Enlightened Masters

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ॐ नमः शिवायः

सात चीजें जो क्वांटम भौतिकी के दृष्टिकोण से आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करती हैं।

क्वांटम भौतिकी में कंपन का मतलब है कि सब कुछ ऊर्जा है। हम कुछ निश्चित आवृत्तियों पर जीवंत प्राणी हैं। प्रत्येक कंपन एक भावना के बराबर है और दुनिया में "कंपन", कंपन (Vibrations) की केवल दो प्रजातियां हैं, सकारात्मक और नकारात्मक। कोई भी भावना आपको एक कंपन को प्रसारित करती है जो सकारात्मक या नकारात्

मक हो सकती है।

🌺 1--विचार🌺
प्रत्येक विचार ब्रह्मांड के लिए एक आवृत्ति का उत्सर्जन करता है और यह आवृत्ति वापस मूल में जाती है, इसलिए यदि आपके पास नकारात्मक विचार, हतोत्साह, उदासी, क्रोध, भय है, तो यह सब आपके पास आता है। यही कारण है कि यह इतना महत्वपूर्ण है कि आप अपने विचारों की गुणवत्ता का ध्यान रखें और सीखें कि कैसे अधिक सकारात्मक विचारों की खेती करें।

🌺 2--संगति🌺

आपके आसपास के लोग आपकी कंपन आवृत्ति को सीधे प्रभावित करते हैं। यदि आप खुश, सकारात्मक और दृढ़ लोगों के साथ खुद को घेरते हैं, तो आप इस कंपन में भी प्रवेश करेंगे। अब, अगर आप शिकायत करने वाले, गपशप करने वाले और निराशावादी लोगों से घिरे हैं, तो सावधान हो जाइए! वास्तव में, वे आपकी आवृत्ति को कम कर सकते हैं और इसलिए आपको अपने पक्ष में आकर्षण के कानून का उपयोग करने से रोकते हैं। ( Law of attraction)।

🌺 3--संगीत 🌺
संगीत बहुत शक्तिशाली है। यदि आप केवल संगीत सुनते हैं जो मृत्यु, विश्वासघात, उदासी, परित्याग के बारे में बात करता है, तो यह सब उस चीज़ में हस्तक्षेप करेगा जो आप महसूस कर रहे हैं। आपके द्वारा सुने जाने वाले संगीत के बोलों पर ध्यान दें, यह आपकी कंपन आवृत्ति को कम कर सकता है। और याद रखें: आप अपने जीवन में जैसा महसूस करते हैं वैसा ही आकर्षित करते हैं।

🌺 4--जिन चीजों को आप देखते हैं 🌺
जब आप दुर्भाग्य, मृत, विश्वासघात आदि से निपटने वाले कार्यक्रमों को देखते हैं, तो आपका मस्तिष्क इसे एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार करता है और आपके शरीर में एक संपूर्ण रसायन विज्ञान जारी करता है, जो आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करता है। उन चीजों को देखें जो आपको अच्छा लगता है और आपको उच्च आवृत्ति पर कंपन करने में मदद करता है।

🌺 5--माहौल 🌺
चाहे वह घर पर हो या काम पर, अगर आप गंदे और गंदे माहौल में बहुत समय बिताते हैं, तो यह आपकी कंपन आवृत्ति को भी प्रभावित करेगा। अपने परिवेश को सुधारें, अपने परिवेश को व्यवस्थित करें और साफ करें। ब्रह्मांड दिखाओ कि आप अधिक प्राप्त करने के लिए फिट हैं। आपके पास जो पहले से है उसका ख्याल रखें!

🌺 6--शब्द 🌺
यदि आप चीजों और लोगों के बारे में गलत दावा करते हैं या बोलते हैं, तो यह आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करता है। अपनी आवृत्ति को उच्च रखने के लिए, दूसरों के बारे में शिकायत और बुरी बात करने की आदत को खत्म करना आवश्यक है। इसलिए नाटक और धमकाने से बचें। अपने जीवन के विकल्पों के लिए अपनी जिम्मेदारी मान लें!

🌺 7-- अहोभाव 🌺
आभार सकारात्मक रूप से आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करता है। यह एक ऐसी आदत है जिसे आपको अब अपने जीवन में एकीकृत करना चाहिए। हर चीज के लिए, अच्छी चीजों के लिए और जिसे आप बुरा मानते हैं, उसके लिए धन्यवाद देना शुरू करें, आपके द्वारा अनुभव किए गए सभी अनुभवों के लिए धन्यवाद। कृतज्ञता आपके जीवन में सकारात्मक चीजों के होने का द्वार खोलती है।

🔱🔱 श्री दक्षिण लक्ष्मी स्तवनम्  🔱🔱🟨🟨🟨 हिन्दी अर्थ  सहित  🟨🟨🟨🍁त्रैलोक्यपूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे।यथा त्वमचला कृष्णे त...
17/10/2025

🔱🔱 श्री दक्षिण लक्ष्मी स्तवनम् 🔱🔱
🟨🟨🟨 हिन्दी अर्थ सहित 🟨🟨🟨

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त्रैलोक्यपूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे।
यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा॥१

भावार्थ:
हे त्रिभुवनपूजिता कमले! हे विष्णु की परम प्रिय देवी!
जैसे तुम श्रीकृष्ण (विष्णु) के प्रति सदैव अचल और स्थिर रहती हो,
वैसे ही मेरे जीवन में भी स्थिर होकर निवास करो।

🍁
पद्मा पद्मालये देवी हरिप्राणप्रिया सदा।
शङ्खचक्रगदाहस्ते धनधान्यप्रदायिनि॥२

भावार्थ:
हे पद्मा! हे कमलनिवासिनी देवी!
तुम सदा हरि की प्राणप्रिय हो,
शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हो—
जो भक्तों को धन और अन्न की समृद्धि प्रदान करती हैं।

🍁
दक्षिणाशाखवर्ती त्वं शङ्खरूपे परमेश्वरी।
श्रीहर्यङ्घ्रिस्थिता नित्यं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥३

भावार्थ:
हे देवी! तुम दक्षिणवर्ती शंखरूपा परमेश्वरी हो,
जो सदैव श्रीहरि के चरणों में निवास करती हैं।
ऐसी महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।

🍁
सिंहासनस्थे वरदे सर्वसिद्धिप्रदायिनि।
दक्षिणावर्तशंखस्था चक्रेश्वर्यै नमोऽस्तु ते॥४

भावार्थ:
हे सिंहासन पर विराजमान, वर देने वाली तथा सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी चक्रेश्वरी!
आपको सदा नमस्कार है, जो दक्षिणावर्ती शंखरूप में विशेष रूप से स्थित रहती हैं।

🍁
भोगमोक्षप्रदे देवि भक्तानां वरदायिनि।
यस्य गृहं प्रविशसि तत्सर्वं धनसम्पदम्॥५

भावार्थ:
हे देवी! तुम भोग और मोक्ष दोनों की दात्री हो,
भक्तों को वर प्रदान करने वाली हो।
जिस घर में तुम प्रवेश करती हो, वहाँ सब प्रकार की सम्पदा आ जाती है।

🍁
विष्णुवक्षःस्थिता नित्यं श्रीवत्साङ्किता महाद्युतिः।
मुक्तामणिविभूषाढ्या दक्षिणे श्रीः प्रसीद मे॥६

भावार्थ:
हे देवी! तुम सदैव विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान हो,
श्रीवत्स चिन्ह से अंकित और अत्यन्त तेजस्विनी हो।
मुक्तामणियों से अलंकृत दक्षिण लक्ष्मी! मुझ पर कृपा करो।

🍁
शङ्खे जलं समादाय जप्यं स्तोत्रमिदं शुभम्।
तदा दोषा विनश्यन्ति गृहं शुद्धं प्रजायते॥७

भावार्थ:
जब शंख में जल भरकर इस शुभ स्तोत्र का जप किया जाता है,
तब सभी दोष और अशुद्धियाँ नष्ट होती हैं,
और घर पवित्र तथा मंगलमय बनता है।

🍁
वाणिज्ये वा गृहे वा वा यदि त्वां पूजयाम्यहम्।
स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तत्र न कदापि च नश्यति॥८

