
02/06/2025
आज मैं छुट्टी से वापस लौट रहा था उस दौरान जब मधुपुर से ट्रेन खुला तो एक बूढ़े व्यक्ति मेरे डब्बे में आए दोनों आंखों से अंधे थे वो पर बुरा मुझे तब लगा जब पूरा सीट खाली और वो बोल रहे हैं कि मुझे २ स्टेशन बाद उतरना है कोई बैठा लो पर किसी से नहीं बैठाया सब ये बोल रहे थे कि आगे बढ़ो सीट नहीं है, मुझसे नहीं रहा गया और मैने अपनी सिंगल विंडो सीट पर उन्हें बिठा लिया उसके बाद मैने सोचा कि क्या लोग अपने घर में भी बुजुर्गों के साथ ऐसे हीं करते होंगे या फिर ये अंधे थे इनका कपड़ा गंदा था इसलिए, बहुत बुरा लगा और ये पता चल गया कि खुद के अलावा किसी पे भरोसा नहीं करना है यहां इंसान को इंसान से घृणा है।
खैर जब उनका स्टेशन आया मैने उन्हें उनके स्टेशन पर उतार दिया और कुछ पैसे दिए शायद उनके काम आ जाए ।
ये यात्रा मुझे हमेशा याद रहेगा।