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09/08/2024
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने 2024 के लोकसभा चुनाव पर किया चौंकाने वाला दावा
30/07/2024

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने 2024 के लोकसभा चुनाव पर किया चौंकाने वाला दावा

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने 2024 के लोकसभा चुनावों पर एक चौंकाने वाला दावा किया है। ADR की रिपोर्ट के अनुस...

20/07/2024

मुस्लिम देशों से आये पट्रोल-डीजल का उपयोग कावड़ यात्रा पथ पर किसी भी तरह नहीं किया जाना चाहिए. 😂😂

दिलों की लाइब्रेरी"""""""""""""""""""""""एक जमाना था जब इस्लामी देशों में बेहतरीन लाइब्रेरियां हुआ करती थीं , बग़दाद , ग...
04/04/2023

दिलों की लाइब्रेरी
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एक जमाना था जब इस्लामी देशों में बेहतरीन लाइब्रेरियां हुआ करती थीं , बग़दाद , गरनाता , असकंदरीया , रे ( आज का तेहरान ) नीशापुर , समरकंद , दमिश्क ,कूफा , बसरा बुखारा, मराकिश , गजनी , लाहौर और काश्ग़र आदि शहरों में बड़े बड़े कुतुबखाने मौजूद थे रिसर्च सेन्टर्स थे जहां रिसर्च का काम होता था अच्छी किताबों के लिखने पर पुरूस्कार मिलते थे

उस जमाने में बड़े बड़े आलिम , वैज्ञानिक , फलसफी , इतिहास कार , अदीब व शायर हुए जिन्होंने बहुत कुछ लिखा और दुनिया को दिया , कुछ ने दस बीस किताबें लिखी किसी ने चालीस पचास

फिर ज़माना पलटा , मंगोल व ततार आधी की तरह आए बादलों की तरह छा गए लाखों लोगों को कत्ल कर दिया शहर के शहर वीरान कर दिए गए लाइब्रेरियों को जला दिया गया मदरसों को बर्बाद कर दिया गया

बहुत बुरा ज़माना था मुसीबतों के पहाड़ तोड़े गए थे लेकिन मुसलमान एक जिंदा कौम है वह हालात से घबराने वाले नहीं हैं मुसलमानों ने इसे एक चैलेंज के रूप में लिया , और जुट गए इस नुकसान की भरपाई के लिए

पहले एक लेखक बीस किताबें लिखता था अब के लेखक दो सौ लिखने लगे पहले तीस किताबों का तर्जुमा करता था अब तीन सौ किताबों का तर्जुमा करने लगे इस दौर में ऐसे विद्वान भी हुए जिन्होंने पांच सौ किताबें तक लिखीं , ऐसे लोग भी थे कि जब उनकी उम्र और उनके द्वारा लिखी गई किताबों के पेजों का हिसाब लगाया गया तो एक दिन में दस पेज लिखने का औसत निकला

अल्लामा इबनुल जोज़ी , इमाम इब्ने तैमिया , इब्ने कय्यिम , इब्ने कसीर , इब्ने असीर , सुयोती , इब्ने खलदून , ज़हबी , सुबकी , इब्ने हज्र असकलानी , अलऐनी , अबुल इज़्ज अब्दुस्सलाम , तकीद्दीन शामी , नसीरुद्दीन तूसी जैसे कितने नाम हैं जो चंगेज खान व हलाकू के जमाने में या उसके तुरंत बाद पैदा हुए और अपने इल्म से हर नुकसान की तलाफी कर दी मकानों से कुतुबखाने मिटा दिए गए तो दिलों में कुतुबखाने बना लिए

मुसलमान हारने वाली कौम नहीं है इतिहास गवाह है मुसलमान की डिक्शनरी में मायूसी शब्द नहीं है जिन परिस्थितियों में दूसरे लोग टूट कर बिखर जाते हैं उन्हीं परिस्थितियों में मुस्लमान पहले से ज्यादा ताकत से उठ खड़े होते हैं ऐसा एक बार नहीं बार-बार हुआ है हम ने खुद को साबित किया है

✒️Khursheeid ahmad🖊️

02/04/2023

बिहार के नालन्दा का सबसे पुराना मदरसा अज़ीज़िया जिसका इतिहास आजादी से पुराना है. जिसे रामनवमी के जुलूस में राम भक्तों ने आग के हवाले कर दिया. जिसमे मदरसा पूरी तरह से जल कर राख हो गया. जिसमे तकरीबन 4500 कुरान मजीद और कई इस्लामिक किताबें जल कर राख हो गयी.

04/12/2022

किसी की लेखनी से✍️.......

मैं हमेशा मोदीजी की आलोचना करता था, लेकिन आज मैं उनके बारे में कुछ कम ज्ञात अच्छी बातें साझा करूंगा। क्या आपको पता था:

मोदी ने दो बार जन्म लिया - पहला 29 अगस्त 1949 को (उनकी डिग्री पर) और दूसरा 17 सितंबर 1950 को (सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध)।

1950 में पैदा हुए मोदी ने 6 साल की उम्र में वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेची थी, लेकिन वडनगर में सिर्फ पटरियां ही गुजरती थीं। वास्तविक रेलवे स्टेशन 1973 में बनाया गया था, जब मोदी 23 वर्ष के थे।

आपातकाल के दौरान मोदी भूमिगत थे, लेकिन उन्होंने 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया।

मोदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक प्रमाणपत्र के बिना 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से संपूर्ण राजनीति विज्ञान में परास्नातक किया।

मोदी दुनिया के इकलौते ऐसे शख्स हैं, जिनके पास पूरे राजनीति विज्ञान में मास्टर्स डिग्री है। गुजरात विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को भी 2014 के बाद इस कोर्स के बारे में पता चला।

मोदी ने मास्टर्स ऑफ एंटियर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री में अकेले प्रवेश लिया, अकेले परीक्षा दी और अकेले डिग्री ली। अभी तक किसी भी छात्र या प्रोफेसर ने मोदी के साथ पढ़ाई करने का दावा नहीं किया है.

भारत में कंप्यूटर के आने से पहले भी मोदी की डिग्री कंप्यूटर से छपती थी।

1978 में मोदी की डिग्री से पहले और उसके 10 साल बाद भी, डिग्री विश्वविद्यालय के कर्मचारियों द्वारा हाथ से लिखी जाती थी।

1992 में माइक्रोसॉफ्ट द्वारा पेटेंट कराया गया फॉन्ट 1978 में मोदी की डिग्री को प्रिंट करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।

मोदी की डिग्री रविवार को छपी थी, जब कार्यालय बंद थे।

इसी में से समय निकालकर उन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन में भी हिस्सा लिया था!

एक और सबसे ज़रूरी बात रह गई
मोदी जी ने 35 साल भिक्षा मांग कर पेट भरा था।
भिक्षाटन से समय निकाल कर वे देशाटन को भी चले जाते थे।
हॉलीवुड के यूनिवर्सल स्टूडियो और पेरिस में एफिल टावर के सामने कोट पहन कर फोटो भी खिंचाते थे।

अगर आप लोग अभी भी नहीं मानते कि मोदी जी अलौकिक हैं, तो आप देशद्रोही हैं!

नशा शराब का हो या अंधभक्ति का एक ना एक दिन उतरता जरूर है !
लेकिन जितनी देर होगी , बर्बादी उतनी ही बड़ी होगी 😂

29/10/2022

अपने बच्चों के खातिर जरूर देखें.

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