भावार्थ:
चाहे व्यापार में या घर में यदि मैं तुम्हारी पूजा करता हूँ,
तब वहाँ लक्ष्मी स्थिर रहती हैं और कभी न नष्ट होती हैं।

🍁
भवसागरसंमग्नं उद्धर त्वं जनार्दने।
दक्षिणे वर्तसे देवि पावय मां महेश्वरि॥९

भावार्थ:
हे देवी! जब मैं संसार-सागर में डूब जाता हूँ,
तब तुम मुझे उद्धार करो।
हे दक्षिणवर्ती महेश्वरी! मुझे पवित्र करो।

🍁
सुवर्णपद्मनिलया शान्तिः सौभाग्यदायिनी।
दुर्भिक्षदुःखहन्त्री त्वं दक्षिणे श्रीः नमोऽस्तु ते॥१०

भावार्थ:
हे सुवर्णपद्म पर विराजमान देवी!
तुम शांति और सौभाग्य देने वाली हो,
दुर्भिक्ष और दुःखों की नाशक हो।
हे दक्षिण लक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार।

🍁
नित्यशुद्धे नमस्तुभ्यं नित्यपुष्टे नमोऽस्तु ते।
नित्यलक्ष्मि नमस्तुभ्यं दक्षिणे श्रीः नमोऽस्तु ते॥११

भावार्थ:
हे नित्यशुद्ध, नित्यपुष्टा और नित्य लक्ष्मी!
जो दक्षिण दिशा में प्रतिष्ठित हैं, आपको नमस्कार।

🍁
त्वमेव माता जगतां त्वमेव परमेश्वरी।
त्वमेव भक्तवश्येति दक्षिणे श्रीः नमोऽस्तु ते॥१२

भावार्थ:
हे देवी! तुम ही जगत की जननी और परमेश्वरी हो,
भक्तों को वश में करने वाली हो।
हे दक्षिण लक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार।

🍁
पद्मनाभप्रियाम्भोजे सर्वसौख्यप्रदायिनि।
तव स्मरणमात्रेण दुःखं नश्यति तत्क्षणात्॥१३

भावार्थ:
हे पद्मनाभ की प्रिय कमले!
तुम सब प्रकार के सुख प्रदान करती हो।
तुम्हारे स्मरण मात्र से ही सभी दुःख क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं।

🍁
कमले दक्षिणावर्तशंखरूपे जनार्दनकरस्थिते।
भक्तानां मनोवाञ्छितसिद्धिदायिनि नमोऽस्तु ते॥१४

भावार्थ:
हे कमले! दक्षिणवर्ती शंख के रूप में प्रभु जनार्दन के हाथों में प्रतिष्ठित हो,
तुम भक्तों को मनोवांछित फल और सिद्धियाँ देती हो।

🍁
स्वर्णाभया सुभद्रे त्वं सर्वविघ्ननिवारिणि।
सर्वार्थसिद्धिदा मातः दक्षिणे श्रीः नमोऽस्तु ते॥१५

भावार्थ:
हे स्वर्णवर्णा सुभद्रे! सभी विघ्नों का निवारण करने वाली,
सर्वकार्यों की सिद्धि देने वाली मातः दक्षिण लक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार।

🍁
अन्नपूर्णे धनप्राप्ते शान्तिदे शुभदायिनि।
यस्य हृदि त्वं निवससि तस्य दुःखं न विद्यते॥१६

भावार्थ:
हे अन्नपूर्णे! धन, शांति और मंगल देने वाली देवी!
जिसके हृदय में तुम निवास करती हो, उसे कभी दुःख नहीं होता।

🍁
लक्ष्मीः करस्थे दक्षिणे विष्णोः प्राणप्रिया सदा।
नित्यं पूज्यां नमाम्यद्य स्थिरां श्रीं प्रददातु मे॥१७

भावार्थ:
हे दक्षिणलक्ष्मी! तुम विष्णु के दक्षिण हस्त में सदैव प्रतिष्ठित, उनकी प्राणप्रिया हो।
मुझे स्थिर लक्ष्मी और समृद्धि प्रदान करो।

🍁
धनलक्ष्मि कुबेरेशकोषस्थे पद्मिनीस्वरूपिणि।
धनदा देवी समृद्धिं मे देहि सौभाग्यवृद्धये॥
त्वत्पूजितशंखजलं पुण्यं पावनमागतं।
गृहं मे शुभदै देवि प्रविशतु सदा प्रिये॥१८

भावार्थ:
हे धनलक्ष्मी! आप कुबेर के धनकोष में पद्मिनी रूप से स्थित धनदा देवी हैं।
मुझे धन, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करें।
आपके पूजित शंख का जल मेरे घर में पुण्य और शुभता लाए।

🍁
ऋणमुक्तिं सुखं श्रीं च सौभाग्यं पुत्रलाभकम्।
प्रददासि सदा मातः दक्षिणे श्रीः प्रसीद मे॥१९

भावार्थ:
हे दक्षिण लक्ष्मी माता! आप साधक को ऋणमुक्ति, सुख, स्थिर श्री, सौभाग्य और पुत्रलाभ देती हैं।
हे देवी! मुझ पर प्रसन्न हो जाइए।

🍁
सर्वकामफलप्राप्त्यै यः पठेत् स्तोत्रमुत्तमम्।
तस्य गेहे सदा लक्ष्मीः स्थिरा तिष्ठति निश्चितम्॥२०

भावार्थ:
जो भक्त इस श्रेष्ठ स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है,
उसके घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।
वह सर्वकामफल प्राप्त करता है और दरिद्र नहीं होता।

🍁
इदं स्तोत्रं महापुण्यं श्रीदक्षिणलक्ष्म्यै समर्पितम्।
पठन् भक्त्या च यो नित्यं तस्य नास्ति दरिद्रता॥२१

भावार्थ:
यह स्तोत्र अत्यन्त पवित्र और पुण्यदायक है,
श्री दक्षिणलक्ष्मी को समर्पित।
जो इसे प्रतिदिन श्रद्धा से पढ़ता है,
वह दरिद्रता और दुःख से सदैव मुक्त रहता है।

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🌺 🙏🏻 जय माता दी 🙏 🌺
🌺 जय मां आदिशक्ति 🌺
🌺 मां के चरणों में स्वर्ग है। 🌺
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🟧1⃣🪔  श्री महालक्ष्मी कवचम् 🟧2⃣🪔  श्री लक्ष्मी कवचम् तन्त्रोक्त 🟧3⃣🪔  श्री लक्ष्मी कवचम् ब्रहम स्तोत्र 🟧4⃣🪔. विश्वसार तन...
17/10/2025

🟧1⃣🪔 श्री महालक्ष्मी कवचम्
🟧2⃣🪔 श्री लक्ष्मी कवचम् तन्त्रोक्त
🟧3⃣🪔 श्री लक्ष्मी कवचम् ब्रहम स्तोत्र
🟧4⃣🪔. विश्वसार तन्त्रोक्तं कमला कवचं
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🟧1⃣🪔 श्री महालक्ष्मी कवचम् 🟧🪔🟧

श्री गणेशाय नमः ।
अस्य श्रीमहालक्ष्मीकवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः
महालक्ष्मीर्देवता महालक्ष्मीप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
इन्द्र उवाच । समस्तकवचानां तु तेजस्वि कवचोत्तमम् ।
आत्मरक्षणमारोग्यं सत्यं त्वं ब्रूहि गीष्पते ॥ १॥

श्रीगुरुरुवाच । महालक्ष्म्यास्तु कवचं प्रवक्ष्यामि समासतः ।
चतुर्दशसु लोकेषु रहस्यं ब्रह्मणोदितम् ॥ २॥

ब्रह्मोवाच । शिरो मे विष्णुपत्नी च ललाटममृतोद्भवा ।
चक्षुषी सुविशालाक्षी श्रवणे सागराम्बुजा ॥ ३॥

घ्राणं पातु वरारोहा जिह्वामाम्नायरूपिणी ।
मुखं पातु महालक्ष्मीः कण्ठं वैकुण्ठवासिनी ॥ ४॥

स्कन्धौ मे जानकी पातु भुजौ भार्गवनन्दिनी ।
बाहू द्वौ द्रविणी पातु करौ हरिवराङ्गना ॥ ५॥

