Dhwaz Forever

Dhwaz Forever बहुत कम लोग जानते हैं की वो बहुत कम जानते हैं और मैं उनमें से एक हूं
जानना ये है की मैं नहीं जानता हु

जन्नत में सिर्फ मुस्लिमों को ही 72 हूरें नहीं मिलती, स्वर्ग में हिंदुओं को भी अप्सराएं, देवकन्याएं, देवांगनाएं, कन्याएं ...
20/11/2024

जन्नत में सिर्फ मुस्लिमों को ही 72 हूरें नहीं मिलती, स्वर्ग में हिंदुओं को भी अप्सराएं, देवकन्याएं, देवांगनाएं, कन्याएं भी मिलती हैं।

सनातन का अर्थ है जो सदा से था और सदा ही रहेगा। इस्लाम तो सिर्फ 1400 साल पुराना ही है। हमारा जो वर्तमान कल्प है उसको भी शुरू हुए एक अरब 96 करोड़ से ज्यादा वर्ष हो चुके हैं। जबकि एक कल्प की आयु 4 अरब 32 करोड़ वर्ष होती है। और यह एक कल्प ब्रह्मा जी का एक दिन होता है। हमारे वर्तमान ब्रह्मा जी का अब आयु के 50 वर्ष पूरे हो चुके है जो हमारे 50 x 360 x 4, 32,00,00,000 वर्ष के बराबर है। यानी इतना पुराना है सनातन धर्म। और इससे पहले भी था सनातन धर्म। पूरी दुनिया की सभ्यताओं ने जो भी सीखा है वह सनातन धर्म से ही सीखा है। जन्नत में हूरें मिलती हैं यह भी सनातन धर्म से सीखा है इस्लाम ने।

सैकड़ों जगह पर महाभारत में लिखा है और पुराणों में लिखा है। कुछ उदाहरण महाभारत गीता प्रेस गोरखपुर के अनुशासन पर्व से देता हूं:–

1. सुंदर वस्त्र आभूषणों में सैकड़ों अप्सराएं सेवा में हाजिर रहती हैं ( अध्याय 62 श्लोक 88 )

2. मनोहर वेश और सुंदर नितंब वाली ( पिछवाड़े वाली ) हजारों देवांगनाएं रमण करवाती हैं ( रमण का अर्थ गूगल पर देखें ) अध्याय 79 श्लोक 25 )

3. सुंदरी अप्सराएं क्रीड़ा करती हैं। ( अध्याय 81 श्लोक 30 )

4. 16 वर्ष की सी अवस्था वाली नूतन यौवन तथा मनोहर रूप विलास से सुशोभित देवांगनाएं प्राप्त होती हैं। ( अध्याय 107 श्लोक 38 )

5. परम सुंदर मधुर भाषिणी दिव्य नारियां पूजा करती है तथा काम भोग का सेवन करवाती हैं। ( अध्याय 107 श्लोक 76 )

6. पीन उरोज ( बड़े स्तन वाली ) वाली रमणियां मनोरंजन करती हैं। ( अध्याय 107 श्लोक 119, 120 )

ऊपर जो मैने लिखा है उसके पन्ने लगा रहा हूं। आप खुद से भी गूगल पर अनुशासन पर्व अध्याय जो मैने ऊपर लिखे है वह लिखो। सर्च रिजल्ट में कुछ भी चुन कर क्लिक करो। नीचे स्क्रोल करने पर आगे और पीछे जाने का विकल्प होता है। उससे आप अपनी जरूरत का श्लोक नंबर देख सकते हो।

एक वार राम मंच पर बैठे थे । मुख में ताम्बूल ( पान) था । ताम्बूल का प्रथम रस दोषकारक होता है, इस ख्याल से उन्होंने थूकना ...
01/10/2024

