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08/07/2025

😔 "एक फ़ोन… जो माँ ने कभी वापस नहीं किया"पिछले साल मैंने माँ को एक स्मार्टफोन दिलाया था।माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा –"बेट...
08/07/2025

😔 "एक फ़ोन… जो माँ ने कभी वापस नहीं किया"

पिछले साल मैंने माँ को एक स्मार्टफोन दिलाया था।
माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा –
"बेटा, इसमें मैं तुझे देख भी सकती हूँ क्या?"
मैं हँसकर बोला –
"हाँ माँ, वीडियो कॉल करना, बस एक बटन दबाना होता है।"

पहले ही दिन माँ ने पूरा घर मुझे दिखाया।
मेरे कमरे से लेकर मेरे कपड़े तक…
"देख बेटा, तेरा मग अब भी वहीं रखा है।"

मैं अपने कामों में व्यस्त था –
मीटिंग्स, डेडलाइन, मेल, मोबाइल…
माँ के मिस्ड कॉल्स स्क्रीन पर दिखते थे,
लेकिन मैं सोचता – "बाद में बात कर लूंगा।"

एक दिन माँ ने कॉल किया।
मैंने सिर्फ एक सेकंड के लिए उठाया और कहा –
"माँ, अभी बिजी हूँ… बाद में बात करता हूँ!"
फोन कट गया…
और शायद रिश्ता भी।

---

दो दिन बाद पापा का फोन आया –
"बेटा, माँ कल से बोल नहीं रही…
फोन भी चार्ज नहीं कर रही।"

मैं दौड़ा, अस्पताल पहुँचा।
माँ ICU में थी…
आँखें खुली थीं… लेकिन होठ खामोश थे।

माँ के पास वही फोन रखा था
जो मैंने उन्हें दिया था…
जिसकी स्क्रीन पर अब भी लिखा था:
📲 "Missed Call: माँ ❤️"

माँ ने जाते-जाते भी फोन चार्ज किया था,
शायद सोचती थीं —
बेटा एक बार और कॉल करेगा…
बस एक बार… उसी एक सेकंड के बाद।

---

अब वो फोन मेरे पास है।
ना ऑन करता हूँ, ना डिलीट।
बस कभी-कभी स्क्रीन जलती है,
और मैं देखता हूँ —
काश उस दिन एक सेकंड और माँ को दे देता…
शायद ज़िन्दगी भर का अफ़सोस ना मिलता।

---

💬 दिल से लिखी हुई लाइन❤

"माँ बार-बार कॉल करती है,
वो परेशान नहीं करती…
वो बस जानना चाहती है –
उसका बेटा ठीक तो है ना?"

अगर माँ का कॉल आए — तो कभी इग्नोर मत करना।
क्योंकि एक दिन ऐसा आएगा जब वो कॉल हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। 💔

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✍️✍️✍️

"एक कोना उन्हें चाहिए था…"शादी को आज 8 साल हो गए हैं।मेरी पत्नी अनामिका पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और तेज़ दिमाग वाली है। शुर...
08/07/2025

"एक कोना उन्हें चाहिए था…"

शादी को आज 8 साल हो गए हैं।

मेरी पत्नी अनामिका पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और तेज़ दिमाग वाली है। शुरू-शुरू में हम दोनों बहुत खुश थे। अनामिका को देख कर लगता था कि भाग्य से मिला कोई वरदान है।
मेरे माता-पिता गांव में रहते थे, पर मेरे बुलावे पर शहर आ गए थे क्योंकि पिताजी की तबीयत अक्सर बिगड़ने लगी थी।

शुरुआत में सब ठीक था, लेकिन कुछ ही महीनों में छोटी-छोटी बातें बड़ी होने लगीं।

"आपकी मां को सब कुछ मुझे सिखाना है क्या?"
"पिताजी को हर घंटे गरम पानी चाहिए, मैं नौकरी करूंगी या सेवा?"

