्री नरेन्द्र यादव, श्री मृगेंद्र गहरवार, एड. श्रीमति आशा खरे ने बधाई दी इस अवसर ने श्री मोहसिन खान ने कहा कि में एक युवा हूँ संगठन ने मेरे ऊपर विश्वास करके ही मुझे ये जिम्मेदारी दी है. में समाज के लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि में समाज के हित में ही कार्य करूँगा साथ ही खजुराहो सांसद माननीय श्री विष्णुदत्त शर्मा, अध्यक्ष सम्माननीय डॉ सनवर पटेल कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त ,जिला अध्यक्ष भा.ज.पा बृजेन्द्र मिश्रा भा.ज.पा के प्रदेश सह. मीडिया प्रभारी एड. आशीष तिवारी जी चक्फ बोर्ड के जिलाअध्यक्ष अब्दुल हमीद के प्रति आभार व्यक्त किया

राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाए गए उमर ख़ालिद व अन्य को जमानत न देने का फैसला राजनीतिकलखनऊ 4 सितम्बर 2025। रिहाई मंच ने छात्र...
04/09/2025

राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाए गए उमर ख़ालिद व अन्य को जमानत न देने का फैसला राजनीतिक

लखनऊ 4 सितम्बर 2025। रिहाई मंच ने छात्र नेता उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुल्फिसां फातिमा, मीरान हैदर और अन्य की जमानत याचिका ख़ारिज होने पर कहा कि उन्हें राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाया गया और अब जमानत न देकर जेल में सड़ने को मजबूर कर दिया गया है।

रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शोएब ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यूएपीए जैसे मामलों में भी बेल नियम है, जेल अपवाद है के सिद्धांत से समझौता नहीं किया जा सकता। वहीं दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा यह कहना कि केवल लंबी कैद व मुक़दमे में देरी के आधार पर जमानत देना सभी मामलों में सार्वभौमिक रूप से लागू होने वाला नियम नहीं है। न्यायालय द्वारा यह कहना कि जमानत देने या न देने का विवेकाधिकार संवैधानिक न्यायालय के पास है जो प्रत्येक मामले में विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है, इस पर सवाल करते हुए मोहम्मद शोएब कहते हैँ कि यह विशिष्ठ तथ्य एवं परिस्थितियां एक ही तरह के मामले में अलग-अलग नहीं हो सकती है। भाजपा नेता अनुराग ठाकुर के धमकी और उकसाने वाले बयान पर अदालत ने कहा था कि मुस्कुराते हुए बोला था इसलिए अपराध की श्रेणी में नहीं आता। शायद यह फैसला इसलिए दिया गया की आरोपी भाजपा के मंत्री थे।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुल्फिसां फातिमा, अथर खान, ख़ालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफ़ा उर रहमान, मीरान हैदर और शादाब अहमद जिनकी जमानत याचिका ख़ारिज की गई वे सभी देश के संवैधानिक ढांचे को मज़बूत करने के लिए संघर्ष करने वाले युवा थे। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी याद दिला दी कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को सिर्फ इसलिए कष्ट नहीं उठाना चाहिए क्योंकि उसका नाम खान है। आज बहस है कि मुस्लिम अभियुक्त होने की वजह से इस तरह का फैसला आया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि मुक़दमे को स्वभाविक रूप से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि जल्दबाजी में की गई सुनवाई अभियुक्तों और राज्य दोनों के लिए हानिकारक होगी। यहाँ सवाल उठता है कि पांच साल क्या कोई कम समय होता है इसलिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। जबकि इसमें से कई अभियुक्त देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्र रहे हैँ और देश के निर्माण के लिए उन्होंने गंभीर अध्ययन के साथ आंदोलन का रास्ता भी चुना। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इनपर व्हाट्सअप ग्रुप में शामिल होने और उकसाने जैसे आरोप हैँ। किसी को, किसी व्हाट्सअप ग्रुप में जोड़ देने से जुड़ने वाला कैसे आरोपी हो सकता है। जहां तक उकसावे वाली बात है नागरिकता आंदोलन के दौरान दिल्ली में कई बार आंदोलन कर रहे लोगों पर गोली चलाई गई। भाजपा के नेताओं ने खुलकर धमकी तक दी जिनपर न कोई कार्रवाई की गई और न ही उनके उकसावे पर दिल्ली में भड़के तनाव की साज़िश का उन्हें हिस्सा बनाया गया। आज़ादी के आंदोलन में इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा क्या आज़ाद भारत में लगाना गुनाह हो जाएगा। जेल में देर तक रहने वाले मामले का जिस तरह से सामान्यीकरण किया जा रहा है उससे यह प्रवृत्ती बढ़ेगी कि किसी के ऊपर भी आरोप लगा दीजिए और बिना सुनवाई वह जेल में बिना कसूर तय हुए सड़ता रहेगा।

सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारीजिन्दगी के मायने जिसने आखों से देख अपने जेहन और कलम से अपने गीतों में उकेरा एक ऐसा ही न...
30/08/2025

सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी

जिन्दगी के मायने जिसने आखों से देख अपने जेहन और कलम से अपने गीतों में उकेरा एक ऐसा ही नाम शैलन्द्र का है।

‘तू जि़न्दा है तो जि़न्दगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’ 1950 में लिखे इस गीत ने भविष्य की सम्भावनाओं और उसके संघर्ष को जो आवाज दी वह आजादी के बाद और आज के हालात का एक तुल्नात्मक अध्ययन है।

और वे जब कहते हैं ‘ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन, ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन’ तो ऐसी सुबह की तलाश होती है जिसे देखने का हक आने वाली नस्लों से कोई छीन नहीं सकता।

और इसीलिए वे आगे कहते हैं कि बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये, न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये।

शंकरदास केशरीलाल ‘शैलेन्द्र’ का जन्म 30 अगस्त 1923 को ‘रावलपिंडी’ (अब पाकिस्तान) में हुआ था।

1942 में वे रेलवे में इंजीनियरिंग सीखने आए और अगस्त आंदोलन में जेल जाने के बाद उनकी सशक्त राजनीतिक यात्रा शुरु हुई जिसे भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा) ने एक वैचारिक धार दी।

और यहीं से शुरु हुआ शैलेन्द्र का भूख के विरुद्ध भात के लिए वर्ग सघर्ष।

जो तत्कालीन समाज जिसे तत्कालीन कहना वर्तमान से बेमानी होगा पर वे लिखते हैं ‘छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ, बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ।’

‘छोटी सी बात न मिर्च मसाला, कह के रहेगा कहने वाला’ जैसे गीतों में चित्रपट पर राजकपूर की आवारगी में शैलेन्द्र के जीवन का महत्वपूर्ण उनका कविता पक्ष कुछ छुप सा जाता है।

उनकी 32 कविताओं का कविता संग्रह ‘न्यौता और चुनौतियां’ (1955) इसे समझने में हमारी मदद करता है।

क्योंकि शैलेन्द्र खुद कहते थे कि वे फिल्मी दुनिया में नहीं आना चाहते थे।

1947 में तत्कालीन राजनीति पर तीखा प्रहार करती उनकी रचना ‘जलता है पंजाब’ को जब राजकपूर ने सुनकर उन्हें ‘आग’ फिल्म में लिखने के लिए कहा तो वे मुकर गए।

पर 1948 में शादी के बाद मुफलिसी के दौर ने उनका रुख फिल्मी दुनिया की ओर किया और राजकपूर ने उन्हें बरसात में लिखने को कहा।

यहीं से शुरु होती है शैलेन्द्र की फिल्मी यात्रा।

शैलेन्द्र तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रुप में फिल्म फेयर से भी सम्मानित हुए।

भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की, देशभक्ति के लिए आज भी सज़ा मिलेगी फाँसी की ! (1948) यह रचना शैलेन्द्र के वर्गीय हित और वर्गीय संस्कृति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की बेमिशाल रचना है।

जो उस दौर के नेहरुवाद पर तीखा प्रहार करती है तो वहीं तत्कालीन और वर्तमान लोकतांत्रिक ढांचे पर सवाल करती है कि आखिर आजादी, किसकी आजादी।

जिसमें वे कहते हैं कि ‘यदि जनता की बात करोगे, तुम गद्दार कहाओगे- बम्ब सम्ब की छोड़ो, भाषण दिया कि पकड़े जाओगे !