एक वार राम मंच पर बैठे थे । मुख में ताम्बूल ( पान) था । ताम्बूल का प्रथम रस दोषकारक होता है, इस ख्याल से उन्होंने थूकना चाहा। किन्तु निष्ठीवनपाव (ओगालदान) नहीं दिखायी पड़ा । रामके पास ही खड़ी सुगुणा नाम की दासी राम की इच्छा समझ गयी, किन्तु पात्र दूर था। इसलिए राम को थूकने के लिए उसने अपनी अञ्जली फैला दी ॥ रामने भी वह प्रथम रस उसके हाथ में थूक दिया। दासी उसको लेकर तुरन्त चाट गयी । उसने मनमें सोचा कि यह महाप्रसाद है और भाग्यवश आज मुझे मिल गया है। उसके इस व्यवहार से राम बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा-। अरी दासी ! तेरी जो इच्छा हो, वह वर माँग ले । रामकी बात सुनकर उसने कहा- इस जन्म में आप एकपलीव्रती हैं। इसलिए हे रघुनायक ! मैं दूसरे जन्ममें आपके साथ एकान्त में सहवास करना चाहती हूँ ॥ उसकी यह बात सुनकर राम ने कहा कि अगले जन्म में मैं कृष्ण रूप से गोकुल में अवतार लूंगा, तब तुम राधा नामसे विख्यात एक गोपपत्नी होओगो । उस समय बहुत दिनों तक तुम मेरे साथ क्रीडा का सुख भोगोगी, इसमें कोई संशय नहीं है।

यह लिखा है आनंद रामायण के राज्य कांड सर्ग 21 में। लक्ष्मण ने सीता की सुरक्षा के लिए कोई रेखा खींची थी ऐसा बाल्मिकी रामायण या रामचरित मानस में नही है पर इसमें है।

आजकल आर्य समाजी बहुत जोर लगा रहें है कि राधा नाम की कोई स्त्री कृष्ण के जीवन में नही थी। उनका कहना है कि ब्रह्मवैवर्त पुराण में ही राधा का वर्णन है जो विधर्मियो ( मुगल) ने जान बूझ कर लिखा था। क्या आर्य समाजियों की बात पर हंसी नही आती। लिखा विधर्मियों ने पर भजन कीर्तन करना हम ने शुरू कर दिया। राधा रमण हरी गोबिंद जय जय ( रमण का अर्थ है स्त्री से मैथुन करना) । इसका अर्थ यह हुआ कि हिंदू आबादी आनंदित हो गई इस मिलावट से और झूमने लगी। जिस ने हमे आनंद दिया उसका तो धन्यवाद करना बनता है।

अब फिर से राम के कथन पर जिस ने दासी को कहा कि तुम राधा नाम से विख्यात एक गोप पत्नी होओगी। उस समय मैं बहुत समय तक तुम मेरे साथ क्रीडा का सुख भोगोगी। यह सच है कि जब कृष्ण की 16008, या 16108 पत्नियों का नाम आता है उसमें राधा का नाम नही होता। राधा तो गोप पत्नी होगी ऐसा राम ने कहा। नंद और यशोदा भी गोप ही थे और राधा पता है किस गोप की पत्नी थी? यशोदा के भाई रायाण की यानी कृष्ण की मामी थी। (ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 49)

So you train the mind to find the inner resources that enable you to trust yourself. You get the mind in a position wher...
12/03/2024

So you train the mind to find the inner resources that enable you to trust yourself. You get the mind in a position where it’s not affected by hardships for the body. Or you can learn how to develop an attitude of goodwill for all beings, so at the very least you wouldn’t act in a way that would harm them.

So you’ve got to start here: Learn how to trust yourself; train the mind so that it can trust itself. And then whatever influence you have in the world is sure to be good."

~ Thanissaro Bhikkhu "Start with Yourself" ☸

Pankaj Dhwaz

Nerañjara/Nairanjana River (Bihar, India)This is the river where the Buddha bathed (Nairanjana River), and then, accepti...
11/03/2024

Nerañjara/Nairanjana River (Bihar, India)

This is the river where the Buddha bathed (Nairanjana River), and then, accepting milk curds offered by Sujata, he recovered his strength, sat beneath the pippala tree and attained enlightenment.