वक्षः पातु च श्रीर्देवी हृदयं हरिसुन्दरी ।
कुक्षिं च वैष्णवी पातु नाभिं भुवनमातृका ॥ ६॥

कटिं च पातु वाराही सक्थिनी देवदेवता ।
ऊरू नारायणी पातु जानुनी चन्द्रसोदरी ॥ ७॥

इन्दिरा पातु जंघे मे पादौ भक्तनमस्कृता ।
नखान् तेजस्विनी पातु सर्वाङ्गं करूणामयी ॥ ८॥

ब्रह्मणा लोकरक्षार्थं निर्मितं कवचं श्रियः ।
ये पठन्ति महात्मानस्ते च धन्या जगत्त्रये ॥ ९॥

कवचेनावृताङ्गनां जनानां जयदा सदा ।
मातेव सर्वसुखदा भव त्वममरेश्वरी ॥ १०॥

भूयः सिद्धिमवाप्नोति पूर्वोक्तं ब्रह्मणा स्वयम् ।
लक्ष्मीर्हरिप्रिया पद्मा एतन्नामत्रयं स्मरन् ॥ ११॥

नामत्रयमिदं जप्त्वा स याति परमां श्रियम् ।
यः पठेत्स च धर्मात्मा सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥ १२॥

॥ इति श्रीब्रह्मपुराणे इन्द्रोपदिष्टं महालक्ष्मीकवचं सम्पूर्णम्।।
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🟧2⃣🪔 श्री लक्ष्मी कवचम् तन्त्रोक्त 🟧🪔🟧

श्रीगणेशाय नमः ।
ॐ अस्य श्रीलक्ष्मीकवचस्तोत्रस्य, श्रीईश्वरो देवता,
अनुष्टुप् छन्दः, श्रीलक्ष्मीप्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः ।
ॐ लक्ष्मी मे चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः ।
नारायणी शीर्षदेशे सर्वाङ्गे श्रीस्वरूपिणी ॥ १॥

रामपत्नी तु प्रत्यङ्गे सदाऽवतु शमेश्वरी।
विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी तथा ॥ २॥

जयदात्री धनदात्री पाशाक्षमालिनी शुभा ।
हरिप्रिया हरिरामा जयङ्करी महोदरी ॥ ३॥

कृष्णपरायणा देवी श्रीकृष्णमनमोहिनी ।
जयङ्करी महारौद्री सिद्धिदात्री शुभङ्करी ॥ ४॥

सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूटनिवासिनी ।
भयं हरतु भक्तानां भवबन्धं विमुच्यतु ॥ ५॥

कवचं तन्महापुण्यं यः पठेद्भक्तिसंयुतः ।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा मुच्यते सर्वसङ्कटात् ॥ ६॥

एतत्कवचस्य पठनं धनपुत्रविवर्धनम् ।
भीतिर्विनाशनञ्चैव त्रिषु लोकेषु कीर्तितम् ॥ ७॥

भूर्जपत्रे समालिख्य रोचनाकुङ्कुमेन तु ।
धारणाद्गलदेशे च सर्वसिद्धिर्भविष्यति ॥ ८॥

अपुत्रो लभते पुत्र धनार्थी लभते धनम् ।
मोक्षार्थी मोक्षमाप्नोति कवचस्य प्रसादतः ॥ ९॥

गर्भिणी लभते पुत्रं वन्ध्या च गर्भिणी भवेत् ।
धारयेद्यपि कण्ठे च अथवा वामबाहुके ॥ १०॥

यः पठेन्नियतं भक्त्या स एव विष्णुवद्भवेत् ।
मृत्युव्याधिभयं तस्य नास्ति किञ्चिन्महीतले ॥ ११॥

पठेद्वा पाठयेद्वाऽपि श‍ृणुयाच्छ्रावयेद्यदि ।
सर्वपापविमुक्तस्तु लभते परमां गतिम् ॥ १२॥

सङ्कटे विपदे घोरे तथा च गहने वने ।
राजद्वारे च नौकायां तथा च रणमध्यतः ॥ १३॥

पठनाद्धारणादस्य जयमाप्नोति निश्चितम् ।
अपुत्रा च तथा वन्ध्या त्रिपक्षं श‍ृणुयाद्यदि ॥ १४॥

सुपुत्रं लभते सा तु दीर्घायुष्कं यशस्विनम् ।
श‍ृणुयाद्यः शुद्धबुद्ध्या द्वौ मासौ विप्रवक्त्रतः ॥ १५॥

सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वबन्धाद्विमुच्यते ।
मृतवत्सा जीववत्सा त्रिमासं श्रवणं यदि ॥ १६॥

रोगी रोगाद्विमुच्येत पठनान्मासमध्यतः ।
लिखित्वा भूर्जपत्रे च अथवा ताडपत्रके ॥ १७॥

स्थापयेन्नियतं गेहे नाग्निचौरभयं क्वचित् ।
श‍ृणुयाद्धारयेद्वापि पठेद्वा पाठयेदपि ॥ १८॥

यः पुमान्सततं तस्मिन्प्रसन्नाः सर्वदेवताः ।
बहुना किमिहोक्तेन सर्वजीवेश्वरेश्वरी ॥ १९॥

आद्या शक्तिर्महालक्ष्मीर्भक्तानुग्रहकारिणी ।
धारके पाठके चैव निश्चला निवसेद् ध्रुवम् ॥ २०॥

॥ इति तन्त्रोक्तं लक्ष्मीकवचं सम्पूर्णम् ॥
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🟧3⃣🪔 श्री लक्ष्मी कवचम् ब्रहम स्तोत्र 🟧🪔🟧

शुकं प्रति ब्रह्मोवाच

महालक्ष्म्याः प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम् ।
सर्वपापप्रशमनं दुष्टव्याधिविनाशनम् ॥ १॥

ग्रहपीडाप्रशमनं ग्रहारिष्टप्रभञ्जनम् ।
दुष्टमृत्युप्रशमनं दुष्टदारिद्र्यनाशनम् ॥ २॥

पुत्रपौत्रप्रजननं विवाहप्रदमिष्टदम् ।
चोरारिहं च जपतां अखिलेप्सितदायकम् ॥ ३॥

सावधानमना भूत्वा श्रुणु त्वं शुक सत्तम ।
अनेकजन्मसंसिद्धिलभ्यं मुक्तिफलप्रदम् ॥ ४॥

धनधान्यमहाराज्यसर्वसौभाग्यकल्पकम् ।
सकृत्स्मरणमात्रेण महालक्ष्मीः प्रसीदति ॥ ५॥

क्षीराब्धिमध्ये पद्मानां कानने मणिमण्टपे ।
तन्मध्ये सुस्थितां देवीं मनीषाजनसेविताम् ॥ ६॥

सुस्नातां पुष्पसुरभिकुटिलालकबन्धनाम् ।
पूर्णेन्दुबिम्बवदनां अर्धचन्द्रललाटिकाम् ॥ ७॥

इन्दीवरेक्षणां कामकोदण्डभ्रुवमीश्वरीम् ।
तिलप्रसवसंस्पर्धिनासिकालङ्कृतां श्रियम् ॥ ८॥

कुन्दकुड्मलदन्तालिं बन्धूकाधरपल्लवाम् ।
दर्पणाकारविमलकपोलद्वितयोज्ज्वलाम् ॥ ९॥

रत्नताटङ्ककलितकर्णद्वितयसुन्दराम् ।
माङ्गल्याभरणोपेतां कम्बुकण्ठीं जगत्प्रियाम् ॥ १०॥

तारहारिमनोहारिकुचकुम्भविभूषिताम् ।
रत्नाङ्गदादिललितकरपद्मचतुष्टयाम् ॥ ११॥

कमले च सुपत्राढ्ये ह्यभयं दधतीं वरम् ।
रोमराजिकलाचारुभुग्ननाभितलोदरीम् ॥ १२॥

पत्तवस्त्रसमुद्भासिसुनितंबादिलक्षणाम् ।
काञ्चनस्तम्भविभ्राजद्वरजानूरुशोभिताम् ॥ १३॥

स्मरकाह्लिकागर्वहारिजंभां हरिप्रियाम् ।
कमठीपृष्ठसदृशपादाब्जां चन्द्रसन्निभाम् ॥ १४॥

