14/11/2025
# # #सिवान विधानसभा चुनाव 2025: अवध बिहारी चौधरी की हार का विस्तृत विश्लेषण
सिवान विधानसभा सीट बिहार की एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील सीट रही है, जो हमेशा से जातिगत समीकरणों, अपराध और विकास के मुद्दों पर केंद्रित रहती है। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सिटिंग विधायक **अवध बिहारी चौधरी** को भाजपा के मंगल पांडेय से करारी शिकस्त मिली। यह हार न केवल व्यक्तिगत स्तर पर चौधरी के लिए झटका थी, बल्कि महागठबंधन की कमजोर प्रदर्शन का भी प्रतीक बनी। आइए, इस हार के कारणों का विस्तार से विश्लेषण करते हैं। विश्लेषण चुनाव आयोग के आंकड़ों, समाचार स्रोतों और चुनावी गतिशीलता पर आधारित है।
# # # # 1. **चुनाव परिणाम का सारांश**
- **विजेता**: मंगल पांडेय (भाजपा) - **92,379 वोट** (लगभग 49% वोट शेयर)।
- **उपविजेता**: अवध बिहारी चौधरी (आरजेडी) - **83,009 वोट** (लगभग 44% वोट शेयर)।
- **मत差**: 9,370 वोट (2020 की तुलना में काफी बड़ा, जब चौधरी ने मात्र 1,973 वोटों से जीत हासिल की थी)।
- **अन्य उम्मीदवार**:
- मोहम्मद कैफी समशीर (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन - AIMIM): 3,493 वोट।
- इंतेखाब अहमद (जन सुराज पार्टी): 2,543 वोट।
- कुल मतदान: लगभग 1.81 लाख वोट डाले गए, जिसमें वोटर टर्नआउट 59.7% रहा (2020 के 54.4% से बेहतर)।
- यह सीट पहले चरण (6 नवंबर 2025) में गई थी, और गिनती 14 नवंबर को हुई।
सिवान एक सामान्य श्रेणी की सीट है, जो सिवान लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यहां मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक करीब 20% है, जो पारंपरिक रूप से आरजेडी का गढ़ रहा है। लेकिन इस बार एनडीए की लहर ने इसे तोड़ दिया।
# # # # 2. **पृष्ठभूमि: चौधरी का राजनीतिक सफर और सिवान की राजनीति**
- अवध बिहारी चौधरी (78 वर्षीय) सिवान से छह बार विधायक रह चुके हैं। वे जनता दल और फिर आरजेडी से जुड़े। 2020 में उन्होंने भाजपा के ओम प्रकाश यादव को कड़ी टक्कर देकर जीत हासिल की थी।
- सिवान की राजनीति हमेशा विवादास्पद रही है - अपराध और जाति का बोलबाला। चौधरी यादव समुदाय से हैं, जो आरजेडी का कोर वोट बैंक है। लेकिन 2025 में उनकी उम्र, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार के पुराने आरोपों ने उनके खिलाफ माहौल बनाया।
- भाजपा ने उम्मीदवार बदलकर मंगल पांडेय (ब्राह्मण) को उतारा, जो बिहार के स्वास्थ्य मंत्री हैं। पांडेय की छवि विकास पुरुष की है, जो कोविड प्रबंधन और स्वास्थ्य योजनाओं से जुड़े हैं।
# # # # 3. **हार के प्रमुख कारण: बहुआयामी विश्लेषण**
चौधरी की हार एकल कारक से नहीं, बल्कि कई परस्पर जुड़े तत्वों से हुई। इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
# # # # # **क. एनडीए की समग्र लहर और बिहार-व्यापी कारक**
- **एनडीए का ऐतिहासिक प्रदर्शन**: 2025 चुनाव में एनडीए ने 200+ सीटें जीत लीं, जिसमें भाजपा अकेले 83 सीटें ले आई। आरजेडी मात्र 18 सीटें ही बचा सकी (143 में से)। सिवान में भी यह लहर दिखी - मतदाताओं ने स्थिरता और विकास को प्राथमिकता दी।
- **जंगल राज का भय**: एनडीए ने लालू-राबड़ी काल (1990-2005) के अपराधी राज को फिर से उछाला। सिवान जैसे जिलों में, जहां अपराध की यादें ताजा हैं, यह प्रचार प्रभावी रहा। विपक्ष के कुछ घटनाक्रम (जैसे उपमुख्यमंत्री पर हमले) को एनडीए ने इसका प्रमाण बनाया।
