IBC wakil ahmad

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ठीक है 🙏मैं आपके लिए “सास और बेटा” पर एक दिल को छू लेने वाली भावनात्मक कहानी लिखता हूँ, जो Facebook पर वायरल होने लायक ह...
24/09/2025

ठीक है 🙏
मैं आपके लिए “सास और बेटा” पर एक दिल को छू लेने वाली भावनात्मक कहानी लिखता हूँ, जो Facebook पर वायरल होने लायक हो —

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🌸 सास और बेटा 🌸

कमरे में बहू और बेटे की हल्की-सी हंसी गूँज रही थी।
दरवाज़े के बाहर खड़ी सास के होंठों पर भी मुस्कान आ गई। पर आँखें… आँखें थोड़ी गीली हो गईं।

उसे याद आया वो दिन—
जब वही बेटा उसका हाथ पकड़कर कहता था,
“अम्मा, जब तक ज़िंदा रहूँगा, आपको कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”

लेकिन अब बेटा बहू के साथ खो जाता है।
उसके पास बैठने का, उसके सिर पर हाथ फेरने का,
या बस बिना मतलब बातें करने का वक़्त भी नहीं मिलता।

रात को खाना खाने के बाद बहू ने कहा —
“माँ जी, अब आप आराम कीजिए, मैं सब सँभाल लूँगी।”
बेटे ने तुरंत हामी भरी,
“हाँ अम्मा, अब आपको कोई काम करने की ज़रूरत नहीं।”

सास चुप रही।
उसके दिल में जैसे दो आवाजें टकरा रही थीं।
एक आवाज़ कह रही थी —
“देख, तेरे बेटे ने तुझे काम से मुक्त कर दिया है, बहू कितनी अच्छी है।”
लेकिन दूसरी आवाज़ फुसफुसाई —
“काम से छुटकारा मिला है, लेकिन बेटे के दिल से छुटकारा मत पा लेना।”

रात को अकेले बिस्तर पर लेटी सास ने तकिए से बात की —
“हे भगवान! मैंने बेटे को अपनी जिंदगी की धूप-छाँव में पाला, अपनी नींद बेचकर उसकी नींद खरीदी,
अब उसकी दुनिया किसी और के लिए है, और मेरी दुनिया… सिर्फ यादों के सहारे।”

अगले दिन सुबह बहू ने माँ जी का हाथ पकड़ा और बोली,
“माँ, आप हमें दुआ दीजिए,
आपका आशीर्वाद ही हमारे लिए सबसे बड़ी ताक़त है।”

सास की आँखें भर आईं।
उसने मन ही मन कहा —
“हाँ, बहू… अब मेरा बेटा तेरा है।
मेरा रिश्ता उसके साथ खून का है,
और तेरा रिश्ता उसके साथ जीवन का है।
लेकिन सच मान,
माँ कभी किसी से हारती नहीं—
वो बस चुपचाप पीछे हट जाती है ताकि अपने बेटे को मुस्कुराते हुए देख सके।”

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👉 सीख:
बहुत बार माँ अपने बेटे से हारती नहीं,
बल्कि बेटे की खुशी के लिए ख़ुद हार मान लेती है।
क्योंकि माँ का प्यार… किसी से मुकाबला नहीं करता।

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✍️ IBC Wakil Ahmad

 #बाप_की_औकात!!!बरसों की मेहनत और संघर्ष के बाद आज घर में रौनक थी। छोटे बेटे की बारात निकलने वाली थी। ढोल-नगाड़ों की आवा...
24/09/2025

#बाप_की_औकात!!!

बरसों की मेहनत और संघर्ष के बाद आज घर में रौनक थी। छोटे बेटे की बारात निकलने वाली थी। ढोल-नगाड़ों की आवाज, रिश्तेदारों का हंसी-ठिठोली करना, औरतों का गाना-बजाना—सबकुछ मानो जैसे किसी सपने जैसा लग रहा था।

मगर तभी शोरगुल के बीच खबर फैली –
“लड़के के पापा दिख नहीं रहे!!”

