Meri Kalam se

Meri Kalam se "Meri Kalam Se" – Jahan har shayari, kavita aur motivational quotes dil ko chhoo jate hain. Aaiye, humari kalam se apne jazbaat ko zindagi banaiye!"

Har lafz mein hai jazbaat, jo jeevan ko prerna aur rangon se bhar de.

भाव मेरे पंख, ख्वाहिश मेरी उड़ान,शब्दों से बनाऊँ खुद की पहचान।जब तक साँस है मेरे जिस्म में,लिखता रहूँ मैं... अपनी कलम से...
25/02/2025

भाव मेरे पंख, ख्वाहिश मेरी उड़ान,
शब्दों से बनाऊँ खुद की पहचान।
जब तक साँस है मेरे जिस्म में,
लिखता रहूँ मैं... अपनी कलम से।

- दिवेश झा

12/02/2025

न चौरासी बंगला, न मखमली बिस्तर… फिर भी सबसे गहरी नींद जिसे आती है वही सबसे अमीर है! 💤✨ सहमत हैं तो 👍 ज़रूर दबाएं!

हंसी के नाम पर…"कभी हंसी में थी सादगी,ठहाके भी गूंजते थे शराफत में।अब मज़ाक बिकता है,बेहयाई की हिफ़ाज़त में।जोकर बने थे ...
11/02/2025

हंसी के नाम पर…"

कभी हंसी में थी सादगी,
ठहाके भी गूंजते थे शराफत में।
अब मज़ाक बिकता है,
बेहयाई की हिफ़ाज़त में।

जोकर बने थे कभी,
दिलों को हंसाने के लिए,
अब मंच पर आते हैं,
गालियां सुनाने के लिए।

हंसी के नाम पर अब,
नंगई परोसी जाती है,
अभिव्यक्ति की आड़ में,
शर्मो-हया बेची जाती है।

कभी बाप पर, कभी माँ पर,
बेहूदा जोक सुनाते हैं,
संस्कृति की चिता जलाकर,
तालियां बजवाते हैं।

संस्कृति का मज़ाक उड़ाकर,
दौलत तो कमाओगे,
पर याद रखना,
अपने बच्चों को क्या सिखाओगे?

कभी फिर लौटेगी,
हंसी वो साफ़-सुथरी,
जहाँ ठहाके गूंजेंगे,
न होगी कोई गंदगी!
- दिवेश झा

कविता : अपनी पहचानरास्ते मुश्किल सही,पर ना डरना कभी।कभी धूप सख़्त लगे,कभी छाँव कम मिले।बनना दरिया की तरह,जो हर चट्टान को...
02/02/2025

कविता : अपनी पहचान

रास्ते मुश्किल सही,
पर ना डरना कभी।
कभी धूप सख़्त लगे,
कभी छाँव कम मिले।

बनना दरिया की तरह,
जो हर चट्टान को चीर बहे।

ठोकरें मिलें बहुत,
गिरो चाहे कितनी बार,
पर हौसले के पंखों से
तुम उड़ना आसमान।

हार मान लोगे?
नहीं, ये तुम्हारी फ़ितरत नहीं।
हर रात के बाद सवेरा आए,
यह हक़ीक़त सही।

कुछ अपने बदल जाएंगे,
कुछ सपने बिखर जाएंगे,
पर हर कदम एक सीख देगा,
तब पाओगे अपनी पहचान ।

लेखक - दिवेश झा

10/12/2022

ना कोई गुनाह किया है
ना कोई सजा मिली है
फिर भी क्यूं, कैद में है जिंदगी

ना कोई पहरा है मुझपर
ना किसी ने नजरबंद किया है
फिर भी क्यूं, पिंजरे में है जिंदगी

घर है, शहर है,
हैं सब रिश्ते नाते भी
ना कोई नाराज है मुझसे
ना किसी से मेरा मन रूठा है
फिर भी क्यूं, परदेश में है जिंदगी

निकलता हूं हर रोज घर से
लौट कर हर रोज आता हूं
ना कोई रोकता है
ना कहीं रुकता हूं
फिर भी क्यूं, थमी सी है जिंदगी

उम्र बढ़ रही हैं
बढ़ रही हैं जरूरतें
ना कुछ खर्च किया है
जो बना सब जमा किया है
फिर भी क्यूं, घट रही है जिंदगी

- दिवेश झा

23/03/2022

कभी इस शहर, कभी उस शहर
कभी इस गली, कभी उस गली
कभी मायूस, कभी हंसी
कभी बेवश, कभी हठी
कभी मुरझाया, कभी खिला
कभी बिखरा, कभी मिला
कभी शक्ल बदला, कभी मन बदला
कभी आवाज दबी, कभी मैं भड़का
कभी सुकून, कभी बेहाल
कभी जवाब, कभी सवाल
कभी चर्चे, तो कभी गुमनाम
कभी मौज में, तो कभी तंग हाल
हां मेरी नीदें बदल रही हैं, ख्वाब नहीं
मैं रास्ते बदल रहा हूं, मंजिल नहीं ।।
Written - दिवेश झा

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