Although the river is shallow, it has water flowing all year around, even in the dry season. A ridge of hills lies across the river, and in the middle of the ridge is a spot where the Buddha once stayed, named Nigrodharama. The remains of Lady Sujata’s house are also nearby.

"Thus have I heard. At one time the Lord was staying at Uruvela, beside the river Nerañjara at the foot of the Bodhi Tree, having just realized full enlightenment. At that time the Lord sat cross-legged for seven days experiencing the bliss of liberation. Then, at the end of those seven days, the Lord emerged from that concentration and gave well-reasoned attention during the first watch of the night to dependent arising..."

Udana 1.1 - Bodhi Sutta: The Bodhi Tree

सारे फसाद का जड़ "यह  #दीपवंश_महावंश_और_दिव्यादान तीन पुस्तक है"यही वह पुस्तक है जो बिंदुसार मोर्य का 100 पुत्र और उसमें ...
11/01/2024

सारे फसाद का जड़ "यह #दीपवंश_महावंश_और_दिव्यादान तीन पुस्तक है"

यही वह पुस्तक है जो बिंदुसार मोर्य का 100 पुत्र और उसमें से 99 की हत्या अशोक द्वारा होने की कहानी गढ़ता है।
जबकि पुरातत्व इस बात की पुष्टि नही करता है।

यही वह पुस्तक है जो पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध विरोधी बताता है
जबकि पुरातत्व इसकी पुष्टि नही करता है।

यही वह पुस्तक है जो पुष्यमित्र को मोर्य का वंशज बताता है
जबकि पुरातत्व इसकी पुष्टि नही करता है।

लोगों को अंधभक्त बनना है तो इन तीनों पुस्तक की बात सत्य है
और
अगर तार्किक बनना है तो यह तीनों पुस्तक की कोई भी बात पुरातात्विक रूप से प्रमाणित नही है। यह पुस्तक भ्रम का पुलिंदा मात्र है।

फसाद का जड़ यही तीन पुस्तक है।

इस तीन पुस्तक का मूल लेखक कौन है और उस लेखक ने यह पुस्तक किस भाषा-लिपि के साथ किस वस्तु पर लिखा था?
इसका समुचित जवाब किसी के पास नही है।

कारण यह तीनो पुस्तक भ्रम का पुलिंदा है,
जिसका वर्णन #भ्रम_का_पुलिंदा पुस्तक के पेज नम्बर 38 पर किया हूँ।

भ्रम वंशियों को जब एक साजिश के तहत विश्व के महान जनकल्याणिकारी सम्राट पर ओछी टिप्पणी करना था, तो
एक नाटक करने वाला शिखंडी को सामने खड़ा कर दिया।

उसी प्रकार जब बिहार के माननीय मुख्य मंत्री जी पटना में सम्राट अशोक के नाम पर सभ्यता द्वार और कोनवेंसन सेंटर बना रहे थे,
तो इनके विरोधी पार्टी ने भी शिखंडी के रूप में प्रेम कुमार मणि जी को सामने खड़ा किया था।

जो बात आज दया शंकर सिन्हा जी ने लिखा है वहीं बात उस समय प्रेम कुमार मणि जी ने भी लिखा था।

दोनो के लेख में कोई अंतर नही है।

दोनों का लिंक दे दिया हूँ। आप लोग स्वयं से उसका अवलोकन करे।

दयाशंकर सिन्हा (नाटककार)
https://navbharattimes.indiatimes.com/india/sahitya-akademi-award-winner-author-daya-prakash-sinha-interview-said-emperor-ashoka-was-the-same-as-aurangzeb/articleshow/88767700.cms