सब लोग बेचैन होने लगे। दूल्हा परेशान, मां रोने को तैयार, रिश्तेदार इधर-उधर झाँकने लगे।

ओह! कहानी बीच से शुरू हो गयी।
चलिए, शुरू से बताते हैं।

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गाँव के साधारण किसान हरिराम।
पढ़ाई ज्यादा नहीं की, मगर समझदारी में किसी से कम नहीं।
बचपन से ही एक ही आदत—किसी भी काम में सबसे आगे रहना। चाहे खेत हो, घर हो या मंदिर की सेवा।

पत्नी कमला को हरिराम से शिकायत कभी नहीं रही। भले गरीबी रही, मगर इज्ज़त और अपनापन कभी कम न हुआ।
भगवान ने उन्हें दो बेटे दिये। बड़ा बेटा महेंद्र, छोटा बेटा सुरेश।

महेंद्र बाप जैसा ही, सीधा-साधा। जल्दी शादी हुई और खेती-बाड़ी संभाल ली।
छोटा बेटा पढ़ाई में तेज था। बाप ने खेत बेचे, मां ने गहने गिरवी रखे, भाई ने पसीना बहाया, और आखिरकार सुरेश ने इंजीनियर की नौकरी पा ली।

हरिराम की आंखों में चमक आ गई। बेटों के सपने पूरे होने लगे।

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समय बीता।
अब बारी आई सुरेश की शादी की।

लड़की पढ़ी-लिखी थी, संस्कारों वाली थी। परिवार ने रिश्ता पक्का कर दिया।
सब तरफ से शुभकामनाएँ मिलने लगीं।

शादी की तैयारियों में महेंद्र बड़ा भाई होने के नाते बहुत व्यस्त था।
कभी गहने, कभी गाड़ियाँ, कभी कपड़े।

लेकिन सुरेश ने हर बार अपनी जिद रखी –
“दादा, दुल्हन के लिए गहने कम हों तो चलेगा, मगर मां के लिए जरूर बनाइए।”
“दादा, गाड़ी चाहे मेरे लिए छोटी हो, मगर पापा के लिए बड़ी गाड़ी लीजिए।”
“दादा, कोट-पैंट सिर्फ मेरे लिए नहीं, पापा के लिए भी बनवाइए।”

महेंद्र हँस देता—
“पागल हो गया है तू? गाँव में बाप को कोट-पैंट कौन पहनाता है?”

सुरेश सीना ठोक कर कहता—
“वो बाप हैं मेरे!!!”

कमला बेटे की बातें सुनकर गुमसुम हो जाती। उसकी आँखें भर आतीं।

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शादी का दिन आया।
सज-धज कर बारात तैयार थी।
लेकिन तभी हलचल मच गई—“हरिराम कहाँ हैं?”

सब इधर-उधर भागे। किसी को पता नहीं।
बारात रुक गयी। दूल्हा पसीने से तरबतर।

तभी किसी ने घर की ओर इशारा किया—
सबकी नज़रें ठहर गईं।

हरिराम धीरे-धीरे निकल रहे थे।
कंधे पर अपने बूढ़े पिता का सहारा लिये हुए।
पैर काँप रहे थे बूढ़े बाप के, मगर सहारा बेटे का था।

और सबसे बड़ा झटका—
हरिराम ने खुद साधारण धोती पहन रखी थी,
और अपने पिता को वही नया कोट-पैंट पहना रखा था,
जो सुरेश ने अपने बाप के लिए बनवाया था।

भीड़ सन्नाटे में डूब गयी।
गाँव वाले फुसफुसा रहे थे—
“ये हैं असली औलाद…”

हरिराम ने सिर उठाकर अपने बेटे की तरफ देखा।
सुरेश फूट-फूट कर रो पड़ा और दौड़कर बोला—
“यही है मेरी औकात…
वो बाप हैं मेरे!!!”