यह आज के कश्मीर, पूर्वोत्तर से लेकर छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश में लोकतांत्रिक ढांचे की आड़ में चलाई जा रही जनविरोधी नीतियों को उजागर करता हैं।

जहां काले कानूनों के चलते आम-आवाम का सांस लेना भी दूभर हो गया है।

इस बात को सोचने और समझने के लिए मजबूर करता है कि सन 47 से लेकर अब तक की जो नीतियां रही उनकी हर साजिस जनता के खिलाफ थी।

जो आज हो रहा है वो 47 के दौर में भी हो रहा था, जिसे ‘न्यू माडल आजादी कहते हुए शेलेन्द्र कहते हैं ‘रुत ऐसी है आँख लड़ी है अब दिल्ली की लंदन से’।

शैलेन्द्र एक प्रतिबद्ध राजनीतिक रचनाकार थे।

जिनकी रचनाएं उनके राजनीतिक विचारों की वाहक थीं और इसीलिए वे कम्युनिस्ट राजनीति के नारों के रुप में आज भी सड़कों पर आम-आवाम की आवाज बनकर संघर्ष कर रही हैं।

‘हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है ! (1949) आज किसी भी मजदूर आंदोलन के दौरान एक ‘राष्ट्रगीत’ के रुप में गाया जाता है।

शैलेन्द्र ट्रेड यूनियन से लंबे समय तक जुड़े थे, वे राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया और खांके के प्रति बहुत सजग थे।

आम बोल-चाल की भाषा में गीत लिखना उनकी एक राजनीति थी।

क्योंकि क्लिष्ट भाषा को जनता नहीं समझ पाती, भाषा का ‘जनभाषा’ के स्वरुप में जनता के बीच प्रसारित होना एक राजनीतिक रचनकार की जिम्मेवारी होती है, जिसे उन्होंने पूरा किया।

आज वर्तमान दौर में जब सरकारें बार-बार मंदी की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से भाग रही हैं, ऐसा उस दौर में भी था।

तभी तो शैलेन्द्र लिखते हैं ‘मत करो बहाने संकट है, मुद्रा-प्रसार इंफ्लेशन है।’

बार-बार पूंजीवाद के हित में जनता पर दमन और जनता द्वारा हर वार का जवाब देने पर वे कहते हैं ‘समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है, मत समझो हमको याद नहीं हैं जून छियालिस की रातें।’

पर शैलेन्द्र के जाने के बाद आज हमारे फिल्मी गीतकारों का यह पक्ष बहुत कमजोर दिखता है, सिर्फ रोजी-रोटी कहकर इस बात को नकारा नहीं जा सकता।

क्योंकि वक्त जरुर पूछेगा कि जब पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी थी तो हमारे गीतकार क्यों चुप थे।

शैलेन्द्र लोक अभिव्यक्ति के पारखी थे, बहुत सीधे साफ शब्दों में बिना लाग लपेट हर बात को कहने का उनका अंदाज उन्हें कबीर के समकक्ष खड़ा करता है।

क्योंकि कबीर ने भी पाखंड के खिलाफ सीधे-सरल शब्दों में बात कहीं।

भाषा का अपना आतंक होता है अगर सरल भाषा जनता को मिलती है तो वह उसे अपना हथियार बना लेती है।

इसीलिए वे जब ‘मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ (श्री 420, 1950) कहते हैं तो उस दौर की पूरी राजनीति और उसमें अपने स्टैन्ड को स्पष्ट करते हैं।

शैलेन्द्र ने फिल्मी कलापक्ष जो कि काल्पनिक अधिक वास्तविक कम होने का अहसास कराता है के भ्रम को तोड़ डाला।

भारतीय समाज की नब्ज को पकड़ते हुए गीत लिखे और जीवन के आखिरी वक्त तक वे अपने इस उत्साह को बनाए रखे।

