04/08/2025
अपने मुल्क को गंगा-जमुनी तहजीब की जरूरत है....: शायर शकील आजमी
इससे अच्छा गांव है... : डॉ आरती कुमारीशायर व उर्दू कवि शकील आजमी
पटना लिट्रेरी फेस्टिवल्स ,(पीएलएफ) के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मुशायरा सह कवि सम्मेलन आयोजित
मौके पर रखी गई मुन्नवर राणा फाउंडेशन की नींव
विजय शंकर
पटना। आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में जन्मे और बॉलीवुड मुंबई को कर्मभूमि बनाने वाले देश के मशहूर शायर व उर्दू कवि शकील आजमी ने पूरी महफिल में चार चांद लगा दिया । मंच पर आने के बाद उन्होंने सबसे पहले शायर मुन्नवर राणा को याद किया और कहा कि उनके बेटे तबरेज राणा में जो सुनाया उससे उन्हें उनके पिता (मुन्नवर राणा ) की यादें ताजी हो गई है । उन्होंने फिर मुन्नवर राणा की याद में उनकी शायरी पढ़ी ... "गुजरता है मेरा हर दिन मगर पूरा नहीं होता, मैं चलता जाता हूं मगर सफर पूरा नहीं होता....।" पढ़कर पूरी महफिल को उनकी याद में डुबो दिया। मर के मिट्टी में मिलूंगा, खाक हो जाऊंगा, .....।
इसके बाद शायर शकील आजमी ने एक के बाद एक ऐसी ऐसी शायरी पढ़ी की पूरी महफिल ही उनमें डूब सी गई। उन्होंने पढ़ा, ...मैं थोड़ा थोड़ा हरेक रस्ते पर बैठा हूं, खबर नहीं है कि तू कहां से आयेगा। ....
एक झलक देख लें ....
जान दे सकता है क्या हौसला बढ़ाने के लिए ...।
हिंदू - मुसलमान के बीच इन दिनों बढ़ती खाई और वर्तमान हालात बयां करते हुए दो टूक कहा, अपने मुल्क को गंगा-जमुनी तहजीब की जरूरत है....। अल्लाह और भगवान राम की बात कहकर यह समझने की कोशिश की और पढ़ा... पेड़ कभी नहीं मरता है...., जड़ें मिटती नहीं। भगवान राम के 14 साल के बनवास पर अपने शायराना अंदाज में यह बताया कि उससे उनकी सौतेली मां की इच्छा भले पूरी हो गई मगर भगवान राम के अस्तित्व को कोई मिटा नहीं सका।
इसके बाद शायर शकील आजमी ने तो जैसे शायरी, गजलों की बरसात ही कर दी और पूरी महफिल को सराबोर सा कर दिया। फिर श्रोताओं की लगातार फरमाइशें आने लगी जिसे वे पूरा करते गए और किसी को पता ही नहीं चला कि कब रात गुजर गई, कब एक बज गया। ..कहीं दादी, कहीं नानी...,,। बिहार के लोगों की, शायरी पसंद करने वालों की सहृदयता से तारीफ करते हुए
जी सलाम पर पढ़ी शायरी दोहराई, कहा - बिहार जनता है कि शायरी नींद से बेहतर है ।
कतर से आए शायर अतीक अंजर ने पढ़ा, बड़ा नुकसान किया दोनों ने नफरत करके....। नज़्म ....आदमी को इंसान बनाना, ढूंढ रहा हूं मैं इंसान ....।
नफरत इतनी बढ़ गई है कि बहुत से लोग ...., हजारों बरस बाद भी मैं कुरुक्षेत्र में अकेला खड़ा हूं... । मैं कब तक भीड़ के हाथों मारता रहूंगा...। कोई चक्रधारी कृष्ण को लाओ, कोई धनुर्धारी अर्जुन को लाओ,....!