ढोल फिर से बजने लगे, और उस दिन सिर्फ बारात नहीं, पूरे गाँव की सोच भी बदल गयी।

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✍️ दिल से लिखा गया —
IBC Wakil Ahmad

23/09/2025

23/09/2025

"शिकायत से शुक्रिया तक"

रमेश पिछले कुछ महीनों से बहुत उदास और चिड़चिड़ा हो गया था।
उसे लगता था जैसे पूरी दुनिया का बोझ उसी के सिर पर है।

सुबह दफ़्तर, शाम घर का खर्च, बच्चों की फीस, बिजली का बिल, रिश्तेदारों की अपेक्षाएँ…
वो सोचता ही रह जाता—
“ये ज़िंदगी मुझे चैन क्यों नहीं देती?”

इसी तनाव में वह अक्सर पत्नी पर चिल्ला देता और बच्चों से भी झुँझला जाता।

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एक दिन थका-हारा रमेश दफ़्तर से लौटा तो देखा कि उसकी छोटी बेटी ड्राइंग बना रही है।
वो चुपचाप उसके पास बैठ गया।

ड्राइंग में बेटी ने एक बड़ा सा सूरज बनाया था और नीचे लिखा था—

"मेरे पापा मेरे सूरज हैं, क्योंकि चाहे कितनी भी अंधेरी रात हो, वो हर सुबह मुझे रोशनी देते हैं।"

रमेश की आँखें भर आईं।
वो सोचने लगा—
“जिसे मैं बोझ समझ रहा हूँ, वही तो मेरी सबसे बड़ी ताक़त है।”

उसने पहली बार अपनी परेशानियों को नए नज़रिये से देखना शुरू किया—

अगर मैं थक जाता हूँ, तो इसका मतलब है कि मैं मेहनत करने लायक मज़बूत हूँ।

अगर मुझे हर महीने बिल चुकाने पड़ते हैं, तो इसका मतलब है कि मेरे पास घर और सुविधाएँ हैं।

अगर मुझे बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना पड़ता है, तो इसका मतलब है कि मुझे भगवान ने पढ़ने-लिखने का अवसर दिया है।

अगर रिश्तेदार उम्मीद लेकर आते हैं, तो इसका मतलब है कि मेरे पास मान-सम्मान है।

रमेश ने उसी वक़्त तय किया—
अब से शिकायत नहीं, बस शुक्रिया।

उसने बेटी को सीने से लगाया और धीरे से कहा—
“आज तुमने मुझे ज़िंदगी का सबसे बड़ा सबक सिखा दिया।”

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👉 सीख:
“समस्याएँ बदलती नहीं, नज़रिये बदल जाते हैं। और जब नज़रिये बदलते हैं तो बोझ भी आशीर्वाद लगने लगता है।”

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✍️ IBC Wakil Ahmad

23/09/2025

"रसोई और रिश्ते"

"बहू, खाना जल्दी बना लिया करो, दफ़्तर से आते ही मुझे गरमागरम रोटी चाहिए।"

"पापा जी, मैं कोशिश करती हूँ, लेकिन दफ़्तर से आकर सीधे रसोई में खड़ी हो जाती हूँ, थोड़ा आराम भी चाहिए।"

"ओह! तो नौकरी करने का शौक भी और बहू कहलाने का दर्जा भी चाहिए? हमारी ज़माने की औरतें तो सुबह से रात तक चूल्हे पर लगी रहती थीं।"

"पापा जी, ज़माना बदला है। अब औरतें भी कंधे से कंधा मिलाकर घर चलाती हैं।"

"तो क्या ये बातें करने के लिए लाए थे हम बहू? ये शिक्षा तुम्हें तुम्हारी माँ ने दी है?"

