
27/07/2025
मोतिहारी चीनी मिल बंदी: किसानों-मजदूरों की उम्मीदें और संघर्ष
मोतिहारी चीनी मिल (श्री हनुमान चीनी फैक्ट्री), जो एक समय पूर्वी चंपारण और आसपास के किसानों व मजदूरों के लिए जीवनरेखा थी, आज पूरी तरह बंद है और खंडहर में तब्दील हो चुकी है। इस बंदी के पीछे मुख्यतः वित्तीय कुप्रबंधन, लगातार घाटा, पुराना व जर्जर इंफ्रास्ट्रक्चर, श्रमिकों व किसानों को समय पर भुगतान न करना और सरकारी-प्रशासनिक लापरवाही रही है। 2002 में फैक्ट्री बंद हुई और धीरे-धीरे हजारों मजदूरों की नौकरियाँ गईं, किसानों के करोड़ों रुपये फंसे और क्षेत्र की आर्थिकी पर बड़ा असर पड़ा। कई बार सरकार व नेताओं ने वादे किए कि फैक्ट्री फिर शुरू होगी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में कहा था कि अगली बार मोतिहारी आएंगे तो इसी मिल की चीनी से बनी चाय पीएंगे। लेकिन 2025 तक न मिल दोबारा शुरू हुई, न ही मजदूरों और किसानों को कोई संजीवनी मिली।
अब तक के हालात यह हैं:
• बैठकें और संकल्प कई बार हुए, लेकिन आज भी मिल दोबारा चालू करने की कोई योजना नहीं है।
• सरकार अब मिल की परिसंपत्तियाँ (संपत्ति/जमीन-मशीनरी) बेचकर मजदूरों और किसानों का कुछ भुगतान करने की प्रक्रिया में है।
• परिसंपत्तियों के स्वामित्व, जमीन की बिक्री में गड़बड़ी व राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर काफी विवाद और आरोप हैं।
• मजदूरों-किसानों के लंबे आंदोलन और चुनावी मौसम में नेता केवल इस मुद्दे को उठाते हैं, पर इसके समाधान के ठोस प्रयास नहीं हुए।
• कई मजदूर नेताओं ने बकाया वेतन-भत्ते की मांग को लेकर आत्मदाह तक किया, जिससे आम नागरिकों में गुस्सा और निराशा दोनों है।
• कई किसानों को अब गन्ना छोड़ और अन्य फसलें लगानी पड़ रही हैं, स्थानीय रोज़गार बुरी तरह प्रभावित है।
आज की स्थिति:
• न केंद्र और न राज्य सरकार के पास मोतिहारी चीनी मिल को पुनः चालू करने की कोई ठोस योजना है।
• संपत्ति के आकलन, बिक्री और उससे प्राप्त राशि से श्रमिकों-किसानों को बकाया भुगतान संभव करने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन यह प्रक्रिया भी विवादित और लंबी है।
आम लोगों की उम्मीद अब लगभग ख़त्म हो चुकी है। बहुत से मजदूर और किसान हमेशा के लिए अपनी मेहनत की कमाई और भविष्य गवाँ चुके हैं।