पङ्कजोदरलावण्यसुन्दराङ्घ्रितलां श्रियम् ।
सर्वाभरणसंयुक्तां सर्वलक्षणलक्षिताम् ॥ १५॥

पितामहमहाप्रीतां नित्यतृप्तां हरिप्रियाम् ।
नित्यं कारुण्यललितां कस्तूरीलेपिताङ्गिकाम् ॥ १६॥

सर्वमन्त्रमयां लक्ष्मीं श्रुतिशास्त्रस्वरूपिणीम् ।
परब्रह्ममयां देवीं पद्मनाभकुटुंबिनीम् ।
एवं ध्यात्वा महालक्ष्मीं पठेत् तत्कवचं परम् ॥ १७॥

ध्यानम् ।
एकं न्यंच्यनतिक्षमं ममपरं चाकुंच्यपदांबुजं
मध्ये विष्टरपुण्डरीकमभयं विन्यस्तहस्ताम्बुजम् ।
त्वां पश्येम निषेदुषीमनुकलंकारुण्यकूलंकष-
स्फारापाङ्गतरङ्गमम्ब मधुरं मुग्धं मुखं बिभ्रतीम् ॥ १८॥

अथ कवचम् ।
महालक्ष्मीः शिरः पातु ललाटं मम पङ्कजा ।
कर्णे रक्षेद्रमा पातु नयने नलिनालया ॥ १९॥

नासिकामवतादंबा वाचं वाग्रूपिणी मम ।
दन्तानवतु जिह्वां श्रीरधरोष्ठं हरिप्रिया ॥ २०॥

चुबुकं पातु वरदा गलं गन्धर्वसेविता ।
वक्षः कुक्षिं करौ पायूं पृष्ठमव्याद्रमा स्वयम् ॥ २१॥

कटिमूरुद्वयं जानु जघं पातु रमा मम ।
सर्वाङ्गमिन्द्रियं प्राणान् पायादायासहारिणी ॥ २२॥

सप्तधातून् स्वयं चापि रक्तं शुक्रं मनो मम ।
ज्ञानं बुद्धिं महोत्साहं सर्वं मे पातु पङ्कजा ॥ २३॥

मया कृतं च यत्किञ्चित्तत्सर्वं पातु सेन्दिरा ।
ममायुरवतात् लक्ष्मीः भार्यां पुत्रांश्च पुत्रिका ॥ २४॥

मित्राणि पातु सततमखिलानि हरिप्रिया ।
पातकं नाशयेत् लक्ष्मीः महारिष्टं हरेद्रमा ॥ २५॥

ममारिनाशनार्थाय मायामृत्युं जयेद्बलम् ।
सर्वाभीष्टं तु मे दद्यात् पातु मां कमलालया॥ २६॥

फलश्रुतिः ।
य इदं कवचं दिव्यं रमात्मा प्रयतः पठेत् ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति सर्वरक्षां तु शाश्वतीम् ॥ २७॥

दीर्घायुष्मान् भवेन्नित्यं सर्वसौभाग्यकल्पकम् ।
सर्वज्ञः सर्वदर्शी च सुखदश्च शुभोज्ज्वलः ॥ २८॥

सुपुत्रो गोपतिः श्रीमान् भविष्यति न संशयः ।
तद्गृहे न भवेद्ब्रह्मन् दारिद्र्यदुरितादिकम् ॥ २९॥

नाग्निना दह्यते गेहं न चोराद्यैश्च पीड्यते ।
भूतप्रेतपिशाचाद्याः संत्रस्ता यान्ति दूरतः ॥ ३०॥

लिखित्वा स्थापयेद्यत्र तत्र सिद्धिर्भवेत् ध्रुवम् ।
नापमृत्युमवाप्नोति देहान्ते मुक्तिभाग्भवेत् ॥ ३१॥

आयुष्यं पौष्टिकं मेध्यं धान्यं दुःस्वप्ननाशनम् ।
प्रजाकरं पवित्रं च दुर्भिक्षर्तिविनाशनम् ॥ ३२॥

चित्तप्रसादजननं महामृत्युप्रशान्तिदम् ।
महारोगज्वरहरं ब्रह्महत्यादिशोधनम् ॥ ३३॥

महाधनप्रदं चैव पठितव्यं सुखार्थिभिः ।
धनार्थी धनमाप्नोति विवहार्थी लभेद्वधूम् ॥ ३४॥

विद्यार्थी लभते विद्यां पुत्रार्थी गुणवत्सुतम् ।
राज्यार्थी राज्यमाप्नोति सत्यमुक्तं मया शुक ॥ ३५॥

एतद्देव्याःप्रसादेन शुकः कवचमाप्तवान् ।
कवचानुग्रहेणैव सर्वान् कामानवाप सः ॥ ३६॥

इति लक्ष्मीकवचं ब्रह्मस्तोत्रं समाप्तम् ।
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🟧4⃣🪔 विश्वसार तांत्रोक्त श्री कमला कवचम् 🟧🪔🟧

अथ श्रीलक्ष्मीकवचप्रारम्भः ।
ईश्वर उवाच ।
अथ वक्ष्ये महेशानि कवचं सर्वकामदम् ।
यस्य विज्ञानमात्रेण भवेत्साक्षात्सदाशिवः ॥ १॥

ईश्वर बोले कि हे महेशानि! अब सर्वकामनापूरक लक्ष्मी कवच का
वर्णन सुनो, जिसके जानने से शिवसायुज्य की प्राप्ति होती है ॥ १॥

नार्चनं तस्य देवेशि मन्त्रमात्रं जपेन्नरः ।
स भवेत्पार्व्वतीपुत्रः सर्वशास्त्रेषु पारगः ॥ २॥

हे देवेशि! उस का जाप करने मात्र से ही जापक पार्वती पुत्र के समान
और सर्वशास्त्र में पारंगत हो जाता है ॥ २॥

विद्यार्थिना सदा सेव्या विशेषे विष्णुवल्लभा ॥ ३॥

जो विद्या की अभिलाषा करता है, उसे यत्नपूर्वक विष्णुप्रिया लक्ष्मीजी
की आराधना करनी चाहिए ॥ ३॥

अस्याश्चतुरक्षरिविष्णुवनितारूपायाः कवचस्य
श्रीभगवान् शिव ऋषिरनुष्टुप्च्छन्दो वाग्भवी देवता वाग्भवं बीजं
लज्जाशक्ती रमा कीलकं कामबीजात्मकं कवचं मम
सुपाण्डित्यकवित्वसर्वसिद्धिसमृद्धये जपे विनियोगः ॥ ४॥

इस चतुरक्षरी विष्णुवनिता कवच के ऋषि श्रीभगवान् शिव, अनुष्टुप्
छन्द, देवता वाग्भवी, ऐं बीज, लज्जा शक्ति, रमा कीलक है । इस
कवच का कामबीजात्मक, सुपाण्डित्य, कवित्व और सर्वसिद्धिसमृद्धिके
निमित्त विनियोग किया जाता है ॥ ४॥

ऐङ्कारी मस्तके पातु वाग्भवी सर्वसिद्धिदा ।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्म्मध्ये चक्षुर्युग्मे च शाङ्करी ॥ ५॥

ऐंकारी हमारे मस्तक की रक्षा करे, संपूर्ण सिद्धि देनेवाली वाग्भवी
ह्रीं हमारे दोनों नेत्रों के मध्य की और शांकरी हमारे दोनों नेत्रों की
रक्षा करे ॥ ५॥

जिह्वायां मुखवृत्ते च कर्णयोर्गण्डयोर्नसि ।
ओष्ठाधरे दन्तपङ्क्तौ तालुमूले हनौ पुनः ।
पातु मां विष्णुवनिता लक्ष्मीः श्रीवर्णरूपिणी ॥ ६॥

वर्णरूपिणी विष्णुवनिता लक्ष्मी हमारी जिह्वा, मुखमण्डल, दोनों कानों,
नासिका, ओष्ठ, अधर, दंतपंक्ति, तालुमूल (तालुआ) और ठोड़ी की
रक्षा करे ॥ ६॥

कर्णयुग्मे भुजद्वन्द्वे स्तनद्वन्द्वे च पार्व्वती ।
हृदये मणिबन्धे च ग्रीवायां पार्श्वयोः पुनः ।
सर्वाङ्गे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः ॥ ७॥