आस की डोर मत छोड़ना ..., अपनी मिट्टी में है अब भी नरमी, मिट्टी को मत छोड़ना....।
अदब की मुहर जानी जाने वाली शायर सबीना अजीज ने कई शायरी पढ़ी और लोग वाह, वाह करते रहे। शहर के दुख से अनजान कोई नहीं, कैसे कह दूं की परेशान कोई नहीं...., आदमी सब हैं, पर इंसान कोई नहीं...।
गजल में सुनाया, हमारे दिल का सारा गम, हमारी शायरी में है....। गरीबी, भूख, ठोकर शोहरत भी, कहानी में जो होता है वो मेरी जिंदगी में है...।
तुम जहां हो मैं वहीं हम, तुम समझते क्यों नहीं हो..., तुम फलक हो मैं जमीं हूं यह समझते क्यों नहीं हो....। इसके साथ ही उन्होंने मतभेदों के बीच एकता की बीज बोने की कोशिश की बात कही, कहा -
हमेशा एक दूसरे के हक में यह तय हुआ था....। लोगों की जबरस्त मांग पर सुनाया, ..खामोश लमहे झुकी हैं पलके , दिलों में उल्फत नई - नई हैं .... ।
मास्को, रूस से आई शायरा श्वेता सिंह उमा ने मुशायरे का बखूबी से संचालन किया। बातों - बातों में उन्होंने कह दिया, शरीर मेरा भले ही मास्को में रहता है पर दिल तो यहीं रहता,बसता है। मैं भगाने से भी भागने वाली नहीं हूं क्योंकि छह माह का बीजा लेकर आई हूं । अपनी गजल पढ़ी, ... जक नजारे का इतनी सिद्दत नहीं... पर खूब तालियां शायरा श्वेता ने बटोरी।
शायरा मुमताज नसीम ने अपने अंदाज से माहौल को खुशनुमा बना दिया। उन्होंने शुरू किया, ... प्यार की खुशबू का समंदर हूं मैं, मुस्कुराता हुआ शिकमंदर हूं मैं....,
बन के बादल जो मुझपर बरस जाओगे, नस में बस जाओगे ...,, क्या खबर थी कि मौसम बदल जाएगा....।
कौन कहता है हम दिल बुझाए बैठे है ...।
आखिरी प्रस्तुति में शायरा ने गजल पढ़ी । .... पागलपन में क्या बतलाऊं, सजना क्या-क्या भूल गई ..., तेरा चेहरा याद रहा, अपना चेहरा भूल गयी .., तेरा मफलर जब से मिला है अपना दुपट्टा भूल गई ......, को लोगों ने खूब पसंद किया, जमकर तालियां बरसीं।
शायर माजीद देवबंदी ने भी शायरी से माहौल बनाया, पढ़ी, मोहब्बतो के लिए कोशिशें नहीं होती, दिलों में गुंजाइशें नहीं होती....। मैकिनॉन से मका जिंदा है, ...कबीलों में अब भी कई जवां जिंदा हैं।
मुशायरा में पढ़ा... खुदा ने हुस्न क्या दिया...।
देश पर हिंदू मुस्लिम एकता पर मंडराते बादलों पर दिल की बात सुनाई , कहा ... जहां में एक मिसाल थी हमारे एतिहाद की, अलग अलग हुए तो हमसफर सा होके रह गए..., जो प्यासे थे वो प्यासे होकर रह गए।
पटना लिट्रेरी फेस्टिवल्स ,(पीएलएफ) के तत्वावधान में पटना के गायघाट स्थित के एल- 7 होटल व बैंक्वेट हाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय मुशायरा और कवि सम्मेलन में आज रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विदेशी मेहमान, शायर-शायरा शामिल हुए जिसमें कतर से अतीक अंजार और मास्को, रूस से श्वेता सिंह उमा शामिल थी। इसके अतिरिक्त देश के ख्यातिप्राप्त शायर शकील आजमी, शबाना अदीब,मुमताज नसीम, मजीद देवबंदी, जुबैर अली ताबिश, सज्जाद झंझट, सैयद तबरेज राणा समेत अन्य कई शायर शायरा, कवि शामिल हुए। अन्य शायर कवियों में रेणु हुसैन,कमर अब्बास, डॉ आरती कुमारी, निहारिका छवि,संतोष सिंह, संस्कृति श्री आदि शामिल हुए।