लोक अभिव्यक्तियों को जिस तरह उन्होंने खुद के प्रोडक्सन में बनी पहली और आखिरी फिल्म तीसरी कसम में ‘सजन रे झूठ मत बोलो' में आवाज दी उससे भारतीय समाज अपने आप को जोड़ लेता है।

हमारे घर परिवार में जिस तरह से हमें कहा जाता है कि किसी के साथ बुरा मत करो क्योंकि जैसा करोगे वैसा भुगतना पड़ेगा, रुपया पैसा सब यहीं रह जाएगा तो किस बात का लालच ऐसी छोटी-छोटी बातों को शैलेंन्द्र ने अपने गीतों के ट्रैक पर पूरे वैचारिक आधार पर रखा।

वे स्वर्ग और नरक के कान्सेप्ट को खारिज करते हैं पर उसका आधार भी लोक जीवन ही होता है।

शैलेन्द्र का गीत ‘सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी’ (अनाड़ी) उनके जीवन पर भी सटीक बैठता हैं जीवन के अंतिम दिनों में जब वे तीसरी कसम बना रहे थे तब वे ऐसे भवंर में फसे कि उससे कभी निकल न सके।

प्रोडक्सन में आने को लेकर शैलेन्द्र को राजकपूर ने काफी समझाया था कि बाजार अपनी शर्तों पर मजबूर कर देता है, जिसे शैलेन्द्र नहीं कर सकते थे।

और हुआ भी तीसरी कसम का अंतिम दृष्य जब बैलगाड़ी के झरोखे में हीराबाई (वहीदा रहमान) ट्रेन में जाती रहती है, और हीरामन (राजकपूर) बैलों को हांकते हुए जब पैना (छड़ी) मारने की कोशिश करता है और पीछे से बैकग्राउंड में गीत बजता है ‘प्रीत बनाके तूने जीना सिखाया, हंसना सिखाया, रोना सिखाया’ प्रेम के विरह का यह दृष्य उस वक्त के वितरकों ने हटाने को कहा।

क्योंकि उस वक्त तक फिल्मों के सुखांत की रीति थी।

पर लीक से हटकर जीवन के मूल्यों और वो भी प्रेम जैसे भावनात्मक रिश्ते जिसकी परिणति फणीश्वरनाथ रेणु ने भी विरह में की उसमें किसी परिवर्तन के लिए शैलेन्द्र तैयार नहीं हुए।

और शराब ने जिन्दगी के मायनों को समझने वाले ‘गुलफाम’ को मार डाला।

13 दिसंबर 1966 को जब शैलेन्द्र की तबीयत काफी खराब थी तो उन्होंने राजकपूर को आरके काटेज में मिलने के लिए बुलाया जहां उन्होंने राजकपूर से उनकी फिल्म मेरा नाम जोकर के गीत ‘जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां’ को पूरा करने का वादा किया।

लेकिन वह वादा अधूरा रहा और अगले ही दिन 14 दिसंबर 1966 को उनकी मृत्यु हो गई।

इसे महज एक संयोग हीं कहा जाएगा कि उसी दिन राजकपूर का जन्मदिन भी था।

-राजीव यादव
9452800752
(यह आर्टिकल 2011 में लिखा गया)

28/08/2025

नई दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस अभय ओका ने कहा कि यह बेहद चिंत.....

*दिलकुशा महल की पहचान मिटाने के बजाये योगी जी को शुजाउदौला से सभी धर्मों का सम्मान करना सीखना चाहिए- शाहनवाज़ आलम**सपा सा...
28/08/2025

*दिलकुशा महल की पहचान मिटाने के बजाये योगी जी को शुजाउदौला से सभी धर्मों का सम्मान करना सीखना चाहिए- शाहनवाज़ आलम*

*सपा सांसद अवधेश प्रसाद करें हस्ताक्षेप*

(A.S. News) - लखनऊ, 28 अगस्त 2025. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने फैज़ाबाद को बसाने वाले नवाब
शुजा-उद-दौला की दिलकुशा कोठी की जगह 'साकेत सदन' बनाने की योगी सरकार की कोशिश को साम्प्रदायिक कुंठा से भरा फैसला बताते हुए इसे तुरंत रोकने की मांग की है. उन्होंने इसे अल्पसंख्यक वर्ग को संविधान प्रदत्त अपनी संस्कृति, इतिहास और संस्थानों के संरक्षण के अधिकार पर भी हमला बताया है.

शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि योगी सरकार ने दिलकुशा कोठी को जर्जर बताकर उसके मरम्मत की बात की लेकिन चुपके से उसके आतंरिक संरचना को ही बदल दिया और अब इस कोठी की जगह 'साकेत सदन' नाम से संग्रहालय बना रही है. जिसमें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और धार्मिक चीजें रखी जाएंगी. उन्होंने कहा कि अगर प्रदेश सरकार को धार्मिक संग्राहलय बनाना है तो किसी अन्य जगह भी बना सकती है. अवध के गौरवशाली इतिहास के इस प्रतीक को सिर्फ़ इसलिए मिटाकर उसकी जगह हिन्दू धार्मिक संग्रहालय बनाना कि वह मुसलमानों के इतिहास से जुड़ी है निम्न स्तर की सोच है.

उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ को यह नहीं भूलना चाहिए कि शुजाउदौला और उसके वंश को इतिहास सेक्युलर शासकों के बतौर याद करता है. जिसने मस्जिदों के साथ उस गोरखनाथ पीठ को भी ज़मीन दान दी थी जिसके वे महंत हैं. इसलिए योगी आदित्यनाथ जी को शुजाउदौला से नफ़रत करने के बजाये उनसे शासन करने का गुण सीखना चाहिए. इससे प्रदेश में सद्भाव का माहौल बनेगा.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 1857 की जंग जीतने के बाद अंग्रेजों ने नवाबों के वारिसों को अपमानित करने के लिए उनके गौरव के प्रतीक इस महल को अफीम की खरीद-बिक्री का केंद्र बना दिया. जिसके बाद अंग्रेज़ों ने इसे अफीम कोठी का नाम दे दिया. आज योगी सरकार अंग्रेज़ समर्थक आरएसएस के उसी नज़रिये से 1857 के योद्धाओं और उनके वारिसों को अपमानित करने के लिए दिलकुशा महल की पहचान मिटाना चाहती है.

शाहनवाज़ आलम ने अयोध्या के सपा सांसद अवधेश प्रसाद से भी इस मामले में हस्ताक्षेप करने की मांग करते हुए कहा कि साझी विरासत की रक्षा करना सेक्युलर पार्टियों की सबसे अहम ज़िम्मेदारी है.

(AS News) - पन्ना भोपाल बस के ड्राइवर सिद्दीक राइन और कंडक्टर आशीष पाल की तत्परता और सूझबूझ से गर्भवती महिला और नवजात बच...
21/08/2025

(AS News) - पन्ना भोपाल बस के ड्राइवर सिद्दीक राइन और कंडक्टर आशीष पाल की तत्परता और सूझबूझ से गर्भवती महिला और नवजात बच्चे की जान बची.
दरअसल भोपाल से पन्ना लौट रही बस में अमानगंज के पहले कुछ महिलाएं एक गर्भवती महिला को लेकर बस में बैठी उसको प्रसव पीड़ा हो रही थी तब बस के कंडक्टर आशीष पाल ने उनको बताया कि आप अमानगंज स्वास्थ्य केंद्र जाएं तो महिलाओं ने बताया कि डॉक्टर ने बताया है कि पन्ना अस्पताल लेकर जाओ. कंडक्टर आशीष पाल ने महिला को एक खाली सीट पर लेटा लिया और अमानगंज के थोड़ी दूर आने के बाद महिला को पेशाब पीड़ा शुरू हो गई एवं वह जोर-जोर से करने रोने लगी. बस में कोई ऐसा जानकार व्यक्ति नहीं था जो उसकी सहायता कर पाता. इस समय बच्चों का सर बाहर आ गया और ऐसी स्थिति में किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था क्या किया जाए. तब ड्राइवर और कंडक्टर ने दोनों ने मिलकर यह तय किया कि हम जितनी जल्दी हो सके पन्ना अस्पताल पहुंच जाएं. और उन्होंने समय रहते पन्ना अस्पताल के गेट तक बस को पहुंचा दिया. उसके बाद सूचना देने के बाद अस्पताल से दो दाई आती है और जच्चा बच्चा को सुरक्षित रूप से प्रसव कराकर अस्पताल ले जाती हैं. वहीं पीड़ित महिला के साथ वाली महिलाओं ने बताया की 2:00 बजे रात से एंबुलेंस को हम लोग लगातार फोन कर रहे हैं किंतु 2:00 बजे रात से अभी तक एंबुलेंस वालों ने हमारी कोई मदद नहीं की...
फिलहाल बच्चा बच्चा दोनों सुरक्षित हैं.

