21/09/2025
गाँव की सुबह कुछ और ही होती है — धूप धीमी, हवा में मिट्टी की खुशबू और सड़क किनारे पुराने पेड़ों की छाँव। उसी सुबह, रमेश अपने छोटे से माटी के घर से निकला। उसकी औंधी कमर, गर्दन पर टंगी हुई पगड़ी और हाथों पर सूखे हुए मिट्टी के निशान बताते थे कि उसने पूरे जीवन मेहनत ही की है। पर इस बार, उसके चेहरे पर एक छोटी-सी चिन्ता थी — घर में दाल-चावल का अन्न कम था और बच्चे स्कूल से लौटकर भूखे रहते थे।
रमेश के पास जो कुछ बचा था, वो था एक पुराना चमड़े का थैला — उसमे रखी एक छोटी सी मटकी, और मटकी के भीतर थोड़ी-सी घिसी हुई लौंग। रमेश ने मन ही मन सोच लिया — “आज बाजार में बेचकर बच्चों के लिए कुछ चावल ले आऊँगा।”
वह मटकी ले जाकर गाँव के हाट में बैठ गया। आस-पास बोले-खुले और चमकते वस्त्रों वाले आदमी-औरों की भीड़ थी। रमेश ने दर्जी की तरह अपनी मटकी को थैले से निकालकर रखा और गुहार लगाने लगा — “भाईलोग, मटकी एक सौ रुपये में बेच दूँगा… बस पाँच रुपये तो बचाकर घर ले जाऊँगा।”
कुछ ही देर में गाँव का बड़ा दुकानदार आया — उसी की दुकान में लोग महीनों का सामान दे रखकर जाते हैं। दुकानदार ने मटकी उठाई, उसे टटोलते हुए कहा — “ये तो पुरानी मटकी है, चलो किसी काम की नहीं।” बात कुछ ही इतनी थी कि वह उसी जगह से चला गया — बिना दाम दिए।
रमेश का चेहरा डगमगा गया। फिर वहाँ से पक्केदार ऊँची पगड़ी वाला एक आदमी निकला — उस पर नई शर्ट और चमकते जूते थे। उसने मटकी पकड़ी और बोला — “चलो, कल आकर पैसा दे देना।” रमेश के होंठों पर उम्मीद की एक किरण और थी, पर आदमी चलते हुए मुस्कुरा कर चला गया — बिना एक रुपये दिए।
रमेश ने भगवान से जुड़ कर बस एक ही दुआ माँगी — “प्रभु, कम से कम आज की दाल-रोटी तो पूरे घर के लिए हो जाए।” तभी अचानक हाट में एक सिपाही आया — जो गाँव में नया तैनात हुआ था। उसकी वर्दी साफ़, कदम मजबूत और नज़रें सीधी थीं। सिपाही ने मटकी देखी और कहा — “कितने का दे रहे हो?”
रमेश ने थर-थराते हुए बताया, सारी कहानी बताई — दुकानदार और ऊँचे दर्जे वाले आदमी ने पकड़ी थी, पर पैसे नहीं दिए। सिपाही ने शांत आवाज़ में कहा — “ठीक है, मेरे साथ चलो।”
दोनों गाँव के चौपाल की ओर गए जहाँ कुछ लोग बैठे थे। दुकानदार आराम से अंगुलियाँ घुमा रहा था और ऊँचे दर्जे वाले आदमी के साथ हँसी-मज़ाक कर रहा था। सिपाही ने उनका ध्यान खींचा और सख़्त स्वर में पूछा — “किसने ये मटकी बिना दाम उठाई?”