Prem Kumar Mani (प्रेम कुमार मणि) राजद नेता।
https://www.forwardpress.in/2019/10/history-india-buddhism-ashoka-hindi/

Rajeev Patel

 #अपनेरामहम और हमारा धर्म भगवान श्रीराम को परब्रह्म मानते हैं। अर्थात अखिलब्रह्माण्डनायक। राष्ट्र तो उसके समक्ष बहुत छोट...
05/01/2024

#अपनेराम

हम और हमारा धर्म भगवान श्रीराम को परब्रह्म मानते हैं। अर्थात अखिलब्रह्माण्डनायक। राष्ट्र तो उसके समक्ष बहुत छोटी चीज है। विश्व भी छोटा है। लेकिन भगवान विश्वंभर हैं, विश्ववन्द्य हैं, विश्वात्मा हैं और जगत्पिता हैं। इस दृष्टि से राम के स्वरूप को देखना एक धर्मात्मा और भक्त का दृष्टिकोण है।

राम को राष्ट्र और प्रदेश बताना राजनीतिक दृष्टिकोण है। राष्ट्र कई बार राजनीतिक दृष्टि से अनेक विचारधाराओं और धर्मों द्वारा संचालित हुआ है। तो क्या समय-समय पर राम का तबादला होता जाएगा?

ज्यादा कुछ नहीं अभी वर्तमान में संविधानसम्मत राष्ट्रीय संरचना को क्या रामतत्व के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है? ‌यही झोल है राम को महापुरुष और राष्ट्रपुरुष मानने की कूटनीति में। संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की २२ प्रतिज्ञाएं ध्यान से पढ़िए। साथ‌ ही अंबेडकर जी की किताब का एक मुखपृष्ठ देखिए। फिर फैसला कीजिए कि हमारे अपने वाले राम सही हैं या राजनीतिक राम?

पलभर को मान भी लें कि राम को राष्ट्र बताने वाले राम को अभूतपूर्व और कालातीत बड़प्पन देने जा रहे हैं तो उनके पास विशाल अंबेडकरवाद से सामंजस्य बिठाने का कोई सूत्र है या अंबेडकर जी से अपना करीबी रिश्ता बताकर चुप बैठ जाएंगे?

👉👉

क्या हैं डॉ आंबेडकर की 22 #प्रतिज्ञाएं?

नागपुर में दीक्षा भूमि में 15 अक्टूबर 1956 को डॉ आंबेडकर ने साढ़े 3 लाख से ज्यादा लोगों के साथ हिंदू धर्म त्याग दिया। उन्होंने इस मौके पर 22 प्रतिज्ञाएं कीं।

1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में आस्था नहीं रखूंगा और उनकी पूजा नहीं करूंगा।

2. मैं राम और कृष्ण में आस्था नहीं रखूंगा, जिन्हें भगवान का अवतार माना जाता है। मैं इनकी पूजा नहीं करूंगा।

3. ‘गौरी’, गणपति और हिंदू धर्म के दूसरे देवी-देवताओं में न तो आस्था रखूंगा और न ही इनकी पूजा करूंगा।

4. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता।

5. मैं न तो यह मानता हूं और न ही मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे। मैं इसे दुष्प्रचार मानता हूं।

6. मैं न तो श्राद्ध करूंगा और न ही पिंड दान दूंगा।

7. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा, जो बुद्ध के सिद्धांतों और उनकी शिक्षाओं के खिलाफ हो।