पार्वतीनामक लक्ष्मी हमारे दोनों कानों की, दोनों भुजाओं, दोनों स्तनों,
हृदय, मणिबंध, गरदन और पार्श्व की रक्षा करे, कामेशी
महादेवी और समुन्नति हमारे संपूर्ण अंगों की रक्षा करे ॥ ७॥

व्युष्टिः पातु महामाया उत्कृष्टिः सर्वदावतु ।
सन्धिं पातु सदा देवी सर्वत्र शम्भुवल्लभा ॥ ८॥

व्युष्टि, महामाया और उत्कृष्टि सदा हमारी रक्षा करे । देवी
शंभुवल्लभा सर्वत्र सदा हमारे संधि की रक्षा करे ॥ ८॥

वाग्भवी सर्वदा पातु पातु मां हरिगेहिनी ।
रमा पातु सदा देवी पातु माया स्वराट् स्वयम् ॥ ९॥

सरस्वती, हरिगेहिनी, रमा व माया सदा हमारी रक्षा करे ॥ ९॥

सर्वाङ्गे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णुमाया सुरेश्वरी ।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम ॥ १०॥

विष्णुमाया सुरेश्वरी लक्ष्मी हमारे संपूर्ण अंगों की रक्षा करे,
विजया हमारे घर की सदा रक्षा करे और जया हमारी रक्षा करे ॥ १०॥

शिवदूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा ।
भैरवी पातु सर्वत्र भैरूण्डा सर्वदाऽवतु ॥ ११॥

शिवदूती, सुंदरी, भैरवी और भैरूण्डा सभी स्थानों में सदा हमारी
रक्षा करे ॥ ११॥

त्वरिता पातु मां नित्यमुग्रतारा सदाऽवतु ।
पातु मां कालिका नित्यं कालरात्रिः सदाऽवतु ॥ १२॥

त्वरिता, उग्रतारा, कालिका और कालरात्रि प्रतिदिन सदा हमारी रक्षा करे
॥ १२॥

नवदुर्गा सदा पातु कामाख्या सर्वदावतु ।
योगिन्यः सर्वदा पातु मुद्राः पातु सदा मम ॥ १३॥

नवदुर्गा, कामाख्या और योगिनीगण व मुद्रासमूह सदा हमारी रक्षा करे
॥ १३॥

मातरः पातु देव्यश्च चक्रस्था योगिनीगणाः ।
सर्वत्र सर्वकार्येषु सर्वकर्म्मसु सर्वदा ॥
पातु मां देवदेवी च लक्ष्मीः सर्वसमृद्धिदा ॥ १४॥

मातृदेवीगण, चक्र की योगिनीगण और संपूर्ण समृद्धि देने वाली
देवदेवी लक्ष्मी सदा हमारी रक्षा करे ॥ १४॥

इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्वसिद्धये ।
यत्र तत्र न वक्तव्यं यदीच्छेदात्मनो हितम् ॥ १५॥

इसप्रकार मैंने तुम्हें सर्वसिद्धिका कारणस्वरूप अत्युत्तम दिव्य लक्ष्मी
कवच सुनाया । जो इससे लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें यह किसी को
नहीं बताना चाहिए ॥ १५॥

शठाय भक्तिहीनाय निन्दकाय महेश्वरि ।
न्यूनाङ्गे अतिरिक्ताङ्गे दर्शयेन्न कदाचन ॥ १६॥

हे महेश्वरि! जो प्राणी भक्तिविहीन तथा निंदक है, जो स्थूल अंगवाला
हो, या किसी भी अंग से हीन हो, उसके निकट प्राणांत का अवसर आनेपर
भी यह कवच उजागर नहीं करना चाहिए ॥ १६॥

न स्तवं दर्शयेद्दिव्यं सन्दर्श्य शिवहा भवेत् ॥ १७॥

दुरात्मा मनुष्यों के निकट कभी इस स्तोत्र को प्रकट न करें, जो प्रकट
करता है, वह शिवहत्या का दोषी होता है ॥ १७॥

कुलीनाय महोच्छ्राय दुर्गाभक्तिपराय च ।
वैष्णवाय विशुद्धाय दद्यात्कवचमुत्तमम् ॥ १८॥

जो मनुष्य कुलीन, उन्नतीमान्, दुर्गाभक्त, विष्णुभक्त और विशुद्धचित
है, उसको ही यह अत्युत्तम दिव्य कवच दान करना चाहिए ॥ १८॥

निजशिष्याय शान्ताय धनिने ज्ञानिने तथा ।
दद्यात्कवचमित्युक्तं सर्वतन्त्रसमन्वितम् ॥ १९॥

शान्तशील अपने शिष्य को, भक्त को और ज्ञानी को ही यह कवच
प्रदान किया जाना चाहिए और किसी को भी दान नहीं करना चाहिए ॥ १९॥

विलिख्य कवचं दिव्यं स्वयम्भुकुसुमैः शुभैः ।
स्वशुक्रैः परशुक्रैश्च नानागन्धसमन्वितैः ॥ २०॥

गोरोचनाकुङ्कुमेन रक्तचन्दनकेन वा ।
सुतिथौ शुभयोगे वा श्रवणायां रवेर्दिने ॥ २१॥

अश्विन्यांकृत्तिकायांवाफल्गुन्यांवामघासु च ।
पूर्व्वभाद्रपदायोगे स्वात्यां मङ्गलवासरे ॥ २२॥

विलिखेत्प्रपठेत्स्तोत्रं शुभयोगे सुरालये ।
आयुष्मत्प्रीतियोगे च ब्रह्मयोगे विशेषतः ॥ २३॥

इन्द्रयोगे शुभयोगे शुक्रयोगे तथैव च ।
कौलवे बालवे चैव वणिजे चैव सत्तमः ॥ २४॥

शुभतिथि को, शुभयोग में, श्रवण नक्षत्र में, रविवार को
अश्विनी नक्षत्र में, कृत्तिका नक्षत्र में, फाल्गुनी नक्षत्र में,
मघा नक्षत्र में, पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में, स्वाति नक्षत्र में,
मंगलवार को, विशेषकर के ब्रह्मयोग में, इंद्रयोग में, शुभयोग
में, शुक्रयोग में, कौलव, बालव और वाणिजकरण योग के इन सब
दिनों में स्वयम्भू कुसुम, गोरोचन, कुंकुम, लाल चंदन अथवा
अत्युत्तम गन्धद्रव्य से इस दिव्य कवच को लिखकर इसकी पूजा करने
से दीर्घायु और श्री की वृद्धि होती है ॥ २०॥२१॥२२॥२३॥२४॥

शून्यागारे श्मशाने वा विजने च विशेषतः ।
कुमारीं पूजयित्वादौ यजेद्देवीं सनातनीम् ॥ २५॥

सूने घर, श्मशान अथवा एकांत स्थान में कुमारी पूजा कर के,
फिर सनातनी देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए ॥ २५॥

मत्स्यमांसैः शाकसूपः पूजयेत्परदेवताम् ।
घृताद्यैः सोपकरणैः पूपसूपैर्व्विशेषतः ॥ २६॥

ब्राह्मणान्भोजायित्वादौ प्रीणयेत्परमेश्वरीम् ॥ २७॥

मत्स्य, मांस, सूप (दाल), शाक, पिट्ठि, घृत उपकरण (सामग्री)
आदि अनेक प्रकार के द्रव्यों से लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए । प्रथम
ब्राह्मणों को भोजन काराकर फिर देवी की प्रीती की साधना करनी चाहिए
॥ २६॥२७॥

बहुना किमिहोक्तेन कृते त्वेवं दिनत्रयम् ।
तदाधरेन्महारक्षां शङ्करेणाभिभाषितम् ॥ २८॥

अधिक और क्या कहा जाए । जो कोई तीन दिन इस प्रकार लक्ष्मी की आराधना
करता है, वह किसी भी प्रकार की विपत्ति में नहीं पड़ता तथा वह
संपूर्ण आपदाओं से सुरक्षित रहता है । शंकर द्वारा कथित यह
वाक्य कभी विफल होने वाला नहीं है ॥ २८॥

मारणद्वेषणादीनि लभते नात्र संशयः ।
स भवेत्पार्व्वतीपुत्रः सर्वशास्त्रविशारदः ॥ २९॥