—बहू की आँखें भर आईं। उसने धीमे से कहा—
"जी, शिक्षा माँ ने दी है, और वही शिक्षा मुझे सिखाती है कि औरत बोझ नहीं, बराबरी की हिस्सेदार होती है।

जब शादी से पहले आपने लिस्ट भेजी थी, उसमें टीवी, फ्रिज और गाड़ी की माँग थी। लेकिन कहीं ये नहीं लिखा था कि बहू को इंसान मानना भी ज़रूरी है।

तो अब रोटी थोड़ी देर से बनेगी, मगर रिश्ते हमेशा गरम रहेंगे—अगर आप चाहें तो…"

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👉 सबक:
“औरत के संस्कार उसके गहनों से नहीं, उसकी इज़्ज़त से पहचाने जाते हैं।”

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✍️ IBC Wakil Ahmad

23/09/2025

"बहू की रंगीनमिज़ाजी ने छीना बुज़ुर्ग की जान"

उत्तर भारत के एक छोटे से कस्बे में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई।
जहाँ एक 75 वर्षीय बुज़ुर्ग अपने ही घर में लहूलुहान हालत में पाए गए।

पहली नज़र में ये हादसा लगा, लेकिन जब पुलिस ने जांच शुरू की तो ऐसा राज़ सामने आया जिसने हर किसी की रूह कांप दी।

घर के अंदर बने एक गुप्त कमरे से बुज़ुर्ग की लाश बरामद हुई। सिर पर गहरे ज़ख्म और शरीर का वह हिस्सा बुरी तरह काटा गया था, जिसका ज़िक्र करना भी मुश्किल है।

शक की सुई घर की बहू पर गई। पुलिस ने उसे हिरासत में लिया।
शुरुआत में वो साफ़ मुकर गई, लेकिन जब सख्ती से पूछताछ हुई तो उसका काला सच सबके सामने आ गया।

उसने बताया—
वो लंबे समय से अपने ही ससुर के साथ अवैध संबंध बना रही थी। इसके बदले में वह पैसे लेती थी। लेकिन हालात तब बदले जब उसकी सोशल मीडिया पर किसी दूसरे शख्स से दोस्ती हुई। उस आदमी ने उसे विदेश ले जाने का लालच दिया।

उसके लिए उसे पैसों की ज़रूरत थी। बहू ने ससुर से लाखों रुपए मांगे, लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया। बस यहीं से उसकी नीयत खून में बदल गई।

गुस्से और लालच के अंधेपन में उसने बुज़ुर्ग पर हमला कर दिया। पहले सिर पर वार किया और फिर हैवानियत की हद पार कर दी।

पुलिस ने आरोपी बहू को गिरफ्तार कर लिया है। उसकी स्वीकारोक्ति ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया।

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👉 सबक ये है:
“जब इंसान अपनी इच्छाओं और रंगीनमिज़ाजी के आगे अंधा हो जाता है, तो रिश्तों की पवित्रता मिट जाती है और ज़िंदगी एक हैवानियत भरी त्रासदी में बदल जाती है।”

✍️ IBC wakil ahmad

21/09/2025

गाँव की सुबह कुछ और ही होती है — धूप धीमी, हवा में मिट्टी की खुशबू और सड़क किनारे पुराने पेड़ों की छाँव। उसी सुबह, रमेश अपने छोटे से माटी के घर से निकला। उसकी औंधी कमर, गर्दन पर टंगी हुई पगड़ी और हाथों पर सूखे हुए मिट्टी के निशान बताते थे कि उसने पूरे जीवन मेहनत ही की है। पर इस बार, उसके चेहरे पर एक छोटी-सी चिन्ता थी — घर में दाल-चावल का अन्न कम था और बच्चे स्कूल से लौटकर भूखे रहते थे।

रमेश के पास जो कुछ बचा था, वो था एक पुराना चमड़े का थैला — उसमे रखी एक छोटी सी मटकी, और मटकी के भीतर थोड़ी-सी घिसी हुई लौंग। रमेश ने मन ही मन सोच लिया — “आज बाजार में बेचकर बच्चों के लिए कुछ चावल ले आऊँगा।”

