04/10/2025
अल्हम्दुलिल्लाह वस्सलातु वस्सलामु अला रसूलिल्लाह ﷺ
मोहतर व मोअज्जम सामइन
आज हम सब जानते हैं कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है। लेकिन अफसोस! हमारी कौम को ये नहीं मालूम कि यही 2 अक्टूबर सन 1187 में इस्लाम के उस शेर, उस गाज़ी, उस आशिक़े रसूल ﷺ – सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी रहमतुल्लाह अलैह – ने बैतुल मुक़द्दस (क़िब्ला-ए-अव्वल) को फ़तह किया था।
सोचो..! क्या हमने ये तारीख़ अपने बच्चों को बताई? क्या हमने उन्हें सिखाया कि हमारा अतीत कितना रोशन और शान वाला है?
भाईयो!
आज हमारी हालत ये है कि कुछ लोग दुनिया जानते हैं लेकिन दीन नहीं जानते, और कुछ लोग दीन जानते हैं मगर दुनिया से बेख़बर हैं। जबकि असल हक़ीक़त ये है कि इल्म इल्म होता है, चाहे वो दीन का हो या दुनिया का। हमारी कौम को दोनों का इल्म होना ज़रूरी है।
लेकिन अफसोस! आज हम दुआ तो करते हैं कि "काश कोई सलाहुद्दीन अय्यूबी रहमतुल्लाह अलैह जैसा पैदा हो जाए", मगर खुद को उनके नक्शे-कदम पर चलाने के लिए तैयार नहीं होते। याद रखो..!
सलाहुद्दीन बनने के लिए पहले उनके वालिदैन जैसी तरबियत, उनका अख़लाक, उनका किरदार और उनका जज़्बा चाहिए। तब जाकर हमारी औलाद में कोई सलाहुद्दीन, कोई अब्दुल हमीद, कोई ग़ाज़ी गुलाम गैास पैदा होगा।
मोहतर व मोअज्जम सामइन!
कुरआन और हदीस हमें ये सिखाते हैं कि:
“अद-दुनिया मज़रउल-आख़िरह” – यानी ये दुनिया आख़िरत की खेती है। जो बोओगे वही काटोगे। चना बोकर गेहूं नहीं काट सकते।
मगर आज हमारी कौम का हाल देख लो – डॉक्टर की बात मान लेते हैं, लेकिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बात पर अमल नहीं करते। सब समझते हैं, मगर मानने और अमल करने वाले बहुत कम हैं।
अगर सच में हम चाहते हैं कि हमारी कौम उठे, हमारी नस्लें सर उठाकर जियें, तो हमें सीरत-ए-रसूल ﷺ पढ़नी होगी, सीरत-ए-औलिया पढ़नी होगी और फिर उस पर अमल करना होगा।
इनशा अल्लाह..!
उस दिन हमारी कौम में फिर कोई सलाहुद्दीन, कोई ग़ाज़ी, कोई मुजाहिद पैदा होगा, जो उम्मत का सर बुलंद करेगा।
वमाआलैना इल्लल बलाग़ुल मुबीन
्टूबर
#फ़तह_बैतुल_मुक़द्दस 🖤