जो मनुष्य भक्ति सहित लक्ष्मी की पूजा करके इस दिव्य कवच का पाठ
करता है, उसके मारणद्वेषादि मंत्रों की सिद्धि होती है पार्व्वती का
प्रियपुत्र और सर्वशास्त्रविशारद होता है ॥ २९॥

गुरूर्देवो हरः साक्षात्पत्नी तस्य हरप्रिया ।
अभेदेन भजेद्यस्तु तस्य सिद्धिरदूरतः ॥ ३०॥

जो मनुष्य एकान्तचित्त हो लक्ष्मीदेवी की आराधना करता है वह साक्षात
देवदेव शिव की सायुज्यमुक्ति को प्राप्त करता है, उसकी स्त्री हरप्रिया के
समान होती है और सिद्धि शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है और यह कहना
भी अत्युक्ति नहीं होगा की उस पुरुष की सिद्धि निकटहि वर्तमान है ॥ ३०॥

सर्वदेवमयीं देवीं सर्वमन्त्रमयीं तथा ।
सुभक्त्या पूजयेद्यस्तु स भवेत्कमलाप्रियः ॥ ३१॥

जो मनुष्य भक्तिसहित सर्वदेवमयी और सर्वमन्त्रमयी लक्ष्मी देवी की
पूजा करता है, उस पर निःसंदेह देवी की कृपा होती है ।

रक्तपुष्पैस्तथा गन्धैर्वस्त्रालङ्करणैस्तथा ।
भक्त्या यः पूजयेद्देवीं लभते परमां गतिम् ॥ ३२॥

जो मनुष्य लाल फूल, लाल चंदन, वस्त्र और अलंकारादि से
भक्तिसहित लक्ष्मी देवी की पूजा करता है, वह अन्तकाल में मोक्ष पाता
है ॥ ३२॥

नारी वा पुरूषो वापि यः पठेत्कवचं शुभम् ।
मन्त्रसिद्धिः कार्यसिद्धिर्लभते नात्र संशयः ॥ ३३॥

जो स्त्री या पुरूष इस कल्याण करनेवाले कवच का पाठ करते हैं,
वह निःसंदेह मंत्रसिद्धि और कार्यसिद्धि प्राप्त करते हैं ॥ ३३॥

पठति य इह मर्त्यो नित्यमार्द्रान्तरात्मा ।
जपफलमनुमेयं लप्स्यते यद्विधेयम् ।
स भवति पदमुच्चैः सम्पदां पादनम्रः ।
क्षितिपमुकुटलक्ष्मीर्लक्षणानां चिराय ॥ ३४॥

जो मनुष्य भक्ती से नित्य इस लक्ष्मी कवच का पाठ करता है, वह
निःसंदेह उत्तरोत्तर उन्नति करता है ॥ ३४॥

॥ इति विश्वसारतन्त्रोक्तं कमला लक्ष्मीकवचं।।

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🌺 🙏🏻 जय माता दी 🙏 🌺
🌺 जय मां आदिशक्ति 🌺
🌺 मां के चरणों में स्वर्ग है। 🌺
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🟧🪔 श्रीदीपमालिका लक्ष्मीस्तव 🪔🟧 जगदीप-विरचितम् — हिन्दी अर्थ सहित🟪🪔🟪🪔🟪🪔🟪🪔🟪🪔🟪🍁  ॐ दीपं प्रज्वालयाम्यहं ज्या-दीपैः शोभमानै...
17/10/2025

🟧🪔 श्रीदीपमालिका लक्ष्मीस्तव 🪔🟧
जगदीप-विरचितम् — हिन्दी अर्थ सहित
🟪🪔🟪🪔🟪🪔🟪🪔🟪🪔🟪

🍁
ॐ दीपं प्रज्वालयाम्यहं ज्या-दीपैः शोभमानैः।
लक्ष्मीं प्राप्नुयाम्यहं भगवति सर्वदा मे गृहे ॥१
हिन्दी अर्थ — मैं घर में शोभमान दीप प्रज्वलित करूँ; हे भगवती लक्ष्मी, वे मेरा गृह सदा प्रकाशमय करें।

🍁
तेजोर्ज्योतिर्भिरुद्भास्य तमसं भ्रष्टं विच्छिद्यते।
लक्ष्म्यै दीपप्रभाविधानं यशस्विनी भवतु मे॥२
हिन्दी अर्थ — दीपों से प्रकाशित तेज अज्ञान का अंधकार दूर करता है; हे लक्ष्मी, मेरा दीपित स्थान यशस्वी बने।

🍁
नः सर्वतो दीपोत्सवः गृहाद्यो सुखसंश्रितः।
लक्ष्म्याः आपन्नस्वरूपा सर्वत्र प्रीतिप्रदा भव॥३
हिन्दी अर्थ — घर से आरंभ होकर दीपोत्सव सर्वत्र सुखसहित हो; हे लक्ष्मी, आप सर्वत्र प्रेम और प्रसन्नता प्रदान करें।

🍁
दीपनुस्मरणदीप्त्या मानसज्योतिर्निबद्ध्यते।
तेन मे स्फुरतु लक्ष्मीः ज्योतिर्लहरीरूपया सदा॥४
हिन्दी अर्थ — दीप स्मरण से मन में बंधी ज्योति प्रकट होती है; उसी रूप में लक्ष्मी सदा ज्योतिलहरी बनकर प्रकाशित हों।

🍁
नवद्वारदीपवल्ल्या सर्वतो मे प्रकाशतु।
लक्ष्मीर्विहार्य भवति स्वर्गलोकेपि सदायमे॥५
हिन्दी अर्थ — मेरे नौ द्वारों पर दीपवल्ली की भाँति प्रकाश फैले; हे लक्ष्मी, आप इस संसार और स्वर्ग में सदा मेरे साथ रहें।

🍁
या देहो दीपमयी स्वभावे दीपप्रदा विभवेश्वरी।
या गृहे स्थातु लक्ष्मीर्मे तस्या प्रसन्ना भव प्रतिदिनम्॥६
हिन्दी अर्थ — जो शरीर दीपमयी है, दीपप्रदा विभवेश्वरी है; वह मेरे घर में स्थिर रहें, देवी प्रतिदिन उस पर प्रसन्न हों।

🍁
तीर्थदीपसहस्राणि पवित्राणि निवासिनि।
ताभिः संप्रदधातु दीपां शुभां लक्ष्मीरसंपदाम्॥७
हिन्दी अर्थ — हजारों पवित्र तीर्थदीपों के समान दीपों से शुभ लक्ष्मी मेरे में निवास करें।

🍁
द्युतिमच्छोभते दीप्तिः दीपेsपि दीप्तिमती सदा।
दैवाभिमुखभावेन लक्ष्मीर्भवतु मे नित्यदा॥८
हिन्दी अर्थ — दीप में दीप्ति शोभायमान रहती है; दैवी प्रवृत्त भाव से लक्ष्मी सदा मेरा कल्याण करें।

🍁
दीपस्य दीपसंबन्धो दीपः स्वभावसम्भवः।
एवं सततं प्रसीद मे लक्ष्मीर्भवतु शोभना॥९
हिन्दी अर्थ — दीप का दीप से ही संबंध है; जैसे वह स्वयंप्रभा है, वैसे ही लक्ष्मी निरंतर अनुकूल रहें।

🍁
ज्योतिर्लता दीपशृङ्गे दीपमाला विभोर्मया।
तया मे स्यात्क्रपातां देवी लक्ष्मीर्विशेषणया सताम्॥१०
हिन्दी अर्थ — दीपशृंग पर ज्योतिर्लता की माला बनती है; उस माला से देवी लक्ष्मी मेरा अभिषेक करें।

🍁
धनदीपनिर्विभूषया भूषणदीपनिर्विभवः।
लक्ष्मीर्दातु भवति मे परमं वैभवसंपदाम्॥११
हिन्दी अर्थ — धनदीप और भूषणदीप से विभूषित गृह में लक्ष्मी परम वैभव प्रदान करती हैं।

🍁
दीपशिखा सुभगाकाशे आकाशदीपमयात्मना।
लक्ष्मीर्भवतु ममाग्रे सर्वदा शुभप्रदा सदा॥१२
हिन्दी अर्थ — दीप की शिखा आकाश में प्रकाशित हो; हे लक्ष्मी, आप सदा मेरे आगे शुभ प्रदान करें।