मैंने कई बार समझाने की कोशिश की — "अनु, वो हमारे बुजुर्ग हैं। थोड़ा सम्हाल लो, मैं भी मदद करूंगा।"

लेकिन हर बार मेरी बात अनसुनी रह जाती।

एक दिन मैंने देखा — मां को हल्का बुखार था, और वो खुद ही रसोई में खांसते हुए खड़ी थीं। मैंने गुस्से में कहा — "अनामिका, क्या मां अकेले खाना बनाएंगी? तुम क्या कर रही हो?"

उस दिन अनामिका ने बहुत साफ कहा —
"मैं तुम्हारी बीवी हूं, नौकर नहीं। तुम्हारे मां-बाप के लिए मुझे अपनी जिंदगी नहीं कुर्बान करनी।"

मैंने चुपचाप मां का हाथ पकड़ा और उन्हें बिस्तर तक छोड़ आया।

उस रात मैं बहुत देर तक जागता रहा। मां-पापा का चेहरा मेरी आंखों के सामने था। याद आया वो दिन जब मैं स्कूल नहीं जा सका था क्योंकि चप्पल फट गई थी — तब मां ने अपना काम रोककर अपनी चप्पल मुझे दे दी थी।

धीरे-धीरे घर का माहौल इतना बिगड़ गया कि पापा ने कहना शुरू कर दिया, "बेटा, हम गांव लौट जाएं क्या?"

मैंने बहुत रोका — पर पापा मान गए।
"बस एक बात है बेटा… अगर किसी दिन तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़े, तो याद करना, मैं हमेशा यहीं था।"

पापा-मां चले गए… और घर "शांत" हो गया।

फिर 1 साल बाद खबर आई — पापा अब नहीं रहे। गांव में सीढ़ियों से गिर गए थे। कोई पास नहीं था।

हम दोनों दौड़कर गांव पहुंचे। मां एकदम टूटी हुई थीं — लेकिन उन्होंने सिर्फ एक बात कही —
"उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, लेकिन बेटे को बहुत याद करते थे।"

मैं सुन्न हो गया।

पापा की तेरहवीं पर जब उनका सामान समेटा गया, तब उनकी डायरी मिली।
उसमें सिर्फ एक पंक्ति रोज लिखी गई थी:
"आज भी बेटे का इंतज़ार है…"

---

आज मैं एक अच्छा पति हूं, एक जिम्मेदार पिता भी —
पर मैं एक अधूरा बेटा हूं।

जो अपने पिता को एक कोना भी नहीं दे सका उस घर में जिसे उन्होंने अपने खून-पसीने से बनाया था।

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सीख:

पत्नी ज़रूरी है — वो आज है, कल है, आने वाला भविष्य है।
लेकिन माता-पिता आपकी जड़ें हैं।

जिन्होंने आपको खड़ा किया, वो अगर अपने ही घर में अजनबी महसूस करें — तो सोचिए, असली गुनहगार कौन है?

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अगर आप भी कभी दो राहे पर खड़े हों, तो इतना याद रखना —
बीवी नई मिल सकती है, लेकिन मां-बाप दोबारा नहीं मिलते।

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शायद किसी और बेटे को आज ये एहसास वक्त पर हो जाए।

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"तू उसे उसके जिस्म में ढूंढ़ता रहा... और वह अपने वजूद में कहीं और ही थी।"तू उसकी जांघों में, नाभि में, उसके होठों और बाल...
07/07/2025

"तू उसे उसके जिस्म में ढूंढ़ता रहा... और वह अपने वजूद में कहीं और ही थी।"

तू उसकी जांघों में, नाभि में, उसके होठों और बालों में औरत ढूंढ़ता रहा।

पर तुझे क्या पता, औरत तो वहां होती ही नहीं जहाँ तू उसे देखता है।

वो किसी अंग में नहीं, वो तो एक सोच है, एक आत्मा है, एक आस्था है।

तू समझता है कि उसके जिस्म को छूकर, कुचलकर, तोड़कर तू उसे तोड़ देगा?