- **महिला मतदाताओं का ध्रुवीकरण**: बिहार में महिलाओं का टर्नआउट पुरुषों से 10-20% ज्यादा रहा। जीविका दीदियों (1.8 लाख स्वयंसहायता समूह) के जरिए एनडीए ने कल्याण योजनाओं (जैसे मुफ्त बिजली, पेंशन) का प्रचार किया। सिवान में भी महिलाओं ने भाजपा को फायदा पहुंचाया।
- **नीतीश कारक**: सीएम नीतीश कुमार की विश्वसनीय छवि ("बिहार का मतलब नीतीश कुमार") ने गठबंधन को मजबूत किया। जेडीयू की पुनरुत्थान ने पिछड़ी जातियों (EBC, कुर्मी) को एकजुट किया। एनडीए का वोट शेयर 49% पहुंचा, जबकि महागठबंधन का 38%।
# # # # # **ख. वोट विभाजन: तीसरे मोर्चे का जाल**
- सिवान मुस्लिम बहुल सीट है (लगभग 20% MY वोट)। आरजेडी का MY फॉर्मूला यहां मजबूत था, लेकिन AIMIM और जन सुराज के उम्मीदवारों ने मुस्लिम वोटों को चूर-चूर कर दिया।
- AIMIM का कैफी समशीर (3,493 वोट) और जन सुराज का इंतेखाब अहमद (2,543 वोट) - कुल 6,036 वोट - मुख्य रूप से मुस्लिम वोट बैंक से आए।
- अगर ये वोट आरजेडी के पास होते, तो चौधरी 89,045 वोटों के साथ जीत जाते (92,379 से ज्यादा)। जन सुराज (प्रशांत किशोर की पार्टी) ने 238 सीटों पर लड़ा लेकिन एक भी नहीं जीती, पर सिवान जैसे सीटों पर वोट कटौती की भूमिका निभाई।
- स्वतंत्र उम्मीदवारों (जैसे देवा कांत मिश्रा, सुनीता देवी) ने भी कुछ वोट छीने, लेकिन मुख्य नुकसान MY विभाजन से हुआ।
# # # # # **ग. उम्मीदवार-केंद्रित कारक**
- **अवध बिहारी की कमजोरियां**: 78 वर्ष की उम्र, कई बार विधायक होने से वर्तमानता का अभाव। उनके खिलाफ पुराने भ्रष्टाचार और भूमि विवाद के आरोप फिर उछले। 2020 की संकीर्ण जीत के बाद विकास कार्यों में कमी की शिकायतें रहीं।
- **मंगल पांडेय की मजबूती**: स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उनकी दृश्यता (टीकाकरण, अस्पताल निर्माण) ने ऊपरी जातियों (ब्राह्मण, राजपूत) को एकजुट किया। भाजपा ने उन्हें "विकास योद्धा" के रूप में प्रचारित किया, जो सिवान के पुल- सड़क मुद्दों पर फिट बैठा।
- **प्रचार रणनीति**: एनडीए ने डिजिटल और ग्राउंड कैंपेन में भारी निवेश किया। मोदी-नीतीश की रैलियां सिवान पहुंचीं, जबकि तेजस्वी यादव का फोकस अन्य सीटों पर रहा।
# # # # # **घ. स्थानीय और जातिगत समीकरण**
- **जाति गठजोड़**: एनडीए ने ऊपरी जातियों + EBC + दलितों का विस्तार किया। सिवान में ब्राह्मण (15%) और यादव (20%) के अलावा EBC (30%) ने भाजपा को झुकाया। आरजेडी यादव-मुस्लिम पर निर्भर रही, जो विभाजित हो गया।
- **विकास बनाम जातिवाद**: मतदाताओं ने "जाति की राजनीति" से ऊबकर विकास (स्वास्थ्य, शिक्षा) को चुना। सिवान जिले में बाढ़-बुनियादी ढांचे के मुद्दे प्रमुख थे, जहां पांडेय ने वादे किए।
- **कम टर्नआउट का प्रभाव**: हालांकि टर्नआउट बढ़ा, लेकिन MY वोटों का ध्रुवीकरण कम हुआ, जिससे आरजेडी को नुकसान।
# # # # 4. **निष्कर्ष: सबक और भविष्य**
अवध बिहारी चौधरी की हार आरजेडी के लिए चेतावनी है - MY फॉर्मूला अब पर्याप्त नहीं; वोट विभाजन और एनडीए की एकजुटता ने महागठबंधन को पटखनी दी। सिवान जैसे गढ़ों में तीसरे दलों की मौजूदगी ने निर्णायक भूमिका निभाई। कुल मिलाकर, यह हार बिहार की बदलती राजनीति को दर्शाती है, जहां विकास और स्थिरता जाति से ऊपर उठ गई। अगर आरजेडी 2030 तक नहीं चेती, तो ऐसे झटके बढ़ेंगे।
यह विश्लेषण ताजा आंकड़ों पर आधारित है; आगे की रिपोर्ट्स से और स्पष्टता आ सकती है।