वह मटकी ले जाकर गाँव के हाट में बैठ गया। आस-पास बोले-खुले और चमकते वस्त्रों वाले आदमी-औरों की भीड़ थी। रमेश ने दर्जी की तरह अपनी मटकी को थैले से निकालकर रखा और गुहार लगाने लगा — “भाईलोग, मटकी एक सौ रुपये में बेच दूँगा… बस पाँच रुपये तो बचाकर घर ले जाऊँगा।”

कुछ ही देर में गाँव का बड़ा दुकानदार आया — उसी की दुकान में लोग महीनों का सामान दे रखकर जाते हैं। दुकानदार ने मटकी उठाई, उसे टटोलते हुए कहा — “ये तो पुरानी मटकी है, चलो किसी काम की नहीं।” बात कुछ ही इतनी थी कि वह उसी जगह से चला गया — बिना दाम दिए।

रमेश का चेहरा डगमगा गया। फिर वहाँ से पक्केदार ऊँची पगड़ी वाला एक आदमी निकला — उस पर नई शर्ट और चमकते जूते थे। उसने मटकी पकड़ी और बोला — “चलो, कल आकर पैसा दे देना।” रमेश के होंठों पर उम्मीद की एक किरण और थी, पर आदमी चलते हुए मुस्कुरा कर चला गया — बिना एक रुपये दिए।

रमेश ने भगवान से जुड़ कर बस एक ही दुआ माँगी — “प्रभु, कम से कम आज की दाल-रोटी तो पूरे घर के लिए हो जाए।” तभी अचानक हाट में एक सिपाही आया — जो गाँव में नया तैनात हुआ था। उसकी वर्दी साफ़, कदम मजबूत और नज़रें सीधी थीं। सिपाही ने मटकी देखी और कहा — “कितने का दे रहे हो?”

रमेश ने थर-थराते हुए बताया, सारी कहानी बताई — दुकानदार और ऊँचे दर्जे वाले आदमी ने पकड़ी थी, पर पैसे नहीं दिए। सिपाही ने शांत आवाज़ में कहा — “ठीक है, मेरे साथ चलो।”

दोनों गाँव के चौपाल की ओर गए जहाँ कुछ लोग बैठे थे। दुकानदार आराम से अंगुलियाँ घुमा रहा था और ऊँचे दर्जे वाले आदमी के साथ हँसी-मज़ाक कर रहा था। सिपाही ने उनका ध्यान खींचा और सख़्त स्वर में पूछा — “किसने ये मटकी बिना दाम उठाई?”

दुकानदार ने पहले तो आँखें घुमा लीं, पर फिर धीरे से कहा — “बात छोटी है, कोई गड़बड़ नहीं।” सिपाही ने आँखों में गुस्सा लिए बिना कहा — “देखो, गरीब का काम-धंधा ही छोटा नहीं होता। एक-एक पैसा उसके परिवार के लिए मायने रखता है। जो उठा है, सामने आओ।”

थोड़ी देर की झिझक के बाद दुकानदार की तरफ से उसका बेटा सामने आया — अब सब सामने आ गया कि उसने मटकी उठाई थी और रुपए नहीं दिए। दुकान वाला मुँह लटकाकर बोला — “हम भूल गए थे।” रमेश की आँखों में आँसू उभर आए — पर वह डर रहा था कि शायद आवाज़ लगने पर उसे डाँटा भी जा सकता है।

सिपाही ने शांत होकर कहा — “अभी तुम तीन सौ रुपये इस आदमी को दो, ताकि आज उसका घर भर सके। और बच्चा, याद रखो — इंसानियत शर्म की चीज़ नहीं है।” दुकानदार का चेहरा लाल हो गया और उसने अनिच्छा से पैसे निकालकर रमेश को थमा दिए।