8. मैं ब्राह्मणों के जरिए कोई आयोजन नहीं कराऊंगा।

9. मैं इंसानों की समानता में विश्वास करूंगा।

10. मैं समानता लाने के लिए काम करूंगा।

11. मैं बुद्ध के बताए अष्टांग मार्ग पर चलूंगा।

12. मैं बुद्ध की बताई गई पारमिताओं का अनुसरण करूंगा।

13. मैं सभी जीवों के प्रति संवेदना और दया भाव रखूंगा। मैं उनकी रक्षा करूंगा।

14. मैं चोरी नहीं करूंगा।

15. मैं झूठ नहीं बोलूंगा।

16. मैं यौन अपराध नहीं करूंगा।

17. मैं शराब और दूसरी नशीली चीजों का सेवन नहीं करूंगा।

18. मैं अपने रोजाना के जीवन में अष्टांग मार्ग का अनुसरण करूंगा, सहानुभूति और दया भाव रखूंगा।

19. मैं हिंदू धर्म का त्याग कर रहा हूं जो मानवता के लिए नुकसानदेह है और मानवताके विकास और प्रगति में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर टिका है। मैं बौद्ध धर्म अपना रहा हूं।

20. मेरा पूर्ण विश्वास है कि बुद्ध का धम्म ही एकमात्र सच्चा धर्म है।

21. मैं मानता हूं कि मेरा पुनर्जन्म हो रहा है।

22. मैं इस बात की घोषणा करता हूं कि आज के बाद मैं अपना जीवन बुद्ध के सिद्धांतों, उनकी शिक्षाओं और उनके धम्म के अनुसार बिताऊंगा।

कृष्ण के पिता वसुदेव की 14 पत्नियां थी। महाभारत खिलभाग़ हरिवंश पर्व के अध्याय 35 में इस तरह लिखा है :– जनमेजय । वसुदेवजी...
04/01/2024

कृष्ण के पिता वसुदेव की 14 पत्नियां थी। महाभारत खिलभाग़ हरिवंश पर्व के अध्याय 35 में इस तरह लिखा है :– जनमेजय । वसुदेवजी की जो चौदह सुन्दराङ्गी पत्नियां थी, उनमें रोहिणी ओर रोहिणी से छोटी इन्दिरा, वैशाखी, भद्रा तथा पांचवी सुनाम्नी-ये पांच पौरव वंश की थीं तथा सहदेवा, शान्तिदेवा, श्रीदेवा, देवरक्षिता, वृकदेवी, उपदेवी तथा सातवीं देवकी-ये सात देवक की पुत्रियां थीं तथा सुतनु ओर वडवा ये दो उनको परिचर्या करने वाली स्त्रियाँ थीं ॥

कृष्ण की 8 पटरानियां थी जिनका नाम महाभारत खिलभाग के विष्णु पर्व के अध्याय 60 में उनका नाम इस प्रकार लिखा है। रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, मित्रविन्दा, कालिन्दी, भद्रा(रोहिणी), नाग्नजिती तथा लक्ष्मणा। इसी में लिखा है कि मित्रविन्दा और भद्रा उर्फ रोहिणी कृष्ण की बुआ की लड़कियां थी। इसी के आगे अध्याय 63 में लिखा है कि इसके अलावा 16100 लड़कियां भोमासुर उर्फ नरकासुर की कैद में थी जिन को कृष्ण ने आजाद करवाया था और उनसे शादी की थी। इसीलिए 16108 पत्नियां बताई जाती हैं। भागवत पुराण में ऐसा ही लिखा है ( भागवत पुराण दशम स्कंद अध्याय 59 )
राधा कृष्ण की पत्नी थी ऐसा कही लिखा नही और जहां लिखा है वहां यह भी लिखा है कि राधा की शादी योशोदा के सगे भाई रायाण से तय हुई थी यानी कृष्ण की मामी थी लेकिन राधा ने अपनी छाया राधा की शादी रायाण से करवाई और खुद की शादी कृष्ण से करवाई। (ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 49.) एक ही समय में असली राधा कृष्ण के साथ और छाया राधा कृष्ण के मामा रायाण के साथ होना एक ही समाज में संभव नहीं है इसलिए राधा को शायद कृष्ण की पत्नी होना नही लिखा जाता। सीता भी राम ने अग्नि के हवाले कर दी थी और राम के साथ छाया सीता थी जिसको अग्नि से प्राप्त किया था और जिसका अपहरण रावण ने किया और रावण को मारने के बाद अग्नि परीक्षा नही बल्कि छाया सीता को अग्नि के हवाले कर के असली सीता को हासिल किया था ऐसा भी लिखा होता है। इसी तरह सूर्य की पत्नी संज्ञा भी सूर्य के ताप से त्रास हो कर अपनी छाया संज्ञा को सूर्य के पास छोड़ दिया जिससे सूर्य ने बच्चे पैदा लिए क्योंकि सूर्य को यह भेद पता ही नहीं चला। असली संज्ञा घोड़ी बनी हुई थी और सूर्य को पता लगने पर संज्ञा को ढूंढने के लिए गया और घोड़ा बन कर घोड़ी बनी संज्ञा से भी बच्चे पैदा किए। यह कहानी अगली पोस्ट में।