कार्यक्रम का उद्घाटन और मुख्य अतिथि बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान ने किया।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण पीएलएफ के संस्थापक सचिव, एडवांटेज मीडिया, रूबरू के खुर्शीद अहमद ने किया और कहा कि मेरी कोशिश है कि पटना में साहित्यिक, सांस्कृतिक, सांप्रदायिक सद्भाव सदियों वाला माहौल बना रहे। मौके पर मुन्नवर राणा फाउंडेशन की लॉन्चिंग की गई। सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा अहमद ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया और कहा कि मुशायरा में अंत तक बैठा जाता है और मैं भी अंत तक बैठूंगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना बधाई संदेश आयोजकों को दिया है और अपनी शुभकामनाएं भेजी है।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ आरती कुमारी की नज्मों से हुआ जिसमें तुम्हीं दुनिया ...और शहर में ऊंचे घर है, पीपल की छांव नहीं इसलिए इससे अच्छा गांव है... , काफी पसंद किया गया।
साहित्यकार, कवि, पत्रकार संतोष सिंह ने सुनाया ..."मेरा कागज, मेरा देश..." मेरी पहचान कहीं गिर गई है, कोई मेरे देश का परिचय पत्र बनवा दो...। फिर अगली प्रस्तुति दी, मैं ही बिहार हूं.. जिसमें पूरे बिहार की छवि जब रखी गई तो लोग वाह,वाह करते रहे।
कवियत्री निहारिका छवि ने वर्तमान काल में स्त्री की वेदना और नारी शक्ति पर कविता पढ़ी।
शायर मुन्नवर राणा के बेटे सैयद तनबीर राणा ने पिता मुन्नवर राणा के नज़्म पढ़े और श्रोताओं के दिलों में उनकी यादें ताजी कर दी । उनके निराले अंदाज .. नए कमरों में चीजें पुरानी कौन रखता है...। मैं जब भी बात करता हूं मेरा लहजा बताता है, यतीमी ...।
शायर कमर अब्बास ने शायरी की शुरुआत की, ... मेरी जिंदगी का सवाल है मेरी जिंदगी...,। छिड़ गई महफिल में कोई बात, मुंह तक आ ही नहीं पाती है कोई बात...। इश्क बे खतरे अंजाम बहुत अच्छा है...कोई करता नहीं पर काम बहुत अच्छा है...।
शायरा रेणु हुसैन ने शेर पढ़ा, ..फोन बच्चों को सौंप दे हम, पर उनकी आवारगी से डरते है ...। फिर गजल पेश किया जिसके बोल थे .. कपस में ही नहीं होगा कभी मलाल मुझे.... पर श्रोताओं ने काफी तालियां ठोंकी।
शायर सज्जाद झंझट ने सुनाया, कहा- सिर्फ झंझट नाम से नहीं बिकता तो सोचता हूं डॉक्टर लिखने लगूं ...।
चुनावी वर्ष पर मंत्री जी भरोसा दे गए, उसको प्रमोशन मिलेगा जिसके बच्चे तीन हैं ...., पर लोग काफी हंसे। शायर सज्जाद झंझट की प्रस्तुति ने तो अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा अहमद को इतना रिझाया कि मंत्री जी ने शायर झंझट को फिर से सुनने की इच्छा जता दी। मुशायरा के कायदे कानून तोड़कर शायर झंझट को फिर से मंच पर बुलवाया गया। झंझट में उलझे झंझट फिर आ धमके और अपनी शायरी से लोगों को खूब हंसी से लौट पोट कराकर लौट गए।
कार्यक्रम के मुख्य पार्टनर व सहयोगी होटल के एल 7, सामाजिक संस्था नवशक्ति निकेतन, मुन्नवर राणा फाउंडेशन, मीडिया पार्टनर कौमी तंजीम उर्दू दैनिक, रेडियो पार्टनर 95 बिग एफएम, टीवी पार्टनर सलाम टीवी रहे । साथ ही सह प्रायोजक रूबन हॉस्पिटल, किडजी स्कूल दीघा, खजाना ज्वेलर्स, पंजाब नेशनल बैंक, आईडीबीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, पिनेक्स स्टील, पिस्ता हाउस आदि शामिल थे। कार्यक्रम में पीएलएफ के संस्थापक सचिव, एडवांटेज मीडिया रूबरू के खुर्शीद अहमद, नवशक्ति निकेतन के अध्यक्ष रमाशंकर प्रसाद व नवशक्ति निकेतन के महासचिव कमलनयन श्रीवास्तव, पीएलएफ के अध्यक्ष डॉ सत्यजीत सिंह समेत पटना के कई नामी साहित्यकार, कवि कवियत्री शामिल हुए जिसमें डीजीपी रहे आईपीएस आलोक राज, साहित्यकार मधुरेश, रूबी भूषण, पुणे से सोफिया खान, मुन्नवर आलम के लड़के तबरेज आलम, कौमी तंजीम के असरफ अली, वरिष्ठ पत्रकार फैयाज अहमद, अब्दुल रहमान हैदराबाद से आदि
शामिल हुए और सबों को चादरों से सम्मानित भी किया गया।