फिर सिपाही ने रमेश की तरफ़ देखा — “ये तीसरा नहीं, तुम्हारी मेहनत की कीमत है।” उसने अपनी वर्दी की जेब से एक पैकेट निकाला, उसमें और कुछ नोट थे — “और ये मेरी तरफ से है, ताकि तुम बच्चे अच्छे से खिला सको।”

रमेश हैरान और झुकते हुए हाथ बढ़ाने लगा। उसने नम आँखों से कहा — “साहब, आप तो कानून की वर्दी हैं, आप ही मुझे डर लग रहा था कि आप पैसा नहीं लेंगे।” सिपाही ने हँस कर कहा — “कानून वर्दी नहीं, इंसानियत होती है। जब इंसान इंसान का साथ देता है तो दुनिया थोड़ी-सी गर्म हो जाती है।”

उस दिन रमेश घर लौटा — थैला भारी था, पर उसके कदम हल्के थे। उसने घर में कदम रखा और बच्चों की मासूम आँखों में चमक देखकर उसकी चिल्लाती हुई हँसी निकल पड़ी। उसकी पत्नी ने रसोई में आकर कहा — “आज किस ने मदद की?” रमेश ने सिपाही का नाम लेकर कहा — “एक सिपाही साहब मिले — जिनकी वर्दी में इतनी कठोरता है, पर दिल बहुत नर्म निकला।”

रात को जब रमेश सोते समय अपने हाथ जोड़कर दुआ किया तो उसने सिर्फ़ पेट भरने की नहीं माँगा — उसने दुआ की कि समाज में ऐसे लोग बढ़ें जो अपनी ताकत का इस्तेमाल दूसरों के भले के लिये करें। उसने सीखा कि इंसानियत बताने वाली शान या पद नहीं होती — यह बस एक छोटे-से इशारे से भी जिया जा सकता है।

कुछ दिनों बाद वह सिपाही गाँव में स्कूल खोलने की पहल लेकर आया — उसने बच्चों के लिए किताबें और कॉपियाँ लाईं। दुकानदार ने शर्म से गाँव में कुछ अनाज दान कर दिया। ऊँचे दर्जे वाले आदमी ने सार्वजनिक तौर पर माफी माँगी और आदत सुधार ली। छोटे-छोटे बदलाव ने गाँव का माहौल बदल दिया — लोगों ने एक-दूसरे के लिये थोड़ा-सा समय निकाला, थोड़ा-सा प्यार दिया।

किसान रमेश अब भी वही किसान था — पर अब उसके दिल में भरोसा और उम्मीद भी थी। और हर बार जब वह मटकी फोटो के साथ गाँव वालों को बताता था कि कैसे एक वर्दी वाला आदमी उसकी मदद करने आया, लोगों की आँखें नम हो जातीं — और गाँव में यही बात जल्दी फैल गई।

कहानी का संदेश साफ़ था — ताकत, पद और दौलत से बड़ी चीज़ है — इंसानियत। और जब गरीब की आवाज़ किसी नेक दिल इंसान तक पहुँचती है, तो न्याय मिलता है, दया मिलती है और सबसे बड़ी चीज़ — इंसान का स्नेह।

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IBC Wakil Ahmad

21/09/2025

🎋 "गाँव का माहौल और हम" 🌾

गाँव की सुबह का अपना ही रंग होता है।
मुर्गे की बाँग से लेकर बैलों की घंटियों तक, हर आवाज़ एक नई ताज़गी लेकर आती थी।
लकड़ी के चूल्हे पर चढ़ी हुई हांड़ी से उठता धुआँ, और उसकी खुशबू पूरे आँगन में फैल जाती थी।
बच्चे नंगे पाँव खेतों की मेड़ पर दौड़ते, कहीं तालाब के किनारे मछली पकड़ते, तो कहीं नीम के पेड़ के नीचे बैठकर पिट्ठू और गुल्ली-डंडा खेलते।