जहां कृष्ण की 8 पटरानियों में 2 तो उसकी बुआ की लड़कियां ही थी, वही कृष्ण के पुत्र परदुम्न ने अपने मामा की लड़की शुभांगी से शादी की थी। महाभारत खिलभाग के 61 वे अध्याय में यह लिखा हुआ है और इस विवाह से अनिरुद्ध का जन्म हुआ। कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने भी शादी अपने मामा की बेटी रूकमवती से किया।
सनातन हिन्दू धर्म में इस तरह का विवाह धर्म विरुद्ध है। मनुस्मृति में भी लिखा हुआ है। भागवत पुराण दशम स्कंद अध्याय 61 में इस प्रकार लिखा है :–
रुक्मी का भगवान् श्रीकृष्णके साथ पुराना बैर था। फिर भी अपनी बहिन रुकमणी को प्रसन्न करने के लिये उसने अपनी पोती का विवाह रुकमणी ( कृष्ण की पत्नी और रुक्मी की बहन) के पौत्र, अपने नाती (दोहित्र) अनिरुद्ध के साथ कर दिया। यद्यपि रुक्मी को इस बातका पता था कि इस प्रकार का विवाह-सम्बन्ध धर्म के अनुकूल नहीं है, फिर भी स्नेह बंधनों में बंध कर उसने ऐसा कर दिया॥(श्लोक 25)
अर्जुन ने भी अपने मामा की बेटी सुभद्रा का अपहरण कर के शादी की थी। सुभद्रा कृष्ण के पिता और कृष्ण की माता देवकी की पुत्री थी। यह भागवत पुराण के स्कंद 9 के अध्याय 24 श्लोक 55 में लिखा हुआ है। सुभद्रा के भाई कृष्ण ने खुद अपनी बुआ के पुत्र अर्जुन को अपनी बहन के अपहरण करने के लिए उकसाया था। महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 218 अध्याय में इस प्रकार लिखा है :–
सुभद्रा को देखते ही अजुनके हृदय में कामाग्नि प्रज्वलित हो उठी | उनका चित्त उसी के चिन्तन में एकाग्र हो गया । भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन की इस मनोदशा कों भाप लिया और कहा कि यह क्या, वनवासी का मन भी इस तरह काम से उन्मादित हो रहा है। (श्लोक 15, 16) यह मेरी और सारण की सगी बहिन है। (श्लोक 17) इसका स्वयंवर होगा और स्त्रियों का स्वभाव अनिश्चित हुआ करता है (श्लोक 21) इसलिए अर्जुन ! मेरी राय तो यही है कि तुम मेरी कल्याणमयी बहिन को बलपूर्वक हर ले जाओ। कौन जानता हैः स्वयंवरमें उसकी क्या चेष्टा होगी--वह किसे वरण करना चाहेगी ! (श्लोक 23)

संबंधित पन्ने पोस्ट कर दिए गए हैं। जिनको शक हो वह गूगल में सर्च कर के महाभारत पढ़ सकते है, महाभारत खिलभाग और दूसरे पुराण veducation नाम की वेबसाइट पर पढ़ सकते है।