🍁
दीपं हविषि समर्चयेत् पूजां दीपदत्तसुमा।
लक्ष्मीर्मम हिते यातु सर्वसुखसम्पदां वः॥१३
हिन्दी अर्थ — दीप से अर्चना करूँ, दीपार्पण सुमन करूँ; हे लक्ष्मी, आप मेरे हित में शुभ सम्पदा दें।

🍁
दीपदत्तविधया युक्तं पूजनं सततं शुभम्।
लक्ष्मीं समर्पयाम्यहम् तत्वज्ञया तत्तद्विधः॥१४
हिन्दी अर्थ — दीपदान विधि से युक्त पूजा शुभ है; हे लक्ष्मी, ज्ञानपूर्वक मैं तुझे समर्पित करता हूँ।

🍁
दीपमत्स्यसहस्राणि द्योतमानानि दीपकाः।
तासां मयि समाराधनं लक्ष्मीर्भवतु तृप्तिदा॥१५
हिन्दी अर्थ — दीपसागर जैसे अनेक दीपों का आराधन करूँ; हे लक्ष्मी, आप तृप्तिदा हों।

🍁
दीपैः समं जनहितं कुरुते यो गृहस्थधीः।
स तु धन्यः सदा लक्ष्म्याः कृपापात्रं भवेद् ध्रुवम्॥१६
हिन्दी अर्थ — जो गृहस्थ दीप की तरह समाज को आलोकित करता है, वही लक्ष्मी का कृपापात्र होता है।

🍁
दीपदानं महादानं सर्वदानप्रदं स्मृतम्।
तस्मात् प्रदीयतां नित्यं दीपो धर्मार्थसिद्धये॥१७
हिन्दी अर्थ — दीपदान महादान है; अतः उसे धर्म और अर्थ सिद्धि हेतु नित्य अर्पित करना चाहिए।

🍁
दीपः संकीर्तनं कुर्यात् हरिनामानुकम्पया।
तेन सन्तोषिता लक्ष्मीः ददात्यर्थं मनोहरम्॥१८
हिन्दी अर्थ — जो दीप में हरिनाम संकीर्तन करता है, उस पर लक्ष्मी प्रसन्न होकर मनोहर धन देती हैं।

🍁
अन्नं ददाति दीपार्ची जलं ददाति दीपभास्।
यस्तयोः पूजया युक्तः तं लक्ष्मीर्नित्यपालयेत्॥१९
हिन्दी अर्थ — दीप की ज्योति अन्न और जल प्रदान करती है; जो ऐसा पूजन करता है उसकी लक्ष्मी नित्य रक्षा करती हैं।

🍁
दीपोत्सवसमारम्भे जनानां हर्षवर्धनम्।
भवेत् सर्वजगत्प्रीत्यै लक्ष्म्यै चैतद्विधानकम्॥२०
हिन्दी अर्थ — दीपोत्सव लोकहर्षवर्धक है; यह लक्ष्मी और जगत दोनों के कल्याण हेतु विधान है।

🍁
दीपो भवतु सौहार्दं दीपो धर्मस्य कारणम्।
दीपो हि परमानन्दः दीपो ददाति मोक्षदम्॥२१
हिन्दी अर्थ — दीप सौहार्द, धर्म, आनन्द और मोक्ष का दाता है।

🍁
दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिः जनार्दनः।
दीपेन साक्षिणा साक्षात् लक्ष्मीः प्रीतिं प्रयच्छतु॥२२
हिन्दी अर्थ — दीपज्योति परमब्रह्म और विष्णु जनार्दन हैं; उस दीप को साक्षी बनाकर लक्ष्मी प्रसन्न हों।

🍁
दीपं नित्यमनारम्भं न च वायुना निवारयेत्।
दीपस्थितं यद् तेजः तत् लक्ष्म्याः सन्निधिर्मतम्॥२३
हिन्दी अर्थ — दीप को बुझाना नहीं चाहिए; उसमें स्थित तेज ही लक्ष्मी का सान्निध्य है।

🍁
दीपेन सुलभा लक्ष्मीः दीपेनैव विवर्धते।
दीपेनैव क्षयं याति दीपवर्जं तु दारिद्रम्॥२४
हिन्दी अर्थ — दीप से लक्ष्मी प्राप्त होती हैं, दीप से बढ़ती हैं; दीप के अभाव में दरिद्रता आती है।

🍁
दीपमालां गृहद्वारे स्थापितां पूजयेत् ततः।
तस्मिन्नेव निवासं स्यात् श्रीः सर्वाभीष्टसिद्धिदा॥२५
हिन्दी अर्थ — गृहद्वार पर दीपमाला की पूजा करने से वहाँ श्रीलक्ष्मी निवास करती हैं।

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अग्निर्जीवयते लोकं दीपोऽग्नेः स्वयं तनुः।
तस्मात् पूज्यतमो दीपः पावकः पापकृन्नुदः॥२६
हिन्दी अर्थ — अग्नि जीवनदायिनी है, दीप उसकी देह है; अतः उसकी पूजा सभी पापों का नाश करती है।

🍁
जलदीपं समुद्भूतं वारिदेवीसुसंश्रितम्।
तया शीतलया लक्ष्मीः गृहं सन्तोषसंयुतम्॥२७
हिन्दी अर्थ — दीप का तेल जल की शीतलता देता है; इससे लक्ष्मी गृह में संतोष लाती हैं।

🍁
वायुदीपः प्रज्वलनं सञ्चारो जगतो ध्रुवम्।
वायुसिद्ध्या च सायुज्यं लक्ष्मीर्लभते सदा नृणाम्॥२८
हिन्दी अर्थ — दीप का प्रज्वलन वायु से होता है; इससे लक्ष्मी सतत गति और जीवन देती हैं।

🍁
भूमिर्दाराधारिणी दीपं धारयते ध्रुवम्।
या भूम्याः शान्तिरूपिणी सैव लक्ष्मीर्महेश्वरी॥२९
हिन्दी अर्थ — भूमि दीप की धारक है; उसकी स्थिरता लक्ष्मी स्वरूप है।

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आकाशदीपसंयुक्तं व्योमदीप्तं मनोहरम्।
आकाशे दीप्तभावेन लक्ष्मीः सर्वत्र संचरति॥३०
हिन्दी अर्थ — आकाशीय दीपविस्तार से लक्ष्मी सर्वत्र फैलती हैं।

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एते पंचमहाभूतानि दीपज्योतिषि संस्थितानि।
तस्मात् पंचलक्ष्मी नाम पूजनीया न संशयः॥३१
हिन्दी अर्थ — दीप में पंचमहाभूत स्थित हैं, अतः पंचलक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।

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वनस्पतिप्रियां लक्ष्मीं दीपमूलां नमाम्यहम्।
या धूपदीपसंयुक्ता पावयेत् भूतमण्डलम्॥३२
हिन्दी अर्थ — मैं उस वनस्पतिप्रिया लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ जो धूप और दीप से भूतमण्डल को पवित्र करती हैं।

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दीपज्योतिः पवित्रात्मा मलिनं शुद्धये सदा।
तेन सर्वं शुद्धमस्तु लक्ष्मीः प्रीत्या निवर्तते॥३३
हिन्दी अर्थ — दीपज्योति आत्मा को शुद्ध करती है; इससे लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं।

🍁
दीपेन शुद्ध्यते गृहम् दीपेन शुद्ध्यते मनः।
दीपेन शुद्ध्यते देहः दीपेनैव समृद्ध्यते॥३४
हिन्दी अर्थ — दीप से घर, मन और शरीर शुद्ध होकर समृद्ध होते हैं।

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दीपस्य प्रकाशेन वनानि पुष्पसंपदाम्।
निवसन्ति सदा लक्ष्म्यः प्रकृत्याः शान्तिसंयुताः॥३५
हिन्दी अर्थ — दीप के प्रकाश से वन में पुष्प और शान्तिलक्ष्मी निवास करती हैं।

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हृदयकमले दीपं ध्यानदीपं प्रज्वालयेत्।
तत्र वसतु मे लक्ष्मीः आत्मरूपेण शोभना॥३६
हिन्दी अर्थ — हृदयकमल में ध्यानदीप जलाना चाहिए; वहाँ आत्मरूपा लक्ष्मी निवास करती हैं।