वो माहौल ऐसा था जहाँ किसी का घर दुख में हो, तो पूरा गाँव उसका सहारा बन जाता था।
किसी की बेटी की शादी हो तो गाँव की औरतें मिलकर गीत गातीं—
"लइकवा के ब्याह होई…"
और बच्चे पटाखे फोड़कर अपने ढंग से जश्न मनाते।

गाँव का असली सौंदर्य था –
जहाँ हर इंसान दूसरे का हाल पूछता था,
जहाँ बिन बुलाए मेहमान को भी दाल-रोटी खिलाई जाती थी,
जहाँ लोग गरीबी में भी दिल से अमीर थे।

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लेकिन हम…
हम धीरे-धीरे इस माहौल से दूर होते गए।
शहर की चकाचौंध ने हमें अपनी तरफ खींच लिया।
अब हम फ्लैट की चार दीवारों में तो रहते हैं,
लेकिन वो गाँव वाला अपनापन,
वो खेतों की महक,
वो पोखर की ठंडक,
सबकुछ कहीं पीछे छूट गया।

आज शहर में सब कुछ है – AC, मॉल, रेस्त्राँ…
लेकिन वो सुकून कहाँ है?
यहाँ पड़ोसी सालों तक पास रहते हैं, फिर भी अजनबी बने रहते हैं।
जबकि गाँव में तो गाय खो जाए, तो पूरा टोला ढूँढने निकल जाता था।

---

कभी-कभी दिल करता है सब छोड़कर फिर से वहीं लौट जाएँ…
जहाँ पगडंडी पर चलने का मज़ा था,
जहाँ बगिया से तोड़कर आम खाने का सुख था,
जहाँ लोग "मैं" नहीं, "हम" में जीते थे।

👉 गाँव हमें यही सिखाता है –
"ख़ुशी पैसों में नहीं, साथ में है।
इंसान अकेले नहीं, सबके साथ मिलकर बड़ा होता है।"

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आज अगर हम सब मिलकर गाँव का वही माहौल वापस ले आएँ,
तो यकीन मानिए…
शहर भी गाँव जैसा हो जाएगा।

🌿 क्योंकि असली दौलत कभी गहनों या रुपयों से नहीं,
बल्कि अपनापन और रिश्तों से बनती है। 🌿
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✍️ IBC Wakil Ahmad

20/09/2025

"माँ की थाली"

करीब दो महीने पहले सीमा नई कॉलोनी में शिफ्ट हुई थी।
सुबह-सुबह उसके फ्लैट की खिड़की से एक ही आवाज़ रोज़ आती थी –

"बेटा, आज दाल में नमक कम है।"
"बहू, बच्चों का टिफ़िन पैक किया या नहीं?"
"अरे, जरा जल्दी कर, मुझे ऑफिस देर हो जाएगी।"

सीमा को हमेशा लगता कि इस घर में एक बहू है, जो सुबह से लेकर रात तक सबके लिए दौड़ती रहती है, लेकिन किसी ने कभी उसकी थाली में झाँक कर ये नहीं पूछा कि "खुद उसने खाया या नहीं?"

एक दिन सीमा से रहा नहीं गया।
वो पड़ोसी के दरवाज़े पर पहुँची और बोली –
"भाभी, आप कितनी थकी-थकी सी लग रही हैं। बैठ जाइए, मैं आपकी मदद कर दूँ।"

इतना सुनते ही पूरे घर के लोग तमतमा गए –
"अरे! तुम कौन होती हो हमारी बहू की चिंता करने वाली? ये उसका फ़र्ज़ है।"
"आजकल की औरतें अपने काम से काम क्यों नहीं रख सकतीं?"