*दलित ऐक्ट की तरह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए क़ानून ज़रूरी है - शाहनवाज़ आलम**साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 206 वीं क...
04/08/2025

*दलित ऐक्ट की तरह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए क़ानून ज़रूरी है - शाहनवाज़ आलम*

*साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 206 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता*

नयी दिल्ली, 3 अगस्त 2025. मुसलमानों के खिलाफ़ साम्प्रदायिक हिंसा अब संस्थागत रूप ले चुकी है. इसकी जड़ मनुवादी विचारधारा में है. संस्थागत हिंसा को सिर्फ़ क़ानून बनाकर ही नियंत्रित किया जा सकता है. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 206 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने 24 मार्च 1947 को संविधान सभा द्वारा मौलिक अधिकारों के लिए गठित उपसमिति को अल्पसंख्यकों और राज्य के अधिकारों पर दिए ज्ञापन में कहा था कि दुर्भाग्य से भारतीय राष्ट्रवाद ने एक ऐसा सिद्धांत विकसित कर लिया है जिसे अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों का शासन करने का दैवीय अधिकार ही कहा जा सकता है. जिसमें सत्ता में हिस्सेदारी की अल्पसंख्यकों की किसी भी मांग को साम्प्रदायिकता घोषित कर दिया जाता है. जबकि सत्ता पर बहुसंख्यकों के एकाधिकार को राष्ट्रवाद कह दिया जाता है. डॉ अम्बेडकर ने कहा था कि ऐसी स्थिति को देखकर ही उन्होंने अनुसूचित वर्गो के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए संविधान में व्यवस्था की थी.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सत्ता में अल्पसंख्यकों की घटती हिस्सेदारी के कारण ही मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा संस्थागत रूप लेती गयी है. इस हिंसा की जड़ मनुवादी व्यवस्था में निहित है. जिसे सिर्फ़ संवैधानिक व्यवस्था से ही रोका जा सकता है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने जिस तरह अनुसूचित वर्गो के खिलाफ़ मनुवादी हिंसा को रोकने के लिए दलित उत्पीड़न निवारण कानून बनाकर दलित विरोधी हिंसा को रोकने की व्यवस्था की थी वैसी ही संवैधानिक व्यवस्था अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी के लिए होना समय की मांग है. इससे हम हिंसा विहीन लोकतंत्र की तरफ बढ़ सकेंगे.

उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने साम्प्रदायिक हिंसा विरोधी बिल ला कर इस दिशा में कोशिश की थी लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पायी थी.

कांग्रेस नेता ने कहा कि यह तर्क कि ऐसा क़ानून राज्य और केंद्र के संघीय ढांचे के विरुद्ध होगा क्योंकि क़ानून व्यवस्था राज्य का विषय है, अप्रासंगिक है. क्योंकि सुरक्षित जीवन जीने के अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकार को सिर्फ़ तकनीकी समस्या में उलझाकर नहीं छीना जा सकता. उन्होंने कहा कि दलित विरोधी हिंसा निवारण कानून से जब राज्य और केंद्र के संघीय संबंधों में कोई दिक्कत नहीं उत्पन्न हुई तो अल्पसंख्यकों के लिए ऐसे ही क़ानून से भी कोई दिक्कत उत्पन्न नहीं हो सकती.

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