दुकानदार ने पहले तो आँखें घुमा लीं, पर फिर धीरे से कहा — “बात छोटी है, कोई गड़बड़ नहीं।” सिपाही ने आँखों में गुस्सा लिए बिना कहा — “देखो, गरीब का काम-धंधा ही छोटा नहीं होता। एक-एक पैसा उसके परिवार के लिए मायने रखता है। जो उठा है, सामने आओ।”
थोड़ी देर की झिझक के बाद दुकानदार की तरफ से उसका बेटा सामने आया — अब सब सामने आ गया कि उसने मटकी उठाई थी और रुपए नहीं दिए। दुकान वाला मुँह लटकाकर बोला — “हम भूल गए थे।” रमेश की आँखों में आँसू उभर आए — पर वह डर रहा था कि शायद आवाज़ लगने पर उसे डाँटा भी जा सकता है।
सिपाही ने शांत होकर कहा — “अभी तुम तीन सौ रुपये इस आदमी को दो, ताकि आज उसका घर भर सके। और बच्चा, याद रखो — इंसानियत शर्म की चीज़ नहीं है।” दुकानदार का चेहरा लाल हो गया और उसने अनिच्छा से पैसे निकालकर रमेश को थमा दिए।
फिर सिपाही ने रमेश की तरफ़ देखा — “ये तीसरा नहीं, तुम्हारी मेहनत की कीमत है।” उसने अपनी वर्दी की जेब से एक पैकेट निकाला, उसमें और कुछ नोट थे — “और ये मेरी तरफ से है, ताकि तुम बच्चे अच्छे से खिला सको।”
रमेश हैरान और झुकते हुए हाथ बढ़ाने लगा। उसने नम आँखों से कहा — “साहब, आप तो कानून की वर्दी हैं, आप ही मुझे डर लग रहा था कि आप पैसा नहीं लेंगे।” सिपाही ने हँस कर कहा — “कानून वर्दी नहीं, इंसानियत होती है। जब इंसान इंसान का साथ देता है तो दुनिया थोड़ी-सी गर्म हो जाती है।”
उस दिन रमेश घर लौटा — थैला भारी था, पर उसके कदम हल्के थे। उसने घर में कदम रखा और बच्चों की मासूम आँखों में चमक देखकर उसकी चिल्लाती हुई हँसी निकल पड़ी। उसकी पत्नी ने रसोई में आकर कहा — “आज किस ने मदद की?” रमेश ने सिपाही का नाम लेकर कहा — “एक सिपाही साहब मिले — जिनकी वर्दी में इतनी कठोरता है, पर दिल बहुत नर्म निकला।”
रात को जब रमेश सोते समय अपने हाथ जोड़कर दुआ किया तो उसने सिर्फ़ पेट भरने की नहीं माँगा — उसने दुआ की कि समाज में ऐसे लोग बढ़ें जो अपनी ताकत का इस्तेमाल दूसरों के भले के लिये करें। उसने सीखा कि इंसानियत बताने वाली शान या पद नहीं होती — यह बस एक छोटे-से इशारे से भी जिया जा सकता है।
कुछ दिनों बाद वह सिपाही गाँव में स्कूल खोलने की पहल लेकर आया — उसने बच्चों के लिए किताबें और कॉपियाँ लाईं। दुकानदार ने शर्म से गाँव में कुछ अनाज दान कर दिया। ऊँचे दर्जे वाले आदमी ने सार्वजनिक तौर पर माफी माँगी और आदत सुधार ली। छोटे-छोटे बदलाव ने गाँव का माहौल बदल दिया — लोगों ने एक-दूसरे के लिये थोड़ा-सा समय निकाला, थोड़ा-सा प्यार दिया।
किसान रमेश अब भी वही किसान था — पर अब उसके दिल में भरोसा और उम्मीद भी थी। और हर बार जब वह मटकी फोटो के साथ गाँव वालों को बताता था कि कैसे एक वर्दी वाला आदमी उसकी मदद करने आया, लोगों की आँखें नम हो जातीं — और गाँव में यही बात जल्दी फैल गई।
कहानी का संदेश साफ़ था — ताकत, पद और दौलत से बड़ी चीज़ है — इंसानियत। और जब गरीब की आवाज़ किसी नेक दिल इंसान तक पहुँचती है, तो न्याय मिलता है, दया मिलती है और सबसे बड़ी चीज़ — इंसान का स्नेह।
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IBC Wakil Ahmad