नहीं!
तू उसके जिस्म से खेल सकता है, पर उसकी आत्मा तक पहुँचने की तेरी औकात नहीं।

औरत की ताकत उसके शरीर में नहीं, उसके मन में है।

तू कितनी भी कोशिश कर ले, उसे कभी हरा नहीं सकता...

इसलिए सदियों से हारता आया है…
और हर हार के बाद, उसकी शक्ति से डरकर…
तू औरत के जिस्म पर वार करता है।

पर याद रख...

वो हर बार तेरी हैवानियत से नहीं टूटती,
बल्कि और भी मजबूत हो जाती है।

क्योंकि औरत होना केवल शरीर नहीं,
एक चेतना है… जो तेरे समझ से परे है।
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ो_समझो_मत_छुओ
#वो_शक्ति_है_भोग_नही

07/07/2025

जहाँ रिश्तों में स्वार्थ हो वहाँ
दूरी बना लेना ही ठीक है क्यूँकि वक़्त के साथ रिश्तें बोझ बन जाते हैं
✍️

📖  "तेरा इश्क़… मेरा इम्तिहान""तू सिर्फ मेरा था, मगर दिल तेरा किसी और का हो गया..."कहानी की शुरुआत होती है अंश और रिद्धि...
07/07/2025

📖 "तेरा इश्क़… मेरा इम्तिहान"
"तू सिर्फ मेरा था, मगर दिल तेरा किसी और का हो गया..."

कहानी की शुरुआत होती है अंश और रिद्धिमा से।

कॉलेज का पहला दिन था। रिद्धिमा लाइब्रेरी में किताब ढूंढ रही थी और अंश ने पहली बार उसे वहीं देखा था—सादा सलवार सूट, आंखों में सादगी और चेहरे पर ऐसा सुकून जैसे वक़्त वहीं ठहर जाए।
अंश को पहली बार किसी लड़की को देखकर ऐसा लगा कि शायद यही मेरी मंज़िल है।

धीरे-धीरे दोस्ती हुई, फिर दोस्ती ने मोहब्बत का रूप ले लिया।
"मैं तुझसे वादा करता हूँ, तुझे कभी रोने नहीं दूँगा" – अंश ने कहा था, और रिद्धिमा ने बिना कुछ बोले उसकी उंगलियाँ थाम ली थीं।

चार साल साथ गुज़रे – बर्थडे, रिज़ल्ट डे, फैमिली से मिलवाना, मंदिर में साथ मत्था टेकना… सब कुछ किसी फिल्म से कम नहीं था।

लेकिन फिर अचानक सब बदलने लगा...

अब रिद्धिमा का जवाब देर से आने लगा। कॉल्स छोटी होने लगीं। और एक दिन…

"हमें अब ब्रेक चाहिए…"

अंश ने कुछ भी नहीं कहा, बस मोबाइल का स्क्रीन घूरता रहा। और फिर हिम्मत करके पूछा –
"कोई और है?"

रिद्धिमा ने आँखें झुका लीं –
"हाँ… पर मैंने जानबूझ के नहीं किया। बस हो गया।"

उस एक पल में अंश की दुनिया बिखर गई।
जिसे उसने अपना मान लिया था, वो किसी और की हो चुकी थी।

---

6 महीने बाद...

अंश अब पहले जैसा नहीं रहा। वो चुप रहने लगा था, पर अंदर बहुत कुछ कहता रहता था।
फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी—

> "जिसे टूटा समझकर छोड़ दिया,
उसी टूटे दिल ने आज लिखना सीख लिया..."

उस पोस्ट ने हज़ारों दिलों को छू लिया।

---

रिद्धिमा ने वो पोस्ट देखी… और बस इतना लिखा –
"माफ़ करना अंश… तुम जैसे लोग किस्मत वालों को मिलते हैं, और मैंने उसे खो दिया।"

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सीख?