Pankaj Dhwaz

बीजेपी का तेज तर्रार प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी इस वीडियो में बताना चाहते है कि एकलव्य शुद्र तो था परंतु आधे सत्य को छुपा...
23/12/2023

बीजेपी का तेज तर्रार प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी इस वीडियो में बताना चाहते है कि एकलव्य शुद्र तो था परंतु आधे सत्य को छुपाया गया कि एकलव्य मगध की सेना का सेनापति का बेटा था। ऐसा कहते हुए वह कहता है कि महाभारत के वनपर्व में एकलव्य का प्रसंग है और भारत के लोगों पर मार्क्स और मैकाले की शिक्षा के प्रभाव की वजह से हम बिना पढ़े ही अपने ग्रंथों पर शर्मशार हो जाते हैं। किसी ने यह पढ़ा ही नही होगा। वह यह भी कहता है कि जैसे आजकल मिसाइल छोड़ी जाती है वह उसी बिल्डिंग पर गिरती है जहां पर निशाना साधा गया है। मिसाइल के निशाने में गलती एक मीटर के अंदर ही इधर उधर हो सकती है लेकिन एकलव्य के तीर कुत्ते के मुंह के अंदर इस तरह घुसे कि कुत्ते के मुंह के अंदर खरोंच तक नहीं आई। दिव्य तीर की शक्ति थी एकलव्य के पास जिस पर गर्व करना चाहिए।

झूठ बोलता है सुधांशु त्रिवेदी। बीजेपी के सभी नेता झूठ भी इतनी दक्षता से बोलते हैं कि सच को भी अपने ऊपर शर्म आने लगेगी। अगर एकलव्य शुद्र नही भी था तो जवाब इस बात का तो दिया ही नहीं कि जिसके पास दिव्य तीर चलाने की क्षमता थी उस एकलव्य का अंगूठा क्यों कटवाया गया?

झूठ नंबर 1. :–महाभारत के वन पर्व में एकलव्य का कोई भी उल्लेख नहीं है। आदि पर्व में है।

झूठ नंबर 2. एकलव्य ने द्रोण को परिचय इस प्रकार दिया कि वह मगध के सेनापति हिरण्यध्नु का बेटा है। महाभारत में ऐसा नहीं लिखा। महाभारत के अनुसार उसने अर्जुन को कहा ( द्रोण उस समय साथ नही था ) कि मैं निषादराज हिरण्यध्नु का बेटा हूं और मुझे द्रोण का शिष्य जानो। निषाद वर्णसंकर जाति है जिसको समाज के अंदर रहने का हक नही दिया हिंदू सनातन संस्कृति ने। जंगल में रहेंगे तो उनकी भी बस्तियां बनेंगी और कोई उनका मुखिया भी होगा। बस मुखिया को ही निषाद राज कहा गया है। गलती करे पुरुष और स्त्री और सजा मिले उनकी औलाद को, यही हिंदू जीवन पद्धति है और इस जीवन पद्धति में अपने वर्ण के बाहर संबंध बनाना अवैध है। आदमी का वर्ण ऊंच नीच बच्चे के जन्म से निर्धारित कर दिया जाता था। आज कल हमारी न्याय व्यवस्था ने फैंसला कर दिया है कि अवैध संबंध या अवैध शादी तो हो सकती है परंतु औलाद अवैध नही हो सकती। बच्चे का क्या कसूर है, बच्चे ने क्या कोई गलती की है?