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अज्ञानतिमिरं नाशं ज्ञानदीपेन साधयेत्।
तं दीपं मानसं कृत्वा लक्ष्मीः प्रबुद्धा भवेत्॥३७
हिन्दी अर्थ — अज्ञान का नाश ज्ञानदीप से होता है; यही मनदीप लक्ष्मी का जागरण कराता है।

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योगदीपं समारभ्य ध्यानसिद्धिं लभेत् नरः।
तया प्राप्ता महालक्ष्मीः मोक्षमार्गं प्रयच्छति॥३८
हिन्दी अर्थ — योगदीप प्रज्ज्वलित करने वाला ध्यान-सिद्ध पुरुष महालक्ष्मी से मोक्ष-पथ प्राप्त करता है।

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कुण्डलीवर्तितं तेजो मूलाधारस्थदीपवत्।
उर्ध्वं गत्वा प्रकाशितं ब्रह्मरन्ध्रे विलीयते॥३९
हिन्दी अर्थ — मूलाधार का दीप-ज्योति ऊपर उठकर ब्रह्मरन्ध्र में लीन होती है; यही आत्मज्योति का मार्ग है।

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दीपायते हृदयस्थो नारायणश्च लक्ष्म्यपि।
द्वयं संयुक्तरूपेण समाधौ स्फुरति स्फुटम्॥४०
हिन्दी अर्थ — हृदयस्थ दीप रूप में नारायण और लक्ष्मी संयुक्त रूप से समाधि में प्रकट होते हैं।

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दीपनादेन गायत्र्या चित्तं निर्मलतां व्रजेत्।
तत्र लक्ष्मीः सदा देवी ह्रींकारेण विशुद्ध्यति॥४१
हिन्दी अर्थ — दीपसंगीत या गायत्री से चित्त निर्मल होता है; वहाँ देवी लक्ष्मी ह्रीं बीज से शुद्ध होती हैं।

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मनोदीपः यदा दीप्तः कर्मदीपो विलीयते।
ज्ञानदीपो विभात्यत्र लक्ष्मीस्तत्रैव संस्थिता॥४२
हिन्दी अर्थ — मनदीप प्रज्वलित होने पर कर्मदीप विलीन होता है; जहाँ ज्ञानदीप ज्योतिर्मय है, वहाँ लक्ष्मी निवास करती हैं।

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प्राणदीपं समारभ्य धारयेत् साधकः सदा।
तेन जीवन्महायोगी लक्ष्मीसंयोगमाप्नुयात्॥४३
हिन्दी अर्थ — जो प्राणदीप को प्रज्वलित रखता है, वह जीवन्मुक्त योगी होकर लक्ष्मीसंयोग प्राप्त करता है।

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बुद्धिदीपं च यः कृत्वा विवेकं धारयेत् सदा।
तस्मै लक्ष्मीः प्रसन्ना स्यात् सर्वविद्याप्रदायिनी॥४४
हिन्दी अर्थ — जो बुद्धिदीप रख विवेक धारण करता है, उसे लक्ष्मी सर्वविद्या प्रदान करती हैं।

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अन्तर्दीपप्रकाशेन तमोमोहः प्रणश्यति।
सत्यदीपो विरेजत्यत्र तत्र श्रीर्निवर्तते॥४५
हिन्दी अर्थ — अन्तर्ज्योति से मोह और अंधकार नष्ट होता है; वहाँ सत्यदीप चमकता है और श्रीलक्ष्मी निवास करती हैं।

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दीपं समर्पयाम्यद्य जगन्मङ्गलकारणम्।
येन सर्वं सुखं याति लक्ष्मीः प्रीतिं प्रयच्छतु॥४६
हिन्दी अर्थ — आज मैं वह दीप अर्पित करता हूँ जो जग का मंगल करता है; उससे सुख प्राप्त होता है और लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

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दीपज्योतिः सुखप्रदा दुःखनाशाय कल्पिता।
सा मम गृहपथेष्वेव सदा स्फुरतु भास्वती॥४७
हिन्दी अर्थ — दीपज्योति सुखप्रद है, दुःखनाश हेतु निर्मित है; वह मेरे मार्गों को प्रकाशित करे।

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दीपोऽहं सर्वसाक्षी च लक्ष्मीशक्त्या समन्वितः।
एवं ध्यायन् नरः सद्यो दुःखनाशं लभेत् ध्रुवम्॥४८
हिन्दी अर्थ — जो स्वयं को दीपस्वरूप और लक्ष्मीशक्तिसंयुक्त जानता है, वह दुःख से मुक्त होता है।

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दीपं विनायको दत्ते दीपं विष्णुः प्रपालयेत्।
दीपं महेशो निर्हरति लक्ष्मीस्तत्रैव संस्थिता॥४९
हिन्दी अर्थ — दीप का आरंभ गणेश करते हैं, पालन विष्णु करते हैं, लय महेश करते हैं और वहाँ लक्ष्मी स्थिर रहती हैं।

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दीपलक्ष्मी नमस्तुभ्यं ज्योतिषामाध्यदेवते।
प्रसन्ना भव मे नित्यं धनधान्यप्रदायिनि॥५०
हिन्दी अर्थ — हे ज्योति की अधिष्ठात्री दीपलक्ष्मी, सदा प्रसन्न रहो और धन-धान्य प्रदान करो।

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दीपं दीपज्वल देवि दीपशान्तिं प्रयच्छ मे।
दीपज्योतिः परं सुखं दीपलक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥५१
हिन्दी अर्थ — हे दीपलक्ष्मी, दीप जलाओ और मुझे शान्ति दो, दीपज्योति परम सुखद है।

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दीपार्चनं मया नित्यं कारितं भक्तिपूर्वकम्।
तस्मात् त्वं मे गृहे नित्यं निवस त्वं महेश्वरी॥५२
हिन्दी अर्थ — मैंने भक्तिभाव से नित्य दीपार्चन किया है; अतः हे महेश्वरी लक्ष्मी, मेरे घर में सदा निवास करो।

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दीपमालिकया देवि समृद्धिं कुरु मे सदा।
अज्ञानतिमिरं नाशं प्रकाशं च प्रयच्छ मे॥५३
हिन्दी अर्थ — हे दीपमालिका देवी, मुझे सदा समृद्धि दो और ज्ञानप्रकाश प्रदान करो।

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दीपं त्वं हृदि मे स्थाप्य लक्ष्मि श्रीः स्यान्ममेश्वरी।
यत्र दीपः सदा दीप्तः तत्र श्रीर्निवसत्यलम्॥५४
हिन्दी अर्थ — हे लक्ष्मी, मेरे हृदय में अपना दीप स्थापित करो; जहाँ दीप सदा जलता है वहाँ श्री निवास करती हैं।

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योऽयं स्तोत्रं श्रद्धया पठति नित्यं मनुष्यः।
तस्य गृहान्तरे तमो दरिद्र्यं च विनश्यति।
रोगभयप्रशमनं च स्यात् स्थिरं लक्ष्मीविवासः।
सरस्वती गणेशो विष्णुरपि तत्रैव वसन्ति।
स समाजे प्रकृतेश्चैव सर्वत्र मंगलभावो भवति॥५५
हिन्दी अर्थ — जो इस स्तोत्र का श्रद्धा सहित पाठ करता है, उसके घर से अन्धकार, दरिद्रता और भय नष्ट होते हैं; लक्ष्मी, सरस्वती, विष्णु, गणेश का स्थायी निवास होता है।

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दीपमालां समारभ्य यः स्तोत्रं पठति श्रद्धया।
स नित्यानन्दसंपन्नः लक्ष्मीपदं समश्नुते॥५६
हिन्दी अर्थ — जो श्रद्धा से इस दीपमाला स्तोत्र का पाठ करता है, वह नित्यानन्द और लक्ष्मीपद को प्राप्त करता है।

इति श्रीदीपमालिका लक्ष्मीस्तव सम्पूर्णम्।
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🌺 🙏🏻 जय माता दी 🙏 🌺
🌺 जय मां आदिशक्ति 🌺
🌺 मां के चरणों में स्वर्ग है। 🌺
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