कभी-कभी जिसे हम अपनी पूरी दुनिया समझते हैं,
वो किसी और की दुनिया में सिर्फ एक मोड़ होता है।

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💔 "धोखा मिला… लेकिन मोहब्बत से नफ़रत नहीं हुई।
आज भी तेरा नाम सुनकर दिल मुस्कुरा देता है… पर आँखें नम हो जाती हैं…"

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#प्यार_और_धोखा

07/07/2025

सब धरी की धरी रह जाती हैं
जब कर्म लौटने लगते हैं
समझें 🤔
✍️

"ससुराल" एक शब्द नहीं, एक घर होता है — लेकिन इसका मतलब "पति का घर" नहीं होता।वो घर उस पिता का होता है जिसने सालों लगाकर ...
07/07/2025

"ससुराल" एक शब्द नहीं, एक घर होता है — लेकिन इसका मतलब "पति का घर" नहीं होता।

वो घर उस पिता का होता है जिसने सालों लगाकर उसे बनाया,
जिसकी दीवारों में उसकी मेहनत और पसीने की बू है,
जिसने अपने बेटे को पालकर उस घर का उत्तराधिकारी बनाया।

अब जब कोई बहू उस घर में आती है,
तो वह सम्मान की हक़दार है,
लेकिन स्वामित्व की नहीं।

उस घर की रसोई में रोटियाँ तो तुम्हारी भी पकेंगी,
लेकिन चूल्हा किसी और का जलाया हुआ है।

अगर तुम उसी पिता के बेटे को उससे तोड़ने लगो,
उसे अपने परिवार से काटने लगो,
तो ज़रा सोचो...
किसी बच्चे से उसकी सबसे प्यारी चीज़ छीन लो,
तो वो चीखता है, चिल्लाता है...

यहाँ तो बात उसके बेटे की है —
जिसे उसने उंगली पकड़कर चलना सिखाया था।

इसलिए मत भूलो,
जिस घर में रह रही हो वो "ससुराल" है,
"पति का घर" तभी बनता है,
जब तुम रिश्ते जोड़ो, तोड़ो नहीं।

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💔 “हम थे, मगर हमेशा के लिए नहीं…” 💔(एक लड़की का लड़की से प्यार... जो ख़त्म तो हुआ, मगर यादें रह गईं)---कॉलेज का पहला दिन...
07/07/2025

💔 “हम थे, मगर हमेशा के लिए नहीं…” 💔

(एक लड़की का लड़की से प्यार... जो ख़त्म तो हुआ, मगर यादें रह गईं)

---

कॉलेज का पहला दिन था।

नई जगह, नए चेहरे… और उन्हीं चेहरों में एक चेहरा ऐसा था जो भीड़ में भी ठहर गया।

दोपट्टा ठीक करती, बालों को बार-बार कान के पीछे सलीके से रखती वो लड़की — "वाणी"।

मैं उसे देख रही थी, और कुछ तो था जो खींच रहा था।
ना जाने क्यों, उस दिन मन किया —
"काश, ये मेरी हो…"

---

कुछ दिनों में दोस्ती हुई।
कैंटीन में साथ बैठना, नोट्स शेयर करना, और वो पगली हर बात पर हँसना।

एक दिन अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ लिया —
"तू बहुत स्पेशल है मेरे लिए।"

दिल धड़कना भूल गया।

मैंने भी कहा —
"तू ही तो है जिसकी वजह से अब ये जगह अच्छी लगने लगी है।"

---

धीरे-धीरे प्यार कब हुआ, हमें पता ही नहीं चला।

छोटे-छोटे सरप्राइज,
रात भर कॉल्स,
वो चुपचाप मेरी फ्रेम में लगी तस्वीर को देखना,
और हर जगह खुद को 'हम' कहना।

हम दो लड़कियाँ थीं,
मगर दो दिल... एक धड़कन।

---

लेकिन फिर सब कुछ धीरे-धीरे बदलने लगा।

वो पहले जैसी नहीं रही।
अब उसके पास वक्त नहीं होता,
मेरे मैसेज घंटों बाद "Seen" होते थे,
और मुलाक़ातें बस "कल देखते हैं" पर आकर रुक जाती थीं।

---

एक दिन छत पर बैठे मैंने पूछ ही लिया,
"क्या अब भी मुझसे उतना ही प्यार है?"