झूठ नंबर 3. :– बिल्डिंग पर निशाना साधना और कुत्ते पर निशाना लगाना दोनो की बराबरी नहीं हो सकती। बिल्डिंग हिल कर इधर उधर नही हो सकती जबकि कुत्ता आगे पीछे दाएं बाएं भी हो सकता है और मुंह खोल और बंद भी कर सकता है। ऐसा कोई दिव्य तीर नही हो सकता कि कुत्ते के मुंह के अंदर तीर लगे और खरोंच तक भी न आए। वैसे ही हिंदू ग्रंथों में अतिशयोक्ति और झूठ की भरमार है लेकिन महाभारत में ऐसा लिखा हुआ भी नही है कि कुत्ते के मुंह के अंदर खरोंच तक नहीं आई। हिंदुओं को मुर्ख बनाया जा रहा है कि झूठे ही अपने इतिहास पर गर्व करते रहो।

अब वह बातें तो सुधांशु त्रिवेदी ने छुपाई:–

1. महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 131 श्लोक 31, 32 में लिखा है कि एकलव्य शिक्षा पाने के लिए द्रोण के पास आया और बताया कि वह निषादराज हिरण्यध्नु का बेटा है परंतु धर्मज्ञ आचार्य द्रोण ने निषाद पुत्र समझ कर और कौरवों ( पांडू भी कौरव ही थे ) के हित के लिए मना किया था।

2. महाभारत आदि पर्व के अध्याय 131 श्लोक 45 से 58. एकलव्य ने अर्जुन को यह बताया कि मैं आचार्य द्रोण का शिष्य हूं तो अर्जुन ने द्रोण को कहा कि आपने तो कहा था कि मुझ से बढ़ कर मेरा कोई शिष्य नही हो सकता तो फिर निषादराज का बेटा धुर्नुविधा में मुझ से बढ़ कर कैसे हुआ? तब दो घड़ी सोचने के बाद निश्चय कर के एकलव्य के पास गए। (यानी अंगूठा कटवाने का निश्चय कर के) एकलव्य ने द्रोण की पूजा की और द्रोण ने कहा कि अगर मैं तुम्हारा गुरु हूं तो मुझे गुरु दक्षिणा में दाहिने हाथ का अंगूठा दो। एकलव्य ने अंगूठा काट कर दे दिया।

3. युद्धिष्टर ने राज सूर्य यज्ञ किया यानी आस पास और दूर तक के राजाओं को अपने अधीन किया। यज्ञ संपन्न होने पर युद्धिष्टर का राज्य अभिषेक किया गया। इस अभिषेक में एकलव्य युद्धिष्टर के जूते उठा कर उसके पांवों के नजदीक रखता है। महाभारत सभा पर्व अध्याय 53 श्लोक 8.

4. महाभारत के द्रोण पर्व अध्याय 181 श्लोक 5,17,18,19 में कृष्ण अर्जुन को बताता है कि द्रोण ने तुम्हारे ही हित के लिए छल पूर्वक एकलव्य का अंगूठा कटवाया था। अगर वह दुर्योधन का पक्ष ले लेते तो वह पूरी पृथ्वी ही जीत लेते। यानी युद्ध तो पहले से ही प्रायोजित था। दुर्योधन और उसके पिता धृतराष्ट्र को तो बली का बकरा बना कर राहुल गांधी की तरह बहाना बनाया गया।

अब यह भी बता दूं कि निषाद किस को कहा जाता है।
महाभारत अनुशासन पर्व के अध्याय 48 श्लोक 12 मैं लिखा है कि शुद्र व्यक्ति अगर क्षत्रिय स्त्री से जो औलाद पैदा करता है वह निषाद होती है। लेकिन मनुस्मृति अध्याय 10 श्लोक 8 में लिखा है कि ब्राह्मण व्यक्ति और शुद्र स्त्री से उत्पन्न औलाद निषाद होती हैं। महाभारत के अनुसार धीवर भी निषाद को ही कहते हैं और मनुस्मृति के अनुसार निषाद को पारसव भी कहते है। परंतु महाभारत में ब्राह्मण पुरुष और शुद्र स्त्री से उत्पन्न औलाद पारसव होती है लेकिन निषाद से उत्कृष्ट होती हैं।

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