सीमा ने मुस्कराकर कहा –
"फ़र्ज़ और प्यार में फ़र्क़ होता है। अगर किसी के हिस्से में सिर्फ़ काम और झिड़कियाँ आएँ, तो वो औरत नहीं, नौकरानी कहलाती है।"

कुछ पल के लिए घर में सन्नाटा छा गया।
तभी वही बहू बोली –
"दीदी, आज पहली बार किसी ने मेरी थाली देखी है।"

और उस दिन सास ने पहली बार अपनी बहू को बैठाकर खाना परोसा…
शायद देर से ही सही, लेकिन बहू को बेटी का मान मिल ही गया।

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✍️ IBC Wakil Ahmad

20/09/2025

बहुत धीरे-धीरे पढ़िएगा…
मज़ा अंत में ही मिलेगा 😃

1. भारत में कुल कितने राज्य हैं ?

2. क्रिकेट में आउट होने के कितने तरीके हैं ?

3. संविधान में कितनी अनुसूचियाँ हैं ?

4. किस वर्ष भारत आज़ाद हुआ था ?

5. पेंटागन के कितने कोने होते हैं ?

6. ओलंपिक के झंडे पर कितने रिंग बने होते हैं ?

7. इन्द्रधनुष में कितने रंग होते हैं ?

8. कितने महाद्वीप हैं ?

9. सप्ताह में कितने दिन होते हैं ?

10. दशमलव के बाद कितने अंक होते हैं ?

11. कितने महीनों में 30 दिन होते हैं ?

12. मानव शरीर में कितने दाँत होते हैं ?

13. कितने अक्षरों से हिंदी वर्णमाला बनती है ?

14. एक लीप वर्ष में कुल कितने दिन होते हैं ?

15. संगीत में कितने सुर होते हैं ?

16. कितनी बार सूर्योदय होता है ?

17. दहाई के बाद कौन सा स्थान आता है ?

18. कितने खिलाड़ियों से कबड्डी की टीम बनती है ?

19. कितने बजे सूरज डूबता है ?

20. एक रुपये में कितने पैसे होते हैं ?

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उत्तर:
सभी प्रश्नों के जवाब उनके क्रमांक ही हैं। 😅

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✍️ IBC Wakil Ahmad

20/09/2025

#छुटा हुआ इम्तिहान"

सुबह 9 बजे का टाइम था।
हॉल टिकट हाथ में होना चाहिए था, लेकिन मेरे पास सिर्फ़ बेचैनी थी।

सालों की मेहनत, रातों की जागकर पढ़ाई, दोस्तों की महफ़िल छोड़कर किए गए त्याग — सब कुछ दाँव पर था।
लेकिन उस दिन, नेटवर्क और ट्रैफिक ने मुझे हरा दिया।
BPSC का एग्ज़ाम मेरे सामने होते हुए भी, मैं उसकी दहलीज़ तक नहीं पहुँच सका।

उस वक़्त लगा जैसे ज़िन्दगी ख़त्म हो गई।
आँखों से आँसू बहे और दिल ने कहा – "तेरे सपने यहीं खत्म हो गए।"

लेकिन तभी एक और आवाज़ आई —
"एग्ज़ाम छूटा है, ज़िन्दगी नहीं।"

हार मान लेना सबसे आसान होता है, लेकिन सपनों को फिर से गले लगाना असली हिम्मत है।
किस्मत ने मुझे रोक लिया, शायद इसलिए कि मैं और मज़बूत होकर लौटूँ।

मैं गिरा हूँ, लेकिन टूटा नहीं।
और अगली बार सिर्फ़ एग्ज़ाम नहीं दूँगा…
बल्कि अपनी हार को भी हराऊँगा।

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सीख:
कभी-कभी ज़िन्दगी हमें वहीं गिराती है, जहाँ से हमें और मज़बूत होकर उठना होता है।
इम्तिहान छूट सकता है, लेकिन सपने कभी नहीं।

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✍️✍️


✍️ IBC Wakil Ahmad

19/09/2025

ज़िंदगी को सफल बनाने के लिए
बातों से नही
रातों से लड़ना पड़ता है ✍️

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