वो चुप रही... फिर बोली —
"मुझे नहीं पता अब क्या फील हो रहा है। शायद… हम बहुत अलग हैं।"

---

मैं रोई नहीं उस दिन।
बस उसकी आँखों में झाँककर सोचा —
"कितनी अजीब बात है ना,
जिससे तुमने प्यार सीखा,
वो ही तुम्हें छोड़ना सिखा देता है…"

---

अब वो किसी और की ज़िन्दगी का हिस्सा है।
और मैं…?

मैं अब भी उसी शाम में फंसी हूँ,
जहाँ से उसने जाना शुरू किया था।

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कहानी खत्म हो गई है,
पर जो दिल में थी, वो अब भी अधूरी सी चल रही है…

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07/07/2025

अब औरतें अपने पति को छोड़ती नही है
बल्कि खत्म कर देती है 😢

नोट,, ये बात सब औरतें और लड़कियों पर लागू नही होती

"उस रात की वो मधुर कथा"(एक श्रृंगारिक अनुभव की अभिव्यक्ति)उस रात की न कहना बात,जब चाँद ने चुपके से दी थी सौगात,जब सावन क...
06/07/2025

"उस रात की वो मधुर कथा"
(एक श्रृंगारिक अनुभव की अभिव्यक्ति)

उस रात की न कहना बात,
जब चाँद ने चुपके से दी थी सौगात,
जब सावन की भीगी बूँदों में,
तन-मन था बिन कहे ही साथ।

मैं बस स्नानागार में थी,
अधखुला था किवाड़ सखी,
कदमों की आहट से ही जाना,
साजन थे वहीं कहीं।

भीगी-भीगी साँसों के संग,
आई बाँहों की वो पहली झपकी,
सिर से पाँव तक सिहर उठी,
जब साजन ने दी वो हल्की थपकी।

कंधे पर उनकी उँगलियाँ थीं,
और होंठ मेरे होंठों पर,
मुझे लगा मैं जल में नहीं,
किसी प्रेम-सागर के मोड़ पर।

वो जब उरोजों से बहके,
और मेरी कमर थाम ली,
तो गीले कपड़े भी शरमा गए,
जब बाँहों में उन्होंने शाम ली।

हर अंग ने जैसे सीखा,
प्रेम की नई कोई बोली,
और साजन की नज़रों ने,
मेरे तन से कविता की रचना खोली।

जब उनकी साँसें गूँजी,
मेरे हृदय की वीणा में,
तब लगा मैं राधा हूँ सखी,
और वो बाँसुरीधारी मेरे सीना में।

वो गति, वो छंद, वो लय,
जिसमें ना कोई जल्दबाज़ी थी,
हर स्पर्श में आरती-सा भाव,
और आँखों में पूजा जैसी बाती थी।

मैं थी पिघलती मेहँदी-सी,
और वो थे रंग रचाने वाले,
मुझे लगा उस रात सखी,
हम नहीं—बस दो आत्माएँ थीं मिलने वाले।

अब भी जब सावन आता है,
या घटा जब चुपके से रोती है,
तो लगता है वो रात फिर से,
मेरे तन-मन में होती है...

उस रात की न कहना बात सखी,
बस आँखें मूँद सोच लिया करो,
जब प्रेम अपने शिखर पर था,
और हम खुद से भी दूर हो गए

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